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विवादों और सपनों से उबरने की राह पर है न्यू इंडियन एक्सप्रेस

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दक्षिण भारत में रामनाथ गोयनका की विरासत की निरंतरता का नाम है न्यू इंडियन एक्सप्रेस. और इस तरह यह उस परंपरा की भी एक कड़ी है जिसकी शुरुआत 1932 में एक्सप्रेस के संस्थापक वरदराजुलु नायडू ने तमिलनाडु में इसका पहला संस्करण प्रकाशित करके की थी. बीजी वर्गीज़ की किताब वॉरियर ऑफ द फोर्थ एस्टेट के अनुसार, इसके कम से कम पांच साल बाद गोयनका ने प्रकाशन का पूरा नियंत्रण अपने हाथ में लिया था.

लेकिन द न्यू इंडियन एक्सप्रेस (टीएनआईई) का बीज एक तरह से इसके सालों बाद बोया गया, जब गोयनका ने अपने पोते-पोतियों को उनकी क्षमताओं का आकलन करने के लिए प्रबंधन में शामिल किया. वर्गीज़ की किताब बताती है कि गोयनका ने अंततः अपनी बेटियों कृष्णा और राधा के बेटों, विवेक खेतान और मनोज संथालिया को इस काम के योग्य समझा. गोयनका ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि उनके अपने पुत्र भगवानदास की 1979 में हृदयाघात से मृत्यु हो गई. भगवानदास अपना कोई पुरुष उत्तराधिकारी छोड़कर नहीं गए थे.  

किताब में कहा गया है कि खेतान और संथालिया क्रमशः मुंबई एवं दिल्ली केंद्रों और मद्रास और दक्षिणी संस्करणों का प्रबंधन करते थे. यद्यपि गोयनका ने यह नहीं सोचा होगा कि एक्सप्रेस ग्रुप बंट जाएगा लेकिन जब 1991 में उनके निधन के बाद ऐसा हुआ तो बंटवारा इसी तर्ज पर हुआ.

लेकिन यह विभाजन आसान नहीं था. 

जैसा कि न्यूज़लॉन्ड्री ने ‘मीडिया का मालिक कौन’ सीरीज के तहत द इंडियन एक्सप्रेस से जुड़ी रिपोर्ट में बताया था: 

गोयनका ने एक ट्रस्ट बनाने पर भी विचार किया था क्योंकि कुछ वरिष्ठ संपादकों और करीबी दोस्तों की तरह वह भी एक्सप्रेस को एक राष्ट्रीय संस्था मानते थे. लेकिन 1991 में एक बड़ा दिल का दौरा पड़ने के बाद उन्होंने विवेक को गोद ले लिया और नुस्ली वाडिया, वेणु श्रीनिवासन और विवेक जैसे करीबी सहयोगियों के साथ एक्सप्रेस बोर्ड का पुनर्गठन किया. लेकिन उनके इस कदम के कारण परिवार में दरार पैदा हो गई.

गोयनका ने 62.72 प्रतिशत शेयर विवेक और 33.12 प्रतिशत शेयर मनोज को हस्तांतरित करने का निर्णय लिया. शेष 0.16 फीसदी हिस्सेदारी राधा संथालिया के पास रही. 1991 में गोयनका के निधन के बाद नुस्ली वाडिया ने उनके इस फैसले का मान  रखा. 

लेकिन मनोज और सरोज (भगवानदास की पत्नी) ने इसके खिलाफ मद्रास उच्च न्यायालय में याचिका दायर की. हालांकि, निर्णय उनके पक्ष में नहीं आया. अंततः 1995 में मनोज और विवेक के बीच एक समझौता हुआ, जिसके तहत संथालिया ने मद्रास, बैंगलोर, हैदराबाद, कोचीन और अन्य दक्षिणी संस्करणों (और प्रकाशनों) का प्रभार संभाला, जबकि विवेक ने दिल्ली, चंडीगढ़, मुंबई, पुणे और गुजरात के साथ-साथ फाइनेंशियल एक्सप्रेस का प्रभार अपने पास रखा. मनोज को मिले दक्षिण भारत के संस्करण मिलकर अंततः द न्यू इंडियन एक्सप्रेस बन गए.

हालांकि, शुरुआत में पूरी तरह से अलग होने की योजना नहीं थी. मार्च 1995 में इंडिया टुडे ने रिपोर्ट किया कि “निरंतरता बनाए रखने के लिए दोनों भाई संस्करणों का तुरंत बंटवारा नहीं कर रहे हैं और विज्ञापनों के लिए सभी संस्करणों का संयुक्त सर्कुलेशन बताएंगे. उन्हें कम से कम अगले 36 महीनों तक साथ रहना चाहिए”.

रिपोर्ट में आगे कहा गया, “दोनों भाई न केवल विज्ञापन से मिलने वाला राजस्व (अपने संस्करणों के प्रसार के अनुपात में) आपस में बांटेंगे, बल्कि एक्सप्रेस समाचार सेवा भी साझा करेंगे जिसके तहत सभी समाचार एकत्र करने वाले कर्मचारी आते हैं. एचके दुआ उनके साझा प्रधान संपादक रहेंगे, दोनों भाइयों के करीबी सूत्रों का दावा है कि उनकी संपादकीय नीति और कंटेंट भी लगभग एक जैसा रहेगा.”

उस समय दोनों भाइयों की उम्र 37 साल थी.  

वर्गीज़ की किताब के अनुसार, मनोज की मां राधा विकलांगता से पीड़ित थीं और 1965 में उनके पति श्याम सुंदर संथालिया का किडनी फेल होने के कारण निधन हो गया. मनोज के बड़े भाई अनिल भी मानसिक रूप से अस्वस्थ हैं. इसलिए, 1995 के अदालती फैसले ने मनोज और विवेक के बीच समझौते को अंतिम रूप देने के अलावा, अनिल के हित, शेयर और भविष्य की वित्तीय स्थिति का भी ख्याल रखने के लिए एक समाधान तलाशने का आदेश दिया. इस उद्देश्य के लिए, कोर्ट ने आदेश दिया: मनोज कुमार संथालिया तत्काल एक ट्रस्ट स्थापित करें और उसे अनिल कुमार संथालिया और उनके आश्रितों, उत्तराधिकारियों और आनेवाली प्रत्येक पीढ़ी में उनके कानूनी प्रतिनिधियों के लाभ के लिए उपलब्ध कराएं. और आज (9 मार्च, 1995) से एक सप्ताह के भीतर 1 करोड़ रुपए का योगदान उक्त ट्रस्ट को देने के लिए उक्त राशि श्री एन राम, संपादक, फ्रंटलाइन के पास जमा करें. 

एन राम और वरिष्ठ वकील एनआर चंद्रन को ट्रस्टी नियुक्त किया गया. वे ट्रस्ट के प्रबंधन के लिए संयुक्त रूप से जिम्मेदार थे, और इसके लिए प्रशासनिक खर्चों को छोड़कर वह किसी भी तरह का वेतन नहीं ले सकते थे. उनके कामकाज पर किसी भी दूसरे पक्ष का नियंत्रण या निर्देशन नहीं था. 

इसके अलावा, उनके लिए आवश्यक था कि इस पैसे का निवेश वह अधिकतम लाभ कमाने के लिए करें. उन्हें यह भी सुनिश्चित करना था कि कोष घटे नहीं और प्रयास करना था कि मासिक आय 1 लाख रुपए से कम न हो. उनसे अपेक्षा थी कि वह ट्रस्ट को होने वाले लाभ से अनिल और उनके आश्रितों के सुखमय जीवनयापन के लिए जरूरी वित्त उपलब्ध कराएंगे और उनकी पत्नी वीणा देवी की मांगों को स्वीकार करेंगे, सिवाय इसके कि जहां उन्हें यह मांगे अनावश्यक लगें. किसी भी ट्रस्टी की मृत्यु या अयोग्य हो जाने की स्थिति में जीवित ट्रस्टी को किसी व्यक्ति को नामांकित करने का अधिकार होगा, और नामांकित व्यक्ति तदनुसार जीवन भर ट्रस्टी रहेगा.

उस समय, इंडिया टुडे ने यह भी रिपोर्ट किया था कि इंडियन एक्सप्रेस के पूर्व वित्तीय सलाहकार गुरुमूर्ति, संथालिया के प्रमुख सलाहकार के रूप में उभर रहे थे और इससे दक्षिण में कर्मचारियों के बीच घबराहट पैदा हो गई थी कि क्या गुरुमूर्ति के आरएसएस समर्थक विचारों का प्रभाव न्यू इंडियन एक्सप्रेस पर होगा. अप्रैल 2023 में कारवां ने भी गुरुमूर्ति की प्रोफाइल में उनके और संथालिया के बीच की नजदीकियों को उजागर किया था.

बंटवारे के बाद – नया नाम, नया तरीका

1997 में न्यू इंडियन एक्सप्रेस ग्रुप की प्रमुख कंपनी का नाम इंडियन एक्सप्रेस (मदुरै) प्राइवेट लिमिटेड से बदलकर एक्सप्रेस पब्लिकेशन्स (मदुरै) लिमिटेड कर दिया गया. 

बंटवारे के लगभग एक दशक बाद, 2004 में एक्सचेंज4मीडिया ने संथालिया के एक साक्षात्कार में बताया कि वह पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य और भारतीय जनसंचार संस्थान के निदेशक मंडल के सदस्य होने के साथ-साथ विशेष आवश्यकताओं वाले बच्चों के लिए बने बाला मंदिर कामराज ट्रस्ट के ट्रस्टी भी थे. 

इस साक्षात्कार में समूह में हुए परिवर्तनों का पता चला. संथालिया ने कहा कि टीवी, रेडियो और इंटरनेट जैसे प्लेटफार्मों के होते हुए, प्रिंट से ब्रेकिंग न्यूज़ की उम्मीद नहीं की जा सकती है, लेकिन, उन्होंने कहा, कि “द एक्सप्रेस ग्रुप” सफल है क्योंकि वह अभी भी न्यूज़ ब्रेक करते हैं. “कभी-कभी हमारी इनवेस्टिगेटिव स्टोरीज़ इतनी महत्वपूर्ण होती हैं कि टीवी चैनल उन्हें बहस का मुद्दा बना लेते हैं.” 

पाठकों की पसंद और बाज़ार की ज़रूरतों को देखते हुए, संपादकीय नीति भी बदल रही थी. उन्होंने कहा, “इसलिए हम राजनीति तक ही सीमित नहीं हैं जैसे ज्यादातर अखबार 1980 के दशक तक थे. जीवन के अन्य पहलू भी लोगों के लिए महत्वपूर्ण हो गए हैं और हम उनके साथ तालमेल बिठा रहे हैं…फिर भी, अन्याय, अपराध और बेईमानी के बारे में ख़बरें हमेशा प्रासंगिक रहेंगी”. 

नागरिक मुद्दों को भी प्रमुखता मिल रही थी. उन्होंने कहा, “लोग स्थानीय मुद्दों के बारे में जागरूक हो गए हैं…हमारा पाठक वर्ग अब डेमोग्राफिक रूप से बहुत अधिक विविध है, और हम उनकी रुचियों का ध्यान रखते हैं… हम जानते हैं कि नई प्रौद्योगिकियां, नौकरी भर्तियां, कॉर्पोरेट समाचार, फैशन और मनोरंजन के उभरते ट्रेंड्स, स्वास्थ्य जानकारी और महिलाओं के मुद्दे भी आधुनिक पाठकों के रुचि के विषय हैं. लेकिन हमने अपने सिटी सप्लीमेंट्स, सिटी एक्सप्रेस और एक्सप्रेस वीकेंड पर मेहनत की है, और नागरिक अभियान इन सप्लीमेंट्स की विशिष्टता हैं.”

समूह न्यूज़प्रिंट की गुणवत्ता में भी महत्वपूर्ण सुधार कर रहा था, और विज्ञापन स्पेस को कॉलमों की जगह वर्ग सेंटीमीटर में नापा जा रहा था. संथालिया ने उपरोक्त इंटरव्यू में कहा था कि उन्होंने indiavarta.com के साथ इंटरनेट पर भी शुरुआत की है. लेकिन यह लिंक अब काम नहीं कर रहा है, और समूह की वेबसाइटों पर भी इसका ज़िक्र नहीं है. इसके अलावा, ऐसे ही नाम वाली एक डिजिटल इकाई, इंडिया वार्ता न्यूज़, का समूह से कोई संबंध नहीं दिखता है. उक्त साक्षात्कार में संथालिया ने खुलासा किया था कि उच्च नेट-वर्थ वाले लोग ही उनके टारगेट ऑडियंस थे. 

“द न्यू इंडियन एक्सप्रेस स्पष्ट रूप से हमारा प्रमुख ब्रांड है… हमारे तामिल दैनिक दिनमणि के पाठकों की प्रोफ़ाइल कई प्रमुख अंग्रेजी दैनिक समाचार पत्रों के पाठकों की तुलना में अधिक है. इसी तरह, हमारी मलयालम पत्रिका, समकलिका मलयालन वारिका, मलयाली लोगों में सबसे अधिक बौद्धिक और अभिजात वर्ग द्वारा पढ़ी जाती है. पांच अन्य कन्नड़ दैनिकों से गहन प्रतिस्पर्धा के बावजूद, कन्नड़ प्रभा उन जानकार पाठकों की पसंद बनी हुई है जो निष्पक्ष, विश्वसनीय समाचार रिपोर्ट चाहते हैं.”

कुल मिलाकर, संथालिया इस बात से उत्साहित दिखे कि इन सुधारों से कंपनी को “विकास की एक नई गति” मिलेगी. उन्हें उम्मीद थी कि एक या दो साल के बाद “कंपनी अपने अब तक के सबसे सफल (वर्षों) का अनुभव करेगी”. 

बड़े सपने और बढ़ते विवाद 

2007 में मिंट ने रिपोर्ट किया कि एक्सप्रेस पब्लिकेशंस (मदुरै) लिमिटेड की योजना आईपीओ लॉन्च करने की है. इससे पहले कंपनी ने एक प्राइवेट इक्विटी फर्म को हिस्सेदारी बेचने की भी योजना बनाई थी.  संथालिया ने मिंट से कहा था, “कंपनी बड़े पैमाने पर विस्तार की योजना बना रही है और इन माध्यमों से जुटाए गए फंड से इसे परिचालन और विस्तार को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी.”

उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि कंपनी अच्छा प्रदर्शन नहीं कर रही थी. “पिछला कुछ समय हमारे लिए उथल-पुथल भरा रहा और हमने मार्केट का फ़ायदा नहीं उठाया. लेकिन अब हम सभी प्रकाशनों को विकास करने के लिए सक्रिय कर रहे हैं.”वित्तीय वर्ष 2007 में कंपनी का घाटा 15.4 करोड़ रुपए था, और ईपीएमएल ने अपनी अधिकृत पूंजी (सर्वाधिक शेयर कैपिटल) 12 करोड़ रुपए से बढ़ाकर 16 रुपए रुपये और वित्तीय वर्ष 2009 में 18 करोड़ रुपए कर दी.

मिंट की रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि समूह का लक्ष्य द न्यू इंडियन एक्सप्रेस के सर्कुलेशन को बढ़ाकर दस लाख करना और पाठक संख्या चालीस लाख करना था, यह देखते हुए कि द हिंदू तमिलनाडु में अग्रणी था, और डेक्कन क्रॉनिकल और टाइम्स ऑफ इंडिया हैदराबाद और बेंगलुरु में अग्रणी थे.

गौरतलब है कि समूह में सबसे अधिक सर्कुलेशन टीएनआईई और न्यू संडे एक्सप्रेस पत्रिका का था, कम से कम 2011 और 2023 की अवधि के बीच (जिसका सर्कुलेशन डेटा कंपनी के दस्तावेजों में उपलब्ध है, 2013 और 2014 को छोड़कर). हालांकि, 2011 में टीएनआईई के सर्कुलेशन के चरम पर भी यह पांच लाख तक भी पहुंचने में कामयाब नहीं हुआ. 2010 में समूह के दैनिक कन्नड़ प्रभा, उसके अधीनस्थ ब्रांड और संबंधित संपत्तियां सभी कन्नड़ प्रभा पब्लिकेशंस लिमिटेड को हस्तांतरित कर दी गईं. 

2011 के मध्य तक केपीपीएल की 51 प्रतिशत हिस्सेदारी एशियानेट न्यूज नेटवर्क प्राइवेट लिमिटेड को बेच दी गई थी, जिसके प्रमोटर भाजपा राजनेता राजीव चन्द्रशेखर हैं.एएनएन ने कथित तौर पर इसके लिए करीब 150 करोड़ रुपए दिए थे.

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