शशिकांत गुप्ते
सीतारामजी को पुरानी फिल्मों के गाने सुनने और गाने का शोक है।
आज वे सन 1955 में प्रदर्शित फ़िल्म कुंदन का यह गीत गा रहे थे। यह गीत लिखा है, गीतकार शकील बदायुनीजी ने। यह युगल गीत गाया है। गायिका सुधा मल्होत्रा और गायक एस. डी. बतीशजी ने
चरित्र अभिनेता ओमप्रकाश और एक अभिनेत्री पर इस को फ़िल्मया है।
गीत के बोल है।
आओ हमारे होटल में
चाय पियो जी गरम-गरम
बिस्कुट खाओ नरम-नरम
जो दिल चाहे मांग लो हमसे
सब कुछ है भगवान कसम
यह गीत सन 2014 के चुनावी प्रचार जैसा ही महसूस होता है।
सन 2014 से देशवासियों ने चाय और गाय का महत्व पहचाना है।
बहुत से लोग सिर्फ चाय नहीं पीते हैं। चाय के साथ पकौड़े का खाने के महत्व को भी सन 2014 के बाद ही समझा है।
सीतारामजी के मुखारबिंद से ये गाना सुनकर मैने कहा इतनी गूढ़ बातें आमजन नहीं समझ पाएंगे।
मैने कहा वर्तमान महौल को देखकर तो सन 1959 में प्रदर्शित फ़िल्म हमदोनों का यह गीत ज्यादा प्रासंगिक लगता है।
सन 2014 के सत्ता परिवर्तन के बाद सत्ता के मद में चूर होकर
सत्ता मे विराजित “हमदोनों” ही हमदोनों फ़िल्म के गीत ही ये पंक्तियाँ गया रहें हैं
बर्बादियों को शौक मनाना फ़िजूल था
बर्बादियों का जश्न मनाता चला गया
हर फिक्र को धुंए में उड़ाता चला गया
जो कुछ नहीं था वही बेंचता चला गया
वादों को जुमलों में बदलता चला गया
सीतारामजी ने कहा सच में आप व्यंग्यकार ही हो।
मैने हमदोनों ही व्यंव्यकार हैं।
शशिकांत गुप्ते इंदौर