– नित्य चक्रवर्ती
आगामी राज्य विधानसभा चुनावों का सवाल है, दिसंबर 2023 तक चार राज्यों में चुनाव होने हैं। केवल मध्य प्रदेश में ये जनवरी 2024 में हो सकते हैं। इसलिए सामान्य तौर पर, चुनाव आयोग दिसंबर 2023 तक सभी पांच राज्यों में चुनाव कराना चाहेगा। यदि चुनाव तय कार्यक्रम के अनुसार होते हैं और भाजपा हिंदी पट्टी से जुड़े तीनों राज्यों को हार जाती है, तो इंडिया गठबंधन, खासकर कांग्रेस को बड़ी ताकत मिलेगी, जिसका लोकसभा चुनाव पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा।
पिछले सप्ताह संसद के विशेष सत्र में महिला आरक्षण विधेयक पारित होने के बाद, अनुभवी चुनाव रणनीतिकारों के सहयोग से भाजपा के थिंक-टैंक लोकसभा चुनाव कराने के लिए पार्टी के लिए सबसे उपयुक्त समय निकालने में व्यस्त हैं। चुनाव अगले वर्ष अप्रैल/मई में होने हैं, परन्तु प्रारंभिक अध्ययनों से भाजपा रणनीतिकारों को पता चला है कि चुनाव समय से पहले कराने से भाजपा के हितों की बेहतर पूर्ति होगी, और इसीलिए वे नवंबर-अंत और फरवरी के बीच चुनाव चाहते हैं।
2019 का लोकसभा चुनाव 11 अप्रैल से 19 मई तक सात चरणों में हुआ था। परिणाम 23 मई को घोषित किए गये थे। यदि सामान्य कार्यक्रम का पालन किया जाये तो प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व वाली सरकार के पास लोकसभा चुनाव कराने के लिए छह महीने से अधिक समय बचा है। चुनाव आयोग अपनी तैयारियों के साथ तैयार है। आगामी लोकसभा चुनावों के लिए, चुनाव आयोग की योजना मतदान के चरणों की संख्या को पहले के सात से घटाकर अधिकतम पांच या तीन तक लाने की है। सरकार से मंजूरी मिलने के बाद चुनाव आयोग निर्देश जारी कर सकता है।
भाजपा नेतृत्व के लिए चिंता की बात इंडिया गठबंधन की बढ़ती एकजुटता और मुंबई सम्मेलन के बाद कांग्रेस पार्टी द्वारा दिखाया जा रहा आत्मविश्वास है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी मीडिया के साथ अपनी नवीनतम बातचीत में उत्साहित दिखे जब उन्होंने कहा कि कांग्रेस मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में जीत हासिल करेगी, और राजस्थान में भी जीत जायेगी, जबकि तेलंगाना में भी पार्टी अच्छा प्रदर्शन करेगी। तेलंगाना के बारे में राहुल थोड़े आशावादी थे, लेकिन बाकी तीन राज्यों के बारे में वह सही थे।
जहां तक आगामी राज्य विधानसभा चुनावों का सवाल है, दिसंबर 2023 तक चार राज्यों में चुनाव होने हैं। केवल मध्य प्रदेश में ये जनवरी 2024 में हो सकते हैं।
इसलिए सामान्य तौर पर, चुनाव आयोग दिसंबर 2023 तक सभी पांच राज्यों में चुनाव कराना चाहेगा। यदि चुनाव तय कार्यक्रम के अनुसार होते हैं और भाजपा हिंदी पट्टी से जुड़े तीनों राज्यों को हार जाती है, तो इंडिया गठबंधन, खासकर कांग्रेस को बड़ी ताकत मिलेगी, जिसका लोकसभा चुनाव पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा। क्या भाजपा इसकी इजाजत दे सकती है? भाजपा थिंक टैंक के एक वर्ग का तर्क है कि लोकसभा चुनाव पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के साथ ही कराये जाने चाहिए।
उनका कहना है कि चंद्रयान-3, जी-20 शिखर सम्मेलन और अब महिला आरक्षण विधेयक से शुरू हुई सफलताओं की श्रृंखला के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने खुद को और सरकार को बढ़त दिलाई है। प्रधानमंत्री 50 प्रतिशत मतदाताओं पर नजर रखते हुए महिलाओं के मुद्दों और ओबीसी महिलाओं के लिए विशेष कार्यक्रमों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। आरएसएस ने अपने कार्यकर्ताओं को महिलाओं के लिए पीएम के इस संदेश को देश के सुदूर इलाकों तक पहुंचाने का निर्देश दिया है। दिलचस्प बात यह है कि आरएसएस का अभियान केवल प्रधानमंत्री पर केंद्रित है, भाजपा पर नहीं।
भाजपा थिंक-टैंक खालिस्तानी आतंकवादी निज्जर की हत्या पर वर्तमान भारत-केनेडा राजनयिक संकट के प्रभाव को भी ध्यान में रख रहे हैं। प्रधानमंत्री केनेडा के पीएम के आरोपों को नकारने पर अड़े हुए हैं। विदेश मंत्री एस जयशंकर संयुक्त राष्ट्र महासभा में बड़ी शक्तियों, यानी अन्य लोगों के बीच, संयुक्त राज्य अमेरिका के दोहरे मानकों के बारे में बयान दे रहे हैं। कांग्रेस ने भारत सरकार की स्थिति का पूरी तरह से समर्थन किया है, यह जानते हुए कि चाहे कुछ भी हो, अंतत: चुनाव से पहले इससे प्रधानमंत्री को राजनीतिक लाभ होगा। लेकिन मामला इतना नाजुक है कि कांग्रेस और अन्य इंडिया घटक सरकार के रुख का समर्थन करते रहेंगे।
नरेंद्र मोदी के लिए यह एक जीत की स्थिति है। यदि केनेडा और उसके पश्चिमी सहयोगी मामले को आगे बढ़ाते हैं, तो पीएम उसका विरोध करते हुए मजबूत रुख अपना सकते हैं, जिससे उन्हें बड़ा समर्थन मिलेगा। मोदी पश्चिमी बड़ी शक्तियों से लड़ते हुए खुद को ग्लोबल साउथ के नेता के रूप में स्थापित करने की कोशिश करेंगे, जो भारत जैसी प्रमुख शक्ति के उद्भव को बर्दाश्त नहीं कर सकती हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन असमंजस में हैं क्योंकि अगर भारत ने अपनी वर्तमान आक्रामकता जारी रखी तो एशिया-प्रशांत में चीन के खिलाफ भारत को सामने लाने की उनकी अच्छी तरह से तैयार की गई नीति संकट में होगी।
दूसरी ओर, यदि फाइव-आइज वाली शक्तियां (संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और निश्चित रूप से, केनेडा) स्वर को नरम करती हैं और भारत को अपेक्षित ट्रैक पर रखने के लिए किसी प्रकार की समझ बनाती हैं, तो पीएम खुद को सही ठहरायेंगे, जबकि भाजपा के ढोल-नगाड़े बजाने वाले और कॉरपोरेट मीडिया नरेंद्र मोदी को एक ऐसे ईश्वरीय अवतार के रूप में पेश करेंगे, जिसने पश्चिम के राक्षसों को एक पवित्र युद्ध में हरा दिया है। किसी भी तरह से, यह मोदी के लिए फायदेमंद है। इंडिया गठबंधन के घटक केवल दूर से देख रहे हैं।
इसलिए यह वर्ग चाहता है कि यदि लोकसभा चुनाव राज्य विधानसभा चुनावों के साथ कराये जाएं तो प्रधानमंत्री के पास अब उपलब्ध इन सभी लाभों का फायदा उठाया जा सकता है। इन विश्लेषकों को यकीन है कि अगर चुनाव हुए तो नरेंद्र मोदी की छवि और स्वीकार्यता राज्य विधानसभा तथा लोकसभा चुनावों के नतीजों को प्रभावित करेगी।
इसके विपरीत, एक मजबूत प्रतिवाद यह है कि लोकसभा चुनाव जनवरी 2024 के अंतिम सप्ताह में, संभवत: 22 जनवरी को, अयोध्या में राम मंदिर के उद्घाटन के बाद ही हो सकते हैं। संघ परिवार के नेताओं को लग रहा है कि प्रधानमंत्री की अन्य हालिया उपलब्धियों के साथ-साथ इस उद्घाटन का हिंदू समुदाय पर उत्प्रेरक प्रभाव पड़ेगा और यह भाजपा की ओर से मतदाताओं के लिए सबसे मजबूत अपील होगी। इसलिए, यह वर्ग चाहता है कि लोकसभा चुनाव तभी हो जब संघ परिवार के कार्यकर्ता प्रचार में हिंदुत्व के मुद्दे का पूरा उपयोग करें। यदि लोकसभा चुनाव फरवरी में होते हैं, तो भाजपा को 2019 के चुनाव घोषणापत्र में प्रधानमंत्री द्वारा वायदा किये गये हिंदुत्व पर सभी प्रमुख प्रतिबद्धताओं का पूरा लाभ मिलेगा। स्वाभाविक रूप से, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही अंतिम निर्णय लेंगे।
इंडिया गठबंधन के घटक दलों को लोकसभा चुनाव के लिए तैयार रहना चाहिए, चाहे यह इस साल नवंबर में हो, या फरवरी में हो, या अप्रैल/मई 2024 में निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार हो। कांग्रेस नेतृत्व को राज्यों में सीट-बंटवारे की बातचीत शुरू करने के लिए राज्य विधानसभा चुनाव के नतीजों का इंतजार नहीं करना चाहिए। उन्हें अभी प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए, क्योंकि अनेक राज्यों में इसमें काफी समय लगेगा। यदि अचानक लोकसभा चुनावों की घोषणा हो जाती है तो इंडिया गठबंधन स्वयं को बिना तैयारी के न पायें। 2004 में, एनडीए-1 सरकार के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपनी सरकार के ‘इंडिया शाइनिंग’ प्रचार को ध्यान में रखते हुए लोकसभा चुनाव को पांच महीने के लिए आगे बढ़ा दिया था। सभी उम्मीदों पर पानी फेरते हुए एनडीए को हार का सामना करना पड़ा और यूपीए ने नयी सरकार बनाई। भारत के लिए, 2004 का यह उदाहरण महत्वपूर्ण सबक देता है। राष्ट्रीय स्तर पर केवल बड़ा प्रचार पर्याप्त नहीं है।