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रेट झोन बदलकर कई गुना करों का बोझ थोप चुका है नगर निगम,चुकाना पड़ रहा है  अधिक सम्पत्ति कर

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  • भ्रष्टाचार पर कोई रोक नहीं, उलटा लगातार निगम खजाने को लगाया जाता रहा है चूना

इंदौर। यह पहला मौका नहीं है जब नगर निगम ने 531 कॉलोनियों के रेट झोन बदल डाले हैं। दरअसल पिछले 20 सालों से यह खेल चल रहा है और हर बार बजट भाषण में सभी महापौर ये दावे करते रहे कि निगम ने एक रुपए की भी कर वृद्धि नहीं की है और पिछले दरवाजे से रेट झोन बदलकर कई गुना सम्पत्तिकर बढ़ा दिया है। अब तो सम्पत्ति कर के साथ-साथ कचरा संग्रहण शुल्क में भी वृद्धि कर दी गई है, जिसके चलते सभी 85 वार्डों की भी इन कॉलोनियों में 20 से 30 रुपए प्रतिमाह की वृद्धि तो कचरा शुल्क संग्रहण से ही हो जाएगी, तो नागरिकों को भी अब बढ़ी हुई दर पर सम्पत्ति कर जमा कराना पड़ेगा। शहर के विकास के लिए जनता कर देने को तैयार है, मगर सवाल यह है कि निगम को भ्रष्टाचार से मुक्ति कब मिलेगी? अभी फर्जी बिल महाघोटाला उजागर हुआ, जो कि 150 करोड़ रुपए से अधिक पहुंच गया है।

सडक़, बिजली, पानी, साफ-सफाई सहित जनता की मूलभूत समस्याओं से जुड़े अधिकांश काम नगर निगम के दायरे में ही आते हैं। बीते सालभर से नगर निगम के आयुक्त से लेकर महापौर सहित सभी का एक रटा-रटाया जवाब यह रहता है कि पैसा नहीं है तो ठेकेदारों को भुगतान कहां से करें? जिसके चलते कई काम या तो शुरू ही नहीं हुए अथवा अधूरे पड़े हैं। वहीं अब नागरिकों का सवाल यह है कि एक तरफ नगर निगम में फर्जी बिल घोटाला होता है, जिसमें कागजों पर ही हुए कामों का करोड़ों का भुगतान कर दिया जाता है। दूसरी तरफ वास्तविक कार्यों के लिए जनता के साथ-साथ वार्ड के पार्षदों को भी परेशान होना पड़ता है। अभी निगम ने जिन 531 कॉलोनियों का रेट झोन बदल दिया, जिसके चलते अब नागरिकों को अपनी सम्पत्ति के एवज में अधिक कर चुकाना पड़ेगा। दरअसल निगम ने शहर के सभी 85 वार्डों को 6 रेट झोन में बांट रखा है, जिसमें गरीब और निचली बस्तियों से लेकर शहर की पॉश कॉलोनियां शामिल हैं।

दरअसल, नगर निगम के कर्ताधर्ताओं ने नागरिकों को मूर्ख बनाने के लिए यह फॉर्मूला 20 साल पहले खोजा था, जिसमें सीधे-सीधे तो कर वृद्धि नहीं की जाती है, बल्कि पिछले दरवाजे से रेट झोन बदलकर कर वृद्धि की तिकड़म भिड़ाई गई। इसमें सडक़ चौड़ीकरण से लेकर अन्य प्रोजेक्टों को अमल में लाने के चलते उन क्षेत्रों में रेट झोन बदल दिया गया जहां पर बॉण्ड सडक़ों के साथ-साथ अन्य प्रोजेक्टों के तहत विकास कार्य निगम ने करवाए और उसके एवज में अधिक सम्पत्ति कर की वसूली शुरू की गई। बीते 20 सालों में यह सम्पत्ति कर कई गुना अधिक बढ़ चुका है। उदाहरण के लिए अगर किसी सम्पत्ति का कर 500 रुपए था, तो वह अब बढक़र 2000 रुपए या उससे अधिक हो चुका है। ईमानदार करदाता हर साल यही सोचते हैं कि उनकी सम्पत्ति में एक स्क्वेयर फीट की भी वृद्धि नहीं हुई, तो फिर अचानक कर की राशि कैसे बढ़ जाती है..? दरअसल, यह करिश्मा नगर निगम रेट झोन परिवर्तन के चलते करता है

यानी मान लीजिए कोई सम्पत्ति पिछले साल रेट झोन-2 में थी, तो उसे नए वित्त वर्ष में बदलकर रेट झोन-1 में डाल दिया जाता है। चूंकि हर रेट झोन का सम्पत्तिकर स्लैब अलग-अलग है और सबसे अधिक दर रेट झोन-1 की है, उसके चलते अधिकांश क्षेत्र धीरे-धीरे रेट झोन-2, 1 जैसे महंगे क्षेत्रों में शामिल किए जाते रहे और दूसरी तरफ महापौर सहित सारे जनप्रतिनिधि बड़ी मासूमियत से जवाब देते हैं कि हमने तो एक रुपए की भी कर वृद्धि बजट में नहीं की। दूसरी तरफ नागरिक भौंचक हैं कि हर साल उनका सम्पत्ति कर कैसेबढ़ जाता है? यहां तक कि 10-15 साल पहले जो क्षेत्र पिछड़े या गरीब माने जाते थे वे भी अब धीरे-धीरे पॉश इलाकों में शामिल किए जाने लगे। अगर नगर निगम के सम्पत्ति कर के आंकड़े देखें तो पता चलेगा कि सस्ते रेट झोन में आने वाली कॉलोनियों-मोहल्लों की संख्या घट गई और रेट झोन-1, 2, 3 में क्षेत्रों की संख्या लगातार बढ़ रही है। दूसरी तरफ निगम में भ्रष्टाचार घटने की बजाय लगातार बढ़ता गया। जबकि 20 सालों से भाजपा ही निगम की सत्ता पर काबिज है।

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