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विश्वासमत से विश्वासघात तक की राजनीति

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डॉ हिदायत अहमद खान

यह तो सभी कहते और जानते हैं कि राजनीति में सब जायज होता है। कुर्सी की खातिर सदा से ही चाणक्य नीति साम, दाम, दंड, भेद को अपनाया जाता रहा है। साम, दाम, दंड, भेद में शब्द साम का अर्थ समता से या सम्मान से या समझाकर से लिया जाता है। इसका प्रयोग राजनीति में बहुतायत में होता है। वहीं शब्द दाम का अर्थ मूल्य देने से या आज की भाषा में खरीदकर से लिया जाता है, इसमें जो महारथी होते हैं वो सरकार बनाने से लेकर सरकार गिराने का खेल भी चुटकियों में कर जाते हैं।

शब्द दंड का अर्थ सजा देकर से है इसे भेद में भी प्रयोग किया जाता है, लेकिन राजनीति में जिसके पास सत्ता होती है वह दंड का प्रयोजन अपने को मजबूत करने और विपक्ष को कमजोर कर सत्ता से दूर रखने के लिए करता ही है। जबकि भेद का तात्पर्य तोड़ने या फूट डालने से लिया जाता है। पहले इस चाणक्य नीति का उपयोग करते हुए परदादारी का भी खयाल रखा जाता था, लेकिन वर्तमान में इसे सरे बाजार फलिभूत किया जा रहा है। यही वजह है कि कहने में जरा भी हिचक नहीं कि आज की राजनीति में कोई सिद्धांत या नीति कार्य नहीं कर रही है, बल्कि अवसर और लोभ-लालच सारे मापदंड तय कर रहे हैं। बची-खुची कमी भय से पूरी हो जा रही है। ऐसे में रात जिसके साथ सैया में बिताई सुबह उसी के खिलाफ सीना तान कर खड़े होना, किसी तीसरे की वकालत करना और फिर सरकार बनाने या गिराने में शामिल होना, सियासी आर्ट में शुमार किया जाने लगा है। यह लंबी भूमिका बिहार के राजनीतिक घटनाक्रम ने यूं ही बंधवा दी है। दरअसल सियासी घमासान के बीच बिहार में नीतीश सरकार ने फ्लोर टेस्ट में खुद को पास करवा लिया है और विपक्ष के पाले में महज सदन से वॉकआउट आया है।
इस पूरे घटनाक्रम को बारीक नजर से देखने वाले तो यही कह रहे हैं कि यह सिर्फ राजनीतिक सुचिता पर प्रहार नहीं है, बल्कि आने वाले समय में राजनीतिक मूल्यों के और पतन की शुरुआत है। बिहार विधानसभा में सोमवार को जो हुआ वह देख कर कतई नहीं कहा जा सकता कि जनभावना को प्रमुखता प्रदान करने वालों ने यह सब किया होगा। दरअसल फ्लोर टेस्ट की वोटिंग से पहले विपक्ष ने वॉकआउट किया, लेकिन सत्ता पक्ष की मांग पर वोटिंग करवाई गई और 129 मतों से नीतीश सरकार ने जीत दर्ज कर ली।

इससे पहले विश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान सदन में 9 बार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जैसे ही बोलने के लिए खड़े हुए तो आरजेडी विधायकों ने हंगामा शुरु कर दिया। नीतीश को गुस्सा भी आया और उन्होंने गुस्से में ही कहा कि लोग मुझे सुनना ही नहीं चाहते तो वोटिंग करवाइये। बात साफ है कि जिन्हें बोलने का अवसर चाहिए था, उन्हें बोलने नहीं दिया जा रहा है, ऐसे में किसी और की कौन सुनता है, सो वाकआउट ही बेहतर था। वैसे सदन में पूर्व डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने जो कहा वह भी बहुत मायने रखता है, दरअसल उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से गारंटी मांगी है और कहा कि मोदी जी की गारंटी वाले बताएंगे क्या कि मुख्यमंत्री फिर पलटेंगे या नहीं? इस स्पीच के दौरान तेजस्वी जिंदाबाद के नारे भी लगे। जो यह बताता है कि लोग क्या सुनना पसंद कर रहे हैं और क्या नहीं। बहरहाल इससे क्या, क्योंकि जो नीतीश चाह रहे थे वो तो उन्होंने हासिल कर ही लिया।


यही नहीं बिहार विधानसभा में इससे पहले जो घटित हुआ, उस पर भी एक नजर डालने की आवश्यकता है। दरअसल विधानसभा स्पीकर अवध बिहारी चौधरी को आज ही अपना पद भी त्यागना पड़ा। महागठबंधन सरकार में स्पीकर रहे राजद विधायक अवध बिहारी चौधरी को पद से हटाने के लिए पहले अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था, लेकिन तब उन्होंने पद से हटने से ही साफ इनकार कर दिया था। बावजूद इसके आज जब उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव सदन में लाया गया तो प्रस्ताव पर चर्चा की इजाजत देते हुए स्पीकर पद को त्याग दिया। उन्हें हटाने के लिए भी वोटिंग की गई और तब प्रस्ताव के पक्ष में 125 जबकि विपक्ष में 112 मत पड़े और इस तरह स्पीकर पद से उन्हें हटना पड़ा।

इसके बाद विधानसभा उपाध्यक्ष महेश्वर हजारी ने सदन की कार्यवाही का संचालन किया। जो होना था सो हो गया और बिहार की विधानसभा में एक बार फिर नीतीश ने अपनी जीत दर्ज कराते हुए बतला दिया कि वो राजनीति के धुरंधर हैं, जिसके आगे भाजपा के धुरंधर भी पानी ही भरते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि पिछली बार जब उन्होंने एनडीए को अलविदा कहा था तो यह स्वर गुंजायमान हुए थे कि अब जीते-जी कभी उन्हें गठबंधन में शामिल नहीं किया जाएगा। बहरहाल सियासी चालें अपनी जगह हैं, लेकिन जीवन में सुचिता की अपनी जगह है। ऐसे में विश्वासघात कैसा भी हो और किसी के भी द्वारा किया गया हो, वह विश्वासमत से कतई बड़ा नहीं हो सकता है। अंतत: बिहार ने बतला दिया है कि संपूर्ण देश को साफ-सुथरी और सैद्धांतिक राजनीति की आवश्यकता है।

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