,मुनेश त्यागी
भारत की आजादी की लड़ाई में भारत के अधिकांश किसानों, मजदूरों ने और आम जनता ने यह सोचा और विश्वास किया था कि अंग्रेजों की गुलामी का खात्मा हो जाने के बाद, भारत में आजादी आ जाएगी और सबको बुनियादी सुविधाएं जैसे रोटी कपड़ा मकान शिक्षा स्वास्थ्य रोजगार मोहिया हो जाएंगी और सब का कल्याण होगा, सबका विकास होगा और हजारों साल से चले आ रहे शोषण जुल्म अन्याय गैरबराबरी भेदभाव उच्च नीच और छोटे-बड़े की मानसिकता का खात्मा हो जाएगा। यही सब सोच कर उन्होंने भारत के आजादी की लड़ाई में हिस्सा लिया था और अनगिनत बलिदान किए थे।
भारत की जनता के इस बहादुराना संघर्ष के बाद भारत को अंग्रेजों की गुलामी से आजादी मिली और भारत की संविधान में वे सब चीजें शामिल की गई जिनको लेकर भारत की जनता, किसानों और मजदूरों ने कामना की थी। हमारे संविधान में उल्लेखित किया गया कि भारत में जनतंत्र गणतंत्र धर्मनिरपेक्षता समाजवाद कायम किए जाएंगे, सब की समता समानता कायम की जाएगी, सबको न्याय मिलेगा, जनता में आपसी भाईचारा कायम किया जाएगा और सारी जनता एक आधुनिक इंसान और नागरिक होकर रहेगी।
इन्हीं सब बुनियादी सुविधाओं को धरती पर उतरने के लिए हमारे संविधान में सात आजादियों का उल्लेख किया गया। बोलने, लिखने, पढ़ने, यूनियन बनाने, धर्म को मानने की आजादी दी गई और सरकार को जिम्मेदारी दी गई कि वह तमाम तरह के शोषण जुल्म अन्याय का खात्मा करेगी, सबको शिक्षा देगी, सबको रोजगार देगी, जनता को सस्ता और सुलभ न्याय उपलब्ध कराएगी, सब की आर्थिक आजादी का इंतजाम करेगी और सदियों की छाई सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक असमानता को दूर करेगी।
इसी के साथ-साथ नागरिकों के बुनियादी कर्तव्य निर्धारित किए गए जिनमें ज्ञान विज्ञान के आंदोलन को बढ़ाया जाएगा, वैज्ञानिक संस्कृति पैदा की जाएगी, जनता में ज्ञान अन्वेषण खोज और साझी संस्कृति को बनाए रखने की बुनियादी जिम्मेदारी दी गई। आजादी के बाद 20 वर्षों तक इन बुनियादी सिद्धांतों पर काम किया गया और जनता के बड़े हिस्से को शिक्षा दी गई, रोजगार दिये गये, सस्ते और सुलभ स्वास्थ्य के इंतजाम किए गए।
मगर इसके बाद हमारे देश में धीरे-धीरे पूंजी का साम्राज्य बढ़ता गया, जनता में बेरोजगारी बढ़ती चली गई, शिक्षा और स्वास्थ्य को मुनाफाखोरों के हवाले करके बहुत महंगा कर दिया गया, अधिकांश संवैधानिक आदर्शों को अमलीजामा पहनाकर धरती पर नही उतारा गया और आज हालात ये हैं कि भारत में 81 करोड़ से ज्यादा गरीब हैं, किसानों को उनकी फसलों का वाजिब दाम नहीं मिलता, 85% मजदूरों को न्यूनतम वेतन नहीं मिलता। आज हमारे देश में दुनिया भर के बेरोजगारों की सबसे बड़ी संख्या है। आज हमारे देश में पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा आर्थिक असमानता पसर गई है, भ्रष्टाचार और महंगाई जनता की कमर तोड़ रहे हैं और जनता के लिए सस्ता और सुलभ न्याय पाना दूर की कौड़ी साबित हो गई है,
भारत की अधिकांश सरकारों ने समाजवादी सिद्धांतों को लगभग धराशाई कर दिया गया है, आज के शासक वर्ग ने समाजवाद को जैसे एक गाली बना दिया है, धर्मनिरपेक्षता के उसूलों को मिट्टी में मिला दिया है और आज सरकार सिर्फ और सिर्फ चंद पूंजीपतियों और सरमायेदारों की धन दौलत को बढाये रखने का एक औजार बन गई है। उसका जनता की बुनियादी समस्याओं को दूर करने से कोई सरोकार नहीं रह गया है और आज हालात यह हो गई है कि जनता को धर्म, जाति, क्षेत्र और भाषा के आधार पर बांटकर उसकी एकता तोड़ी जा रही है और पूंजीपतियों, धर्मांध, सांप्रदायिक और जातिवादी ताकतों के गठजोड़ की फौज खड़ी करके, किसी भी तरह से साम दाम दंड भेद की नीतियां अपना कर सत्ता में बने रहने की सारी तिकडमें भिढ़ाई जा रही हैं। ईमानदार जनता का चुनाव लड़ना लगभग खत्म हो गया है। आज पैसे के साम्राज्य ने जनतंत्र को बदलकर धन-तंत्र में तब्दील कर दिया है।
इन विपरीत और जन विरोधी नीतियों के हालात में सबसे बड़ा सवाल उठता है कि ऐसे में हमारे देश के जनवादी, प्रगतिशील, धर्मनिरपेक्ष, जनतांत्रिक, समाजवादी, कम्युनिस्ट और सामाजिक न्याय की विचारधारा में विश्वास करने वाले लोग क्या करें? देश और समाज को तोड़ने वाली, हजारों साल पुराने शोषण जुल्म अन्याय भेदभाव गैरबराबरी ऊच-नीच और छोटे-बड़े की सोच और मानसिकता को बनाए रखने वाली, ज्ञान विज्ञान की संस्कृति पर हमला करने वाली और साझी संस्कृति को तोड़कर जनता में धार्मिक और जातिवादी नफरत और उन्माद को बढाये रखने वाली इन संविधान विरोधी, भारत विरोधी और जनविरोधी ताकतों का कैसे मुकाबला करें?
इन विपरीत और भयावह परिस्थितियों में काम करने के लिए, इस देश के तमाम जनवादी प्रगतिशील धर्मनिरपेक्ष समाजवादी और वामपंथी किसानों मजदूरों नौजवानों बुद्धिजीवियों कवियों लेखकों बुध्दिजिवीयों मीडियाकर्मियों, नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं का यह सबसे बड़ा और जरूरी काम हो गया है कि वे सब एकजुट हों, जनता के जनकल्याण का कार्यक्रम तैयार करें और इस जनमुक्ति कार्यक्रम को लेकर जनता के बीच जाएं और उसे इस जनमुक्तिकारी कार्यक्रम के इर्द-गिर्द एकजुट करें और संघर्ष के रास्ते पर उतारें।
दुनिया भर के ज्ञान विज्ञान बौद्धिक वैज्ञानिक और सांस्कृतिक उपलब्धियों ने ऐसा कमाल कर दिखाया है कि आज दुनिया में ऐसी कोई समस्या नहीं है जिसका समाधान न किया जा सके। बस यहां पर यही सबसे ज्यादा जरूरी है कि जनता की मुक्ति चाहने वाले इन तमाम जनवादी समाजवादी प्रगतिशील धर्मनिरपेक्ष समाजवादी और कम्युनिस्ट कार्यकर्ताओं को, इस सब ज्ञान विज्ञान और नीतियों में पारंगत होना चाहिए। सारी समस्याओं का समाधान उनकी उंगलियों पर होना चाहिए ताकि जनता की एकता को तोड़ने वाली और जनता को गुलाम, बेरोजगार और गरीब बनाए रखने वाली इन तमाम पूंजीवादी, धर्मांध, सांप्रदायिक और फासीवादी ताकतों का मुंह तोड़ और माकूल जवाब दिया जा सके और जनता की एकता को किसी भी तरीके से टूटने से बचा जा सके।
इसी के साथ-साथ यह बात भी ध्यान रखने वाली है कि ये तमाम शोषक और लुटेरी ताकतें जनता में, हम जनमुक्तिकारी ताकतों के खिलाफ, जाति और धर्म के नाम पर जनता को गुमराह करने की कोशिश करेंगी, उनमें हमारे खिलाफ नफरत फैलाएंगी। यहीं पर इन जनमुक्तिकारी ताकतें को यह जानने की जरूरत है और जनता को बताने की जरूरत है कि हमारा किसी जाति या धर्म से कोई विरोध नहीं है, पर हां हम जातिवाद और धर्मांता का विरोध करेंगे, जनता में एकता, भाईचारा, साझी संस्कृति और ज्ञान विज्ञान पर आधारित वैज्ञानिक संस्कृति का प्रचार प्रसार करेंगे और जनता को एक आधुनिक इंसान बनायेंगे और किसानों मजदूरों की सरकार बनाकर, जनता के जनवाद और समाजवाद के मूल्यों पर आधारित समाज का निर्माण करेंगे।
इसी के साथ-साथ हम तीन और जरूरी काम करेंगे,,,, पहला यह कि हम दुनिया के सारे वैज्ञानिकों दार्शनिकों नेताओं क्रांतिकारियों जैसे गैलीलियो कोपरनिकस डार्विन प्रोफेसर यशपाल मार्क्स एंगेल्स लेनिन स्टालिन माओ हो ची मिन्ह फिदेल कास्त्रो भगत सिंह राजगुरु सुखदेव बिस्मिल अशफाक टैगोर गांधी नेहरू सुभाष चंद्र बोस जयप्रकाश नारायण कर्पूरी ठाकुर अंबेडकर ज्योतिबा फुले परियार प्रेमचंद चौधरी चरण सिंह ज्योति बसु ईएमएस नम्बूदरीपाद हरिकिशन सिंह सुरजीत आदि क्रांतिकारियों की जीवनियों और विचारों का अध्ययन करेंगे, उनकी किताबें पढ़ेंगे और अपने साथी कार्यकर्ताओं को पढ़वायेंगे, दूसरा यह कि हमारे समाजवादी और दूसरे जनवादी नेताओं और कार्यकर्ताओं द्वारा जाने अंजाने जो खामियां और कमियां रह गई हैं, उनका अध्ययन करेंगे, उनका निवारण करेंगे और उनकी गलतियों से सीखेंगे, उनसे सबक लेंगे और उन्हें भविष्य में नहीं दोहराएंगे और तीसरा यह कि इन सब का अध्ययन करने के बाद हम किसानों मजदूरों के क्रांतिकारी संघर्ष और अभियान का हिस्सा बनेंगे, उसमें यथाशक्ति जोर-शोर से काम करेंगे और जन्म मुक्ति की विचारधारा और कार्यक्रम को जन-जन में फैलाएंगे और उसका अभिन्न हिस्सा बने रहेंगे और कामयाबी पाने तक उसमें भाग लेते रहेंगे।
ये सबसे जरूरी और बुनियादी काम करके ही हम एक ऐसा जनतांत्रिक, गणतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष, जनवादी, समाजवादी, सामाजिक न्याय और आपसी भाईचारे पर आधारित समाज का निर्माण कर पाएंगे जिसमें सबको रोटी मोहिया होगी, सबको काम मिलेगा, सबको शिक्षा मिलेगी, सबका इलाज होगा, बुढ़ापे की पेंशन मिलेगी, देश के संसाधनों का पूरी जनता के विकास के लिए इस्तेमाल किया जाएगा, पूरी जनता का सांस्कृतिक स्तर सुधारने के लिए शहर शहर, गांव-गांव में पुस्तकालय, कविता और नाटक मंडलियों का जाल बिछाया जाएगा और तभी जाकर एक आधुनिक भारतीय का निर्माण किया जा सकेगा।