ब्रिटेन से लाखों टायर्स को रीसाइकल करने के लिए भारत भेजा जा रहा है और इन्हें अस्थायी भट्टियों में पकाया जा रहा है. इसकी वजह से ना सिर्फ पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंच रहा है बल्कि स्वास्थ्य से जुड़ी गंभीर समस्याएं भी पैदा हो रही हैं.
बीबीसी फाइल ऑन 4 इन्वेस्टिगेट्स को बताया गया है कि ब्रिटेन से निर्यात किए जाने वाले ज्यादातर बेकार टायर भारत की ब्लैक मार्केट में बेचे जाते हैं और इंडस्ट्री में ये बात सभी को पता है ब्रिटेन में एक टायर रीसाइकल प्लांट के मालिक इलियट मेसन ने कहा, “मैं ऐसी उम्मीद नहीं करता कि इंडस्ट्री में ये बात किसी को नहीं पता होगी कि ऐसा हो रहा है.”

इस इंडस्ट्री से जुड़े अधितकर लोग और टायर रिकवरी एसोसिएशन (टीआरए) का कहना है कि सरकार जानती है ब्रिटेन टायर के निर्यात और इस तरह के इस्तेमाल में बड़ा अपराधी है.हालांकि एनवायरनमेंट, फू़ड और रूरल अफेयर्स विभाग (डेफ्रा) ने कहा है कि बेकार टायर के निर्यात पर उसका कंट्रोल है और इसमें जुर्माना लगाना और जेल भेजना भी शामिल है.जब भी कोई टायर बदलवाता है तो इसमें रीसाइकल फीस भी शामिल होती है. ये तीन से छह यूरो हो सकती है.इससे ये सुनिश्चित करना होता है कि टायर को रीसाइकल किया जाएगा, चाहे वो देश में हो या फिर विदेश में.
पायरोलिसिस प्रक्रिया से गुज़रते हैं 70 फ़ीसदी टायर

साल 1996 से इलियट मेसन के प्लांट में टायरों को रबड़ के छोटे-छोटे टुकड़ों में बदला जा रहा है. रबड़ के टुकड़ों का इस्तेमाल अक्सर घुड़सवारी केंद्रों और बच्चों के खेल के मैदानों में फर्श के रूप में किया जाता है.
ब्रिटेन में हर साल करीब 5 करोड़ करोड़ टायर इस्तेमाल के लायक नहीं रहते हैं. आधिकारिक आकड़ों के मुताबिक इनमें से करीब 2.5 करोड़ टायर्स को रीसाइकल करने के लिए भारत भेजा जाता है.भारत भेजे जाने से पहले टायर्स को रबड़ के टुकड़ों में बदल दिया जाता है जिसे ‘बेल्स’ कहा जाता है.
मेसन कहते हैं, “दिखाया ये जाता है कि टायर्स को भारत भेजा जा रहा है और हमारे जैसे प्लांट में ही उन्हें रबड़ के टुकड़ों में बदला जा रहा है.”टीआरए का अनुमान है कि ब्रिटेन और दुनिया के बाकी देशों से भारत निर्यात किए गए 70 फीसदी टायर्स को अस्थायी भट्टियों में पकाया जाता है.
ऑक्सीजन रहित वातावरण में करीब 500 डिग्री सेल्सियस पर इन टायर्स को पकाया जाता है और इस प्रक्रिया को पायरोलिसिस कहा जाता है.इस प्रक्रिया के दौरान टायर से स्टील और थोड़ी मात्रा में तेल निकाला जाता है. साथ ही कार्बन ब्लैक भी निकाला जाता है, जो एक तरह का पाउडर है और इसका इस्तेमाल विभिन्न उद्योगों में किया जा सकता है.
अधिकतर पायरोलिसिस प्लांट ग्रामीण इलाकों में मिलते हैं. इनमें से खतरनाक गैस और केमिकल निकलते हैं.आधिकारिक पेपर्स में ये दिखाया जाता है कि इन टायर्स को रीसाइकल करने के लिए भारत निर्यात किया जा रहा है. लेकिन इनमें से अधिकतर पायरोलिसिस प्लांट में ही पहुंचते हैं.
गैरकानूनी तरीके से चल रहे हैं अधिकतर प्लांट

टुगेदर विद सोर्स मेटिरियल एक नॉन प्रॉफिट जर्नलिज्म ग्रुप है. उन्होंने टायर्स के ब्रिटेन से भारत आने के सफर को फॉलो करने की कोशिश की और इस दौरान इंडस्ट्री के एक इनसाइडर ने टायर्स के शिपमेंट में ट्रैकर्स लगाए.
आठ हफ्तों के सफर के बाद टायर्स भारत के बंदरगाह पर पहुंचे. इसके बाद उन्हें वहां से करीब 1300 किलोमीटर की दूरी पर एक छोड़े से गांव में भेजा गया.भारत से ली गई और बीबीसी के साथ शेयर की गई ड्रोन फुटेज से पता चला कि इन टायर्स को पायरोलिसिस के लिए लाया गया और वहां पहले से ही हजारों टायर्स मौजूद थे.
बीबीसी फाइल ऑन 4 इन्वेस्टिगेट्स ने वहां ऑपरेट हो रही एक कंपनी से बात की. उन्होंने पुष्टि की कि वो निर्यात किए गए टायर्स को प्रोसेस कर रहे हैं. लेकिन उन्होंने इस बात से इनकार किया कि वो कोई खतरनाक या फिर गैरकानूनी काम कर रहे हैं.
पर्यावरण पर काम करने वाले एक वकील ने बीबीसी को बताया कि भारत में करीब 2,000 पायरोलिसिस प्लांट हैं. उन्होंने कहा, “इनमें से कुछ प्लांट को लाइसेंस हासिल हैं, लेकिन आधे से ज्यादा बिना लाइसेंस के गैरकानूनी तरीके से चलाए जा रहे हैं.”बीबीसी भारतीय सेवा की एक टीम मुंबई के करीब वाडा में इस तरह के एक प्लांट के पास पहुंची. वहां उन्होंने प्लांट के आस-पास पानी को प्रदूषित होते हुए पाया.
इसके अलावा गांव वालों ने लगातार खांसी होने और आंखों में समस्या होने की शिकायतें कीं.एक चश्मदीद ने कहा, “हम चाहते हैं ये कंपनियां हमारा गांव छोड़कर चली जाएं. अगर ऐसा नहीं हुआ तो हम ठीक से सांस नहीं ले पाएंगे.”
विस्फोट के बाद सात प्लांट बंद किए गए

इम्पीरियल कॉलेज लंदन के साइंटिस्ट ने कहा कि जो वर्कर इस तरह के पायरोलिसिस प्लांट में काम करते हैं उन्हें सांस लेने में समस्या, दिल से जुड़ी बीमारी या फिर कई तरह के कैंसर होने का खतरा बना रहता है.
बीबीसी की टीम वाडा में जिस जगह पर पहुंची वहां इसी साल प्लांट में विस्फोट होने की वजह से दो महिलाओं और दो बच्चों की मौत हो गई. इस प्लांट में यूरोप से भारत निर्यात किए गए टायर्स को प्रोसेस किया जा रहा था.
बीबीसी की टीम ने जिस प्लांट में विस्फोट हुआ उसके मालिक से बात करने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया.
विस्फोट के बाद एक पब्लिक मीटिंग हुई और वाडा जिले से जुड़े एक मंत्री ने वादा किया कि स्थानीय प्रशासन इस मामले में कार्रवाई करेगा. इसके बाद से प्रशासन ने सात पायरोलिसिस प्लांट को बंद किया है.भारत सरकार से भी इस मामले में प्रतिक्रिया मांगी गई है.
मेसन कहते हैं, “ब्रिटेन के कई बिजनेसमैन टायर्स को भारत भेजते हैं क्योंकि इसमें ज्यादा मुनाफा है. टायर्स को तोड़ने वाली मशीनों में निवेश करना महंगा सौदा होता है.”लेकिन उनका कहना है कि वो इस तरह का काम करने को तैयार नहीं हैं. वो चाहते हैं उनकी कंपनी सही तरह से अपना काम करे और टायर्स के कचरे को सही स्थान पर पहुंचाए क्योंकि ये पता लगाना मुश्किल होगा कि टायरों के ढेर का क्या हुआ.
रबड़ वर्ल्ड जैसे बड़े बिजनेस को पर्यावरण परमिट के तहत रेगुलेट किया जाता है और उनकी जांच भी होती है. लेकिन छोटे ऑपरेटर्स छूट के लिए आवेदन कर सकते हैं और वो आसानी से वैध तरीके से निर्यात कर सकते हैं.इसे टी8 इग्ज़ेमेशन कहा जाता है. इससे बिजनेस करने वालों को एक हफ्ते में 40 टन तक कार टायर स्टोर करने की छूट मिलती है.लेकिन कई ट्रेडर्स ने बीबीसी को बताया कि वो परमिट लिमिट से ज्यादा तादाद में टायर्स को निर्यात करते हैं.
‘मैं स्वास्थ्य मंत्री नहीं हूं“

बीबीसी को ऐसी कई कंपनियों की जानकारी मिली थी और हमने इंडस्ट्री से जुड़े ब्रोकर से संपर्क किया. उसने बेकार टायर्स को बेचने का कॉन्ट्रैक्ट होने का दावा किया.जिन 6 डीलर्स से संपर्क किया गया उनमें से चार ने स्वीकार किया कि वो बड़ी तादाद में बेकार टायर्स को प्रोसेस करते हैं.
एक ने कहा कि उन्होंने एक हफ्ते में 10 शिपिंग कंटेनर को निर्यात किया है. जिसका मतलब हुआ कि उन्होंने करीब 250 टन टायर्स को निर्यात किया है जो परमिट लिमिट से पांच गुणा ज्यादा है.
एक डीलर ने हमें काग़ज़ात दिखाए और कहा कि भारत भेजे जाने से पहले टायर्स को रबड़ के टुकड़ों में बदला गया और फिर रीसाइकल के लिए भेजा गया है. लेकिन बाद में उन्होंने स्वीकार किया कि ये टायर्स भारत में पायरोलिसिस के लिए भेजे जा रहे हैं.भारत सरकार ने पायरोलिसिस के लिए टायर्स के निर्यात पर बैन लगा रखा है.
उन्होंने कहा, “ऐसी बहुत सारी कंपनियां हैं. इस बिजनेस से जुड़े ब्रिटेन के 90 फ़ीसदी लोग ऐसा ही कर रहे हैं.”
वो कहते हैं कि भारत जाकर इन टायर्स का क्या होगा वो इसे कंट्रोल नहीं कर सकते हैं.जब हमने उनसे पूछा कि क्या उन्हें कभी ये चिंता होती है कि प्लांट के आस-पास रहने वाले लोगों की सेहत पर इसका क्या असर पड़ता होगा? तो उन्होंने कहा, “हम कुछ नहीं कर सकते हैं. मैं कोई स्वास्थ्य मंत्री नहीं हूं.”
डेफ्रा ने कहा, “ब्रिटेन की सरकार वेस्ट पर दी जा रही छूट पर रिफ़ॉर्म लाने के बारे में विचार कर रही है.”डेफ्रा के एक प्रवक्ता ने कहा, “सरकार सेक्युलर इकोनॉमी के लिए प्रतिबद्ध है. हम पर्यावरण को बचाते हुए ऐसा भविष्य चाहते हैं जहां रिसोर्स को लंबे समय तक इस्तेमाल किया जा सके.”
साल 2021 में ऑस्ट्रेलिया की सरकार ने ये मालूम चलने के बाद कि इन टायर्स का क्या होता है, निर्यात पर बैन लगा दिया था.स्टेवर्डशीप ऑस्ट्रेलिया के सीईओ लीना गुडमैन ने कहा, “पेपरवर्क में जो काम हो रहा था वो 100 फ़ीसदी वहां नहीं पहुंच रहा था जहां पहुंचना चाहिए.”
फाइटिंग डर्टी के फाउंडर जियोरजिया इलियट स्मिथ ने कहा कि भारत में पायरोलिसिस के लिए टायर्स का निर्यात बड़ी समस्या है और ब्रिटेन की सरकार को इससे डील करना चाहिए वह चाहती हैं कि टायरों को ‘खतरनाक वेस्ट’ के रूप में दोबारा परिभाषित किया जाए.
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