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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बिरसा मुंडा की जन्मस्थली की यात्रा’ का विरोध

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विशद कुमार

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 15 नवम्बर 2023 को बिरसा मुंडा के गांव उलिहातु (खूंटी) से विकसित भारत संकल्प यात्रा शुरू करने वाले हैं। कहने को यह सरकारी उपलब्धियों को बताने का अभियान है। जबकि असल में यह भाजपा का 2024 के संसदीय चुनाव की प्रचार यात्रा है। कार्यक्रम को भाजपाई रंग देने के लिए सरकारी अधिकारियों को रथ प्रभारी का नाम दिया गया था। लेकिन जन दबाव के बाद उन्हें वापस नोडल पदाधिकारी का नाम दिया गया। 

इस यात्रा पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए झारखंड के कई जन संगठनों व सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कहा है कि यह यात्रा और कुछ नहीं, मोदी की छवि चमकाने के लिए पैसे की बरबादी है, सरकारी कामकाज में बाधा है। मोदी सरकार तो प्रचार का विश्व कीर्तिमान बनाती ही रहती है।

इन जन संगठनों व सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा ‘लोकतंत्र बचाओ अभियान 2024’ के तहत ‘अबुआ झारखंड, अबुआ राज’ (हमारा झारखंड, हमारा राज) का अभियान शुरू कर अपना विरोध दर्ज करते हुए आदिवासी समाज को आगाह करते हुए कहा है कि प्रधानमंत्री द्वारा यह यात्रा जानबूझकर आदिवासियों के राष्ट्रीय नायक बिरसा मुंडा की जन्मस्थली से शुरू की जा रही है। इस महानायक को दिखावटी सम्मान देकर वे आदिवासियों को अपनी ओर आकर्षित करने की फिर से नयी चाल चल रहे हैं। इस यात्रा के जरिये वे झारखंड में फिर से अधिक से अधिक संसदीय सीटों को जीतकर तीसरी बार प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं।

इस यात्रा के बावत अभियान में शामिल अंबिका यादव ने साफ तौर पर कहा है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा को उलीहातु से इस यात्रा के शुभारंभ का कोई नैतिक हक ही नहीं है। क्योंकि वे आदिवासियों की स्वतंत्र पहचान मान्य ही नहीं करते हैं। उन्हें वनवासी नाम में समेट देते हैं। वे स्वतंत्र आदिवासी धर्म और संस्कृति को सनातन धर्म में शामिल कहकर मिटा देना चाहते हैं। वे सरना और ईसाई आदिवासी का झगड़ा लगाकर आदिवासियों की एकता और शक्ति घटाकर जाति व्यवस्था आधारित ब्राह्मणवाद का दबदबा बनाना चाहते हैं। 

वे आगे कहते है कि मोदी सरकार ने मणिपुर में आदिवासियों पर राज्य समर्थित नरसंहार होने दिया। झारखंड में भाजपा के नेता मणिपुर को उदाहरण बनाकर समुदाय व धर्म-आधारित नफरत फैलाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। इसके बाद भी वे “जनजाति गौरव दिवस” के नाम पर आदिवासियों को जुमला देने की कोशिश कर रहे हैं। 

अभियान के कुमार चंद्र मार्डी ने कहा है कि झारखंड की आदिवासी-मूलवासी जनता जल, जंगल, जमीन व खनिज पर अपने हक की लड़ाई लड़ रही है और मोदी सरकार इन हकों को मिटा रही है। मोदी सरकार को तो भूमि अधिग्रहण 2013 का आंशिक अच्छा कानून भी मंजूर नहीं था। उसे खत्म करने के लिए मनमाना भूमि अधिग्रहण का अध्यादेश बार-बार व्यापक जनविरोध के बावजूद लाया था। वन संरक्षण कानून में संशोधन कर वन अधिकार कानून के तहत मिले और मिलनेवाले वनभूमि और संसाधनों पर ग्रामसभा के अधिकारों को छीनकर पूंजीपतियों को वन सौंपने का फैसला मोदी सरकार ने लिया है। 

वे आगे कहते हैं कि भूमि स्वामित्व कार्ड योजना, जिसका पायलट खूंटी में ही किया गया, के जरिये गांव की सार्वजनिक भूमि को ग्रामीणों के नियंत्रण से छीनने की एवं सीएनटी – एसपीटी कानून और खूंटकट्टी व्यवस्था को खत्म करने साजिश रची गयी है। नरेन्द्र मोदी के प्रिय गौतम अडाणी के अनुचर गोड्डा सांसद निशिकांत दुबे तो पांचवीं अनुसूची और सीएनटी-एसपीटी कानून के खात्मे का संकल्प जाहिर करते रहे हैं। खूंटी में 2017-18 में भाजपा की डबल इंजन सरकार ने पत्थलगड़ी करनेवाले हजारों आदिवासियों को देशद्रोही घोषित कर उन पर दमन ढाहा था, उन्हें जेल में डाला था। भाजपा की डबल इंजन सरकार ने सीएनटी-एसपीटी कानून के संशोधन का विरोध करने वालों पर भी दमन किया था। 2019 के खूंटी लोकसभा चुनाव में जनता के अनुसार तो भाजपा की जीत तो वोट गणना में गड़बड़ी कर के हुई थी।

अभियान में शामिल सिराज दत्ता कहते हैं कि पिछले नौ सालों में मोदी ने विकसित झारखंड या विकसित भारत बनाने की जगह भारत और खासकर झारखंड को विनाश की ओर धकेला है। गरीब, वंचितों, मजदूर और किसानों के अधिकारों को कमजोर किया गया है। जीवनरेखा समान कल्याणकारी योजनाओं जैसे मनरेगा, पेंशन, आंगनवाड़ी आदि के बजट में व्यापक कटौती की गयी है। विकास तो केवल पूंजीपतियों, खासकर उसमें भी सबसे ज्यादा अंबानी–अडानी की दौलत में हुआ है। भाजपा की सम्पत्ति में व्यापक बढ़ोतरी हुई है। दूसरी ओर नौ सालों में ग्रामीण मजदूरों की मजदूरी दर में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है, बल्कि गैर बराबरी और बढ़ी है। साथ ही, सामाजिक-धार्मिक ताने-बाने को छिन-भिन्न किया गया है। 

वे आगे कहते हैं कि ‘विकसित भारत संकल्प यात्रा’ को शुरू करने से पहले ‘लोकतंत्र बचाओ 2024’ अभियान प्रधान मंत्री मोदी को नौ सालों के नौ जन विरोधी कार्यों को याद दिलाना चाहता है, जिनका झारखंड के लोगों पर सीधा कुप्रभाव पड़ा है। 

अभियान ने प्रधानमंत्री मोदी के 9 सालों के 9 जन विरोधी कार्यों की सूची भी जारी की है जिसमें कहा गया है- प्रधानमंत्री मोदी के 9 सालों के 9 जन विरोधी कार्य जो विकसित झारखंड या विकसित भारत बनाने की जगह भारत को और खासकर झारखंड को विनाश की ओर धकेला है….

1. जल, जंगल, ज़मीन, खनिज पर हमला

इन नौ सालों में मोदी ने जल, जंगल, ज़मीन, खनिज लूटने और झारखंडियों को विस्थापित करने का ही काम किया है। हाल में सरकार द्वारा वन संरक्षण अधिनियम में संशोधन करके ग्राम सभा और ग्रामीणों की सहमति की अनिवार्यता को समाप्त कर दिया गया। अब मोदी सरकार ग्राम सभाओं की असहमति के बावजूद झारखंड के वनों को गैर-वन कार्यों एवं कॉर्पोरेट परियोजनाओं के लिए इस्तेमाल कर सकती है। खूंटी में केंद्र सरकार के निर्देश पर भू-स्वामित्व योजना पायलट शुरू की गयी, जिससे सीएनटी कानून और खूंटकट्टी व्यवस्था समाप्त हो जाएगी। मोदी सरकार ने कोयले में व्यावसायिक खनन व्यवस्था लागू कर राज्य के कोयले का कॉर्पोरेट दोहन के लिए रास्ता खोल दिया। महीनों से गोंदुलपुरा के आदिवासी-मूलवासी अडानी को दिये गए कोयला खनन का विरोध कर रहे हैं लेकिन मोदी सरकार अडानी मोह में डूबी हुई है। इन 9 सालों में भाजपा द्वारा राज्य के सीएनटी-एसपीटी कानून को लगातार कमजोर करने की कोशिश की गयी।

2. नोटबंदी और महंगाई की मार

2016 में की गयी नोटबंदी से झारखंड समेत पूरे देश में किसानों, कारीगरों, छोटे व्यापारियों और आम लोगों का इतना बुरा हाल हुआ कि वे अभी तक बदहाल हैं । एक मनमाने फैसले से बैंक लाइन में व पैसे के अभाव में सैकड़ों लोग मर गए। लगातार आम आदमी इस्तेमाल के सामान जैसे दाल, तेल, सब्जी, पेट्रोल, डीजल, गैस सिलिंडर, दवा, ट्रेन भाड़े में व्यापक महंगाई हुई है। एक ओर देश को 5 ट्रिलियन रुपए की अर्थव्यवस्था बनाने का जुमला दिया गया और दूसरी ओर ग्रामीण मजदूरों के मजदूरी दर में 9 सालों में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है। गैरबराबरी इस कदर बढ़ी है, असल में बढ़ायी गयी है कि अब देश के सबसे अमीर 5% लोगों के पास देश की आमदनी का 60% है, जबकि सबसे गरीब 50% लोगों के पास केवल 3%।

3. सामाजिक-आर्थिक अधिकारों को कमज़ोर किया गया

मनरेगा, सामाजिक सुरक्षा पेंशन, मध्याह्न भोजन, आंगनवाड़ी सेवा, मातृत्व भत्ता समेत कई कल्याणकारी योजनाओं के बजट में व्यापक कटौती की गयी है। 9 साल से वृद्धों को केंद्र सरकार केवल 200 रु. मासिक पेंशन दे रही है। 2014 से अब तक मध्याह्न भोजन व आंगनवाड़ी सेवा के बजट में लगभग 40% की कटौती हुई। झारखंड में पांच साल से कम उम्र के 40% बच्चे कुपोषित हैं। 9 सालों में मोदी सरकार ने बच्चों और महिलाओं के पोषण वृद्धि के लिए नगण्य कार्यवाई की है। 2013 में पारित राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून का व्यापक उल्लंघन कर अभी भी झारखंड के 25 लाख से अधिक लोगों को जन वितरण प्रणाली से वंचित रखा गया है, क्योंकि मोदी सरकार अभी भी 2011 की जनगणना के आधार पर राशन का कोटा तय कर रही है।

4. किसानों और किसानी पर वार

मोदी सरकार किसानों की आय दुगना करने के नाम पर सालों से किसानों को जुमला दे रहे हैं। आय बढ़ना तो दूर की बात खेती करना भी मुश्किल होते जा रहा है। मोदी सरकार ने खाद (यूरिया, डीएपी आदि) में सब्सिडी लगातार कम किया है जिसके कारण ये महंगे ही गए हैं। आज तक सरकार ने अधिकांश फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय नहीं किया। वहीं किसान विरोधी कानून पारित करके किसानों का पेट काट के कॉर्पोरेट घरानों व कंपनियों को फायदा पहुंचाने की पूरी तैयारी थी। मोदी की नीति से झारखंड में किसानों की ज़मीन को ठेका पर कंपनियों को देना आसान हो जाएगा।

5. धर्मांधता, नफरत और हिंसा में बढ़ोतरी

जब से केंद्र में भाजपा सरकार आई है, तब से झारखंड समेत पूरे देश में धर्म और गाय के नाम पर कई आदिवासियों, दलितों व मुसलमानों की भीड़ द्वारा हत्या की गई है। सीएनटी – एसपीटी लागू करके संविधान के विरुद्ध धर्म-आधारित नागरिकता की परिकल्पना स्थापित की गयी और देश के मुसलमानों को दूसरे दर्जे का नागरिक बनाने की तैयारी की गयी। भाजपा के नेताओं द्वारा लगातार देश को हिन्दू राष्ट्र बनाने की बात हो रही है। मोदी सरकार का ध्यान मंदिर बनाने पर और सरकारी व्यवस्था में धर्म घुसाने में ज़्यादा लगा हुआ है। झारखंड में भाजपा द्वारा लगातार ईसाई-सरना आदिवासियों व आदिवासी- कुड़मी मुद्दे पर झारखंडी समाज का विभाजन किया जा रहा है। मोदी सरकार ने मणिपुर में आदिवासियों पर राज्य समर्थित नरसंहार होने दिया। झारखंड में भाजपा के नेता मणिपुर को उदाहरण बनाकर समुदाय व धर्म-आधारित नफरत फैलाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं।

6. युवाओं की ज़िंदगी के साथ खिलवाड़

प्रधानमंत्री का प्रति वर्ष 2 करोड़ नौकरियों / रोजगार का वादा महज़ जुमला निकला। अग्निवीर योजना लागू कर भारतीय सेना की लम्बी नौकरी को खतम कर 4 साल की संविदा आधारित व्यवस्था लागू की गयी। यह झारखंड के युवाओं के साथ तो बड़ा धोखा है, जिनके लिए सेना रोज़गार का एक बड़ा साधन रहा है। आदिवासी-दलित-पिछड़ों के आरक्षण के संवैधानिक अधिकार को लगातार कमजोर किया गया है। जनसंख्या के हिस्से अनुसार आरक्षण बढ़ाने के बजाय आर्थिक आधार पर सवर्णों के लिए आरक्षण लागू कर बहुजन आरक्षण को कमज़ोर किया गया है। रेल्वे समेत हर सरकारी प्रकरण में आरक्षण आधारित स्थायी नौकरी को खतम कर के कांट्रैक्ट नौकरी व्यवस्था स्थापित की जा रही है।

7. गरीब विरोधी शिक्षा नीति

नयी शिक्षा नीति लागू करके शिक्षा व्यवस्था को निजीकरण बाजारीकरण के जरिये लगातार महंगा किया जा रहा है। कम आमदनी वाले आदिवासी, दलित, पिछड़ों के लिए स्कूल-कॉलेज की पढ़ाई नामुमकिन होती जा रही है। इस शिक्षा नीति के अंतर्गत फिर से जाति आधारित काम के लिए प्रोत्साहन किया जा रहा है। विश्वकर्मा योजना जैसी योजनाएं लागू की जा रही हैं। यह बच्चों को मज़दूर बनाने की नीति है। साथ ही, शिक्षा क्षेत्र में भी आदिवासी-दलित-पिछड़ों के आरक्षण के संवैधानिक अधिकार को लगातार कमजोर किया गया है।

8. भ्रष्टाचार के नये रास्ते

भाजपा सरकार की चुनावी बॉन्ड योजना राजनीतिक भ्रष्टाचार की अंधी अंतहीन गुफा है। सरकारी वकील इस योजना के पक्ष में यह बेशर्म दलील दे रहे हैं कि मतदाता को यह जानने का हक नहीं है कि पार्टियां किससे, कैसे व्यक्ति से चंदा रही हैं। बॉन्ड योजना अंतर्गत अब तक आए 13,500 करोड़ रु चंदे का अधिकांश हिस्सा भाजपा को मिला। लोकायुक्त व्यवस्था को कमज़ोर कर दिया गया है। पूरे देश की तरह झारखंड की परिसंपत्तियों को भी अडानी को सस्ते में दिया जा रहा है। एलआईसी, जिसमें राज्य के लाखों लोगों का पैसा जमा है, के 40,000 करोड़ रु. को अडानी समूह को दिया गया है। साथ ही, मोदी सरकार ने सूचना के अधिकार कानून में संशोधन कर सरकार से जवाबदेही व पारदर्शिता मांगने पर अंकुश लगा दिया है।

9. राज्य दमन

याद करें, जिस जिले से यात्रा निकल रही है उसी जिले में 2017-18 में भाजपा की डबल इंजन सरकार ने पत्थलगड़ी करने वाले हजारों आदिवासियों को देशद्रोही घोषित कर उन पर दमन किया था, उन्हें जेल में डाला था। खूंटी लोकसभा चुनाव 2019 में भाजपा की जीत संदिग्ध है, सवालों के घेरे में है। मोदी सरकार ने UAPA कानून में संशोधन कर झारखंड समेत देश भर के कई सामाजिक कार्यकर्ताओं, पत्रकारों, वकीलों व बुद्धिजीवियों को फ़र्जी मामलों में फंसा कर बिना सुनवाई के सालों से जेल में क़ैद रखा है। सामाजिक कार्यकर्ता फादर स्टेन स्वामी को सुविधा और इलाज के अभाव में जेल में मार दिया गया।

साथ ही, झारखंडी सरकार को गिराने की लगातार कोशिश हुई है। मोदी सरकार ने राज्यपाल, ईडी, सी बी आई, आई टी, एन आई ए को गैर भाजपा सरकारों को तंग करने, डराने, गिराने का हथियार बना लिया है। हर भ्रष्ट और अपराधी भाजपा में जाते ही बेगुनाह हो जाता है। झारखंड में भी आये दिन पूरी बेशर्मी से भाजपाई नेता हेमंत सरकार गिरा देने का एलान करते रहते हैं। ED और CBI ने 2014 से अब तक जितने मुख्य राजनैतिक नेताओं पर कार्यवाई की है, उनमें से 95% विपक्ष (गैर-भाजपा) पार्टी के हैं। लोकतंत्र बचाओ 2024 अभियान द्वारा कहा गया है कि अगर मोदी में थोड़ी भी शर्म बची है, तो जनता के सामने न आयें।

झारखंड में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उलिहातू दौरे का विरोध शुरू हो गया है। पीएम मोदी 15 नवंबर को खूंटी में उलिहातू की यात्रा करने वाले हैं। उलिहातू आदिवासियों के प्रतीक बिरसा मुंडा की जन्मस्थली है। लोकतंत्र बचाओ अभियान ने प्रधानमंत्री की उलिहातू यात्रा को आदिवासियों का अपमान करार दिया है। अभियान के सदस्यों ने जारी मीडिया बयान में ‘विकसित भारत संकल्प यात्रा’ को 2024 के आम चुनावों से पहले प्रचार से प्रेरित बताया गया है। 15 नवंबर को खूंटी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यात्रा को हरी झंडी दिखाएंगे। यात्रा का उद्देश्य केंद्र सरकार की योजनाओं के लाभों को प्रदर्शित करने के लिए देश के हर कोने तक पहुंचना है।

झारखंड में लोकतंत्र बचाओ अभियान, झारखंड जनाधिकार महासभा और लोकतांत्रिक राष्ट्र निर्माण अभियान ने संयुक्त रूप से बयान जारी कर यात्रा का विरोध किया है, जिसने अब तक राज्य के चार लोकसभा क्षेत्रों जमशेदपुर, सिंहभूम, चतरा और रांची में बैठकें की हैं ताकि 2024 में बीजेपी को सत्ता से बाहर करने की रणनीति तैयार की जा सके।

झारखंड जनाधिकार महासभा मानव और आदिवासी अधिकार समूहों का एक गठबंधन है और लोकतांत्रिक राष्ट्र निर्माण अभियान एक लोकतांत्रिक राष्ट्र-निर्माण अभियान है जिसमें वैचारिक रूप से भाजपा की हिंदू राष्ट्र की अवधारणा और समाज में सांप्रदायिक नफरत के प्रसार के खिलाफ व्यक्ति और संगठन शामिल हैं।

उनका कहना है कि, ”प्रधानमंत्री की ओर से खूंटी से प्रचार आधारित ‘विकसित भारत संकल्प यात्रा’ का शुभारंभ बिरसा मुंडा और आदिवासियों का अपमान है। यह 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए भाजपा के प्रचार अभियान का एक हिस्सा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा को उलिहातू से इस यात्रा का शुभारंभ करने का नैतिक अधिकार नहीं है। वे आदिवासियों की स्वतंत्र पहचान को नहीं पहचानते हैं, जिन्हें वे ‘वनवासी’ के रूप में संबोधित करते हैं और उन्हें सनातन धर्म का हिस्सा घोषित करके उनके धर्म और संस्कृति को मिटाने की कोशिश करते हैं।”

बयान में कहा गया है कि “सरना और ईसाई आदिवासियों के बीच संघर्ष पैदा करके, भाजपा लगातार आदिवासी एकजुटता को कमजोर करने और ब्राह्मणवादी जाति व्यवस्था का प्रभुत्व स्थापित करने की कोशिश कर रही है। मोदी सरकार ने मणिपुर में आदिवासियों के राज्य-समर्थित नरसंहार की अनुमति दी और भाजपा नेता झारखंड में मणिपुर को उदाहरण के रूप में इस्तेमाल करके समुदाय और धर्म-आधारित नफरत फैलाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं।”

उन्होंने अपने बयान में ये भी कहा कि “झारखंड में आदिवासी जल, जंगल, खनिज और जमीन पर अपने अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं और मोदी सरकार इन अधिकारों को मिटा रही है। मोदी सरकार ने 2013 के भूमि अधिग्रहण कानून को भी स्वीकार नहीं किया, जिसमें कुछ प्रगतिशील प्रावधान हैं। व्यापक जन विरोध के बावजूद, वह बार-बार मनमाना भूमि अधिग्रहण अध्यादेश लाती रही जो आदिवासियों के विरोध के कारण पारित नहीं हो सका। वन संरक्षण कानून में संशोधन करके, मोदी सरकार ने वन अधिकार अधिनियम के तहत अर्जित वन भूमि और संसाधनों पर ग्राम सभा के अधिकारों को छीनकर जंगलों को कॉर्पोरेट को सौंपने का फैसला किया है।”

“खूंटी में ही शुरू की गई स्वामित्व कार्ड योजना के जरिए गांव की सार्वजनिक जमीन को आदिवासियों के नियंत्रण से छीनने और सीएनटी-एसपीटी कानून और खुंटकट्टी व्यवस्था को कमजोर करने की साजिश रची गई है। 2017-18 में (मुख्यमंत्री के रूप में रघुवर दास के कार्यकाल के दौरान), भाजपा की डबल इंजन सरकार ने पत्थलगड़ी करने वाले हजारों आदिवासियों को देशद्रोही घोषित करके और कई को जेल में डालकर उनका दमन किया था।“ बयान में कहा गया है कि भाजपा की डबल इंजन सरकार ने सीएनटी-एसपीटी अधिनियम में संशोधन का विरोध करने वालों का भी दमन किया था।

उन्होंने ये भी कहा कि “पिछले नौ वर्षों में, मोदी ने भारत को और विशेष रूप से झारखंड को विनाश की ओर धकेल दिया है। गरीबों, वंचितों, श्रमिकों और किसानों के अधिकारों को कमजोर कर दिया गया है। मनरेगा, सामाजिक सुरक्षा पेंशन, आंगनवाड़ी कार्यक्रम आदि जैसी कल्याणकारी योजनाओं के बजट में भारी कटौती की गई है। जो विकास हुआ है वह केवल कुछ पूंजीपतियों, विशेषकर अंबानी और अडानी की संपत्ति में हुआ है। भाजपा की संपत्ति में भी भारी बढ़ोतरी हुई है।” बयान में भाजपा के नेतृत्व वाले केंद्र के नौ “जन-विरोधी” कार्यों को भी सूचीबद्ध किया गया है।

आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता अलोका कुजूर ने कहा कि उलिहातू से लगभग 15 किमी दूर डोंबारी बुरु में एक बैठक आयोजित की जाएगी, जहां प्रधानमंत्री का लगभग उसी समय एक सभा को संबोधित करने का कार्यक्रम है।

कुजूर ने कहा कि “हम मुंडाओं और आदिवासियों को भाजपा सरकार की नौ जनविरोधी नीतियों के बारे में सूचित करेंगे। हम इस बैठक की मेजबानी डोम्बारी बुरू में करना चाहते थे क्योंकि यही वह जगह थी जहां ब्रिटिश पुलिस ने बिरसा मुंडा के नेतृत्व में आदिवासियों पर गोलीबारी की थी, जिसमें कई लोग मारे गए थे।”

(‘द टेलिग्राफ’ में प्रकाशित खबर पर आधारित।)

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