जो नेता सत्ता में बड़ी भूमिका में रहते है, तो जनप्रतिनिधि, पदाधिकारी,नेता उनसे जुड़ना पसंद करते है। भाजपा की राजनीति में बीते 30 वर्षों से हमेशा एक गुट मजबूत स्थिति में रहा और उस गुट से जुड़े नेता फायदे में रहे। 18 साल बाद मध्य प्रदेश में शिवराज, तोमर गुट का सूर्यास्त हुआ है और मोहन-कैलाश गुट का सूत्रपात।भाजपा महासचिव कैलाश विजयवर्गीय भले ही मुख्यमंत्री नहीं बन पाए, लेकिन वे अब मजबूत स्थिति में है क्योकि मुख्यमंत्री मोहन यादव से उनका राजनीतिक तालमेल पहले से ही अच्छा है। मंत्रीमंडल में वे और प्रहलाद पटेल ही सबसे सीनियर मंत्री है।
अब नेता इस गुट से जुड़ने के गणित जमा रहे है। फिलहाल मध्य प्रदेश में जो गुट मजबूत हुआ है। उसके नेता संघ के सरकार्यवाह रहे सुरेश सोनी से जुड़े हुए है। मंत्रीमंडल गठन में भी इस गुट की चली।
भाजपा महासचिव कैलाश विजयवर्गीय भले ही मुख्यमंत्री नहीं बन पाए, लेकिन वे अब मजबूत स्थिति में है क्योकि मुख्यमंत्री मोहन यादव से उनका राजनीतिक तालमेल पहले से ही अच्छा है। मंत्रीमंडल में वे और प्रहलाद पटेल ही सबसे सीनियर मंत्री है। अब यह देखना है कि दोनो को कौन सा विभाग मिलता है।
शिवराज के मुख्यमंत्री नहीं बनने का नुकसान मालवा निमाड़ में कुछ विधायकों को उठाना पड़ा। अर्चना चिटनीस के मंत्री बनाए जाने की चर्चा थी, लेकिन वे नहीं बन पाई। शिवराज तोमर गुट से जुड़ी मालिनी गौड़ भी मंत्री नहीं बन पाई। संघ हमेशा उषा ठाकुर के लिए मददगार रहा है, लेकिन इस बार वे भी मंत्री बनने से वंचित रही। विजयवर्गीय से जुड़े आलीराजपुर विधायक नागर सिंह चौहान और मोहन यादव की पसंद से चैतन्य कश्यप मंत्री बन गए।
मोहन-कैलाश गुट से जुड़ने लगे विधायक
पहले ज्यादातर विधायक शिवराज तोमर गुट से जुड़े थे, लेकिन अब वे पाला बदलने लगे है और मोहन- कैलाश गुट के प्रति आस्था जताने लगे है। इस गुट में पहले से ही विधायक रमेश मेंदोला, पुष्यमित्र भार्गव, जीतू जिराती, उज्जैन महापौर मुकेश टटवाल सहित अन्य नेता है। ज्योतिरादित्य गुट के तीन विधायकों को जगह देकर इस गुट ने ज्योतिरादित्य समर्थक विधायकों का साध लिया है। गोलू शुक्ला, मधु वर्मा, जयपाल सिंह चावड़ा सहित अन्य नेता भी विजयवर्गीय मोहन गुट से नजदीकी बढ़ाने लगे है।
यह गुट रहे प्रदेश में मजबूत
अलग-अलग कालखंड में मध्य प्रदेश की राजनीति में कई गुट मजबूत स्थिति में रहे और उस गुट से जुड़े नेतागणों को आगे बढ़ने के कई अवसर मिलते रहे। 90 के दशक में ठाकरे- पटवा गुट अस्तित्व में आया। तब अविभाजित मध्य प्रदेश में ठाकरे की पसंद से ही टिकट तय होते थे।
इस गुट से जुड़े विक्रम वर्मा, सुमित्रा महाजन, कृष्णमुरारी मोघे, राजेंद्र धारकर मजबूत स्थिति में रहे। मोघे को संगठन महामंत्री का पद भी उस दौर में ठाकरे ने दिया था। यह गुट लंबे समय तक मजबूत स्थिति में रहा।
2000 के दशक में शिवराज-तोमर गुट का उदय हुआ और यह सबसे लंबे समय तक प्रदेश में सक्रिय रहा। इस गुट ने राजनीतिक अदावत रखने वालों को भी साइड लाइन करने में कोई कसर नहीं रखी। अब मोहन और विजयवर्गीय गुट अस्तित्व में आया है। इसके चलते अब विजयवर्गीय राष्ट्रीय महासचिव पद से भी इस्तीफा देंगे और पूरी तरह प्रदेश की राजनीति पर ही फोकस करेंगे।