*( 'ए वतन मेरे वतन' फिल्म ही नहीं एक इतिहास है।)*
प्रोफेसर राजकुमार जैन*
(भाग- 4)
9 अगस्त की सुबह गाँधीजी सहित सभी प्रमुख नेताओं को गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया गया। एक तरफ नेताओं की धरपकड़ चल रही थी, वहीं तय कार्यक्रम के अनुसार 9 अगस्त की सुबह सोशलिस्ट नेता अरुण आसफ अली ने बेखौफ होकर कीचड़ से भरे सभास्थल पर जाकर सम्मेलन की अध्यक्षता की घोषणा करके राष्ट्रीय झण्डा फहरा दिया।
गिरफ्तारियों के विरोध में पूरे देश में व्यापक प्रतिक्रिया हुई। जगह-जगह रेल पटरियाँ उखाड़ी गयीं, डाकखाने जलाए गए, आवागमन की व्यवस्था भंग कर दी गयी, थानों और कचहरियों पर हमले किये गये। बलिया (पूर्वी उत्तर प्रदेश) मिदनापुर (बंगाल) तथा सतारा (महाराष्ट्र) स्वतंत्र घोषित कर दिये गये जहाँ पर समानांतर सरकारें स्थापित कर दीं।
बड़े शहरों में विशाल प्रदर्शन हुए, सैकड़ों गाँवों में लोगों ने पुलिस के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। विद्रोह को दबाने-कुचलने के लिए सरकार ने सेना की सहायता भी ली। यहाँ तक कि कुछ स्थानों में बमबारी भी की गई। बर्बरता तथा दमन के तहत लाखों भारतीयों को जेलों में ठूँस दिया गया
बम्बई के कांग्रेस अधिवेशन के दौरान कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक चल रही थी उसमें विचार का प्रमुख विषय था कि आगामी संघर्ष का रूप क्या हो। जो लोग 9 अगस्त की गिरफ्तारी से बच गए थे, उन्होंने भूमिगत होकर दृढ़संकल्प के साथ आंदोलन को चलाने की योजना को अंतिम रूप दिया। डॉ राममनोहर लोहिया, अच्युत पटवर्धन, रामनंदन मिश्र, पुरुषोत्तम विक्रमदास, एस.एम. जोशी, अरुणा आसफ अली तथा जयप्रकाश नारायण, जो कि हज़ारीबाग जेल की ऊँची दीवार फाँदकर बाहर आ गए थे, ने भूमिगत आंदोलन को संचालित किया। वस्तुत: भूमिगत आंदोलन कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी ने ही चलाया। इनकी नीति थी ‘न हत्या न चोट’। जयप्रकाश नारायण संघर्ष की तैयारी में जुटे थे परंतु व्यक्तिगत आतंकी कार्रवाई से बचा जा रहा था। पुरानी क्रांतिकारी गुप्त नीतियों को पुन: अमल में लाया जा रहा था तथा सरकारी संचार माध्यमों को बड़े स्तर पर बाधित किया गया। डॉ. लोहिया का कहना था कि थाना-पुलिस स्टेशन ब्रिटिश राज की धमनियाँ हैं, क्रांतिकारी जनता को इन केंद्रों को ध्वस्त कर देना चाहिए।
जयप्रकाश नारायण, डॉ. राममनोहर लोहिया आंदोलन की तैयारी के लिए भेष बदलकर नेपाल की सीमा में चले गए। वहाँ पर इन्होंने ‘आज़ाद दस्ते’ का निर्माण किया, परंतु अंग्रेज़ सरकार को इसकी भनक लग गई थी, उसने नेपाली शासकों से कहकर नेपाली पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिया। परंतु आज़ाद दस्ते ने हथियारों के बल पर इनको आज़ाद करवा लिया। हालाँकि इस बीच गोली चलने से इन दोनों नेताओं की जान जाने से बची।
9 अगस्त की क्रांति की लपटें पूरे हिंदुस्तान में उठी थीं। दिल्ली में भी 9अगस्त को जबरदस्त संघर्ष हुआ। दिल्ली के पुराने सोशलिस्ट नेता मरहूम रूपनारायण जी, जो कि जयप्रकाश नारायण के दिल्ली में सबसे प्रमुख साथियों में थे, उन्होंने बम्बई के गवालिया टैंक मैदान की सभा में दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सचिव तथा एक प्रतिनिधि की हैसियत से हिस्सा लिया था। आज़ादी के आंदोलन में चार बार लंबी-लंबी अंग्रेजों की जेल भोगी थी। इसके साथ ही इनकी माताजी श्रीमती शर्बती देवी तथा बड़ी बहन श्रीमती गुणवती देवी एवं छोटी बहन श्रीमती शांति देवी वैश्व भी सत्याग्रह करते हुए जेल गई थीं। वे 9 अगस्त 1942 के बाद दिल्ली में हुए जन आंदोलन का हाल बताते थे कि दिल्ली भी इन हलचलों से प्रभावित हुई। 9 अगस्त की सुबह दिल्ली के सभी कांग्रेसी नेता लाला देशबंधु गुप्ता, मौलाना नुरुद्दीन बिहारी, सोशलिस्ट नेता मीर मुश्ताक अहमद, इमदाद साबरी (सोशलिस्ट), श्रीमती मेमोबाई लाला हनुमंत सहाय, डॉ. युद्धवीर सिंह, बैरिस्टर फरीद-उल हक अन्सारी (सोशलिस्ट) आदि गिरफतार कर लिये गए।
कांग्रेसी कार्यकर्ता टोलियाँ बनाकर शहर में घूमते रहे दिल्ली में मुकम्मल हड़ताल रही। सब कारोबार बंद हो गए। मिल मज़दूरों ने भी हड़ताल कर दी। दिल्ली कांग्रेस कमेटी के दफ्तर पर पुलिस ने कब्जा कर लिया, वहाँ ताले जड़ दिए गये। 10 अगस्त को एक बहुत बड़े जुलूस का आयोजन हुआ। इस जुलूस को तितर बितर करने के लिए पुलिस ने लाठी-चार्ज किया जिसमें अनेक लोग घायल हो गए। कांग्रेस के भूमिगत नेताओं ने निर्णय किया कि 11 अगस्त की सुबह 9 बजे चाँदनी चौक घंटाघर के नीचे प्रदेश कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष हकीम खलील-उर-रहमान राष्ट्रीय झण्डा फहराएंगे। यह खबर पूरे शहर में आग की तरह फैल गई। निर्धारित समय पर पुलिस ने चारों ओर से घंटाघर को घेर लिया ताकि हकीम साहब वहाँ न पहुँच सकें। इसके बावजूद सैकड़ों की संख्या में कांग्रेस कार्यकर्ता घंटाघर के आसपास जमा हो गए, हकीम साहिब के आने का इंतज़ार करने लगे। समय आहिस्ता-आहिस्ता बीत रहा था। 9 बजनेवाले थे लेकिन निर्धारित कार्यक्रम के अनुार राष्ट्रीय झण्डा फहराने के लिए हकीम साहब उपस्थित नहीं थे। प्रतीक्षा करते कांग्रेसी कार्यकर्ताओं और आम लोगों में घबराहट फैलने लगी। सबके सामने प्रश्न यह था कि इतनी बड़ी संख्या में पुलिस की मौजूदगी में हकीम साहब घंटाघर तक पहुँचेंगे कैसे?
उन दिनों परदानशीं औरतों या मरीजों के लिए डोलियों का प्रबंध रहता था। उपस्थित लोगों ने देखा कि ऐसी ही एक डोली फव्वारे की ओर से चली आ रही है। पुलिस और उपस्थित लोगों ने यह समझा कि इस डोली में कोई परदानशीं औरत आ रही है, इसलिए पुलिस ने इस डोली को रोकने का कोई प्रयास नहीं किया। घंटाघर के ठीक नीचे वह डोली रुक गई। उसमें से परदा हटाकर हकीम साहब बाहर निकल आये। उनके हाथ में राष्ट्रीय झण्डा था। हकीम साहब ने पहले ही सब कुछ समझ लिया था कि घंटाघर पहुँचकर उन्हें क्या करना है, हकीम साहब को देखकर चारों ओर के कांग्रेसी कार्यकर्ता और आम लोग उन्हें घेकर खड़े हो गए। पुलिस भौचक्का हो यह सब देखती रही।
हकीम साहब ने एक मेज पर खड़े होकर ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन की सार्थकता पर एक अत्यंत ही जोशीला भाषण दिया। उस भाषण के बाद लोगों ने अंग्रेजों के खिलाफ़ नारे बुलंद कर दिये। कुछ क्षण पश्चात् हकीम साहब झण्डा लिये हुए फतेहपुरी मस्जिद की ओर बढ़े तो उनके पीछे हजारों लोगों की भीड़ भी चली। मस्जिद के बाहर बहुत बड़ी संख्या में मौजूद पुलिस ने हकीम साहब को गिरफ्तार करने की कोशिश की, लेकिन भीड़ ने उन्हें गिरफ्तार नहीं होने दिया। पुलिस ने लोगों पर जबर्दस्त लाठीचार्ज किया तो लोगों ने जवाब में पत्थर फेंकने शुरू कर दिये। अंत में पुलिस ने हकीम साहब को गिरफ्तार कर उन्हें कोतवाली पहुँचा दिया। हजारों उपस्थित लोगों की भीड़़ पुलिस की लाठियों से बचने के लिए घंटाघर की ओर वापिस लौटने लगी। घंटाघर पर पुलिस ने इन लोगों पर लाठियाँ चलायीं। घंटाघर के सामने स्थित दिल्ली म्यूनिसिपल कमेटी के कार्यालय में आग लगा दी, भीड़ ने क्रुद्ध होकर वहाँ खड़ी दो ट्रामों में भी आग लगा दी, चाँदनी चौक के डाकघर पर भी हमला बोला गया। भीड़ को तितर-बितर करने के लिए घुड़सवार सिपाहियों का उपयोग किया गया। सब तरफ सरकारी संपत्ति को नष्ट किया गया जा रहा था। लोगों की भीड़ पर पुलिस ने गोलियाँ चलाईं, जिसमें अनेक लोग मारे गए और बहुत से लोग जख्मी हुए। रेलवे स्टेशन के सामने एक पेट्रोल पंप में भी आग लगा दी गई। उस समय की दिल्ली में एकमात्र आठ मंजिली ऊंची इमारत जिसे ‘पीली कोठी’ के नाम से जाना जाता है, उसमें रेलवे का दफ्तर था, में भी भीड़ ने आग लगा दी। पीली कोठी जलानेवाली भीड़ में सोशलिस्ट बाल किशन ‘मुजतर’ भी थे, जिनके साथ कालीचरण किशोर और पंजाब के मशहूर सोशलिस्ट नेता रनजीत सिंह मस्ताना भी थे। इस जगह पर पुलिस ने भीड़ पर गोली चलाई, जिसमें दो व्यक्ति मारे गए। जिस अफसर ने गोली चलाई थी, उसको लोगों ने घेरकर पत्थरों से वहीं मार डाला। शाम 7 बजे के पश्चात् दिल्ली नगर को अंग्रेज़ फौज के सुपुर्द कर दिया गया। 11, 12, 13 अगस्त को फौज ने लगभग 50 स्थानों पर गोलियां चलाईं। 150 से अधिक लोग मारे गए और 300 से अधिक व्यक्ति जख्मी हुए।
सोशलिस्ट नेता ब्रजमोहन तूफान बताते थे कि हमने अपने कालिज- हिंदू कालिज- से एक जुलूस निकाला जो कश्मीरी गेट से शुरू होकर चाँदनी चौक पहुँचा। जुलूस ज्यों ही पुरानी दिल्ली स्टेशन पहुँचा चारों तरफ सरकारी इमारतों में आग लगी हुई थी, धुआँ ही धुआँ निकल रहा था। नई सड़क के पास हमारे जुलूस के सामने गुरखा बटालियन का एक जत्था पहुँच गया। चारों ओर महात्मा गाँधी जिंदाबाद के नारे लग रहे थे। इतनी देर में पुलिस द्वारा बर्बरतापूर्ण लाठीचार्ज शुरू कर दिया गया, जिसके कारण बहुत सारे लोगों के सिर फट गए, हडिड्याँ टूट गईं। घरों की छतों से लोग पत्थर फेंक रहे थे, कुछ ही क्षणों के बाद सशस्त्र पुलिस दल भी वहाँ पहुँच गया, हम किसी तरह सिर पर हाथ रखकर वहाँ से निकले।
एक तरफ पुरानी दिल्ली में आंदोलनकारी और पुलिस फौज में संघर्ष हो रहा था वहीं नई दिल्ली के कनाट प्लेस में महात्मा गाँधी जिंदाबाद के नारे लग रहे थे।
10 अगस्त 1942 को रॉबर्ट टोर रसेल के डिज़ाइन किये कनाट प्लेस में भी अंग्रेजों के स्वामित्व वाली दुकानों को आग के हवाले कर दिया गया था। सुबह से ही सभी उम्र के दिल्ली वाले कनाट प्लेस में इकट्ठा होने शुरू हो गए, इनमें से ज्यादातर खादी का कुर्ता-पायजामा पहने हुए थे। उन दिनों कनाट प्लेस में गोरों और आयरिश लोगों की अनेक दुकानें थीं, तब कनाट प्लेस गोरों का गढ़ था। भीड़ ने सबसे पहले ‘रैकलिंग एण्ड कंपनी’, ‘आर्मी एण्ड नैवी’, ‘फिलिप्स एण्ड कम्पनी’ और ‘लॉरेंस एण्ड म्यों’ नामक शो रूमों को फूँका। ‘रैकलिंग एण्ड कम्पनी’ जो कि एक हिन्दुस्तानी की थी, अंग्रेज़ी नाम होने के कारण आंशिक रूप से जल गई। हैरानी की बात है कि आंदोलकारियों ने कनाट प्लेस में चीनी मूल के तीन शोरूम डी. मिनसन एण्ड कम्पनी, चाइनीस, आर्ट सेंटर और जॉन ब्रदर्स को किसी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचाया। दिल्ली में आंदो
लन का नेतृत्व स्वामी श्रद्धानंद, ह
कीम अजमल खां, डॉ. मुख्तार अहमद अंसारी, बैरिस्टर आसिफ अली, लाला शंकरलाल, बहन सत्यवती (सोशलिस्ट), कृष्ण नायर (सोशलिस्ट), कर रहे थे।
[20/04, 11:27] Pro Raj Kumar Jain: हिटलर के शागिर्द नरेंद्र मोदी। हिंदुस्तान में आम चुनाव की शुरुआत हो चुकी है। हिंदुस्तान के तकरीबन सभी टेलीविजन चैनलों, अखबारों, इश्तिहारो में नरेंद्र मोदी के भाषणों को, पूरी तैयारी, हिसाब किताब लगाकर, आम जनता की भलाई के लिए मर मिटने, भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग लड़ने, 400 के पार होने पर मुल्क में स्वर्ग का राज स्थापित होने को दिखाया जा रहा है। विरोधी पार्टियों, नेताओं को मुजरिम मुल्क का दुश्मन, भ्रष्टाचारी सिद्ध करने के लिए एंकर और एंकर्निया सज धज कर डिजाइनर पोशाको में तैयार स्क्रिप्ट पर (खास जनता) के बीच सिद्ध कर रहे हैं कि चुनाव में जनता, गरीबों के मसीहा नरेंद्र मोदी के साथ है। नरेंद्र मोदी एक तरफा भाषण दे रहे हैं, अखबार नवीसो के साथ प्रेस कांफ्रेंस करने का तो कोई सवाल ही नहीं है। उनके भाषणों और सरकारों द्वारा की जा रही कार्रवाइयों को देखकर मेरा पक्का यकीन हो गया है कि मोदी जी ने और कुछ पढ़ा हो या नहीं मगर उन्होंने एडोल्फ हिटलर की कुछ बातों को अपने जहन में बैठा, पक्का यकीन कर अमली जामा जरूर पहना रहे हैं।
1925 -26 में जर्मनी के तानाशाह एडोल्फ हिटलर ने जेल में रहते हुए अपनी आत्मकथात्मक किताब ‘मीन काम्फ’ माई स्ट्रगल लिखी थी। उसमें उन्होंने अपनी सियासी सोच का खुलासा किया था।
” असरदार, होशियारी और लगातार प्रचार के जरिए लोगों को स्वर्गलोक (जन्नत) भी नरक (दोजख) की तरह दिखाया जा सकता है, या एक निहायत बर्बाद जिंदगी को स्वर्ग की तरह पेश किया जा सकता है”। “जनता की समझदारी, ग्रहणशीलता बड़ी सीमित है, उनकी अक्ल बहुत छोटी है, लेकिन भूलने की ताकत बहुत बड़ी है। इस हकीकत को ध्यान में रखते हुए चुनावी प्रचार को बहुत कम मुद्दों तक सीमित किया जाना चाहिए और इन नारों को तब तक दोहराया जाना चाहिए जब तक की जनता का आखिरी आदमी यह न समझ ले कि आप उसे अपने नारों से क्यों समझाना चाहते हैं।”
” इंसानियत, बेवकूफी और बुजदिली की अभिव्यक्ति है, कामयाबी ही, सही और गलत का दुनिया मे मानदंड है।”
“मार डालो, बर्बाद कर दो, बर्खास्त कर दो, झूठ बोलो, जीत के बाद कोई नहीं पूछता, सच्चाई मायने नहीं रखती बल्कि जीत मायने रखती है। सफलता ही सही और गलत को तय करती है।”
हिटलर का प्रचार मन्त्री, जोसेफ गोएबल्स का मानना था कि
“एक झूठ को बार-बार दोहराने से वह सच बन जाता है।”
आज मोदी सरकार, हिटलर द्वारा कही गई बातों पर पूरी तरह अमल कर रही है। जम्हूरियत का गला घोंटा जा रहा है। मुल्क में खौफनाक माहौल बना दिया गया है। सरेआम दौलत और डंडे के बल पर मुखालिफ पार्टियां को तोड़कर अपनी सरकारों को बनाया जा रहा है। माहौल ऐसा तैयार किया जा रहा है की 400 से ज्यादा सीटों पर हम जीत रहे हैं, ताकि विरोधी पार्टिया हताश हो जाए। परंतु जमीनी हकीकत कुछ और ही है। आम आवाम, बेकारी, बेरोजगारी, महंगाई, किसानो की मायूसी कुछ और ही बयां कर रही है। ऐसे में हर मुल्क परस्त, हिंदुस्तानी का फर्ज है कि वह फौलादी एकता के साथ, इस मुल्क तोड़क, धन पशुओं की गुलाम सरकार के खिलाफ वोट कर शिकस्त दे।
राजकुमार जैन