पूर्व न्यायाधीश जस्ती चेलमेश्वर का कहना है कि 1 जुलाई से लागू हुए तीन नए आपराधिक कानून “नई बोतल में पुरानी शराब हैं”। पूर्व न्यायाधीश के अनुसार, यह अत्यधिक संदिग्ध है कि शीघ्र निपटान, जो कि नये कानूनों का घोषित उद्देश्य है, कभी भी वास्तविकता में तब्दील हो सकेगा“भारतीय साक्ष्य अधिनियम, जिसे अब बीएसए के नाम से जाना जाता है, में किए गए बदलावों के तहत अदालतों को मामले की सुनवाई में अनावश्यक देरी से बचने के लिए अधिकतम दो स्थगन की अनुमति है। आपराधिक मामले का फैसला सुनवाई समाप्त होने के 45 दिनों के भीतर सुनाया जाना चाहिए। पहली सुनवाई के 60 दिनों के भीतर आरोप तय किए जाने चाहिए। आखिर अदालतें इतनी सख्त समय सीमा कैसे तय कर सकती हैं? क्या हमारे पास इसके लिए साधन हैं।”
तीन नए आपराधिक कानूनों पर पी चिदंबरम की तीखी टिप्पणियों पर आपत्ति जताते हुए उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने शनिवार को पूर्व केंद्रीय मंत्री के बयान को ‘अक्षम्य’ करार दिया और मांग की कि पूर्व मंत्री को अपनी ‘अपमानजनक, बदनामी करने वाली टिप्पणियों को वापस लेना चाहिए।
गौरतलब है कि तीन नए आपराधिक कानूनों के प्रभावी होने पर वरिष्ठ कांग्रेस नेता पी चिदंबरम ने सोमवार को सरकार की आलोचना की और कहा कि यह मौजूदा कानूनों को ध्वस्त करने तथा बिना पर्याप्त चर्चा और बहस के उनकी जगह तीन नए विधेयक लाने का एक और मामला है। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्ती चेलमेश्वर का कहना है कि 1 जुलाई से लागू हुए तीन नए आपराधिक कानून “नई बोतल में पुरानी शराब हैं”। पूर्व न्यायाधीश के अनुसार, यह अत्यधिक संदिग्ध है कि शीघ्र निपटान, जो कि नये कानूनों का घोषित उद्देश्य है, कभी भी वास्तविकता में तब्दील हो सकेगा
केरल के तिरुवनंतपुरम में एक कार्यक्रम में उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा, “जब मैंने सुबह एक प्रमुख राष्ट्रीय दैनिक को दिए गए चिदंबरम के साक्षात्कार को पढ़ा तो मैं हैरान रह गया, जिसमें उन्होंने कहा था कि नए कानूनों का मसौदा अंशकालिक लोगों द्वारा तैयार किया गया था। क्या हम संसद में अंशकालिक लोग हैं? यह संसद की बुद्धिमत्ता का अक्षम्य अपमान है।” धनखड़ ने कहा कि वह इसलिए भी ‘स्तब्ध’ रह गए क्योंकि वरिष्ठ कांग्रेसी नेता पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री हैं और ‘लंबे समय तक सांसद’ रहे हैं।
उपराष्ट्रपति ने चेतावनी देते हुए कहा, “जब जानकार लोग जानबूझकर आपको गुमराह करते हैं, तो हमें सतर्क रहने की जरूरत है।” पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल ने यह भी कहा कि कैसे नए कानून हमें औपनिवेशिक विरासत से मुक्त करते हैं और ये ‘युगांतरकारी आयाम’ रखते हैं।
धनखड़ ने कहा कि जब सदन में इन पर बहस हो रही थी, तो इस सज्जन (चिदंबरम), जिनकी वित्त मंत्री के रूप में एक बेहतरीन पृष्ठभूमि है, ने बहस के दौरान अपने स्वर-तंत्र को पूरी तरह से आराम दिया। उन्हें ‘अपने कर्तव्य की विफलता, चूक/कमी का कार्य, कर्तव्य की उपेक्षा, जिसे कभी भी समझाया नहीं जा सकता’ के लिए खुद को जवाबदेह ठहराना चाहिए”।
भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) और भारतीय सुरक्षा अधिनियम (बीएएस) कानून पिछले साल दिसंबर में संसद द्वारा पारित होने के बाद 1 जुलाई को लागू हुए। इन्हें ब्रिटिश काल के आपराधिक कानूनों को बदलने के लिए पेश किया गया है।
चिदंबरम ने नए आपराधिक कानूनों को लेकर सरकार की आलोचना की। चिदंबरम ने कहा कि दीर्घावधि में, तीनों कानूनों में और बदलाव किए जाने चाहिए ताकि उन्हें संविधान और आपराधिक न्यायशास्त्र के आधुनिक सिद्धांतों के अनुरूप बनाया जा सके।
एक्स पर एक पोस्ट में चिदंबरम ने कहा, “तथाकथित नए कानूनों में से 90-99 प्रतिशत कट, कॉपी और पेस्ट का काम है। जो काम मौजूदा तीन कानूनों में कुछ संशोधनों के साथ पूरा किया जा सकता था, उसे एक बेकार की कवायद में बदल दिया गया है।”
उन्होंने कहा, “हां, नए कानूनों में कुछ सुधार हैं और हमने उनका स्वागत किया है। उन्हें संशोधन के रूप में पेश किया जा सकता था। दूसरी ओर, कई प्रतिगामी प्रावधान हैं। कुछ बदलाव प्रथम दृष्टया असंवैधानिक हैं।”
चिदंबरम ने कहा कि स्थायी समिति के सदस्य सांसदों ने प्रावधानों पर गहन अध्ययन किया तथा तीनों विधेयकों पर विस्तृत असहमति नोट लिखे। सरकार ने असहमति नोट में की गई किसी भी आलोचना का न तो खंडन किया और न ही उसका उत्तर दिया तथा संसद में कोई सार्थक बहस नहीं हुई।
उन्होंने कहा, “कानून के विद्वानों, बार एसोसिएशनों, न्यायाधीशों और वकीलों ने अनेक लेखों और सेमिनारों में तीनों नए कानूनों में गंभीर कमियों की ओर इशारा किया है। सरकार में किसी ने भी इन सवालों का जवाब देने की परवाह नहीं की है।
चिदंबरम ने कहा कि यह तीन मौजूदा कानूनों को खत्म करने और उन्हें बिना पर्याप्त चर्चा और बहस के तीन नए विधेयकों से बदलने का एक और मामला है। “उन्होंने कहा कि इसका प्रारंभिक प्रभाव आपराधिक न्याय प्रशासन में अव्यवस्था पैदा करना होगा।
चिदंबरम ने कहा, “मध्यम अवधि में, विभिन्न न्यायालयों में कानूनों को लेकर अनेक चुनौतियां पेश की जाएंगी। दीर्घ अवधि में, तीनों कानूनों को संविधान और आपराधिक न्यायशास्त्र के आधुनिक सिद्धांतों के अनुरूप बनाने के लिए उनमें और बदलाव किए जाने चाहिए।”
जून 2018 में सुप्रीम कोर्ट के दूसरे सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश के रूप में सेवानिवृत्त हुए न्यायमूर्ति चेलमेश्वर कहा है कि नये कानूनों के नाम में बदलाव हुआ है। लेकिन मूल रूप से, प्रतिस्थापन दिखावटी है। यह दिखावा से अधिक कुछ नहीं है।
चेलमेश्वर कहते हैं, “मुझे इस पर बहुत संदेह है। हालांकि मैं अभी भी कानून को बारीकी से पढ़ रहा हूं, लेकिन प्रथम दृष्टया मैं जो देख सकता हूं, उसके अनुसार कुछ बदलाव और संशोधन अनावश्यक हैं।
उन्होंने कहा, “भारतीय साक्ष्य अधिनियम, जिसे अब बीएसए के नाम से जाना जाता है, में किए गए बदलावों के तहत अदालतों को मामले की सुनवाई में अनावश्यक देरी से बचने के लिए अधिकतम दो स्थगन की अनुमति है। आपराधिक मामले का फैसला सुनवाई समाप्त होने के 45 दिनों के भीतर सुनाया जाना चाहिए। पहली सुनवाई के 60 दिनों के भीतर आरोप तय किए जाने चाहिए। आखिर अदालतें इतनी सख्त समय सीमा कैसे तय कर सकती हैं? क्या हमारे पास इसके लिए साधन हैं।”
चेलमेश्वर ने कहा कि सिस्टम की दक्षता से हर कोई परिचित है। “फैसला सिर्फ़ जजों के हाथ में नहीं है। समय सीमा को पूरा करने के लिए आपको बेहद कुशल और अच्छी तरह से प्रशिक्षित कर्मचारियों की ज़रूरत होती है। क्या हमारे पास वे हैं?” उन्होंने पूछा। उनके अनुसार, यह अत्यधिक संदिग्ध है कि शीघ्र निपटान, जो कि नये कानूनों का घोषित उद्देश्य है, कभी भी वास्तविकता में तब्दील हो सकेगा।
जस्टिस चेलमेश्वर के अनुसार इस बात को लेकर गंभीर चिंता है कि भारत में 80 प्रतिशत से अधिक न्यायिक प्रणाली में बुनियादी डिजिटल अवसंरचना सुविधाओं का अभाव है, जो नए कानूनों को लागू करने के लिए एक बड़ी चुनौती है।
जस्टिस चेलमेश्वर के अनुसार, जमानत के प्रावधान और भी सख्त और कष्टकारी हो जाएंगे। उन्होंने कहा, “गंभीर अपराधों के लिए पुलिस हिरासत में अधिकतम हिरासत अवधि 15 दिनों से बढ़ाकर 90 दिन कर दी गई है, जो सीआरपीसी की 15 दिन की सीमा से काफी अलग है। “इस परिवर्तन से संभावित पुलिस ज्यादतियों के बारे में चिंताएं बढ़ गई हैं।
पूर्व न्यायाधीश ने देश में लोक अभियोजन प्रणाली पर भी सवाल उठाए, जो देश की न्यायिक प्रणाली को सुचारू बनाने के लिए प्राथमिक आवश्यकता है। चेलमेश्वर ने कहा, “हर कोई जानता है कि सरकारी अभियोजकों की नियुक्ति कैसे की जाती है। समय के साथ, पूरे देश में सरकारी अभियोजकों के चयन और नियुक्ति प्रक्रिया में कई अप्रासंगिक और अनुचित विचार शामिल हो गए हैं। अगर किसी मामले में आरोप कानून के अनुसार तय नहीं किए गए हैं, तो दोष बार और बेंच दोनों को ही लेना चाहिए। इन विकृतियों को संबोधित नहीं किया गया है।”