भोपाल: मध्य प्रदेश में 10 जिला अस्पतालों को प्राइवेट हाथों में सौंपने के राज्य सरकार के फैसले के खिलाफ 10 संगठन एक साथ आ गए हैं। इन संगठनों का कहना है कि 100 बिस्तरों वाले नए मेडिकल कॉलेज खोलने के लिए जिला अस्पतालों को प्राइवेट स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को सौंपने का यह कदम जनता के लिए नुकसानदेह होगा।
इन जिला अस्पतालों को निजी हाथों में सौंपने की योजना है, उनमें कटनी, मुरैना, पन्ना, बालाघाट, भिंड, धार, खरगोन, सीधी, टीकमगढ़ और बैतूल शामिल हैं। इन संगठनों ने रविवार को भोपाल में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर सरकार के इस फैसले का विरोध किया। उनका कहना है कि इससे स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता प्रभावित होगी और गरीबों को इलाज नहीं मिल पाएगा।
स्वास्थ्य सेवाएं होंगी महंगी
स्वास्थ्य संगठनों का कहना है कि जिला अस्पतालों का निजीकरण गरीब और जरूरतमंद लोगों के लिए स्वास्थ्य सेवाओं को महंगा और दुर्गम बना देगा। वे सरकार से आग्रह करते हैं कि वह सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने पर ध्यान केंद्रित करे और यह सुनिश्चित करे कि वे सरकारी नियंत्रण में रहें।
पीपीपी मोड का करते हैं विरोध
संगठनों ने कहा कि हम PPP या आउटसोर्सिंग के किसी भी रूप का विरोध करते हैं, जिससे स्वास्थ्य सेवाओं का निजीकरण हो सकता है। इसके बजाय, हम सरकार से सभी हितधारकों को बुलाकर अपनी सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने पर चर्चा करने का आह्वान करते हैं, यह सुनिश्चित करते हुए कि वे सरकारी नियंत्रण में रहें। यह स्वास्थ्य शासन को बढ़ाने और स्वास्थ्य संकेतकों में सुधार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह इस महत्वपूर्ण क्षेत्र में सरकार की जवाबदेही की पुष्टि करता है।
इन संगठनों ने किया विरोध
विरोध करने वाले संगठनों में एमपी मेडिकल टीचर्स एसोसिएशन (MPMTA), गवर्नमेंट ऑटोनॉमस चिकित्सा महासंघ, एमपी मेडिकल ऑफिसर्स एसोसिएशन (MPMOA), ESI, एमपी जूनियर डॉक्टर्स एसोसिएशन, एमपी नर्सिंग ऑफिसर्स एसोसिएशन, एमपी कॉन्ट्रैक्चुअल डॉक्टर्स एसोसिएशन, एमपी आशा सहयोगिनी श्रमिक संघ, जन स्वास्थ्य अभियान (JSA) और राष्ट्रीय स्वास्थ्य अधिकार अभियान शामिल हैं।
SA के प्रतिनिधि अमूल्य निधि ने कहा कि हम राज्य सरकार से आग्रह करते हैं कि वह सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP), निजीकरण और प्रमुख स्वास्थ्य कार्यों को निजी संस्थाओं को आउटसोर्स करने के अपने रुख पर पुनर्विचार करे।
पहले वापस हो चुके हैं आदेश
उन्होंने 2015 में अलीराजपुर जिला अस्पताल और जोबट सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र को दीपक फाउंडेशन को आउटसोर्स करने के फैसले का हवाला दिया, जिसे बाद में जनहित याचिका के बाद रद्द कर दिया गया था। इसी तरह, 2012 में इंदौर के एमवाय अस्पताल के निजीकरण के प्रयास को भी विरोध के बाद वापस ले लिया गया था।
सरकारी स्वायत्त चिकित्सा महासंघ के संयोजक, डॉ. राकेश मालवीय ने कहा कि 10 जिला अस्पतालों के अलावा, 51 सिविल अस्पताल और 348 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र भी निजीकरण की सूची में हैं। उन्होंने कहा कि अगर इसे लागू किया जाता है तो केवल आयुष्मान कार्ड धारकों को ही मुफ्त इलाज मिलेगा और बाकी सभी को अपनी जेब से भुगतान करना होगा।
सरकार स्पष्ट कर चीजें
संघों ने मांग की कि राज्य सरकार को अपने फैसले के पीछे के उद्देश्यों का पारदर्शी विवरण प्रदान करना चाहिए। उन्होंने कहा कि यदि यह निर्णय स्वास्थ्य विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों या मंत्रिस्तरीय स्तर पर लिया गया है, तो राज्य सरकार को इस कदम के पीछे के उद्देश्यों का पारदर्शी विवरण प्रदान करना चाहिए। जनता को निर्णय लेने की प्रक्रिया को जानने और समझने का अधिकार है। राज्य सरकार को इस कदम के कारणों की जांच करनी चाहिए और पारदर्शी तरीके से साझा करना चाहिए। साथ ही अपने फैसले की समीक्षा करनी चाहिए और राज्य के पूरे रेफरल अस्पतालों का निजीकरण करने के अपने फैसले को वापस लेने पर विचार करना चाहिए।
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