सर्वोच्च न्यायालय में बुधवार को न्याय की देवी की नई मूर्ति लगाई गई है। न्याय की देवी की मूर्ती की आंखों से पट्टी हटा दी गई है और उसके हाथ में तलवार की जगह संविधान ने ले ली है।
सर्वोच्च न्यायालय में बुधवार को न्याय की देवी की नई मूर्ति लगाई गई है। न्याय की देवी की मूर्ती की आंखों से पट्टी हटा दी गई है और उसके हाथ में तलवार की जगह संविधान ने ले ली है। यह मूर्ति सुप्रीम कोर्ट में जजों के पुस्तकालय में लगाई गई है। ताकि यह संदेश दिया जा सके कि देश में कानून अंधा नहीं है और गलती करने पर कड़ी सजा का भी प्रावधान है।
मूर्ति की यह है खास विशेषताएं
न्याय की नई मूर्ति सफेद रंग की है और प्रतिमा में न्याय की देवी को भारतीय वेषभूषा में दर्शाया गया है। वह साड़ी में दर्शाई गई हैं। न्याय की मूर्ति के सिर पर सुंदर का मुकुट भी है, माथे पर बिंदी, कान और गले में पारंपरिक आभूषण भी नजर आ रहे हैं। इसके अलावा न्याय की देवी के एक हाथ में तराजू है तो वहीं दूसरे हाथ में संविधान पकड़े हुए दिखाया गया है।
नई मूर्ति दे रही है यह संदेश
न्याय की देवी की नई मूर्ति संदेश दे रही है कि न्याय अंधा नहीं है। वह संविधान के आधार पर काम करता है। गौरतलब है कि न्याय की देवी की नई मूर्ति चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की पहल पर लगाई गई है। हालांकि अभी यह साफ नहीं है कि ऐसी और मूर्तियां भी लगाई जाएगी या नहीं।
आंखों पर पट्टी और तराजू का क्या है मतलब
पुरानी मूर्ति में आंखों पर पट्टी का मतलब था कि कानून सबके साथ एक जैसा व्यवाहर करता है। हाथ में तलवार दिखाती थी कि कानून के पास ताकत है और वो गलत करने वालों को सजा दे सकता है। हालांकि नई मूर्ति में एक चीज नहीं बदली है वो है तराजू। मूर्ति के एक हाथ में तराजू है जो यह दिखाता है कि कोर्ट किसी भी फैसले पर पहुंचने से पहले दोनों पक्षों की बात को ध्यान से सुनता है। तराजू संतुलन का प्रतीक है।