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पत्रकारों का पूर्वज नारद मुनि को वैश्विक पहचान मिलना चाहिए ?

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 हरनाम सिंह

अतीत को गौरवशाली प्रमाणित करने के प्रयासों में आए दिनों मिथकों, अवैज्ञानिक धारणाओं, पौराणिक कथाओं उनके पात्रों को ऐतिहासिक और सच मानने का आग्रह किया जाता रहा है। ऐसे भी कई लोग हैं जो ऐसी कहानियों को तर्क की कसौटी पर रखकर वैज्ञानिक प्रमाण की मांग करते हैं। दुनियां में जितने भी अविष्कार हुए हैं,उन्हें भारत के अतीत में होने का दावा किया जाता है। बिना प्रमाण एवं वैज्ञानिक शोध के ऐसे दावों पर वैश्विक जगत में देश हंसी का पात्र बनता है। वहीं दूसरी ओर देश की युवा पीढ़ी  वैज्ञानिक सत्य से नावाकिफ रह जाती है और देश विज्ञान के क्षेत्र में नई खोजों से वंचित हो जाता है।

                यह सब अनायास नहीं हो रहा है। पौराणिक कथाओं और उनके पात्रों को आधार बनाकर उन्हें मान्यता दिलवाने के प्रयास योजनाबद्ध तरीके से किए जा रहे हैं। ऐसी ही कोशिशों के तहत विगत कुछ वर्षों से पौराणिक पात्र देवऋषि नारद मुनि को पत्रकारों का पुरखा प्रमाणित करने का प्रयास हो रहा है। इसके लिए नारद जयंती मनाई जाती है। उनके नाम से पत्रकारों को सम्मानित एवं पुरस्कृत किया जाता है। शायद ही किसी पत्रकार ने सवाल उठाया हो कि पौराणिक कथाओं के एक पात्र का वर्तमान आधुनिक पत्रकारिता से क्या संबंध हो सकता है ? किस तर्क के आधार पर नारद मुनि विश्व के ही नहीं ब्रह्मांड के पहले पत्रकार प्रचारित किए जा रहे हैं ?

 #नारद मुनि की स्वीकार्यता के मायने#

                  देवऋषि नारद मुनि को ब्रह्मांड का आद्य संवाददाता प्रचारित कर बताया जा रहा है कि वे एक लोक से दूसरे लोक तक खबरें पहुंचाते थे। वे देव- दानव और मानव तक महत्वपूर्ण जानकारियां देने जाते थे  (किस माध्यम से ?) इसलिए उन्हें पत्रकारिता का आदर्श माना जाना चाहिए।

                इस थ्योरी को स्वीकारने का मतलब हिंदू धर्म के समस्त पौराणिक कथाओं को बिना किसी किंतु- परंतु के सत्य मानना होगा। यह भी मानना होगा कि ब्रह्मांड में तीन लोक हैं। जिनमें देव,दानव और मानव रहते हैं। देवताओं में भी अंतर्द्वंद है, प्रतिस्पर्धा है, ईर्ष्या हैं। वह सब गुण- अवगुण भी हैं जो इंसानों में पाए जाते हैं। देव ऋषि नारद को आदि पत्रकार मानने का मतलब यह भी स्वीकारना होगा कि सृष्टि का निर्माण किसी (बिग-बेंग थ्योरी )big-bang-theory से नहीं, अपितु ब्रह्मा द्वारा किया गया था। यह उल्लेख करना प्रासंगिक होगा कि नारद मुनि ब्रह्मा और देवी सरस्वती के मानस पुत्र बताए जाते हैं। उनका निवास ब्रह्मलोक है। ( यह लोक कहां हैं? किसी को जानकारी है ? )

              हिंदुत्ववादी संगठनों द्वारा वर्ष 2011 से नारद मुनि को देश में पत्रकार के रूप में मान्यता दिलवाने के प्रयास किए जा रहे हैं। वैश्विक स्तर पर अगर नारद मुनि ब्रह्मांड के पहले पत्रकार माने जाते हैं तो नारद मुनि को अंतर्राष्ट्रीय मान्यता भी मिलनी चाहिए।

 #पत्रकारिता प्रारंभ के दावेदार#

                वर्तमान पत्रकारिता के अनेक आयाम हैं। छपे समाचार पत्र- पत्रिकाएं, रेडियो, टेलीविजन वेब पत्रकारिता प्रमुख हैं। इन सब में झूठी- सच्ची सूचनाओं का अंबार लगा है। सामान्य व्यक्ति के लिए इस ढेर में से सच को तलाशना कतई आसान नहीं है। पत्रकारिता कहां और  कब प्रारंभ हुई इस पर अनेक दावे सामने आए हैं। विश्व में सन 131 से 159 तक के काल में पहला दैनिक समाचार पत्र निकालने का श्रेय जुलियस सीजर को दिया जाता है। बताया जाता है कि उस काल में पत्थर या धातु की पट्टी पर समाचार अंकित होते थे।

#मंदसौर भी है दावेदार# 

               वहीं दूसरी ओर भारत में लगभग डेढ़ हजार वर्ष पूर्व मध्य प्रदेश के मंदसौर में पहला प्रस्तर विज्ञापन पाए जाने को पत्रकारिता से जोड़कर देखा जा सकता है। मंदसौर के खिलचीपुर स्थित प्राचीन सूर्य मंदिर के बाहर लगे शिलालेख पर रेशमी वस्त्र का विज्ञापन पाया गया था। यह शिलालेख पुरातत्ववेत्ताओं  को शिवना नदी के घाट से प्राप्त हुआ था।संस्कृत में उकेरे गए विज्ञापन में लिखा गया था कि

               #जैसे कोई रूप  यौवना नारी सुवर्ण हार धारण करने पर, मुख को तांबूल (पान) से सुवासित करने पर एवं सुगंध पुष्पों से सुसज्जित होने पर भी, जब तक इन रंगीन, रेशमी वस्त्रों को धारण नहीं कर लेती, तब तक वह अपने प्रियतम से मिलने नहीं जाती।#

                विज्ञापन का यह शिलालेख ग्वालियर के पुरातत्व संग्रहालय में मौजूद है। इसी क्रम में सामंत काल में राजाओं द्वारा ढूंढी पिटवा कर राज आज्ञा एवं अन्य सूचनाएं पहुंचाने को भी एक तरह की पत्रकारिता माना जाना चाहिए ?

 #भारत में पत्रकारिता#

 मुद्रण तकनीक के विस्तार के चलते भारत में आधुनिक पत्रकारिता का श्रेय जेम्स अगस्टस हिक्की को दिया जाता है। उन्होंने वर्ष 1780 में कलकत्ता जनरल एडवरटिजर के साथ भारत का पहला समाचार पत्र “बंगाल गजट” प्रकाशित किया था। बाद का विस्तार एक इतिहास है जो सहज उपलब्ध है।

                वर्तमान पत्रकारिता को एक धार्मिक पौराणिक पात्र के साथ जोड़कर देखना और उसे एक आदर्श के रूप में प्रचारित करना, विविध संस्कृतियों धार्मिक  मान्यताओं वाले इस देश में कहां तक उचित है ? इसका तार्किक जवाब सामने आना चाहिए।

 हरनाम सिंह

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