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पटवारी की प्रदेश कांग्रेस,चिंटू की निगम कांग्रेस…._घोटाले से गलबहियां……! 

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 _कहाँ दब-छुप गया करोड़ो का फर्जी बिल घोटाला? क्या भाजपा का हो रहा था मुंह काला?_  *_भाजपाई महापौरो के कार्यकाल दागी होने के खतरे ने टाल दी घोटाले पर हो रही बातें? नैपथ्य में धेकेल दिया घोटाला_*

 *_नगरीय प्रशासन मंत्री व महापौर से तो थी शहर को अपेक्षा कि करेंगे ईमानदारी से जांच, आरोपियों का होगा ख़ुलासा_* 

 _*क्या हुआ नगर निगम के फर्जी बिल घोटाले का? ये शहर जानना चाहता है। जिस तेज गति से ये करोड़ो का घोटाले का ख़ुलासा हुआ था, उतना ही मंथर गति का शिकार क्यो हो गया घोटाला? कहा जाकर दुबक गई वो जांच जो जनता के टेक्स के रूप में दिये गए गाढ़ी कमाई के पैसे की बंदरबांट से जुड़ी थी? क्या करोड़ो के इस खेल में सिर्फ ठेकेदार व छोटे अफसर ही आरोपी हैं? बड़े अधिकारी व तत्कालीन महापौर, निगमायुक्त बेदाग हैं? या इस घोटाले की जांच, आंच उन तक भी पहुच रही हैं? कांग्रेस चुप क्यो हैं? फुरसत में बैठी कांग्रेस इस मूददे पर ” हिलडुल” भी क्यो नही रही? पार्टी ने इस घोटाले को तो दिल्ली के उस शराब घोटाले से भी बड़ा बताया गया था न जिसमे केजरीवाल जेल के पीछे है।फिर मोन क्यो धारण हो गया? निगम् के नेता प्रतिपक्ष क्या कर रहे हैं? ये शहर जानना चाहता है कि 20 बरस से भी ज्यादा समय तक जिस दल के हाथों शहर की कमान सौपी गई, वह दल और उसके नामचीन नेता क्या इस घोटाले में शामिल है? अगर नही तो फिर घोटाले की जांच कर दूध और पानी अलग अलग क्यो नही हो रहा?*_ 

 *…एक था नगर निगम का फर्जी बिल घोटाला। काम हुआ नही, बिल पास हो जाने वाला घोटाला। एक दो नही, सो-दो सौ करोड़ का घोटाला। भाजपा के दिग्गज महापौरों के कार्यकाल का घोटाला। शहर में तैनात सबसे ” काबिल” अफसरो के कार्यकाल का घोटाला। प्रदेश से लेकर देश विदेश तक इंदौर नगर निगम की वाहवाही के दौर का घोटाला। था न घोटाला? ख़ुलासा हुआ था न कि इस घोटाले को किस तरह अंजाम दिया गया? काम कागज पर, माल जेब मे। नेता, अफसर और ठेकेदार के बने सिंडिकेट की जेब मे करोड़ो। ऐसा एक आध बार नही, लंबे समय चला। लगभग एक परिषद का पूरा कार्यकाल ही समझो या उससे भी ज्यादा। पूरा शहर चौक गया। प्रदेश भी हतप्रभ रह गया कि ऐसा इंदौर में हुआ? फिर क्या हुआ? कुछ पता है क्या आपको? कोई नामचीन तक पहुँची क्या घोटाले की आंच-जांच?* 

सार्वजनिक जीवन शुचिता की बात करने वाले महापौर ने इसका खुलासा भी किया था। बेहद व्यथित व कुपित भी वो नजर आ रहे थे। इस घोटाले को तो उनके लिए लॉटरी माना गया था। एक ही वार में सब ” विरोधी” धराशायी वाला माना गया था महापौर के लिए घोटाला। लेकिन फिर क्या हुआ? कुछ याद है? नही न। ऐसे ही  दस बरस के ” वनवास” के बाद सत्ता में लौटे ” महाबली मंत्री” को तो इस घोटाले ने गुस्से में भर दिया था। उनके महकमे से जुड़ा था घोटाला। तभी तो वे डंके की चोट बोले थे कि किसी को नही बख्शेंगे। सबके नाम, काम का खुलासा करेंगे। जांच ईमानदारी व निष्पक्षता के साथ कर पाई पाई वसूलेंगे। बोला था न? कांग्रेस भी कूदी थी मैदान में। उसको तो सुनहरा अवसर मिला था भाजपा को और उसके महापौरों को कही का नही छोड़ने का, मुंह दिखाने लायक नही छोड़ने का। उस भाजपाई निगम परिषद के कार्यकलापों का खुलासा करने का जिसे देशभर में मान मिला हैं। क्या हुआ कांग्रेस को फिर? क्या वह भाजपा नीत निगम परिषद व उनके महापौरों का मानभंग कर पाई?

 *कहा है वो घोटाला? कहा गुम हो गया। कहां जाकर दब-छुप औऱ चुप हो गया घोटाला? क्या इसलिए कोने में जाकर दुबक गया घोटाला कि उसकी आंच भाजपा का दामन फूंक देती? या घोटाला नेपथ्य में इसलिए चला गया कि तमगे व जीत का इनाम लेकर देशभर में ” पोमाये” भाजपाई महापौरों का कार्यकाल दागी हो जाता? इस शहर को तो सबसे ज्यादा उम्मीद नगरीय प्रशासन मंत्री व महापौर से थी कि ये दोनों पूरे घोटाले की ईमानदारी से जांच होने तक सुकून से नही बैठेंगे। अब तो पेड़-पौधे भी लग गए, अब फिर से भिड़ जाए घोटाले के पीछे के लोगो का खुलासा करने में। इस शहर को तो अभी भी इन दोनों से उम्मीद हैं। क्योकि जिस शहर में आम आदमी की ड्रेनेज लाइन की सफाई जूते रगड़ने के बाद भी तब ही हो पाती है जब वो रिश्वत देता है। उस शहर में कागज पर ड्रेनेज सफाई होती रही? तो क्या ये इंदौर भी इस घोटाले को वैसे ही हजम कर जाएगा, जैसे कांग्रेस ने कर लिया या भाजपा के जिम्मेदारो ने कर लिया?* 

नगर निगम का घोटाला प्रदेश व शहर में कांग्रेस की दुर्गति का उत्कृष्ट उदाहरण बनकर उभरा हैं। मरी-मराई कांग्रेस का औसत कार्यकर्ता इस घोटाले का खुलासा होते ही उत्साहित हो गया था। पार्टी के निष्ठावान कार्यकताओं व नेताओ को उम्मीद जागी कि पार्टी इस मूददे पर भाजपा को कही भी अब मुंह दिखाने लायक नही छोड़ेगी। वे सब महापौर दागदार साबित हो जाएंगे तो इनाम-पुरुस्कार ला लाकर इतरा रहे थे। उन निगमायुक्त के कार्यकाल भी दागदार होंगे जिन्होंने अफसर कम ” भाजपाई” होकर काम किया और कांग्रेस को खूब सताया। ऐसा कुछ हुआ क्या? कांग्रेस कुछ कर पाई? भाजपा व सरकार को बाध्य कर पाई इस घोटाले के ख़िलाफ़ ईमानदारी से जांच के लिए? 

 *घोटाले से गलबहियां, क्या दोनों दल दागी है?* 

 *निगम घोटाले पर ये हाल है प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी वाली कांग्रेस के। नगर निगम में नेता प्रतिपक्ष वाली कांग्रेस के ये हाल है। शहर में एक नही, तीन तीन शहर कांग्रेस अध्यक्ष वाली पार्टी के ये हाल हैं। भाजपा से भय, भूख व भ्र्ष्टाचार से लड़ने का दांवा करने वाली कांग्रेस के ये हाल हैं। प्रदेश अध्यक्ष के लिए तो निगम का ये घोटाला ” गोल्डन चांस” था। वे इसके जरिये ही अपने ऊपर लग रहे “अकर्मण्यता” के आरोप धो सकते थे। निगम के नेता प्रतिपक्ष भी बरसो से लग रहे उन आरोपो को धो सकते थे जो उनके भाजपा से मिले होने के लगते रहते हैं। शहर कांग्रेस ने रस्म अदायगी के छुटपुट आंदोलन जरूर किये लेकिन पार्टी के बड़े नेताओं का साथ ही नही मिला। ऐसा क्यो हुआ? औसत कांग्रेसी समझ ही नही पा रहा लेकिन ये शहर सब साफ साफ समझ रहा हैं कि नगर निगम में इंदौर के लोगो के टैक्स के पैसे की इस बंदरबांट में सब साथ है। ठीक उस सिनेमा की तरह जिसका नाम था- हम साथ साथ है। ये है एक नए तरह की गलबहियां। जो इस बार घोटाले में उज़ागर हुई है। अगर ऐसा नही है तो फिर मुख्यमंत्री, नगरीय प्रशासन मंत्री व महापौर को इसकी ईमानदारी से जांच करवाना चाहिए। अभी कौन सी देर हो गई हैं?*

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