~ पुष्पा गुप्ता
क़ुरआन का शाब्दिक अर्थ है वह पढ़ी जानी वाली किताब जिसमें विभिन्न कालों (भूत, भविष्य, वर्तमान) की घटनाओं मानव समाज के लिए हितकारी और कल्याणकारी संदेशों के साथ साथ ब्रहमांड के विभिन्न अदृश्य एवं अदृश्य रहस्यों को संक्षेप में म़त्रों की सहायता से संग्रहित किया गया है। ये मंत्र आकाश लोक के महाग्रंथ से चुने गये हैं जिसमें इस संसार की रचना के प्रारंभ से अंत तक होने वाली समस्त घटनाओं , हर जन्म लेने वाले सजीव और निर्जीव की संरचना और एक्टिविटी का विवरण सर्व शक्तिमान ईश्वर के आदेश द्वारा उस समय लिखा गया जब इस संसार में ईश्वर के सिंहासन, पानी और कलम के अतिरिक्त और कुछ नही था।
क़ुरआन से पहले भी संसार में ईश्वर के द्वारा चुने हुए व्यक्तियों को उस समय के मानवीय मस्तिष्क और सामाजिक और भौगोलिक स्थितियों के अनुकूल ईश्वरीय संदेश प्राप्त होते रहे हैं। इसी कड़ी में पैगम्बर मोहम्मद साहब को चुना गया और इस जनरेशन के लिए ईश्वर ने उनको संदेश भेजे जो आज हमारे सामने क़ुरआन के रूप में उपस्थित है।
माना जाता है कि क़ुरआन के मंत्र सर्वप्रथम उस ईश्वरीय महाग्रंथ में से एक ही रात में इस पृथ्वी के आसमान पर लाए गए, फिर इस धरती के आकाश से जिब्राईल नामी फरिश्ते के द्वारा आवश्यकतानुसार समय समय पर थोड़े थोड़े प्रोफेट मोहम्मद स. तक पहुंचाये गये। जैसे ही कोई मंत्र या अध्याय पहुंचता पैगम्बर साहब और वो लोग उसको कंठस्थ कर लेते जो इस्लाम धर्म अपना चुके थे। जो लिखना पढना जानते थे वो ताड़ की छालों , पत्थरों , लकडी की तख्तियों , कपड़ो पर लिख लेते थे। पूरे मंत्र पहुंचने में लगभग 23 वर्ष का समय लगा।
हर वर्ष रमजान के महीने में जितने मंत्र और अध्याय पहुंच चुके होते , उनका रिवीजन होता , इस रिवीजन का उद्देश्य सभी मंत्रों के व्यवस्थित क्रम की जानकारी को शेयर करना था। आज भी रमजान के महीने में मुसलमान तरावीह की नमाज पढते है़ वो उसमें पूरा कुरआन पढ़ते हैं , ये परम्परा उसी समय से चली आ रही है।
*सूरह फातिहा :*
फातिहा का शाब्दिक अर्थ होता है प्रारंभ करने वाली , खोलने वाली , क़ुरआन का सबसे पहला अध्याय होने के कारण ही इस का नाम सूरह फातिहा है। यह सूरत मक्का शहर में उतरी , इस सूरत को एक तिहाई क़ुरआन कहा जाता है क्योंकि इसमें क़ुरआन के तीन महत्वपूर्ण विषयों 1- तोहीद ( ऐकेश्वरवाद ), 2-रिसालत (पैगम्बर वाद ) ,3- एवं आखिरत (परलोक ) का संक्षिप्त विवरण आया है।
मुस्लिम धर्मावलंबियों में यह मान्यता है कि क़ुरआन को छूकर पढ़ने के लिए पवित्र होना आवश्यक है जिस प्रकार नमाज़ से पहले स्नान करके अथवा हाथ मुंह और पैर धोकर पवित्रता प्राप्त की जाती है। क़ुरआन पढना प्रारंभ करने से पूर्व यह आह्वान किया जाता है : “मैं बुरे विचारों और मन को विचलित करने वाली बुरी आत्माओं से ईश्वर की शरण में आता/आती हूँ तथा ईश्वर की नाम से प्रारंभ करता हूँ जो बहुत ही कृपालु और दयावान है.”
आईए समझते हैं क़ुरआन के इस अध्याय के मंत्रों का भावार्थ :
सर्वप्रथम यह संदेश दिया गया है कि आकाश लोक से पाताल लोक तक सभी प्रकार की प्रशंसाएं जो प्रकृति के किसी भी जीव अथवा निर्जीव के लिए की जाती है वो वास्तव में ईश्वर की ही प्रशंसा होती है क्योंकि वही उनका रचयिता है , और वह ही कृपालु और दयावान है।
वही उस दिन का हाकिम अर्थात फैसला करने वाला होगा जिस दिन प्रलय के पश्चात जब सभी मनुष्यों और जीवों को पुनर्जिवित कर इकट्ठा किया जाएगा। उन सभी को उनके कर्मों के अनुसार पुरुष्कार और दंड दिया जाएगा।
अगले पेरा में मनुष्यों को यह संदेश दिया गया है कि वो उसी सर्वशक्तिमान ईश्वर की पूजा करें और उसी के आगे सहायता के लिए हाथ उठाए। उसी से सही राह दिखाने के लिए प्रार्थना करें क्योंकि वही है जो जानता है कि नेक लोगों और पुरुष्कार प्राप्त करने वालों का रास्ता कौनसा है और कौन सा रास्ता है जिसपर चलने वाले भटक गये और ईश्वर के कोप का शिकार हुए।
*अल् बक़रह (गाय)*
यह क़ुरआन का सबसे बड़ा अध्याय है और मदीना शहर में उतरा। इसमें एक जादूगर के द्वारा बहकाने पर पैगम्बर मूसा के अनुयायियों द्वारा गाय का बछड़ा बना कर उसकी पूजा करने का विवरण है जब पैगम्बर मूसा अ. चालीस दिन के लिऐ तूर पहाड़ पर ईश्वरीय संदेश प्राप्त करने के लिए चले गये थे।
इसलिए इस अध्याय का नाम गाय के नाम पर है। इसके अतिरिक्त अन्य विषयों भी इसमें चर्चा की गयी है जिनको हम विभिन्न भागो़ में आपके सामने रखेंगे।
इस अध्याय के पहले भाग में इस किताब बताया गया है नि:संदेह यह किताब सत्य मार्ग दिखाने वाली है परंतु सकारात्मक सोंच रखने वाले ही इस किताब के संदेशों को स्वीकार करेंगे। सकारात्मक लोगों की पहचान यह बताई गयी है कि वो गलत काम करने से डरते हैं , अनदेखी बातों पर अर्थात अल्लाह (ईश्वर ) , स्वर्ग , नर्क , फरिश्ते (देवता ), शैतान ( राक्षस , जिन्नात ) मरने के बाद फिर से जिंदा किये जाने और ईश्वर के समक्ष अपने कर्मों का हिसाब दिये जाने पर विश्वास करते हैं। केवल एक ईश्वर सामने झुकते (नमाज पढते ) हैं।
ईश्वर की और से जो कुछ भी उनको मिला है उस वैध कमाई में से गरीबों असहायों की सहायता करते हैं और क़ुरआन के अतिरिक्त अन्य ईश्वरीय ग्रंथों संदेशों पर जो दूसरे मार्गदर्शकों को दिये गये उन को सत्य मानते हैं। यही लोग ईश्वर के बताए हुए सत्य मार्ग पर हैं और यही सफलता प्राप्त करेंगे।
दूसरे प्रकार के लोग वे हैं जो नकारात्मक सोंच वाले हैं और दोगले होते हैं , वो बस उन्हीं बातों पर विश्वास करते हैं जो उनके लिए लाभदायक होती है। वो कहते तो हैं कि सबका मालिक एक है जिसका कोई रूप नही है , परंतु उन चीजों की पूजा करते हैं जो रूप वाली है , जैसे मनुष्य , पेड़ पौधे , सूरज , समुद्र , जीव जंतु।
वे लोग दान दक्षिणा भी इसलिए करते हैं कि समाज में उनका नाम हो बड़ाई हो। कुछ लोग ऐसे होते हैं जो सभ्यता को चौला पहने होते हैं , स्वयं को बहुत धार्मिक मोलवी पंडित दर्शाते हैं परंतु अंदरुनी रूप से बुराई का ,इंसानी जानों का , नशीली चीजों का , कमजोरों और महिलाओं की आबरू का व्यापार करते हैं , अच्छे और नेक लोगों को जो ईश्वर पर विश्वास करते हैं उनको मूर्ख समझते है।
अत: इन नकारात्मक और दुनिया परस्त लोगों के बारे में बताया गया है की वास्तव में यही लोग मूर्ख हैं और ईश्वर ने इनको एक लिमिटेड समय तक के लिए मोहल्लत दे रखी है। ये लोग कभी भी सत्य मार्ग पर नही आएंगे चाहे उनको कितना भी समझा लो। यह लोग दुनिया में भले ही स्वयं को सफल समझते हों पर अंत में असफलता ही इनके मुकद्दर में होगी।
ईश्वर के द्वारा सर्व साधारण को सूचित करते हुए यह संदेश दिया गया है कि सभी मनुष्यों को उस एक पालनहार की इबादत करनी चाहिए जिसने हमारे लिए धरती को मकान के फर्श के समान रहने आराम करने और चलने फिरने योग्य बनाया और आकाश को छत के सामान बनाया। वही जमीन पर पानी बरसाता है जिससे कि हमको खाने पीने और जरूरत की चीजें प्राप्त होती है।
इसलिए मनुष्य को चाहिए कि वह उसकी सत्ता में किसी को साझेदार न बनाए अर्थात किसी और की पूजा न करे , इसी में भलाई है.
ध्यान रहे इन मंत्रों में धरती को मनुष्यों के लिए अनुकूल वातावरण के कारण मकान के फर्श तथा आकाश को छत की उपमा दी गयी है न कि धरती और आकाश को समतल कहा गया है।
अगले मंत्र में क़ुरआन को मोहम्मद साहब द्वारा रचित कहने वाले अरब नास्तिकों को ईश्वर की चुनौती दी गयी है कि वो क़ुरआन के समान एक अध्याय ही बनाकर दिखादे।
अगर वो समझते हैं कि मोहम्मद साहब जैसे इंसान जिन्होंने कभी किसी गुरु से शिक्षा प्राप्त नही कि वो इस प्रकार के संदेशों की रचना कर सकते हैं तो वो लोग भी अवश्य कर सकते हैं , क्योंकि वो तो अरबी भाषा के माने हुए शायर और विद्वान समझे जाते थे।
इस खुली चुनौती के बाद वो ऐसा नही कर सके और न ही कोई कर सकता था इसलिए उनसे कहा गया है कि यह सच जानते हुए कि कुरआन मोहम्मद स. का नही अल्लाह का कलाम है उसके इंकारी मत बनो और डरो उस आग से जिसका ईंधन पापी मनुष्य और पत्थर होंगे।
अगले मंत्र में ईमान वाले अर्थात ईश्वर को मानने वाले और नेक कर्म करने वाले लोगों को स्वर्ग की खुशखबरी सुनाई गयी है। स्वर्ग वो जगह है जिसको सदाचारी पुरुषों और महिलाओं के पुरुष्कार स्वरुप तैयार किया गया है , यह उन लोगों के लिए है जिन्होंने धरती पर रहते हुए अपनी कामनाओं और ख्वाहिशों पर कंट्रोल किया , जिस बात से ईश्वर ने उनको रोका वो रुके रहे और जिस काम को करने का आदेश दिया वो करते रहे।
वहाँ दूध , शहद और ऐसे पेय की नहरें होंगी जिनसे स्वर्गवासी तृप्त हो जाएंगे। विभिन्न प्रकार के टेस्ट रखने वाले फल होंगे। वहाँ हर स्वर्गवासी की हर विश पूरी होगी। आमतौर पर पुरुषों को सुंदर महिला पसंद होती है अत: पुरूषों के लिए पुरुष्कार स्वरूप हूरों का भी वर्णन किया गया है। महिलाओं को जनरली हमेशा जवान रहना और सुंदर दिखना पसंद होता है इसलिए यहाँ उनके लिए पुरुष साथियों का वर्णन नही है। परंतु इस बात का वर्णन मिलता है कि जन्नती महिलाओं को स्वर्ग की अप्सराओं से अधिक सुंदरता प्रदान की जाएगी।
स्वर्ग के विवरण के बाद कहा गया है कि जो लोग ईश्वर के वचनों को नही मानते , यह जानने के बाद भी कि वो माँ के गर्भ में निर्जीव थे फिर ईश्वर ने उनमें जीवन का संचार किया। फिर उनको मौत आएगी और फिर वो निर्जीव हो जाएंगे। तो लोग क्यों भूल जाते हैं कि वह इस बात पर भी सक्षम है कि उनको मौत के बाद फिर से जीवित करके अपने सामने खड़ा कर सके। फिर क्यों वे लोगों में नफरत फैलाते हैं , एक इंसान को दूसरे इंसान से लड़ाते हैं। धरती पर वैरभाव और वैमनस्य फैलाते हैं। जो ऐसा करते हैं वो अपने लिए सदैव का नुकसान चुन रहे हैं।
*आयत (मंत्र ) 30 से 39 :*
इन मंत्रों में सृष्टि के प्रथम मनुष्य की रचना से संबंधित वर्णन है , जिसमें मनुष्य की रचना का कारण , उद्देश्य और सफलता का रहस्य बताया गया है। शैतान जो कि जिन्न अर्थात दानवों में से था वह मनुष्य आदम के आगे शीष झुकाकर समर्पण करने से क्यों मुकर गया था। ये वही आदम या मनु है जो हम मनुष्यों के पिता है, जिनका विभिन्न ग्रंथों में आदम , मनु और एडम के नाम से वर्णन मिलता है। इसी नाम के कारण इंसानों को मनुष्य आदमी कहा जाता है।
सर्व शक्तिमान ईश्वर जब देवताओं और दानवों और सृष्टि के सभी लोक एवं उनमें आवश्यक जीवों वनस्पतियों की रचना कर चुका तो उसनें देवताओं की सभा में कहा : मैं धरती में अपना एक उत्तराधिकारी बनाने जा रहा हूँ , यह सुनकर सभी देवताओं ने शालीन स्वर में प्रश्न किया ? हे हमारे रब क्या तू इस धरती में ऐसा उत्तराधिकारी बनाने वाला है जिसकी नस्ल धरती में उत्पात मचाएगी और एक दूसरे का खून करेगी ? जबकि हम सदैव तेरी प्रशंसा और गुणगान करते हैं , तेरे हर एक आदेश का पालन करते है। देवताओं के इस प्रश्न पर ईश्वर ने कहा कि आगे क्या होने वाला है वह केवल मैं जानता हूँ तुम नही जानते हो।
आईए अब थोड़े विस्तार में हम यह जान लेते हैं कि देवता और दानव कौन है उनकी विशेषता क्या है और ईश्वर के समक्ष देवताओं के उस प्रश्न के पीछे की क्या कहानी है।
ईश्वर ने देवताओं की रचना अपनी ज्योति से की अत: हम इनको नही देख सकते। ये असंख्य है उनका नेचर मनुष्यों से बिल्कुल अलग है वो न खाते हैं न सोते हैं वे बहुत शक्तिशाली और प्रकाश की गति से भी अधिक तेज है। ईश्वरीय आदेशों की कभी अवहेलना नही करते , और न ही उनमें मनुष्यों की तरह फैमिली बढाने का सिस्टम इंस्टॉल किया गया है। अत: देवताओं को ईश्वरीय सेना कहा जा सकता है।
अब बात करते हैं दानवों की तो उनकी रचना अग्नि से की गयी है , इनको हम जिन्न प्रेत आदि भी कहते हैं , ये बलशाली है और शारीरिक रूप से भी हमारी तुलना में बहुत विशाल है। ये भी अदृश्य जीव है , मनुष्यों की तरह सोंचने समझने की क्षमता रखते हैं , खाते पीते है। हमारी तरह इनमें भी फैमिली सिस्टम है , चोपाये और पक्षी भी है। ये भी ईश्वर की अदृश्य रचना है और इनको हम नही देख सकते जब तक कि ये कोई और रूप धारण न कर लें। इनमें भी मनुष्यों की तरह अच्छे और बुरे दोनों तरह के हैं । इनमें यह शक्ति है कि ये मनुष्य या किसी भी जीव के मस्तिष्क और रक्त तक में प्रवेश कर जाते है।
मनुष्य के धरती पर भेजे जाने से पहले सम्पूर्ण धरती पर इन्हीं दानवों का राज था , परंतु ये धरती पर सदैव आपस में ही लड़ते झगड़ते रहते। जब धरती पर इनका उत्पात हद से ज्यादा बढ गया तो ईश्वर ने देवताओं को इनके उत्पात को खत्म करने के लिए भेजा। भयंकर युद्ध हुआ बहुत से दानव मारे गये और जो बचे थे वो रेगिस्तानों, टापुओं और जंगलों में चले गये। इन्हीं में से एक दानव था जिसे आज शैतान अर्थात राक्षस कहा जाता है। वह बहुत विद्वान और ईश्वर भक्त था यहां तक कि आकाश के देवता भी उससे ज्ञान की बातें सीखते थे। जब सर्वशक्तिमान ईश्वर ने मनुष्य की रचना करने का निश्चय किया तो फरिश्तों को धरती के हर क्षेत्र से मिट्टी इकट्ठी करने का आदेश दिया वो उस मिट्टी को विभिन्न पड़ावों से गुजारकर आदम का पुतला बनाया और उसमें जान डाल दी।
फिर अपने उत्तराधिकारी होने के नाते ईश्वर ने आदम अ.की मैमोरी में उन सभी वस्तुओं के नाम इंस्टाल कर दिये जिनका इस संसार के अंत अर्थात प्रलय तक आवश्यकता पड़ने वाली थी। इसको हम इस प्रकार समझ सकते हैं जैसे एक बीज अंदर यह इंस्टाल कर दिया जाता है कि उगने पर उसमें कितनी डाली कितने पत्ते और कितने फूल और फल लगने वाले है। आदम के अंदर भी वह सब पहले से ही इंस्टाल कर दिया गया था मगर जैसे जैसे इंसानी नस्ल बढती गयी समय गुजरता रहा और इंसान विकास करता रहा और अंत में इसको बूढ़ा भी होना है। विकास रुक जाएगा और प्रलय आ जाएगी।
इन सब के बाद अपने उत्तराधिकारी होने के नाते सभी देवताओं को आदम के समक्ष शीष झुका कर समर्पण करने और सम्मान प्रकट करने का आदेश दिया , ईश्वर का यह आदेश पाकर सभी देवताओं ने समर्पण कर दिया। चुंकि दानव भी वहीं उपस्थित था अत: उसको भी आदेश हुआ था परंतु उसने समर्पण नही किया। ईश्वर ने जब उससे कारण पूंछा तो कहने लगा कि यह मनुष्य आदम तो मिट्टी से बनाया गया है और मैं आग की लपटों से। मिट्टी का नेचर है कि वो नीचे गिरती है और आग की लपटें ऊपर की और उठती है। अत: मैं मनुष्य से श्रेष्ठ हूँ।
अर्थात उसने अपने अहंकार के कारण ईश्वर के आदेश को नही माना और उसे और उसकी प्रजाति को सदैव के लिए राक्षस होने का श्राप दिया गया।
(बाकी अगले भाग मे.)