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इस्तीफे या रिटायरमेंट के तुरंत बाद राजनीति में आने पर सवाल….IAS-IPS का राजनीति से प्यार क्यों?

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नई दिल्ली
1994 बैच के आईपीएस ऑफिसर और कानपुर के कमिश्नर पद पर तैनात असीम अरुण ने 8 जनवरी को ऐच्छिक सेवानिवृत्ति योजना के तहत नौकरी छोड़ दी और 16 जनवरी को भारतीय जनता पार्टी जॉइन कर लिया। जाट जाति से आने वाले अरुण को बीजेपी उत्तर प्रदेश चुनाव में कन्नौज सीट से अपना उम्मीदवार बना सकती है। अरुण के साथ रिटायर्ड आईएस ऑफिसर राम बहादुर ने भी बीजेपी जॉइन की है। वो 2017 में मायावती की बहुजन समाजवादी पार्टी के टिकट पर यूपी विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं। इनसे पहले भी कई नौकरशाह राजनीति जॉइन कर चुके हैं और उनमें कई तो मंत्री तक बनाए गए हैं।

इस्तीफे या रिटायरमेंट के तुरंत बाद राजनीति में आने पर सवाल

नौकरशाहों में राजनीति के प्रति बढ़ते आकर्षण को लेकर तरह-तरह की चर्चा होने लगी है। कई लोग सिविल सर्विस के इतने बड़े ऑफिसरों के नौकरी छोड़कर या रिटायरमेंट के तुरंत बाद पार्टी पॉलिटिक्स से जुड़ने पर आपत्ति जता रहे हैं। उनकी दलील है कि जिन नौकरशाहों को रिटायरमेंट के दो साल बाद तक एक अदद प्राइवेट कंपनी जॉइन करने की इजाजत नहीं होती है, उन्हें भला किसी राजनीतिक दल की सदस्यता लेने या राजनीति में उतरने की अनुमति क्यों दी जानी चाहिए? ऐसे लोग नौकरशाही से सीधे राजनीति में कदम रखने को इस आधार पर अनैतिक मानते हैं क्योंकि ऐसे में हितों के टकराव का मामला बनता है। कहा जाता है कि कुछ दिन तक पहले बड़े पदों पर काम कर चुके पूर्व नौकरशाह अगर राजनीति में आते हैं तो वो अपने प्रभावों का इस्तेमाल खुद और पार्टी के पक्ष में कर सकते हैं।

नौकरशाहों में बढ़ रही है राजनीति में उतरने की प्रवृत्ति

दरअसल, हाल के दिनों में नौकरशाहों का राजनीति में उतरने के लिए अचानक नौकरी छोड़ने का चलन तेज हो गया है। पिछले साल ही गुजरात कैडर के आईएएस ऑफिसर एके शर्मा ने पिछले वर्ष बीजेपी जॉइन करने के लिए वीआरएस ले लिया था। बीजेपी के टिकट पर 2014 का लोकसभा चुनाव लड़ने वाले सत्यपाल सिंह ने वीआरएस लेकर मुंबई पुलिस कमिश्नर का पद छोड़ा था। ऐसा भी नहीं है कि ऐसा सिर्फ उत्तर प्रदेश या हिंदी बेल्ट में ही हो रहा है बल्कि दक्षिण भारत से लेकर जम्मू-कश्मीर तक यह चलन देखा जा रहा है।

तमिलनाडु में आईपीएस के. अन्नामलाई और आईएएस एस. शशि कला सेंथिल ने वीआरएस लेकर क्रमशः बीजेपी और कांग्रेस पार्टी जॉइन की थी। ओडिशा कैडर की आईएएस ऑफिसर अपराजिता सारंगी ने 2018 वीआरएस लेकर बीजेपी जॉइन की थी। आईएस ऑफिसर ओपी चौधरी ने बीजेपी जॉइन करने के लिए रायपुर के कलेक्टर का पद छोड़ दिया। उधर, पिछले राजस्थान विधानसभा चुनाव के वक्त डीआईजी पद से रिटायर हुए सवाई सिंह चौधरी ने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा। वहीं, चुनाव से महीनेभर पहले ही आईजी हरी प्रसाद शर्मा ने वीआरएस ले लिया।

मदन मेघवाल, शाह फैसल, दावा शेरपा जैसों ने तो गजब ही किया

इस परंपरा पर सवाल तब और गहरा हो जाता है जब नौकरशाह वीआरएस अप्लाई करते हैं और जब मनोनुकूल सफलता नहीं मिलती है तो आवेदन वापस लेकर दोबारा नौकरी जॉइन कर लेते हैं। राजस्थान में क्राइम ब्रांच के एसपी मदन मेघवाल ने 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का टिकट पाने की उम्मीद में वीआरएस अप्लाई कर दिया, लेकिन जब पार्टी ने उनकी तरफ चारा नहीं फेंका तो मेघवाल ने तुरंत अपना आवेदन वापस ले लिया।

जम्मू-कश्मीर के आईएएस शाह फैसल नो तो वीआरएस अप्लाई करके अपनी पार्टी ही बना ली थी। लेकिन, 5 अगस्त 2019 को संविधान के अनुच्छेद 370 को जम्मू-कश्मीर से निष्प्रभावी कर दिया गया तो फैसल ने नौकरी जॉइन कर ली क्योंकि तब तक उनका वीआरएस अप्लीकेशन एक्सेप्ट नहीं हुआ था। इस तरह, नौकरी छोड़ राजनीति और फिर राजनीति छोड़ ‘पुनर्मसूको भव’ की भी कहानियां हमारे सामने हैं।

ऐसा ही मामला 1992 बैच के आईपीएस ऑफिसर दावा शेरपा का है। उन्होंने 2008 में वीआरएस का आवेदन दिया और 2012 तक छुट्टी पर रहे। इस दौरान वो बीजेपी के सदस्य बने रहे। वो चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन जब पार्टी ने टिकट नहीं दिया तो 2013 में दोबारा नौकरी जॉइन कर ली। हैरत की बात है कि दोबारा नौकरी जॉइन करते ही उन्हें प्रोमशन देकर डीआईजी बना दिया गया। बाद में वो गोरखपुर जोन के एडिशन डीजीपी नियुक्त किए गए।

क्या अनैतिक है बिना कूलिंग पीरियड के राजनीतिक जॉइन करना?
जानकारों को इन्हीं प्रवृत्तियों पर आपत्ति है और वो नौकरशाहों को राजनीति में आने के पहले भी दो साल के कूलिंग पीरियड की वकालत करते हैं। उनका कहना है कि नौकरी छोड़कर या रिटायरमेंट के तुरंत बाद राजनीति जॉइन करने वालों से युवा नौकरशाहों में गलत संदेश जाता है। युवा नौकरशाहों की फौज सोचने लगती है कि बेहतर तो यही है कि नेताओं का आगा-पीछा करे और मौका मिलते ही बड़ी छलांग लगा दो। ऐसे में नौकरशाही की निष्पक्षता पर सवालिया निशान लग जाता है।

इसमें कोई शक नहीं कि कोई नौकरशाह जब नेताओं की शक्ति को देखता है तो उसे भी नेता बनने की लालच सताने लगती है। नेता बनने का एक फायदा यह भी है कि इसमें रिटायरमेंट की कोई उम्र नहीं होती है। जब तक स्वास्थ्य और किस्मत साथ दे, आप ताकत और सम्मान का आनंद उठाते रह सकते हैं। ऑल इंडिया सर्विसेज (कंडक्ट) रूल्स, 1968 किसी सिविल सर्वेंट को कोई प्राइवेट ऑर्गनाइजेशन जॉइन करने से दो साल का अनिवार्य कूलिंग पीरियड बिताने को बाध्य करता है। कंडक्ट रूल्स के तहत किसी नौकरशाह को सेवा के दौरान निष्पक्ष रहने को कहता है, लेकिन वीआरएस या रिटायरमेंट के बाद राजनीति जॉइन करने से नहीं रोकता।

हमारे देश का संविधान और जनप्रतिनिधित्व कानून भी एक निश्चित उम्र के हर नागरिक को चुनावी राजनीति में उतरने की अनुमति देता है। इस तरह, कानूनी नजरिए से किसी नौकरशाह का नौकरी छोड़कर तुरंत पॉलिटिक्स जॉइन करना गलत नहीं है। जहां तक बात नैतिकता की है तो पूर्व नौकरशाह पवन वर्मा कहते हैं कि नौकरशाहों को राजनीति जॉइन करने से हितों के टकराव की कोई आशंका नहीं रहती है, इसलिए इसे नैतिकता से जोड़ना बेकार है। वर्मा ने खुद 2013 में रिटायर होने के बाद बिहार के सत्ताधारी दल जेडीयू जॉइन कर लिया था। कुछ महीने पहले उन्होंने तृणमूल कांग्रेस जॉइन कर ली है।

नियम तो नहीं रोकता, लेकिन चुनाव आयोग ने की थी सिफारिश
अब सवाल यह उठता है कि अगर नौकरशाहों के राजनीति में उतरना गलत है तो संविधान या संबंधित नियमों में इसकी चिंता क्यों नहीं की गई? जानकार बताते हैं कि पहले किसी ने सोचा नहीं था कि कोई सिविल सर्वेंट पॉलिटिक्स जॉइन करने के लिए नौकरी छोड़ देगा या फिर रिटायरमेंट के बाद तुरंत राजनीति में उतर जाएगा। पूर्व चुनाव आयुक्त वीएस संपत बताते हैं कि 2012 में चुनाव आयोग ने सरकार को सिफारिश भेजी थी कि रिटायरमेंट या इस्तीफे के तुरंत बाद किसी नौकरशाह को तुरंत राजनीति में उतरने से रोका जाए। आयोग ने सुझाव दिया था कि उनके पॉलिटिक्स जॉइन करने से पहले भी दो साल का कूलिंग पीरियड निर्धारित किया जाए, लेकिन सरकार ने यह सिफारिश नहीं मानी। संपत का भी मानना है कि नौकरशाहों का नौकरी छोड़कर या रिटायरमेंट के तुरंत बाद राजनीति में उतरना अनैतिक है।

लेकिन, जब बात रुतबे और हनक की हो तो भला कौन सोचने को तैयार है कि क्या नैतिक और क्या अनैतिक। नौकरशाही से निकले लोग मुख्यमंत्री तक बन चुके हैं। वो चाहें छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी हों या फिर दिल्ली के मौजूदा मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल। कांग्रेस की मीरा कुमार लोकसभा अध्यक्ष बनीं। मोदी सरकार में तो पूर्व आर्मी चीफ वीके सिंह, पूर्व गृह सचिव आरके सिंह, पूर्व डिप्लोमेट हरदीप सिंह पुरी, पूर्व विदेश सचिव एस. जयशंकर समेत पूर्व नौकरशाहों की लंबी लिस्ट है जिन्हें मंत्री पद से नवाजा गया है।

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