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वास्तविक स्वतंत्रता केवल वही हो सकती है जहाँ एक व्यक्ति द्वारा दूसरे का शोषण और उत्पीड़न न हो- स्टालिन

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अजय असुर

स्टालिन का वास्तविक नाम सोसो था जिसे रूसी में योसेफ और अंग्रेजी में जोसेफ कहते है। स्टालिन जब 16 वर्ष के हुवे तो उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए तिफलिस की सेमिनरी में दाखिल हो गये। स्टालिन का परिवार बहुत ही गरीब और धार्मिक था। स्टालिन के पिता पेशे से एक मोची थे, मां कपड़े धोने का काम करती थी। स्कूल की फ़ीस न दे पाने की वजह से उन्हें स्कूल से निकाल दिया गया। जिससे उनके परिवार वाले चाहते थे कि स्टालिन पादरी बन जाये पर हुवा उल्टा स्टालिन पादरी बनने के बजाय नास्तिक बन गये थे। स्कूल से निष्काषित होने के बाद वो पूर्ण क्रांतिकारी बन गये। स्टालिन ने लेनिन के नवनिर्मित दल को ज्वाइन कर लिया। यहां पर वो दल के लिए लेखन का कार्य करने लगे, जिसमे वो प्रचार प्रसार का कम तेज हो गया था। स्टालिन ने 1906 में एकतेरिना से विवाह किया था जिससे उनको पुत्र हुआ था लेकिन अपनी पहली पत्नी की मौत के बाद उन्होंने दूसरा विवाह नद्ज़ेहा से कर लिया था।
1917 की समाजवादी क्रांति के बाद 1922 में सोवियत यूनियन की स्थापना हुयी जिसमे लेनिन उसके पहले नेता बने थे। इस दौरान स्टालिन पार्टी के शीर्ष पर पहुच गये थे और 1922 में उन्हें रूस की कम्युनिस्ट पार्टी का महासचिव बना दिया गया। 1924 में जब लेनिन की मौत हो गयी तब पार्टी ने सोवियत संघ का दायित्व स्टालिन को दे दिया।
1925 में देश की आर्थिक समस्याओं को हल करने हेतु योजना बनाने के लिए योजना आयोग का गठन किया गया। इस आयोग ने लम्बी अवधि की पंचवर्षीय योजना के निर्माण की संस्तुति की, जिसके अन्तर्गत सन् 1928 में अगले पाँच वर्षों तक देश के आर्थिक एवं सांस्कृतिक जीवन की भावी रूपरेखा का उल्लेख किया गया था। पंचवर्षीय योजना के मुख्य बिन्दु निजी सम्पत्ति की समाप्ति और आर्थिक आत्मनिर्भरता थे।(i) कृषि का राष्ट्रीयकरण- खाद्यान्न के उत्पादन में कृषि के लिए स्टालिन ने सर्वप्रथम कृषि के राष्ट्रीयकरण की घोषणा की। व्यक्तिगत रूप से कृषि कार्य को पूर्णतया प्रतिबन्धित कर दिया गया और समस्त कृषि योग्य भूमि को दो भागों में बाँट दिया गया-सरकारी कृषि और सामूहिक कृषि। सरकारी कृषि का उद्देश्य खाली और बंजर पड़ी भूमि को कृषि के अनुकूल बनाना था और सामूहिक कृषि को छोटे किसानों को प्रोत्साहन देने के लिए तथा संयुक्त रूप से सहकारिता के आधार पर कार्य करने के लिए प्रारम्भ किया गया था। सामूहिक कृषि में छोटे-छोटे टुकड़ों को संयुक्त करके वृहत्तर रूप प्रदान कर दिया गया था। उन समृद्धशाली किसानों से खेती करने का अधिकार व भूमि का स्वामित्व वापस ले लिया गया था जो व्यक्तिगत रूप से अपने कृषि कार्य को करने में सक्षम नहीं थे। इसके विपरीत सहकारी व सामूहिक कृषि को प्रोत्साहित किया गया और सरकार ने करों में रियायत व ऋण सुविधाएँ देकर लोगों को सहकारिता की ओर आकर्षित किया। सामूहिक खेती के सम्बन्ध का दायित्व सभी सदस्यों की एक प्रबन्ध समिति को प्रदान किया गया। प्रत्येक किसान को उत्पादन का कुछ निश्चित भाग सरकार को देना पड़ता था और शेष भाग को वह स्वतन्त्र रूप से खुले बाजार में बेच सकता था। कुल लाभ में किसान का भाग उसके श्रम के अनुपात और किस्म के अनुसार होता था।
(ii) कारखानों का राष्ट्रीयकरण – पंचवर्षीय योजना की सफलता के लिए कारखानों का पुनर्गठन नितान्त अनिवार्य था। लेनिन की नई आर्थिक नीति लागू थी, जिसके अन्तर्गत लघु स्तर पर व्यक्तिगत संस्थाओं को कार्य की आज्ञा प्रदान कर दी गई। इसलिए यह आवश्यक था कि लघु उद्योगों को मान्यता प्रदान कर दी जाए। व्यक्तिगत कारखाना स्वामियों को अपने ट्रस्ट बनाने के लिए बाध्य किया गया। कुछ समय बाद इन ट्रस्टों को 19 बड़े सिण्डीकेटों में सम्मिलित कर दिया गया, जो लघु उद्योगों पर नियन्त्रण स्थापित करने के लिए सक्षम घोषित किए गए थे। उन्हें यह शक्ति भी प्राप्त थी कि वे यह देखें कि पंचवर्षीय योजना को लघु उद्योगों पर पूरी तरह से लागू किया गया है अथवा नहीं। प्रथम पंचवर्षीय योजना का मुख्य उद्देश्य औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि करना व औद्योगिक मशीनरी का विकास करना था। निःसन्देह इस क्षेत्र में इस योजना को महान् सफलता प्राप्त हुई। कोयला, लोहा और पेट्रोलियम पदार्थों के कच्चे माल का उत्पादन पहले से दुगुना हो गया था और बिजली की वस्तुओं का उत्पादन तिगुना हो गया। विशाल कारखानों, ऑटोमोबाइल्स आदि के क्षेत्र में भी क्रान्तिकारी परिवर्तन हुए।
(iii) शिक्षा की उन्नति – स्टालिन ने 16 वर्ष की आयु तक के सब बच्चों को मुफ्त व अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने की घोषणा की। सभी स्कूलों पर कम्युनिस्टों का कठोर नियन्त्रण स्थापित किया गया। स्टालिन की सरकार को अशिक्षा को दूर करने में विशेष सफलता प्राप्त हुई। सन् 1914 में रूस की लगभग 73% जनता अशिक्षित थी, किन्तु सन् 1932 में वहाँ केवल 9% लोग ही अशिक्षित रह गए थे। योजना का उद्देश्य केवल अशिक्षा को दूर करना ही नहीं था, अपितु लोगों को तकनीकी शिक्षा प्रदान करना भी था। अनेक ऐसी तकनीकी संस्थाओं की स्थापना की गई जो छात्रों को तकनीकी शिक्षा प्रदान करती थीं। जो इस क्षेत्र में उच्च शिक्षा प्राप्त करना चाहते थे, उनके लिए भी सरकार ने व्यवस्था की थी। सरकार की ओर से बड़े पैमाने पर प्रौढ़ शिक्षा की भी व्यवस्था की गई थी।
इस प्रकार प्रथम पंचवर्षीय योजना रूस के आर्थिक एवं सांस्कृतिक विकास की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कदम था। इतिहासकार बेन्स ने लिखा है, “इस सबका अवश्यम्भावी परिणाम यह हुआ कि निर्धारित उत्पादन की कीमत में कमी, श्रम में अत्यन्त कुशलता और उत्पादित वस्तुओं में सुधार के उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सका।”
द्वितीय पंचवर्षीय योजना – 1933 से 1937 की योजना अधिक बड़ी और युक्तिसंगत थी। इस योजना के अन्तर्गत सर्वाधिक बल उत्पादित वस्तु की किस्म पर दिया गया, जिसकी ओर प्रथम पंचवर्षीय योजना में कोई ध्यान नहीं दिया गया था। सरकार ने उन वस्तुओं के उत्पादन की ओर विशेष ध्यान दिया जिनकी सर्वाधिक आवश्यकता गरीब व्यक्तियों को पड़ती थी। इस समय कच्चे माल के उत्पादन में भी पर्याप्त वृद्धि हुई। कृषि के क्षेत्रों में सामूहिक खेती को विशेष प्रोत्साहन प्रदान किया गया। किसानों को अधिकार प्रदान किया गया था कि वे सरकार के हिस्से का अनाज कर के रूप में जमा करने के बाद शेष अनाज जहाँ चाहें स्वतन्त्र बाजार में बेच दें। औद्योगिक प्रगति सराहनीय रही। भारी उद्योगों का विकास हुआ, किन्तु हिटलर के अभ्युदय एवं युद्ध के भय से उपभोक्ता सामग्री के उत्पादन में अधिक वृद्धि नहीं की जा सकी। भारी उद्योग और शस्त्र निर्माण में विनियोग की मात्रा बढ़ानी पड़ी।
तृतीय पंचवर्षीय योजना – तृतीय पंचवर्षीय योजना जनवरी, 1938 में प्रारम्भ हुई। यह योजना एक नवीन लक्ष्य प्राप्त करना चाहती थी। यद्यपि पुरानी योजनाओं से उत्पादन में वृद्धि हुई थी और सोवियत यूनियन विश्व के प्रमुख देशों में से एक गिना जाने लगा था, तथापि जनगणना के अनुसार प्रति व्यक्ति उत्पादन के सन्दर्भ में रूस अब भी ब्रिटेन,जर्मनी और संयुक्त राज्य अमेरिका की तुलना में पिछड़ा हुआ था। 1941 में जब जर्मनी ने रूस पर आक्रमण किया, तो शत्रु का सामना करने की दृष्टि से यह योजना युद्ध की सामग्री योजना में परिवर्तित हो गई।
1936 का संविधान – 1936 में एक नया संविधान तैयार किया गया, जो ‘स्टालिन संविधान’ कहलाता था। 1936 में सोवियत रूस में संघ राज्य स्थापित किया गया। इसे ‘समाजवादी सोवियत गणराज्य संघ’ कहा गया। उस समय इसमें कई गणतन्त्र शामिल थे। संघीय संसद में 2 सदनों की व्यवस्था की गई–संघीय परिषद् (Council of Union) और राष्ट्रीयताओं की परिषद (Council of Nationalities)। संघीय परिषद् में जनता के प्रतिनिधि और राष्ट्रीयताओं की परिषद् में जातियों, राष्ट्रों व राज्यों के प्रतिनिधि भाग लेते हैं। सोवियत संघ में सम्मिलित राज्यों के प्रतिनिधि जनसंख्या के अनुपात के आधार पर चुने जाते थे। राष्ट्रीय परिषद् में 3 लाख जनसंख्या पर एक प्रतिनिधि चुना जाता था। निर्वाचन क्षेत्र एक सदस्यीय बनाए गए। दोनों सदन मिलकर सुप्रीम काउन्सिल कहलाई। सुप्रीम काउन्सिल की कार्यकारिणी ‘प्रेसीडियम’ (Presidium) कहलाई। सुप्रीम काउन्सिल की एक अन्य समिति को लोक प्रबन्ध परिचय कहते हैं। इसके अतिरिक्त मन्त्रिमण्डल के हाथों में शासन की सत्ता सौंपी गई। इस मन्त्रिमण्डल को संसद के प्रति और संसद का अधिवेशन न होने की स्थिति में प्रेसीडियम के प्रति उत्तरदायी बनाया गया। रूस में न्यायिक व्यवस्था के लिए संघीय सर्वोच्च न्यायालय का स्थान सबसे ऊँचा रखा गया। संविधान में नागरिकों को मौलिक अधिकार प्रदान किए गए। जिसमें सोवियत संघ के प्रत्येक नागरिक को काम करने के अधिकार, आराम और अवकाश, स्वास्थ्य सुरक्षा, वृद्धावस्था में देखभाल और बीमारी, आवास, शिक्षा की गारण्टी दी गयी।
दिसंबर 1941 में फ़्रान्स, पोलेंड को हराने के बाद जर्मनी ने नाजी-सोवियत संधि तोडकर सोवियत यूनियन पर हमला कर दिया और जब जर्मन सेना रूस की राजधानी मॉस्को के बेहद करीब पहुंच गईं तब कुछ सलाहकारों ने स्टालिन को मॉस्को छोड़ने की सलाह दी मगर स्टालिन ने इससे साफ़ इनकार कर दिया। उन्होंने अपने देशवासियों को दिशा दी कि उन्हें नाज़ी सेनाओं को किसी भी क़ीमत पर हराना है। जर्मनी और रूस के बीच जंग में स्टालिनग्राड की लड़ाई से निर्णायक मोड़ आया। हिटलर ने इस शहर पर इसलिए भी हमला किया क्योंकि इसका नाम स्टालिन के नाम पर था. वो स्टालिनग्राड को जीतकर स्टालिन को शर्मिंदा करना चाहता था।
हिटलर के फ़ासिवाद के ख़िलाफ़ युद्ध में रूस के दो करोड़ से अधिक लोग शहीद हुए लेकिन आख़िर में सोवियत सेनाओं ने जर्मनी को मात दी। इसके बाद तो सोवियत संघ ने हिटलर की सेनाओं को वापस जर्मनी की तरफ़ लौटने को मजबूर कर दिया। जर्मन तानाशाह हिटलर  स्टालिन के ताप से डरकर अपने बंकर में घुस कर छिपा था, जब उसे पता चला कि लाल सेना बर्लिन के करीब आ चुकी है तो वह जहर खा कर मर गया। अंत में सोवियत सेनाएं, जर्मनी को खदेड़ते हुए राजधानी बर्लिन में दाखिल हो गयीं। 
1949 में स्टालिन के काल में जब दुनियाँ महामंदी में डूबी हुई थी, जिसे तीसा की मंदी कहते हैं और इस तीसा की मंदी में अमेरिका के लोग भूखे मर रहे थे और बड़ी बड़ी पूँजीवादी-साम्राज्यवादी अर्थव्यवस्थायें तबाह हो रही थी, उद्योग-धंधे तबाह हो रहे थे, तब स्टालिन के नेतृत्व में समाजवादी सोवियत संघ की जी डी पी 15% की दर से आगे बढ़ रही थी और उद्योग में कोयले, तेल और स्टील का उत्पादन कई गुना बढ़ गया। कृषि क्षेत्र का भी तेज़ी से विकास हो रहा था। देश ने तेज़ी से आर्थिक तरक़्क़ी की। कारखानों से लेकर खेतों तक ने बड़े-बड़े टारगेट लिये व समय से पहले पूरे किये। सभी के लिये रोज़गार की गारण्टी थी, शिक्षा-चिकित्सा-आवास सभी के लिये मुफ़्त में उपलब्ध थे। देश से ग़रीबी पूरी तरह मिटायी जा चुकी थी।
5 मार्च 1953 को 74 वर्ष की उम्र में दिल का दौरा पड़ने से स्टालिन की मृत्यु हो गयी। स्टालिन के शरीर पर लेप करके 1961 तक मास्को रेड स्क्वायर में सरक्षित किया गया था। उसके बाद उसे लेनिन की समाधि के पास दफन कर दिया गया।
यह स्टालिन द्वारा अपनाये गये मार्क्सवादी-लेनिनवादी विचारों की शक्ति व मेहनतकश जनता से उनका गहरा नाता होने का ही परिणाम ही है जिसकी बदौलत वे इतनी बड़ी बड़ी उपलब्धियाँ हासिल कर पाये। उनकी इसी सोच से दुनियाँ भर के पूँजीवादी-साम्राज्यवादी शक्तियाँ घबराती हैं इसीलिये पूंजीवादी देशों के सरगना अमेरिका कम्युनिस्टों के खिलाफ प्रोपगेंडा फैलाकर उनको बदनाम करते रहते हैं,  पर वे मेहनतकश जनता के मन में बसे उनके महान नेता स्टालिन के प्रति प्यार व सम्मान को दूर नहीं कर सकते हैं। ज्यों-ज्यों पूँजीवाद संकट में फँसता जा रहा है स्टालिन और अधिक प्रासंगिक होते जा रहे हैं।
आरएसएस को सबसे ज्यादा घृणा स्टालिन से ही है। रूस के पतन के बावजूद भी आरएसएस मार्क्सवाद के ताप से डरी हुई है इसीलिए पूरी दुनिया में मार्क्सवाद को बुलंदियों पर पहुंचाने वाले स्टालिन से वह घृणा करती है और मेहनतकश जनता के दिलों में कम्युनिस्टों के प्रति नफरत भरती जा रही है। स्टालिन ने द्वितीय विश्व युद्ध में हिटलर को परास्त कर उस फासीवादी सांप का मुंह कुचल दिया था, जिसे आरएसएस अपना माडल हीरो मानती है।   स्टालिन ने जापान से मंचूरिया प्रान्त जीतकर माओ को दे दिया था जिससे चीन में माओत्से तुंग और उनकी लाल सेना को बहुत बड़ा आधार मिल गया। जिससे लाल सेना की जीत एक हद तक आसान हो गयी। चीन को लाल चीन बनाने में स्टालिन का बहुत बड़ा योगदान है।   स्टालिन के त्याग बलिदान को देख कर दुनिया भर की शोषित-पीड़ित जनता ने उन्हें अपना हीरो बनाया। कोई भी लोकतंत्र उतना ही मज़बूत या कमज़ोर होता है, जितना इसे सहारा देने वाले स्तंभ होते हैं। जब लोकतंत्र का गला घोंटने की कोशिश होती है, तो ऐसा करने वालों के निशाने पर सबसे पहले इसकी न्याय व्यवस्था होती है। हम इतिहास के पन्ने पलटकर देखें, तो इस बात की बहुत सी मिसालें मिलती हैं। जब भी न्यायिक स्वतंत्रता का हनन होता है, तो इसका नतीजा हम षडयंत्र, उथल-पुथल और अंत में अराजकता के तौर पर देखते हैं और आज नतीजा आपके सामने है….
अन्त में जोसेफ स्टालिन की कही बात से-मेरे लिए यह कल्पना करना कठिन है कि एक बेरोजगार भूखा व्यक्ति किस तरह की “निजी स्वतंत्रता” का आनन्द उठाता है। वास्तविक स्वतंत्रता केवल वही हो सकती है जहाँ एक व्यक्ति द्वारा दूसरे का शोषण और उत्पीड़न न हो। जहाँ बेरोजगारी न हो, और जहां किसी व्यक्ति को अपना रोजगार, अपना घर और रोटी छिन जाने के भय में जीना न पड़ता हो। केवल ऐसे ही समाज में निजी और किसी भी अन्य प्रकार की स्वतंत्रता वास्तव में मौजूद हो सकती है, न कि सिर्फ कागज पर।
*अजय असुर

**राष्ट्रीय जनवादी मोर्चा*

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