अशोक मधुप
उत्तर प्रदेश सरकार प्रदेश के प्राथमिक विद्यालयों को निजी विद्यालयों से बेहतर बनाने के लिए कटिबद्ध है। इसी इरादे से वह इन्हें सजाने− सवारने में लगी हुई है। उनके कायाकल्प का अभियान चल रहा है किंतु जरूरी हो गया है कि विद्यालयों के हो रहे कायाकल्प कार्य की मानीटरिंग भी हो।
योगी सरकार प्रदेश में प्राथमिक विद्यालयों के कायाकल्प के लक्ष्य को प्राप्त करने की ओर तेजी से अग्रसर है। शासन स्तर से कहा गया है कि जल्द ही ऑपरेशन कायाकल्य के तहत प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों में निर्धारित समय सीमा से पहले लक्ष्य को हासिल कर लिया जाएगा। इस अभियान में जनप्रतिनिधि, स्वयंसेवी संस्थाओं के साथ सभी राजपत्रित अधिकारियों के साथ विद्यालयों के पूर्व छात्रों का भी सहयोग स्कूलों के कायाकल्प अभियान में शामिल किया जाएगा। जिससे यूपी के स्कूल देश के दूसरों प्रदेशों के समक्ष नजीर बने। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जून 2018 में ऑपरेशन और बाउंड्रीवॉल व गेट का 76 प्रतिशत काम प्रदेश में पूरा कायाकल्प की शुरूआत की ।इसके तहत विद्यालयों में पीने की व्यवस्था की जा चुका है। प्रदेश के प्राथमिक और उच्च प्राथमिक का शुद्ध पानी, डेस्क बेंच हो, दिव्यांग मैत्रिक शौचालय, विद्यालयों में बिजली की सुविधा नहीं है उन्हें सोलर पैनेल बिजली जैसे 19 मानकों के माध्यम से कायाकल्प अभियान से जोड़ा जाएगा। इसके साथ ही 30 जून तक सभी तेजी से आगे बढ़ रहा है।
प्रदेश सरकार की इच्छा और दृष्टि बिलकुल साफ है किंतु सरकारी आदेश का लागू करने वाली व्यवस्था वही घिसी −पिटी पुरानी है।वह सुधारने के लिए तैयार नहीं। जनता भी पुरानी ही है।अभी कुछ साल पहले स्कूलों में नेट चालू करने के लिए बीएसएनएन विभाग ने राउटर लगाए। बिजली जाने की स्थिति में इनके संचालन के लिए बैटरी लगाईं। पर ये कुछ माह भी न चले । चोरी हो गए।स्कूल से खाना बनाने के सिलेंडर और बर्तन आदि का चोरी होना आम बात है।पुलिस बस सूचना दर्ज कर कार्य की इतिश्री कर देती है।
रेलवे के सामान पर उसकी सील लगी होली है। चाहें उसका दर्पण हो या पंखा। यदि वह चोरी हुआ है तो सामान खुद गवाही देता है।चोरी का माल बताने के लिए सबूत नही खोजने पड़ते। होना ये चाहिए कि प्रदेश में सरकार द्वारा लगने वाले संयत्र पर रेलवे की तरह प्रदेश सरकार की सील गुदी हुई हो। चोरी की हालात में पकड़े जाने पर चोरी के सामान का अगल से पता लग जाए। पंचायतों के स्कूल में काम हो गए। कागज में सब कार्र्वाई पूरी हो गई। मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ अलग −अलग जनपद में अलग− अलग दूसरे विभाग से इनकी जांच करांए तो सच्चाई खुलकर सामने आ जाएगी।
परिषदीय विद्यालयों के एक शिक्षक मिशन कायाकल्प का सच बताते हुए कहते हैं−सबसे खुला खेल तो पंचायतों द्वारा सरकारी स्कूलों में किया गया है ।बाहर तो जनता फिर भी ध्यान रखती है कितना सीमेंट मिला रहे हैं कितना रेत। सरकारी स्कूलों में टाइलीकरण और मल्टीपल हैंड वॉश, दिव्यांग शौचालय जैसे काम कोरोना काल में स्कूल बंदी के दौरान मौका पाकर कर दिए गए। यही नहीं इंतजार करते हैं, टालते रहते हैं और जब स्कूल की दो-तीन दिन की छुट्टी होती है तब टीचर्स के पीछे उल्टा सीधा काम करा डालते हैं ।टाइलीकरण में दीवारों पर लगे टाइल छूट − छूट कर 15 दिन बाद ही गिरने लगी थी ।बिना मानकों के टॉयलेट बनाए गए हैं ।ऑपरेशन कायाकल्प का काम दो साल तक चलने के बाद मानकों की पुस्तक प्रशासन द्वारा अध्यापकों को बांटी गई। बाद में उस पुस्तक का क्या करें जब बिना मानको के निर्माण कार्य हो चुका ।सरकारी स्कूलों में इस कदर घोटाला किया गया है कि मरम्मत के नाम पर पांच पैसे नहीं लगाए और टॉयलेट्स की मरम्मत के बीच ₹20000 के बिल लगे हैं। कोई नल रिपोर्ट नहीं हुआ जबकि हर स्कूल के नलों का रिबोर दिखाया गया है। यही नहीं सरकारी स्कूलों में आरओ तक लगाए दिखाए गए हैं, जबकि कहीं नही लगे।−−सफाई कर्मियों ने महीना बांध रखा है। सरकारी स्कूल में 90 प्रतिशत सफाई का काम स्कूल स्टाफ को खुद और कुछ बच्चों से कराना होता है क्योंकि सफाई कर्मी तो स्कूल में जाकर झांकने तक नहीं आते,ऊपर से गंदगी पाए जाने पर कार्रवाई सफाई कर्मी पर नहीं होती बल्कि शिक्षक को ही बलि का बकरा बनाया जाता है। कृपया मेरा नाम गुप्त रखे । मैं भी एक छोटी सी सरकारी नौकरी करता हूं।
इस शिक्षक की बात का अधिकांश स्कूल के शिक्षक संमर्थन करते हैं किंतु अधिकारियों के आंतक की वजह से कहता कोई नहीं। स्कूलों में ये सारा विकास पंचायत चुनाव के दौरान हुआ। उस समय प्रधान के अधिकार खत्म हो चुके थे। पंचायत सचिव सर्वे− सर्वा थे।मोनिटरिंग के लिए बैठे अधिकारियों का उन्हें वरद हस्त प्राप्त था।
कर्मचारी सेवा नियमावली कहती है कि अपने या अपनी पत्नी और बच्चों के नाम से अपने एक वेतन से ज्यादा खरीद करने वाले अधिकारी हो अपने विभागीय अधिकारी को लिखित में बताना होगा। आय का स्रोत भी बताना होगा। मिशन कायाकल्य के दौरान विभाग के अधिकारी और कर्मचारी की संपत्ति की जांच हो तो सच्चाई सामने आ जाए।
बेशक सरकार की योजनाए जनहित की हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की ईमानदारी पर कोई शक नही कर सकता। किंतु योजनाओं को लागू करने वाला अमला तो वही है। उसमें तो कोई सुधार नही हुआ।आज जरूरत उसमें सुधार की है। उसकी कठोर मानिटरिंग की है।
अशोक मधुप
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)