देखते-देखते राहुल गांधी का राजनीतिक ट्रांसफॉर्मेशन हो गया। यह ऐसा बदलाव है जिसकी कल्पना बीजेपी को तो नहीं ही थी। देश के उन लाखों करोड़ों लोगों को भी नहीं थी जो गोदी मीडिया और बीजेपी और संघ के साये में रहकर जनता की हिफ़ाजत की बात तो करते थे लेकिन जनता का सच यही था कि उसकी आवाज को सुनने वाला कोई नहीं था। लेकिन अब ऐसा नहीं है। सड़क पर जनता की रुदाली भी दर्ज हो रही है और संसद के भीतर जनता की रुदाली की तस्वीर भी पेश की जा रही है।
जैसे ही जनता की तस्वीर संसद में पेश की जाती है संसद में कोलाहल मचता है और फिर सत्ता पक्ष के लोग ताकते रह जाते हैं। फिर कभी कानून का हवाला दिया जाता है तो कभी संसदीय मर्यादा की दुहाई दी जाती है। कभी नियमों की किताब की बात की जाती है तो कभी राहुल गांधी को ही कठघरे में खड़ा करने की योजना तक बन जाती है। आजाद भारत का यह ऐसा सच है जो बीते दो दशक में कभी नहीं देखा गया।
जब अटल बिहारी वाजपेयी विपक्ष में होते थे तब कुछ संसद के भीतर का यही हाल, यही दृश्य हुआ करता था। कांग्रेस की नीतियों को तार-तार करने में अटल जी कभी पीछे नहीं हटते थे। लेकिन उनका मकसद सत्ता पक्ष को केवल जलील करना नहीं होता था। वह तो जनता की वेदना को आवाज देते थे और सरकार को चेताया करते थे। आज फिर से संसद के भीतर विपक्ष की आवाज गूंजने लगी है तब मौजूदा सत्ता पक्ष की परेशानी बढ़ गई है। दस साल से संसद के भीतर जो कुछ भी होता दिखता था वह सब बीजेपी के अनुकूल ही तो था।
राहुल गांधी की यह राजनीति कब तक चलेगी और राहुल गांधी संसद से सड़क तक जनता की आवाज़ को कब तक धार देते रहेंगे इस पर मंथन किया जा सकता है लेकिन एक बात तो साफ हो गयी है कि मौजूदा समय में मौजूदा सरकार के सामने विपक्ष के नेता राहुल गांधी बड़ी चुनौती तो पेश कर ही रहे हैं। जिस तरह से वे संसद के भीतर बेबाक और निडर होकर अपनी बात और जनता की आवाज को उठा रहे हैं उसके आगामी परिणाम क्या होंगे यह कोई नहीं जानता लेकिन मोदी सरकार कई तरह के दबाव में तो आ ही गई है।
यह तो गजब का खेल है कि संसद के भीतर राहुल गांधी गुजरात, हाथरस और मणिपुर की बात करते हैं और फिर घटना स्थल पर पहुंचकर सरकार को ललकारते हुए स्थानीय लोगों से भी मिल आते हैं। यह कोई मामूली बात नहीं है। जिन मुद्दों को पैबस्त करने के लिए सरकार के लोगों को जाना चाहिए वहां राहुल गांधी खुद ही पहुंच रहे हैं और जनता के बीच जाकर न सिर्फ जनता के आंसू को पोंछ रहे हैं बल्कि वहीं से सरकार को ललकार को भी रहे हैं। गुजरात जाकर राहुल ने भरी भीड़ के भीतर जो भी कहा है वह कम आश्चर्य की बात नहीं है।
राहुल ने भरे मंच से यही तो कहा कि संसद में उनके हिन्दू, हिंदुत्व पर दिए गए भाषण के बाद जिस तरह से गुजरात में बीजेपी और संघ के लोगों ने उनके दफ्तर को तोड़ा है अब उसी तरह से कांग्रेसी भी गुजरात की बीजेपी सरकार को तोड़ देंगे। उन्होंने यह भी दावा किया कि अगले विधान सभा चुनाव में इंडिया बीजेपी को हराएगी और इसे लिखकर ले लो। इसकी शुरुआत भी हो गई है। राहुल की यह गर्जना कोई मामूली गर्जना नहीं है। बीजेपी अब जान गई है कि आने वाले समय में कांग्रेस और इंडिया गठबंधन कोई बड़ा खेल कर सकती है। बीजेपी को अब यह भी लग गया ही कि राहुल का मजबूती के साथ उभरना बीजेपी के अमृत काल को कहीं विष काल न बना दे।
जाहिर है कि भारत की राजनीति तेजी से बदल रही है। यह ऐसा बदलाव है जिसमें जनता भी अब खुले रूप से सत्ता सरकार के खिलाफ खड़ी है और जनता को एक मजबूत विपक्ष की आवाज भी मिल रही है।
राहुल गांधी जनता की आवाज बनकर उभरे हैं। आलम तो यह है कि राहुल का इंतजार अब हर जगह हो रहा है। यह ऐसी परिस्थिति है जो पहले कभी देखी नहीं गई। जनता के सुर में सुर मिलाते हुए राहुल सरकार को घेरने से बाज नहीं आ रहे हैं। जब राहुल सरकार से सवाल करते हैं तो जनता की उम्मीद और जग रही है। जनता को लग रहा है कि लम्बे समय के बाद अब उसकी आवाज को कोई धार दे रहा है और संसद तक बातों को पहुंचा भी रहा है।
राहुल गांधी पहले सरकार को जनता के मुद्दों पर घेर रहे हैं और फिर जनता के बीच पहुंच रहे हैं। यह राहुल का अनोखा प्रयास है और जानकार भी मान रहे हैं कि राहुल का यह प्रयास जारी रहा तो बीजेपी को कौन पूछे सबसे ज्यादा परेशान और घायल पीएम मोदी और अमित शाह होने जा रहे हैं। आलम यह है कि मौजूदा सत्ता पक्ष बौखला रहा है और विपक्ष अब हमलावर है। जिस राहुल गांधी, अखिलेश यादव और महुआ मोइत्रा को बीजेपी की पूर्व सरकार ने हर तरह से परेशान किया है अब यही तिगड़ी बीजेपी के लिए मुश्किलें खड़ी कर रही है। यह सब बीजेपी और पीएम मोदी के लिए किसी त्रासदी से कम नहीं।
असम में बाढ़ का तांडव है। कोई 80 लोगों की मौत वहां हो गई है। लाखों लोग बुरी तरह से प्रभावित भी हैं। लेकिन आज राहुल गांधी असम भी गए हैं और वहां से मणिपुर भी जा रहे हैं। मणिपुर करीब डेढ़ साल से जल रहा है। पीएम मोदी की पार्टी बीजेपी की वहां सरकार है। जातीय हिंसा में अब तक सैकड़ों लोगों की जानें जा चुकी हैं लेकिन पीएम मोदी अभी तक वहां गए नहीं हैं। राहुल गांधी पहले भी मणिपुर गए थे और आज फिर से मणिपुर पहुंच रहे हैं। असम और मणिपुर में लाखों लोगों की भीड़ राहुल के इंतजार में है। बीजेपी की धड़कनें बढ़ी हुई हैं।
प्रसंगवश बता दें कि तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद यानी महीने भर के भीतर मोदी का यह दूसरा विदेश दौरा है, इससे पहले वे इटली की यात्रा कर चुके हैं। वहीं राहुल गांधी का एक साल के भीतर यह तीसरा मणिपुर दौरा है। चुनावों से पहले भी वे दो बार मणिपुर तब गए थे, जहां वहां कुकी और मैतेई समुदायों के बीच हिंसा के कारण जनता त्राहि-त्राहि कर रही थी, सरकार से अपने लिए शांति और सुरक्षा की मांग कर रही थी। लेकिन जनता की यह मांग अब भी पूरी नहीं हुई है।
राहुल गांधी की बतौर नेता प्रतिपक्ष की भूमिका पर भाजपा बार-बार सवाल उठाकर उन्हें एक अक्षम नेता साबित करने में लगी हुई है। लेकिन अगर बारीकी से देखा जाए तो राहुल गांधी अब भी वही काम कर रहे हैं, जो पहले करते आए थे और जिन कामों पर देश का ध्यान भारत जोड़ो यात्रा के वक्त से गया था। राहुल गांधी ने हमेशा वंचितों और शोषितों के साथ खड़ी होने वाली राजनीति पर जोर दिया। जब यूपीए सत्ता में थी तो वे भट्ठा पारसौल और नियमगिरि गए थे, ताकि किसानों और आदिवासियों के साथ खड़े हो सकें। मोदी सरकार के वक्त मंदसौर में किसानों पर गोली चली तो राहुल गांधी वहां भी गए और उन्नाव की पीड़िता के परिजनों के साथ खड़े होने भी पहुंचे।
पहली भारत जोड़ो यात्रा में राहुल गांधी ने आम जनता से सीधे संवाद का सिलसिला और तेज किया। गरीब बच्चों को ठिठुरते देखा तो खुद भी एक टी शर्ट में ही कड़कड़ाती सर्दी में चलते रहे। यात्रा खत्म होने के बाद राहुल गांधी किसानों, गिग वर्कर्स, कुलियों, बढ़ईयों, छात्रों के बीच पहुंचे। युवा, नारी, किसान, श्रमिक और भागीदारी न्याय का संकल्प लेकर राहुल गांधी दूसरी बार भारत जोड़ो यात्रा पर निकले और यात्रा खत्म होने के बाद जब चुनाव प्रचार का सिलसिला शुरु हुआ तो वे इसी न्याय की बात करते रहे। नरेन्द्र मोदी के चुनाव प्रचार में मुस्लिम लीग, मंगलसूत्र और भैंस चोरी की बात होती थी, और राहुल गांधी जातिगत आरक्षण, रोजगार, सबके लिए बराबरी की बात करते थे।
राहुल की इस बदली छवि से देश को आगे क्या मिलेगा यह तो कोई नहीं जानता लेकिन राहुल की इस छवि ने कांग्रेस और पार्टी के उन नेताओं को भी बदलने पर मजबूर किया है जो दफ्तर में बैठकर जनता के सवालों से मुंह मोड़ते रहे हैं। गुजरात दौरे के दौरान राहुल ने एक बात कही वह विचार योग्य है। राहुल ने कहा कि घोड़े दो तरह के होते हैं। एक रेस का घोड़ा होता है और दूसरा शादी-विवाह में उपयोग किया जाने वाला घोड़ा।
अब उन्हें समझ में आ गया है कि रेस के घोड़े को ही मैदान में उतारने से जनता की आवाज को बुलंद किया जा सकता है और जनता की उम्मीदों पर खड़ा हुआ जा सकता है। शादी-विवाह वाले घोड़े को मैदान में उतारने से ही पार्टी की यह दुर्गति हुई है। जाहिर है उन्होंने पार्टी को भी सन्देश दे दिया है कि रेस के घोड़े को ही आगे बढ़ाया जाएगा और फिर कांग्रेस की जमीन को मजबूत किया जाएगा।
और लगे हाथ यह भी बताने की जरूरत है कि जिस राम मंदिर और अयोध्या के नाम पर बीजेपी आज तक देश की राजनीति को गुमराह करती रही आज उसी अयोध्या ने बीजेपी के उस आंदोलन को ही ख़त्म कर दिया है। राहुल इस खेल से प्रभावित हैं और यही खेल गुजरात में अगर हो गया तो मोदी और शाह के इकबाल का क्या होगा इसे देखने की बात होगी।