~ पुष्पा गुप्ता
_फ्री मार्किट कैपटलिज्म के लिए आपको पूंजी, तकनीक और रिस्क बियरिंग एबिलिटी चाहिए। निजी क्षेत्र में रिसर्च डेवलमेंट का माद्दा चाहिए, जिसे आप बढ़ावा दे सकें।_
नेशनलाइजेशन, प्राइवेटाइजेशन एंड एफिशएंसी : ये शब्द बड़े बड़े हैं। आजकल के नए नवेले मैनेजमेंट गुरूओ को आप सुनें। देश आजाद होने के बाद, देश मे फ्री मार्किट कैपिटलिज्म न अपनाने का अफसोस करते देखें।
_उस दौर के आर्थिक हकीकतों से कटे हुए लोग यह जान लें, आज 10 विधायकों को बिक जाने की जितनी कीमत मिलती है, तब उतना पूरे भारत देश का बजट था।_
टाटा, बिड़ला, बजाज और दूसरे नाम, किवदन्तियों की तरह प्रसिद्ध अवश्य थे।
लेकिन आर्थिक रूप रेगिस्तान इस देश के औद्योगीकरण के लिए जितनी पूंजी, तकनीक, इन्नोवेशन और रिस्क टेकिंग एबिलिटी की जरूरत थी, उतना जिगरा और पैसा इन छोटे मोटे सेठों के पास नही था।
_सो सूई से जहाज तक- स्टील, एविएशन, पावर, इरिगेशन, माइनिंग, इंफ्रास्ट्रक्चर, फाइनैंसिंग, खाद्य प्रसंस्करण, स्पेस टेक्नॉलजी सहित हर क्षेत्र में भारत सरकार ने उद्यम खड़ा किये।_
अगर इसके लिए लाइसेंस और कर्ज सरकार ने लिए, जिम्मेदारी सरकार ने ली। तो मालिकाना हक सरकार का ही होना चाहिए न..!
या आप रूस से स्टील प्लांट टेक्नोलॉजी लिए, तो रूसी सरकार से ठेका टाटा को या बिरला बिरला को दिला देते??
_ऐसा रफेल मामले में मौजूदा सरकार ने अनिल अंबानी के लिए किया। श्रीलंका, म्यांमार, ऑस्ट्रलिया में अडानी के लिए किया। पर नेहरू ने ऐसा किया नही। उन्होंने स्टील अथॉरिटी इंडिया लिमिटेड बनाई।_
तमाम पीएसयू इसी तरह बने। 5-10 करोड़ की तब की इन्वेस्टमेंट, आज पांच दस लाख करोड़ की वेल्युएशन है। यह वेल्युएशन, आपको निकम्मापन बताया गया।
_और एफिशियंसी बढाने के नाम पर उन्हें बेच दिया गया है। यही आज का प्राइवेटाएजेशन है। असल मे मोनोपोलाइजेशन है। इसका एफिशिएंसी से कोई लेना देना नही।_
मत भूलिए की चलते फिरते व्यवसाय को बेचने के लिए पहले उसका दम घोंटा। एयर इंडिया के प्रॉफिटेबल रुट बेच दिये। बीएसएनएल को 4g लाइसेंस नही दिया।एलआईसी से जबरिया घाटे वाले इन्वेस्टमेंट कराए।
और जब घाटा दिखा, तो फिर बेच दिया। बेचने की यह चुल्ल है, जिसके समर्थन में आप खड़े हैं।
नतीजा मंहगाई और बेरोजगारी है। वही सेवा, अब महंगे दाम पर ले रहे हैं। एयरपोर्ट चार्जेस अडानी ने 10 गुना बढ़ा दिए है। उसका प्रॉफिट 10 गुना हो जाएगा। और आप, उसकी उसकी प्रॉफिट एफिशिएंसी बढ़ने पर ताली बजाते नजर आते हैं।
_सरकारी उद्यम में बहुत से फालतू के कर्मचारी भी होते थे, वे आलसी थे, तनख्वाह पेंशन ज्यादा लेते थे। आपको बड़ी दिक्कत थी।_
अब नए मालिक ने आपके लड़के को आधी कीमत पर कंट्रेक्चुअल रखा। दिन रात पेरता है, डबल काम लेता है। कम्पनी की एफिशिएंसी बढ़ गयी। आपका क्या फायदा हुआ¿
_नतीजा यह हुआ कि बच्चों को जॉब मिलना बंद हुआ, जॉब की पगार आधी हुई। और बेरोजगार बैठा किसी प्राइवेट कम्पनी की एफिशएंसी से खुश हैं।_
दुनिया मे हर जगह एफिशएंसी का मतलब ज्यादा ऑटोमेशन, कम जॉब, कम तन्खवाह, और कम्पनी का ज्यादा मुनाफा है।
_यह सब कुछ आपकी जेब, आपकी सुरक्षा की कीमत पर होता है. यही आपके साथ हो रहा है। लेकिन आप पूर्वजन्म में अडानी का कर्ज खाये थे। इस जन्म में चुकाने को अड़े हैं। क्या ही कहा जा सकता है।_
{चेतना विकास मिशन)