अपने समाज और सरकार की बदहाली की एक बानगी उज्जैन की क्षिप्रा नदी में
लगातार बनी रहने वाली गंदगी भी है, उस क्षिप्रा की जिसके तट पर हर 12
साल में हिन्दुओं का सबसे बड़ा मेला महाकुंभ लगता है। इसे लेकर राज्य और
केन्द्र की सरकारें क्या करती हैं? बता रहे हैं, रेहमत मंसूरी। – संपादक
मध्यप्रदेश के नए मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने उज्जैन की धार्मिक महत्व की क्षिप्रा नदी को शुध्द
करने की योजना बनाने के निर्देश दिए हैं। वैसे ये निर्देश नए नहीं है। पिछले 10 सालों में प्रदेश सरकार द्वारा दर्जनों बार ऐसे ही आदेश दिए जा चुके हैं।मजेदार यह है कि मुख्यमंत्री के ताजा निर्देश के बाद अधिकारियों ने इंदौर की खान नदी को क्षिप्रा में मिलने से रोकने का जो उपाय सुझाया है वह भी नया नहीं है।
पिछले एक दशक से बार-बार जारी हुए ऐसे निर्देशों और उन पर बार-बार किए गए अमल के बाजवूद क्षिप्रा की दशा किसी से छिपी नहीं है। प्रदूषण के कारण क्षिप्रा में मछलियाँ और जलीय-जीवों के मरने की खबरें प्रसार माध्यमों की सुर्खियाँ बनती रहती हैं।
मुख्यमंत्री के निर्देश के बाद उज्जैन के महापौर ने भी इंदौर की खान नदी के माध्यम से मिलने वाले
सीवेज को क्षिप्रा के प्रदूषण के लिए जिम्मेदार ठहराया।
यह विडंबना ही है कि अधिकारी और महापौर जिस शहर की नदी पर क्षिप्रा की दुर्दशा के लिए उँगली उठा रहे हैं वह इंदौर पिछले 6 सालों से लगातार देश के सबसे स्वच्छ शहर का तमगा लटकाए हुए है। इसके अलावा यही शहर पिछले 2 सालों से ‘वाटर प्लस’ भी है।
‘स्वच्छता सर्वेक्षण – 2023’ में सबसे ज्यादा जोर कचरे के पूरी तरह निपटान पर था, इसीलिए यह
विश्वास किया जाना चाहिए कि देश के सबसे स्वच्छ शहर ने तो सूखे/तरल अपशिष्ट का पूरी तरह निपटान
किया ही होगा। इसी प्रकार किसी शहर को ‘वाटर प्लस’ घोषित करने संबंधी कड़े मापदण्ड हैं जिनमें से पहला मापदण्ड उस शहर के घरेलू तथा औद्योगिक सीवेज का शतप्रतिशत उपचार करना जरुरी है।
देश के सबसे स्वच्छ और ‘वाटर प्लस’ शहर इंदौर के सीवेज का उपचार हो जाता तो इस शहर से
गुजरने वाली नदी भला किसी और शहर की नदी को क्यों प्रदूषित करती?
यदि इस हिसाब से देखा जाए तो क्षिप्रा के संबंध में मुख्यमंत्री के निर्देश, महापौर के आरोप और अधिकारियों द्वारा अब तक किए गए उपचार आदि सब संयुक्त रुप से इंदौर की स्वच्छता और इस शहर को प्राप्त ‘वाटर प्लस’ तमगे पर सवाल उठा रहे हैं।
नर्मदा के पानी को मालवा के पठार में पहुँचाना पिछले मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान की महत्वाकांक्षी
परियोजना रही है। इस परियोजना को ‘नर्मदा-मालवा रिवर लिंक’ का नाम दिया गया था जिसका लक्ष्य मालवा की क्षिप्रा, गंभीर, कालीसिंध और पार्वती नदियों में नर्मदा का पानी प्रवाहित करना था। ‘नर्मदा-क्षिप्रा सिंहस्थ लिंक’ को छोड़कर अन्य रिवर लिंक परियोजनाएँ सिंचाई के लिए बनाई जा रही हैं।
सितंबर 2012 में शिवराजसिंह चौहान ने ‘नर्मदा-क्षिप्रा नदी जोड़ योजना’ का हवाई सर्वेक्षण करते हुए कहा
था कि मोक्षदायिनी क्षिप्रा को सदानीरा देखना उनका स्वप्न है। तब उन्होंने दावा किया था कि इस योजना से
देवास एवं उज्जैन जिलों की पेयजल की समस्या हल होगी और सिंहस्थ में लाखों श्रद्धालुओं को क्षिप्रा नदी के प्रवाहमान जल में स्नान करने का भी सुख मिलेगा। चूँकि 432 करोड़ रुपए लागत की इस परियोजना का प्रमुख लक्ष्य सिंहस्थ स्नान था, इसलिए इसे ‘नर्मदा-क्षिप्रा सिंहस्थ लिंक’ कहा गया।
शिवराजसिंह चौहान को ‘नर्मदा-क्षिप्रा सिंहस्थ लिंक’ के माध्यम से 50 हजार हेक्टर में सिंचाई के साथ
72 शहरों और 3 हजार गाँवों के लिए पेयजल और क्षेत्र के उद्योगों को भरपूर पानी मिलने के लाभ गिनाते हुए सार्वजनिक कार्यक्रमों में अनगिनत बार सुना गया। वास्तव में ‘नर्मदा-क्षिप्रा बहुउद्देश्यीय माइक्रो सिंचाई
परियोजना’ के नाम से 2400 करोड़ रुपए लागत की एक अलग परियोजना है जो इंदौर-उज्जैन जिलों में
सिंचाई के लिए बनाई जा रही है। इस सिंचाई परियोजना का शिलान्यास 26 सितंबर 2018 को किया गया था।
इसे अगले साढ़े तीन सालों में पूरा हो जाना था, लेकिन अभी तक यह पूरी नहीं हो पाई है।
19 नवंबर 2012 को ‘नर्मदा-क्षिप्रा सिंहस्थ लिंक परियोजना’ का शिलान्यास करते हुए भाजपा के
मार्गदर्शक लालकृष्ण आडवाणी ने इस परियोजना को मालवा का गौरव लौटाने वाली बताते हुए कहा था कि इससे मालवा क्षेत्र में पानी की चिंता दूर हो जायेगी।
अन्य राज्यों के मुख्यमंत्री भी ऐसी योजनाएँ लागू करें तो देश से अशिक्षा और गरीबी दूर हो जायेगी। संभव है वे भी उस परियोजना का जिक्र कर रहे थे जो उस समय तक अस्तित्व में भी नहीं थी।
शिवराजसिंह चौहान ने इस परियोजना को मालवा के जीवन से जुड़ी बताते हुए इसके लिए पैसों की कमी
नहीं होने देने का आश्वासन दिया था।मजेदार तथ्य यह है कि उन्होंने क्षिप्रा को प्रदूषण से बचाने हेतु खान नदी को डायवर्ट करने की घोषणा सबसे पहले इसके शिलान्यास के दिन की थी, जिसे वे 10-11 वर्षों तक
अक्षरश: दोहराते रहे और यही घोषणा अगले मुख्यमंत्री के लिए विरासत में भी छोड़कर चले गए।
क्षिप्रा की दुर्दशा से दु:खी उज्जैन के साधु-संतों ने उसकी सफाई को लेकर दिसंबर 2021 में लंबा विरोध प्रदर्शन किया था। तब स्थानीय विधायक, वर्तमान मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने ही मुख्यमंत्री के साथ साधु-
संतों की चर्चा की मध्यस्थता की थी।तब भी सरकार ने यह अश्वासन दोहराया था कि क्षिप्रा के पानी को
नहाने और आचमन योग्य बनाया जाएगा। साथ ही क्षिप्रा शुध्दिकरण के लिए ‘खान डायवर्शन योजना’ सहित वही सारे उपाय सुझाए थे जो वर्तमान मुख्यमंत्री ने एक बार फिर दोहराए हैं।
खान नदी के प्रदूषित पानी (सीवेज) को क्षिप्रा में मिलने से रोकने हेतु 2016 के सिंहस्थ के पूर्व 100
करोड़ रुपए की ‘पहली खान डायवर्शन योजना’ बनाई गई थी जो सफल नहीं हो पाई। अब फिर से 600 करोड़ की लागत से ‘दूसरी खान डायवर्शन योजना’ प्रस्तावित है, लेकिन इस डायवर्शन योजना से क्षिप्रा नदी की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। खान नदी के माध्यम से जो सीवेज अभी उज्जैन में त्रिवेणी घाट पर मिलता है उसे उज्जैन शहर के बाहर ले जाकर क्षिप्रा में ही मिलाया जाना है।
शायद इन्हीं पेचीदगियों के कारण ‘कंप्यूटर बाबा’ ने इस परियोजना को धर्म और प्रकृति विरुध्द बताते
हुए इसका विरोध किया था। उनका मत था कि नदियों को प्राकृतिक तरीकों से ही प्रदूषण मुक्त और सदानीरा बनाया जा सकता है। किसी नदी को जिंदा और साफ रखने के लिए उसके जलग्रहण क्षेत्र को सुधारना जरुरी है।
उन्होंने इस योजना की लागत के बराबर राशि क्षिप्रा के जलग्रहण क्षेत्र में पौधारोपण करने पर खर्च करने का
सुझाव दिया था। बाद में इसी सुझावानुसार शिवराजसिंह सरकार ने नर्मदा के जलग्रहण क्षेत्र में एक दिन में 2
करोड़ पौधे लगाने का प्रयास किया था। नदियों को जिंदा रखने का यही सही तरीका है। क्षिप्रा नदी को भी ऐसे
ही कामों से जिंदा रखा जा सकता है।
शिप्रा शुद्धिकरण पर अब तक 600 करोड़ से अधिक खर्च हो चुके हैं लेकिन आज की बात करें तो नदी का पानी गंदा ही है और आचमन योग्य नहीं है..!
शिप्रा शुद्धिकरण पर अब तक 600 करोड़ से अधिक खर्च हो चुके हैं लेकिन आज की बात करें तो नदी का पानी गंदा ही है और आचमन योग्य नहीं है..! अफसर केवल शिप्रा को शुद्ध करने के प्रस्ताव कर रहे हैं लेकिन उनके पास कोई ठोस योजना नहीं है। दरअसल बीते दिनों भोपाल से आए आला अधिकारियों के दल ने शिप्रा शुद्धिकरण को लेकर चार सुझाव दिए हैं लेकिन इन सुझावों को पहले तो अमल में लाना और फिर तकनीकी रूप से भी देखना चुनौती से कम नहीं है। जिन सुझावों को अफसरों के दल ने दिया है यदि उन्हें अमल में लाया जाने की कवायद भी की जाए तो भी कम से कम अगले वर्ष के अंत तक शिप्रा शुद्धिकरण के मामले में सफलता प्राप्त नहीं हो सकती है।
इधर शिप्रा की मौजूदा स्थितियों को देखे तो मकर संक्रांति पर भी श्रद्धालुओं को गंदे और बदबूदार पानी में ही स्नान करना पड़ेगा। मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान के निर्देश पर भोपाल के वरिष्ठ अफसरों का दल शिप्रा का मुआयना करने के लिए यहां आया था और इन अधिकारियों ने जो सुझाव दिए थे उनमें इंदौर में ही कान्ह के पानी का बेहतर ट्रीटमेंट करने, उज्जैन में राघौपिपल्या से पहले सीवरेज वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट प्लांट बनाये जाने , कान्ह पर पक्का बांध बनाये जाने राघोपिपल्या से कालियादेह महल तक खुली नहर बनाकर कान्ह के पानी को डायवर्ट करने जैसे सुझाव शामिल है। सरकार ने शिप्रा को प्रवाहमान बनाए रखने और शुद्ध बनाने के लिए दो दशकों में अभी तक 900 करोड़ रूपए खर्च कर दिए है। बावजूद इसके शिप्रा की स्थिति सुधरने का नामनहीं ले रही है। शिप्रा में प्रदूषण का मुख्य कारण कान्ह नदी का गंदा पानी मिलना है और इसे रोकने के लिए सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट की स्थापना कर कान्ह डायवर्शन पाइपलाइन बिछवाई है। नर्मदा को शिप्रा से जोड़ा है, बावजूद इतना करने पर भी नतीजा शून्य ही रहा है। बता दें कि शिप्रा के मैली होने के खिलाफ संतों के प्रदर्शन के बाद मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने जांच के निर्देश दिए थे और इसके बाद ही शिप्रा की स्थिति जानने के लिए अधिकारियों की टीम सूबे से उज्जैन आई थी।
इनका कहना
शिप्रा के शुद्धिकरण के लिए करोड़ो रूपए खर्च कर दिए गए हैं लेकिन इसके बाद भी शिप्रा की स्थिति वैसी ही है। यह आश्चर्य का ही विषय है कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है। शिप्रा का पानी आचमन तो क्या स्नान योग्य भी नहीं रह गया है। शुद्धिकरण के मामले को गंभीरता के साथ लेना चाहिए।
– पं. आनंदशंकर व्यास, ज्योतिषाचार्य