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फातिमा शेख की याद:शिक्षा से वंचित किए जाने की साज़िश के ख़िलाफ़ संघर्ष को संगठित करें

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9 जनवरी फ़ातिमा शेख़ का जन्म दिन है। उन्होंने शिक्षा तथा समाज सुधार के क्षेत्र में  व्यापक काम किया। ख़ासकर ज्योति राव फुले और सावित्रीबाई फुले  के साथ मिलकर  मुस्लिम समाज में महिला शिक्षा के प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। फ़ातिमा शेख़ स्त्रियों और बच्चों को शिक्षित करने की बजाय पूरे समाज को शिक्षित करने में विश्वास रखती थीं। इस काम के लिए उन्हें जीवन भर समाज के प्रतिक्रियावादी शक्तियों से टकराना पड़ा लेकिन अफ़सोस की बात है कि उनके इस संघर्ष पर इतिहास में कम ही चर्चा होती है।

बड़े-बड़े पूंजीपति तथा विदेशी पूंजीपति के मुनाफ़े को बढ़ाने के लिए सरकार  शिक्षा के निजीकरण को बढ़ावा दे रही है। शिक्षा लगातार महंगी होती जा रही है और मेहनतकश वंचित समाज शिक्षा के क्षेत्र से बाहर धकेला जा रहा है।

सामाजिक बदलाव के इस संघर्ष में उनके भाई ने उनका साथ दिया । फातिमा शेख अपने भाई उस्मान शेख़ के साथ रहती थीं। उस्मान शेख़ ज्योति बा फुले के दोस्त थे और उनके सामाजिक संघर्षों के हमराह थे। सामाजिक गतिविधियों में अत्यधिक सक्रिय रहने के कारण ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले को उनके पिता ने घर से निकाल दिया। यही समय था फ़ातिमा शेख़ ने अपने घर से इस कार्य को आगे बढ़ाया और ख़ुद उस अभियान की सक्रिय हिस्सेदार और अगुवा बनीं।

शिक्षा के प्रचार-प्रसार से शुरू हुआ यह संघर्ष समाज में व्याप्त छुआछूत और जातीय घृणा और अलगाव के खिलाफ सामाजिक जागरूकता के अभियान में के रूप में बदलता गया और आगे बढ़ा। जिस दौर में ज्योतिराव फुले ब्राह्मणवादी विचारों तथा सामंती समाज की तमाम प्रतिक्रियावादी मनुष्य विरोधी परंपराओं, रीति रिवाजों और कर्मकांडों को नंगा कर रहे थे वह दौर मुस्लिम समुदाय भी स्त्री-विरोध और अनेक कुरीतियों से ग्रस्त था। इस हालात के ख़िलाफ़ फ़ातिमा शेख़ संघर्ष की एक मज़बूत नींव डाली।

इस दौर में एक तरफ अंग्रेज पूंजीपति भारत के पूंजीपतियों के साथ मिलकर उद्योग तथा यातायात का विस्तार कर रहे थे। इसके समानांतर पूंजी के मालिक भारत की प्रतिक्रियावादी शक्तियों की मदद से एक नई तरह की नौकरशाही के साथ हाथ मिलाकर शिक्षा व्यवस्था को आगे बढ़ा रहे थे। समाज में मेहनतकाशों तथा वंचित समाज के लोगों की कोई जगह न थी। कुलीन घराने के लोग अंग्रेजी शिक्षा में दीक्षित होकर पूंजी की सेवा करने वाली नौकरशाही का विकास कर रहे थे। इस नौकरशाही में तमाम पुराने सामंती व पितृसत्तात्मक परंपरा तथा संस्कृति की रक्षा कर रहे थे। अंग्रेजों की शिक्षा व्यवस्था जिस नौकरशाही को तैयार कर रही थी वह भारतीय सामंतवाद तथा पूंजी के मालिकों के हितों के लिए मेहनतकशों को हर तरह से अलगाव में डाल रहा था। ऐसे में फ़ातिमा शेख़ तथा सावित्रीबाई फुले ने मेहनतकश समाज के बीच उनके जीवन से जुड़े ज्ञान को उद्घाटित करते हुए शिक्षा और ज्ञान की नई परम्परा बनाई।

आज एक बार फिर भारत के बड़े-बड़े पूंजीपति तथा विदेशी पूंजीपति के मुनाफ़े को बढ़ाने के लिए सरकार  शिक्षा के निजीकरण को बढ़ावा दे रही है। शिक्षा लगातार महंगी होती जा रही है और मेहनतकश वंचित समाज शिक्षा के क्षेत्र से बाहर धकेला जा रहा है। तमाम पुराने सरकारी स्कूल तथा संस्थाओं को बंद और तबाह किया जा रहा है। गांव-गांव और मोहल्लों में निजी स्कूलों की बाढ़ आ गई है। सरकारी स्कूल से शिक्षक गायब हो रहे हैं। शिक्षण संस्थाओं की फ़ीस में लगातार तीव्र वृद्धि हो रही है। सरकार की सारी नीतियां पैसे वालों के पक्ष में बन रही हैं। मेहनतकशों को कम से कम मजदूरी देकर काम करवाने तथा टुटपुंजिया उत्पादकों के रोजगार को तबाह करने की नीति को बढ़ावा दिया जा रहा है।

बनारस जिस “बुनकर अर्थव्यवस्था” के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता था ,उसे तबाह करने और उस क्षेत्र में बड़ी पूंजी की पकड़ को बढ़ाने की तेज मुहिम चल रही है। बेरोजगार बुनकर मजदूर बन कर मुंबई, सूरत और बेंगलुरु जा रहे हैं। वहाँ उनके बच्चों के लिए न तो शिक्षा और स्वास्थ्य की व्यवस्था है न ही मजदूरों के लिए कोई शिक्षा प्रशिक्षण और भविष्य है। इन शहरों में मजदूरों का कोई सामाजिक जीवन नहीं है।  इनका कोई संगठन नहीं है, कोई सांस्कृतिक पहचान और गतिविधि नहीं है। एक पूरा समाज बेचारगी की हालत में घुटघुट कर जी रहा है।

संकट के ऐसे समय में हम फ़ातिमा शेख़ तथा सावित्रीबाई फुले जैसे मेहनतकशों के बीच शिक्षा और संस्कृति का विकास करानेवाले व्यक्तित्व को याद करें। उनसे प्रेरणा लेकर शिक्षा से वंचित मेहनतकशों को संगठित करें। ब्राह्मणवाद तथा पूंजी के गठजोड़ के षड्यंत्रों के ख़िलाफ़ फ़ातिमा  शेख़ तथा सावित्रीबाई फुले ने मेहनतकशों को जगाने की जो नींव रखी, उस पर नये संघर्ष खड़े किये जायें। आज एक बार फिर अपने समाज में शिक्षा और संस्कृति की ऊंचाइयों को प्राप्त करने के लिए मेहनतकशों को संघर्ष की अगली पंक्ति में लाने की तैयारी करें। हम फ़ातिमा शेख़ और सावित्रीबाई फुले को याद करें और सरकार की शिक्षा नीतियों के कारण शिक्षा से वंचित किए जाने की साज़िश के ख़िलाफ़ संघर्ष को संगठित करें।

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