सचिन तोमर (मलकपुर)
_भाजपा की जीत चुनावी जीत नहीं है, बल्कि यह संघ की कुटिलता और भारतीय जनमानस की विचार शून्यता की जीत है._
हीन भावना से ग्रसित एक समाज, जो पिछले तीस वर्षों से आसान पूँजी पर जीवन यापन कर रहा है, जिसके पास एक भी ऐसा कारण नहीं है कि वह अपनी जीवन शैली पर घमंड कर सके. अंतस् तक करप्ट इस समाज के पास मोदी ही एक हीरो है, क्योंकि वो उनकी कुंठा, नफ़रत, वैचारिक विचारशून्यता, अज्ञान को अंदर तक मिरर करता है.
यही इस उत्तर प्रदेश के चुनाव में परिलक्षित हुआ है.
उत्तर प्रदेश के चुनाव उन सभी बुराइयों का पर्सोनिफिकेशन है जिससे हम ग्रसित हैं. महाभ्रष्ट राजनेता, बाहुबलियों का आतंक, वैचारिक धरातल पर शून्यता, जाति आधारित वोट बैंक, करप्ट ब्यूरोक्रेसी जो घोर जातिवादी और सांप्रदायिक भी है, कॉर्पोरेट पूँजीवादी शक्तियाँ जो मोदी को जिताने के लिये हज़ारों करोड़ दांव पर लगा देती हैं, कॉर्पोरेट मीडिया जो पी आर कंपनीज और विवेकानंद फ़ाऊंडेशन के एजेंडे पर चलता है, मायावती और ओवैसी जैसे नेता जो अपने समाज के वोट बैंक को ऐसे बेचते हैं जैसे टेलीफोन कंपनीज उपभोक्ताओं की लिस्ट बेचती हैं और सवर्ण समाज जो अपने खोए हुए वैभव को हासिल करने के लिये पूरी तरह से संघ की बाँहों में हिलोरें मार रहा है.
आप चुनाव आयोग को दोष दें, ईवीएम को गरियाएँ, राहुल गांधी की पट्टी पलीद करें, कुछ नहीं होगा. ये वो सड़न है जो हमारी जड़ों में जा चुकी है, और ये पिछले सात साल का खेल नहीं है बल्कि इसकी नींव उसी दिन रखी जा चुकी थी जिस दिन राजीव गांधी ने राम मंदिर में पूजा की थी. संघ देश के इतिहास को बदलने की कोशिश आज़ादी के पहले से कर रहा है.
आज़ादी के बाद गांधीजी की हत्या इसका पहला दस्तावेज था. उसके बाद से पचहत्तर सालों में संघ ने एक दिन भी विश्राम नहीं किया है और नतीजा आपके सामने है.
इंदिराजी के जाने के बाद संघ को कोई चुनौती नहीं मिली, ना वैचारिक स्तर पर, ना ही ज़मीनी स्तर पर. मंडल कमंडल की राजनीति ने देश को अधोगति की ओर अग्रसर कर दिया था, तिस पर आर्थिक भूमंडलीकरण ने देश को आसान पूँजी दे दी, और आज़ादी के समय तैयार किये गये मूल्यों का संपूर्ण रूप से अंतिम संस्कार कर दिया गया.
इस तीस चालीस वर्षों में संघ ने सैकड़ों आनुषांगिक संगठन खड़े किये, सरस्वती शिशु मंदिर का नेटवर्क खड़ा किया. बाबाओं और साधुओं में अपने लोग खड़े किये, और लाखों लाख ऐसे अंधे कार्यकर्ता खड़े किये जो उसके नफ़रत और झूठ के एजेंडे को आगे बढ़ा सकें.
इसके विपरीत पिछले २०-२५ वर्षों में IIT – IIM की दौड़ में लगे हमारे बच्चों ने ना समाज विज्ञान पढ़ा है, ना राजनीति शास्त्र, ना ही इतिहास. २०२२ में ३०-५० बरस की जो पीढ़ी है वो मानसिक रूप से बैंकरप्ट है. यही पीढ़ी मोदी की सबसे बड़ी उपासक है. इनको झूठ और सच में अंतर नहीं दिखता, इतिहास और प्रोपेगेंडा में फ़र्क़ समझ नहीं आता, वैश्विक जीवन मूल्यों से इनको कोई वास्ता नहीं है, इन्हें इवेंट अच्छे लगते हैं, फिर वो अण्णा आंदोलन का इवेंट हो या फिर राम मंदिर के उद्घाटन का या बनारस की बर्बादी का इवेंट, ये चमक में खोये हुए लोग हैं, जिनके पास कोई वैचारिक धरातल नहीं है.
२०२२ में १९४७ वाली पीढ़ी पूरी तरह खर्च हो चुकी है, हमारे बच्चों को सच्चाई बताने वाला कोई नहीं है. अब व्हाट्सऐप की पढ़ाई और कश्मीर फाईल्स का प्रोपेगेंडा इनकी खुराक है. आप कल्पना भी नहीं कर सकते कि २०२९ आते आते तक आप अफ़ग़ानिस्तान और ईरान के समकक्ष खड़े रहेंगे, जहां मायनोरिटीज और महिलाएँ सबसे अधिक उत्पीड़ित रहेंगे.
इसे चुनौती समझ लीजिये, चेतावनी समझ लीजिये या केवल सूचना समझ लीजिये. देश एक अंतहीन गर्त की ओर हाइपरसोनिक गति से जा रहा है. 2024 के चुनावों से लेकर 2029 के बीच इस देश में सांप्रदायिकता को वो नंगा नाच रचाया जायेगा कि आपकी रूह काँप उठेगी.
उससे अधिक डरावना यह होगा कि देश का सवर्ण समाज, पढ़ा लिखा समाज इस कत्लो-आम और झूठे प्रोपेंगेंडा में पूरी तरह सरकार के साथ खड़ा होगा. आपके हमारे दोस्त, भाई बहन, रिश्तेदार आपको इस कत्लो-गारत में शामिल नज़र आयेंगे और आप में यदि थोड़ी सी भी वैचारिक रीढ़ है तो आप इस तमाशे में अपने आपको असहाय महसूस करेंगे.
(चेतना विकास मिशन)