अग्नि आलोक
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“रक्षाबंधन “

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प्रमोद जैन पिंटू,

सजा कर थाल शब्दों का, भावों का कुमकुम लगाए,

श्री की प्रार्थना कर देश में, आओ श्रीफल चढ़ाये!

बांधे सूत्र सत्ता को ,
करें रक्षा गरीबी से ,
पूंजी पत्तियों के चंगुल से, मुक्त महंगाई कराए,

नीतियां गरीबों के लिए हो, सर्वहारा खुशियां बनाएं, मन में आशा का चलो, फिर एक दीप सा सजाये!
सजा कर _

नैतिकता को रक्षाबंधनकर,
थोड़ा सा मूल्य भी दिखाए,

नारी शोषण कीकथाओं
से इस देश को बचाये,

कल कोलकाता में घटा , आजउत्तराखंड दोहरा रहा, मणिपुर आग का तांडव,
अभी रुक भी नहीं पा रहा,

बेशर्म शासनकोबन पदमनी कोई हुमायूं सा पाठ पढ़ाये
सजा _

अपनी ही नीतियों से कही, अगर विद्रोह ऊपजा हो, क्यों आज उसके लिए, अपनेदेश को दोषी बताएं?

जगा कर क्या होगा देशको जागृत जिसकी अस्मिता है
जगाना है तो सुप्त मन में मोहब्बत का भाव जगाए,

बांधकर सूत्र मानवता को
मानवता की अलख जगाए
सजाए _


पिंटू फीचर्स भवानी मंडी

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