पश्चिम बंगाल में कांग्रेस और ममता बनर्जी अलग हो गए। बिहार में गठबंधन के अगुआ रहे नीतीश कुमार गठबंधन से अलग हो गए। पंजाब में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस की राहें अलग हो गईं। उत्तर प्रदेश में आरएलडी गठबंधन से अलग हो गई। अब उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के अलग होने की चर्चा है। सियासी गलियारों में गठबंधन के इस बिखराव के मायने और कारण निकाले जा रहे हैं। लेकिन राजनीतिक जानकारों और कांग्रेस के ही कद्दावर नेताओं के मुताबिक गठबंधन में यह टूट कांग्रेस को बड़ा फायदा पहुंचाने वाली है। पार्टी में ही अंदरखाने कई नेता ऐसी टूट को कांग्रेस के लिए संजीवनी मान रहे हैं।
बीते कुछ समय से गठबंधन से टूट रहे सियासी दलों के रिश्तों का सियासी पैरामीटर पर आंकलन किया जा रहा है। राजनैतिक जानकारों का मानना है कि जो I.N.D.I गठबंधन पिछले साल जून में तैयार हुआ था। उसकी मंशा तो सही थी लेकिन गठबंधन एकदम विपरीत विचारधारा के लोगों से था। वरिष्ठ पत्रकार बृजेंद्र शुक्ला कहते हैं कि भाजपा से लड़ने के लिए ज्यादातर सभी दल एक साथ आ गए। लेकिन इन दलों में सबकी विचारधारा बिलकुल अलग-अलग थी। ऐसे में कयास उसी वक्त लगाए जाने लगे थे कि यह सब दल क्या एक साथ चल पाएंगे? वह कहते हैं कि हुआ भी वैसा ही। अमूमन प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस से अलग होने लगे। पहले ममता बनर्जी गईं, फिर नीतीश कुमार चले गए। आम आदमी पार्टी ने भी सियासी मैदान में अलग चलने का एलान कर दिया। अब अखिलेश यादव के अलग होने की बात कही जा रही है।
राजनीतिक विश्लेषक प्रभात कुमार कहते हैं कि सियासी कसौटी पर अब यह परखना जारी है कि गठबंधन में टूट से किसको फायदा हो रहा है। प्रभात कहते हैं कि कांग्रेस से अलग होकर सभी दल खुद को मजबूत मान रहे हैं। क्योंकि ज्यादातर क्षेत्रीय दलों को यह लगता है कि राज्यों में उनकी स्थिति कांग्रेस से ज्यादा मजबूत है। ऐसे में गठबंधन के साथ जाकर कांग्रेस को सीट की शेयरिंग में उनका नुकसान था। यही हाल पंजाब में आम आदमी पार्टी के लिए कहा जा रहा है। दिल्ली में भी सीटों पर बात बनी तो अलग-अलग चुनाव लड़ने के रास्ते बन सकते हैं। तृणमूल कांग्रेस के नेता और पूर्व विधायक इलियास मोहम्मद कहते हैं कि गठबंधन के साथ जाने को लेकर उनके दल में कई लोग पहले से विरोध में थे। टीएमसी से जुड़े एक वरिष्ठ नेता कहते हैं कि अब जब पश्चिम बंगाल में उनकी पार्टी अलग चुनाव लड़ रही है, तो ज्यादा मजबूती के साथ मैदान में उतरेगी।
सियासी जानकार और वरिष्ठ पत्रकार हरभजन सिंह कलसी कहते हैं कि ज्यादातर स्थानीय दलों को अपने-अपने क्षेत्रों में मजबूती ही नजर आ रही है। इसलिए गठबंधन से ये दल अलग हो रहे हैं। हालांकि उनका मानना है कि जितना गठबंधन से अलग होकर क्षेत्रीय दलों को फायदा लग रहा है, उतना ही कांग्रेस के लिए भी यह संजीवनी है। इस बात को कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता और रणनीतिकार भी सही मानते हैं। कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता बताते हैं कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा से लेकर भारत जोड़ो न्याय यात्रा तक से कांग्रेस को बहुत कुछ हासिल हो रहा है। राहुल गांधी की दोनों यात्राओं में मजबूती से जुड़े कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि राहुल की यात्राओं से लोग जुड़ रहे हैं, जिसका सियासी फायदा उनको हाल के विधानसभा चुनावों में दिखा। हालांकि कई राज्यों में कांग्रेस चुनाव हार गई, लेकिन कुछ राज्यों में जीती भी।
सियासी जानकार भी मानते हैं कि जब गठबंधन में कांग्रेस को उंगली पर गिनने भर की सीटें दी जा रहीं थीं। तो कांग्रेस के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने इसका खूब विरोध भी किया। उत्तर प्रदेश में जब कांग्रेस को समाजवादी पार्टी ने ग्यारह सीटों की घोषणा की तो कांग्रेस के नेताओं ने इसका जमकर विरोध किया। उत्तर प्रदेश कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं कि उनकी पार्टी ने बीते कुछ समय में प्रदेश में मेहनत की है। ऐसे में कम सीटों पर चुनाव लड़ने से कार्यकर्ताओं का मनोबल भी गिरता है। सियासी जानकार प्रभात कुमार कहते हैं कि यह बात सही है कि सियासी तौर पर अगर कांग्रेस अलग चुनाव लड़ती है, तो वह पार्टी के लिए ज्यादा फायदेमंद हो सकता है। क्योंकि इससे एक तो ज्यादातर सीटों पर चुनाव लड़ने की आजादी मिलेगी। उनका कहना है कि भविष्य के लिहाज से कांग्रेस का नए बने गठबंधन से अलग होकर चुनाव लड़ने में ही ज्यादा सियासी फायदा भी लग रहा है।
कांग्रेस पार्टी से जुड़े एक वरिष्ठ नेता बताते हैं कि अगर उनकी पार्टी अपने पुराने सहयोगियों के साथ ही चुनाव लड़ती है तो उसका ज्यादा सियासी फायदा नजर आ रहा है। उनका कहना है कि बीते साल हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस सभी राज्यों में अकेले ही चुनाव लड़ी थी। इसमें हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में तो कांग्रेस को सरकार बनी। हालांकि बाद में हुए पांच राज्यों में कांग्रेस अकेले चुनाव लड़ी, जिसमें उसे सियासी तौर पर नुकसान हुआ। उनका कहना है कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा और भारत जोड़ो न्याय यात्रा का आने वाले लोकसभा चुनावों में फायदा मिल सकता है। इसके अलावा उनका यह भी मानना है कि कल अगर चुनाव के बाद गठबंधन की जरूरत पड़ती है, तो अलग-अलग दलों के साथ चुनाव के बाद भी गठबंधन हो सकता है। ऐसे में बेहतर है अगर कांग्रेस पार्टी अलग चुनाव लड़ती है, तो यह उसके लिए एक तरह से संजीवनी का काम करने वाली है। इन परिणामों के आधार पर कांग्रेस अपनी आगे की बड़ी सियासी रणनीति भी तय कर सकती है।
सपा विधायक पल्लवी पटेल समाजवादी पार्टी से अलग होकर चुनाव लड़ेंगी। उनकी पार्टी अपना दल कमेरावादी ने प्रदेश की तीन लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने का एलान किया है।
अपना दल कमेरावादी की राष्ट्रीय अध्यक्ष कृष्णा पटेल ने कहा कि हम शुरू से ही इंडिया गठबंधन में हैं। गठबंधन की बैठकों में शामिल होते रहे हैं और हमारी पार्टी ने फूलपुर, कौशांबी और मिर्जापुर सीट पर चुनाव लड़ने का निर्णय लिया है। पल्लवी पटेल इन्हीं में से किसी सीट पर चुनाव लड़ेंगी।
कृष्णा पटेल ने कहा कि हम विधानसभा चुनाव से ही सपा के साथ गठबंधन में हैं और इंडिया गठबंधन का हिस्सा हैं। अब इन तीन सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा करते हैं। हम इंडिया गठबंधन के शीर्ष नेताओं से संवाद करने का प्रयास कर रहे हैं अभी तक कोई बात नहीं हो सकी है।
मारे गए गुलफाम…! जी हां, यह हाल है राज्य के उन नेताओं का जो लोकसभा की उम्मीदवारी के प्रति इस कदर आश्वस्त थे कि क्षेत्र में प्रचार प्रसार तक में जुट गए थे। पर राज्य में गठबंधन की सूरत क्या बदली इन नेताओं के होश उड़ा डाले। सीट शेयरिंग की गोटियां कुछ ऐसी बैठाई गई कि कई नेता जहां अपनी उम्मीदवारी मान चुके थे वह सीट गठबंधन के नए साथी के खाते में चला गई। अब ऐसे उम्मीदवारों को न उगलते बन रहा है और न निगलते।
शिवहर ने तोड़े कई बीजेपी उम्मीदवारों के दिल
बिहार में लोकसभा के चुनावी माहौल बनने के साथ यह चर्चा चल पड़ी की शिवहर की सांसद रमा देवी का टिकट कटने जा रहा है। इस अहसास के साथ कई भाजपा नेता अपनी अपनी गोटी सेट करने में लग गए। भाजपा के विधायक और पूर्व मंत्री राणा रणधीर सिंह शिवहर लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए अंदरूनी तैयारी शुरू कर चुके थे। शिवहर लोकसभा से इनके पिता सीताराम सिंह सांसद भी रहे थे।
शिवहर लोकसभा से चुनाव लड़ने की चर्चा भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष शंभू सिद्धार्थ भी की थी। युवा भाजपा नेताओं की सूची में इनका भी नाम शामिल था, जिन्हें भाजपा नए चेहरों के नाम पर चुनावी मैदान में लाना चाहती थी।
सांसद सुनील पिंटू को भी लगा झटका
वैसे तो सीतामढ़ी लोकसभा सीट के लिए बतौर सीटिंग सांसद सुनील कुमार पिंटू आश्वस्त थे। लेकिन जब राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सीतामढ़ी लोकसभा से जब सभापति देवेश चंद्र ठाकुर की उम्मीदवारी की घोषणा कर दी तब उन्हें भी झटका लगा। बाद में भाजपा नेतृत्व से बातचीत के क्रम में यह आश्वासन मिलने की बात कही गई कि शिवहर लोकसभा से आपके लिए स्थान बनाया जाएगा। वैसे भी भाजपा की रणनीति में अक्सर यह होता रहा है कि मोतिहारी से राजपूत और शिवहर से वैश्य उम्मीदवार लड़ाए जाते हैं। इन दो जाति के संतुलित वोट से भाजपा मोतिहारी और शिवहर लोकसभा के जीत का समीकरण रचते रही है। लेकिन शिवहर लोकसभा के जेडीयू के खाते में जाते ही सुनील पिंटू की बची खुची उम्मीद भी खत्म हो गई।
फातमी का भी दिल टूटा
दरभंगा सीट पर उम्मीद लगाए बैठे जनता दल यूनाइटेड के राष्ट्रीय महासचिव अली अशरफ फातमी ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के सीट बंटवारे के बाद राष्ट्रीय महासचिव समेत तमाम पदों के साथ सदस्यता से भी इस्तीफा दे दिया है। वह राष्ट्रीय जनता दल से पहले भी जुड़े थे और उसी के साथ रहते हुए केंद्र में मंत्री भी रहे थे। जेडीयू में जब नीतीश कुमार दोबारा राष्ट्रीय अध्यक्ष बने तो उन्हें भी राष्ट्रीय महासचिव का पद दिया। सीएम नीतीश कुमार की पार्टी की एनडीए में वापसी के समय से वह असहज थे।
अली असरफ फातमी ने अपने लेटर पैड पर जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष को दिए गये इस्तीफे में लिखा है कि ‘मैं नैतिक मूल्यों की रक्षा हेतु जनता दल यूनाइटेड के सभी पदों सहित प्राथमिक सदस्य से इस्तीफा दे रहे हैं।’
विजय मांझी के उम्मीद पर पानी फिरा
गया लोकसभा के सीटिंग सांसद विजय मांझी भी सीट शेयरिंग के शिकार हो गए। समझौते में गया सीट हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के हिस्से में चला गया। एनडीए के रणनीतिकारों के इस निर्णय के बाद जदयू सांसद विजय मांझी की उम्मीद पर भी पानी फिर गया। हालांकि मांझी जदयू के इस निर्णय के साथ खड़े हैं। उन्होंने जीतन राम मांझी को मदद करने का आश्वासन भी दिया। पर विजय मांझी ने यह दुख भी व्यक्त किया कि प्रदेश नेतृत्व ने हमारी बात नहीं मानी।