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प्यार की जरूरत है

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मालिक तेरी दुनिया
कितनी खूबसूरत है
मगर कुछ हवसनवीसों ने
बदली इसकी रंगत है
लोगों के दिलों में
बेइंतहा नफरत है
आंखों से झांकती
हर घड़ी दहशत है
ढूंढे नहीं मिलती
आज कहीं मुहब्बत है
दौलत की हवस
इंसान को ले डूबा है
देखो न आदमी
आदमियत से
कितना दूर जा बैठा है
ईर्ष्या की चिंगारियों से
झुलसते तन बदन को
प्यार के शीतल फाहों की
सच में बहुत ज़रूरत है
जाने कब समझेंगे लोग
तोप बंदूकों से कभी
मसले नहीं सुलझा करते
बेगुनाहों के खून से
अवनि की श्रृंगार नहीं करते
ढाई अक्षर तो
हर मसलें का हल है
ढाई अक्षर में निहित
अथाह बल है
आसमान में धुंए का
जो गुब्बार दिख रहा
धरती पर मानवता को
शर्मसार कर रहा है

मीरा सिंह “मीरा”

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