मध्यप्रदेश की दो पवित्र नदी, शिप्रा नदी और नर्मदा नदी में डूबने से मरने वालो की कई घटनाएं सामने आई है, लेकिन शासन प्रशासन के लोग इन पर ध्यान नही दे रहे है, वर्तमान में गंगा से ज्यादा शिप्रा और नर्मदा में डूब रहे हैं लोग, आखिरकार जिम्मेदार कौन?
प्रदेश में यह अत्यन्त दुःखद और शर्मनाक है कि हरिद्वार की गंगा नदी से ज्यादा उज्जैन की शिप्रा नदी और ओंकारेश्वर की नर्मदा नदी में लोग डूब कर मर रहे हैं। जिम्मेदार आँख मूंदे हैं। जिला प्रशासन सोया हुआ है। संबंधित विभागों को अपनी गैर जिम्मेदार हरकतों पर कोई शर्म नहीं हैं। वे सब बेशर्म हो गए हैं। इन्हें मासूमों और युवकों के डुबने का दुख नही है और न ही कोई फिक्र है। ऐसे तमाम जिम्मेदार और गैर जिम्मेदार व्यक्तियों पर राज्य सरकार को सख्त कार्रवाई करना ही चाहिए। जिन परिवार के सदस्य की डूबने से मौत हुई है। उन परिवारों पर दुख का पहाड़ टूट गया है। लेकिन शासन प्रशासन को कोई फर्क नही पड़ रहा है।
मध्यप्रदेश में यह गौरव की बात है कि इस प्रदेश में दो ज्योर्तिलिंग है। एक उज्जैन में दक्षिणमुखी महाकालेश्वर भगवान का ज्योर्तिलिंग है। और दूसरा नर्मदा तट पर स्थित ओंकारेश्वर ज्योर्तिलिंग मंदिर है। पहले हम बात करते है उज्जैन की, उज्जैन की पतित पावन शिप्रा नदी में गत वर्ष फरवरी माह से जून माह के दौरान केवल 5 महीने में ही 26 लोग डूब कर मर गए। इस जून माह में 11 जून से 22 जून के दौरान केवल 12 दिनों में 6 मौतें हो गई। उज्जैन की शिप्रा नदी में 11 जून को नृसिंह घाट पर सूरत निवासी 14 वर्षीय मासूम शुभम डूबकर मर गया। इसके 3 दिन बाद ही 15 जून को गऊघाट पर 19 वर्षीय युवा अर्जुन की डूबकर मौत हो गई। इसके 2 दिन बाद ही 18 जून को नानाखेड़ा निवासी युवक हेमन्त की भूखी माता घाट पर शिप्रा नदी में डूबने से मौत हो गई। इसके अगले दिन ही 19 जून को भोपाल के एक युवा का पैर फिसलने से वह शिप्रा में डूब गया और उसकी मौत हो गई। इसी दिन 6 लोग डूबने से बचे। इसके 1 दिन बाद ही 21 जून को अनेक लोगों को जीवनदान देने वाला तैराक अर्जुन स्वयं शिप्रा नदी में डूबने से मर गया। इसके अगले दिन ही 22 जून को कोटा निवासी युवक गौरव की शिप्रा नदी में डूबने असमय मौत हो गई।जिस घर में मासूम और युवक की मौतें हुई, वे मातम में डूबे हुए हंै। उनकी चिंता किसी को नहीं हैं। इसकी प्रमुख जिम्मेदारी जिला प्रशासन की है, जो इस दिशा में आँख मुंदें बैठा हुआ है। संबंधित विभाग नगर निगम, जल संसाधन विभाग, होमगार्ड, कृषि विभाग आदि भी अपनी जिम्मेदारी से मुँह मोड़े हुए हैं। कुभंकर्ण नींद में सोये हुए हैं। मासूमों और युवकों की मौत के बाद भी संबंधित विभाग के जिम्मेदार अधिकारी बेपरवाह बने हुए हैं। किसी को इन युवकों की असामयिक मौत पर कोई शर्म नहीं है।
इसी प्रकार मध्यप्रदेश के ही दूसरे ज्योर्तिलिंग ओंकारेश्वर की भी यहाँ बात करना सामयिक है। क्योंकि साढ़े तीन साल के दौरान ओंकारेश्वर स्थित नर्मदा नदी में 43 लोगों की डुबने से मौत हो गई। ओंकारेश्वर के घाटों पर सुरक्षा के कोई इंतजाम नहीं होने के कारण हर साल औसत 10-15 श्रद्धालुओं की नर्मदा में डूबने से मौत हो रही है। ओंकारेश्वर की नर्मदा नदी में वर्ष 2020 में 10 मौतें हो गई थी। इसके बावजूद जिला प्रशासन और स्थानीय प्रशासन चेता नहीं। इसी कारण अगले साल 2021 में नर्मदा नदी में डुबने से 15 मौतें हो गई। इसी प्रकार वर्ष 2022 में 11 लोग नर्मदा नदी में डुबकर मर गए। इस वर्ष 2023 में अभी शुरूआत के 6 महीनों में ही 7 मौतें हो गई। ओंकोरश्वर खंडवा जिले के अन्र्तगत आता है। न तो जिला प्रशासन इस ओर ध्यान दे रहा है और न ही स्थानीय प्रशासन अपनी जिम्मेदारी को भली भाँती निभा पा रहा है। इस कारण असमय नर्मदा नदी में डूबने से लोग मौत के मुँह में समा रहे हैं।
जानकार बताते है कि हरिद्वार के गंगा नदी में भी इतनी मौतें नहीं हो रही है, जितनी कि हर साल उज्जैन की शिप्रा नदी और ओंकारेश्वर की नर्मदा नदी में डुबने से मौतें हो रही है। इसका प्रमुख कारण यह बताया जाता है कि हरिद्वार की गंगा नदी के सभी घाटों में सुरक्षा के पर्याप्त इंतजाम है। यहाँ हर घाट पर रैलिंग लगी हुई है। इतना ही नहीं इसके साथ वहाँ घाटों पर जंजीरें भी है, जिसे पकड़कर श्रद्धालु आसानी से गंगा नदी में डुबकी लगा लेते है और सुरक्षित रहते हंै। गंगा नदी में काई की भी समस्या नहीं है। सुरक्षा के भी पर्याप्त इंतजाम है। इस कारण वहाँ उज्जैन और ओंकारेश्वर की तुलना में श्रद्धालुओं की डूबने से बहुत कम मौतें होती है। हरिद्वार के उलट उज्जैन की शिप्रा नदी और ओंकारेश्वर की नर्मदा नदी में किसी भी घाट पर रैलिंग और जंजीरें नहीं है। इतना ही नहीं हर घाट पर अत्यधिक काई जमी हुई है। शिप्रा और नर्मदा नदी में जीवन रक्षक नौका में बैठकर कोई होमगार्ड का जवान गश्त करता हुआ दिखाई नहीं देता है। श्रद्धालुओं की सुविधा और मार्गदर्शन के लिए पर्याप्त और सुव्यवस्थित अनाउंसमेंट की व्यवस्था भी नहीं है। जीवन दान देने वाले तैराक भी घाट में पर्याप्त मात्रा में मौजूद नहीं रहने से ऐसी मौतें लगातार हो रही है।
जिला प्रशासन और संबंधित विभाग तो गैर जिम्मेदार है ही, यह सिद्ध हो चुका है। किन्तु दुःखद यह है कि उज्जैन और ओंकारेश्वर के जनप्रतिनिधि भी मौन है। ये इस दिशा में कतई जागरूक नहीं है। उज्जैन का लोकसभा में 7 बार और 1 बार राज्यसभा में प्रतिनिधित्व करने वाले डाॅ. सत्यनारायण जटिया ने कभी अपने कार्यकाल में इस और ध्यान ही नहीं दिया। यदि वे इस दिशा में गौर करते तो केन्द्र से पर्याप्त राशि दिलवाकर शिप्रा नदी में सुरक्षा के मामले में उज्जैन को 1 नंबर कर चुके होते। उल्लेखनीय है कि डाॅ. जटिया केन्द्र में अनेक वर्ष तक कैबिनेट मंत्री भी रह चुके हैं। इसी प्रकार उज्जैन में करीब 6 बार के विधायक और 10 साल से अधिक वर्ष तक मध्यप्रदेश में कैबिनेट मंत्री रह चुके श्री पारस जैन भी इस दिशा में गैर जिम्मेदार बने रहे।
पिछले करीब 3 साल से मध्यप्रदेश मंत्री मंडल में कैबिनेट मंत्री और 2 बार के विधायक डाॅ. मोहन यादव ने भी इस दिशा में कोई कारगार प्रयास नहीं किए। वे पिछले अनेक वर्षों से शिप्रा परिक्रमा यात्रा निकाल रहे हैं। और शिप्रा नदी पर चुनरी औढ़ाकर अपने कत्र्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं। यह करने की बजाय यदि वे शिप्रा के घाटों पर श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए सुरक्षा के पर्याप्त इंतजाम करते तो वह ज्यादा सार्थक होता। पूर्व सांसद डाॅ. चितामन मालवीय और वर्तमान सांसद श्री अनिल फिरोजिया भी इस दिशा में नाकामयाब ही कहे जायेंगे। यह उज्जैन के लिए अत्यन्त दुःखद और शर्मनाक है।
जून माह के 12 दिन में 6 लोगों की डूबने से मौत हुई
इस वर्ष शिप्रा नदी में जून माह में ही 12 दिनों में 6 मौत हो जाने के बाद अब जाकर जिला प्रशासन चेता है। 23 जून को कलेक्टर संबंधित विभाग के अधिकारियों को लेकर शिप्रा नदी के तट पर पहुँचे और सुरक्षा आदि को देखने की रस्म अदायगी की। इसके पहले भी करीब एक साल पहले 26 मौतें हो जाने पर अप्रैल 2022 में तत्कालीन कलेक्टर लाव लश्कर के साथ शिप्रा घाट पर पहुँचे थे और 13.30 करोड़ की राशि से घाटों पर ऐसी सुरक्षा कर देने का आश्वासन दिया था, जिससे लगे गई। जान नहीं जायेगी। लेकिन अभी तक कुछ नहीं हुआ।
वर्तमान कलेक्टर भी शुक्रवार 23 जून को घाटों पर पहुँचे और दावा किया कि शनिवार 24 जून से सुधार की शुरूआत दिखने लगेगी। देखते है क्या होता है। उज्जैन की शिप्रा नदी और ओंकारेश्वर की नर्मदा नदी में अनेक मासूमों और युवकों की मौत से उनके परिवार गमगीन है। उनकी कमी कोई पूरा नहीं कर सकता है। प्रदेश के मुखिया मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चैहान को चाहिए कि वे उज्जैन की शिप्रा नदी और ओंकारेश्वर की नर्मदा नदी में श्रद्धालुओं के स्नान की न केवल माकूल सुरक्षा व्यवस्था सुनिश्चित करें, बल्कि दोषी जिला प्रशासन और संबंधित विभागों के अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई भी जरूर करें। बाबा महाकाल के भक्त मुख्यमंत्री जी से यह अपेक्षा तो की ही जा सकती है।