अग्नि आलोक

संसद भवन में स्मोक बम मामले की आरोपी क्रांतिकारी नीलम”

Neelam Azad arrested in the Parliament breach case are taken away after being produced at the Patiala House court in New Delhi on Thursday. Express Photo by Tashi Tobgyal New Delhi 141223

Share

शिव इंदर सिंह

जींद जिला के घासो खुर्द गांव के बाल्मीकि चौपाल पर एक लाइब्रेरी है जो पहली नजर में ट्यूशन सेंटर सी लगती है. वहां कुर्सियां फैली पड़ी थीं और टेबुलों पर धूल जमी हुई थी. उसकी एक दीवार पर एक बैनर लगा था, जिस पर लिखा था: ‘प्रगतिशील पुस्तकालय’. बैनर के एक तरफ मोटे अक्षरों में लिखा था, “युवा सोच, युवा जोश” और दूसरी तरफ आंबेडकर, सावित्री बाई फुले और भगत सिंह की तस्वीरें थीं. टेबुलों पर सावित्री बाई फुले की जीवनी, भारतीय कला एवं संस्कृति पर एक किताब, ‘बांगर उत्सव 2023, उचाना एक नजर’, ‘विश्व इतिहास के कुछ विषय’ और अन्य किताबें बिखरी थीं.

गांव की इस लाइब्रेरी को बनाया है नीलम आज़ाद ने जो 13 दिसंबर को नए संसद भवन में सुरक्षा उल्लंघन मामले में यू.ए.पी.ए. के तहत गिरफ्तार नौजवानों में से एक है. इन नौजवानों में से दो ने संसद परिसर में स्मोक बम फेंके थे और मंहगाई, बेरोजगारी और मणीपुर के हालात पर नारे लगाए थे. जब नौजवान संसद परिसर में स्मोक बम फेंक रहे थे, तो निलाम आज़ाद संसद परिसर के बाहर “तानाशाही नहीं चलेगी”, “भारत माता की जय” और “जय भीम, जय भारत” नारे लगा रही थीं.

नीलम आज़ाद की कहानी जानने के लिए मैं उनके गांव घासो खुर्द पहुंचा और रेलवे स्टेशन पर उतर कर जब मैंने करीब 25 साल के एक नौजवान से नीलम के घर का रास्ता पूछा, तो उसने कहा, “सामने वाली सड़क पर चलते जाएं. फिर आधा किलोमीटर रे बाद गांव के अंदर जा कर किसी से भी उनका पता पूछ लीजिएगा.”

गांव के 70 वर्षीय फूल सिंह ने जोर देकर मुझसे कहा, “हमारी नीलम आतंकवादी नहीं, देश भक्त है. उसने हमेशा इलाके के गरीब मजदूरों के मुद्दे उठाए हैं. उसने कोई गलत काम नहीं किया. गलत है तो मोदी सरकार, जिसने महंगाई और बेरोजगारी पैदा की है.”

नीलम कुम्हार, अतिपिछड़ी, जाति की हैं. उनके पिता, कोर सिंह, हलवाई हैं जो शादियों और अन्य कार्यक्रमों में मिठाइयां बनाते हैं. नीलम के भाई रामनिवास और कुलदीप दूध का काम करते हैं.

नीलम के इरादों के बारे में परिवार अनजान था. वह घर से 11 दिसंबर को यह कह कर निकली थीं कि हिसार जा रही हैं. परिवार को उनकी खबर बड़े भाई कुलदीप ने टीवी पर देख कर फोन पर बताई थी. रामनिवास बताते हैं कि नीलम ने घासो खुर्द और साथ के आसपास के अन्य गांवों में मनरेगा मजदूरों के मुद्दे उठाए और उन्हें काम दिलवाया है और औरतों को मेट बनवाया. नीलम किसान आंदोलन में भी काफी सक्रिय रहीं और कुश्ती खिलाडीयों के आंदोलन में भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया.

साधारण से मकान की पहली मंजिल पर बने दो कमरों में से एक नीलम का है. उनके कमरे में भगत सिंह, बी. आर. आंबेडकर, पूर्व राष्ट्रपति ए. पी. जे. अब्दुल कलाम की फोटों और विश्व मानचित्र लगे हैं. परिवार वाले बताते हैं कि नीलम की गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने दो बार घर पर छापा मारा और नीलम के कमरे से कई किताबें, डायरी और अन्य दस्तावेज ले गई. दूसरे कमरे में एक खाट पर नीलम की 57 वर्षीय मां सरस्वती देवी बैठी थीं. वह मुझसे बोलीं, “बेटा ज्यादा बात तो मेरे इस बेटे से ही कर लेना पर मैं इतना बताती हूं कि मेरी बेटी ने कोई गलत काम नहीं किया और न ही उसका कोई गलत इरादा था. यदि उनका इरादा गलत होता, तो वे खतरनाक हथियार लेकर जाते. नीलम तो वहां नारे लगा रही थी. क्या नारे लगाना भी अपराध है?” मां सरस्वती ने बताया कि नीलम को पढ़ने का शौक बचपन से था और वह उनके सभी बच्चों में सबसे होशियार हैं.

नीलम ने गांव के स्कूल से आठवीं पास करने के बाद नौवीं से बी.ए. तक की पढ़ाई नजदीकी गैंडा खेड़ा के गुरुकुल से की. उसने बी. एड., एम.एड., सीटीईटी, एम. फिल और नेट की परीक्षा पास की है. मां का कहना था कि इतना पढ़ कर भी उसे रोजगार नहीं मिला तो इसमें सरकार की भी तो गलती है. उन्होंने कहा, “यदि उसे रोजगार मिला होता वह क्यों ऐसा करती? उसने वहां बेरोजगारी का मुद्दा ही तो उठाया था.”

नीलम भारतीय सिविल सेवा परीक्षा में तीन बार बैठीं पर सफल न हो सकीं. उनकी मां ने बताया कि 2015 में नीलम घर की पहली मंजिल की सीढ़ी से गिर गई थीं जिससे उनकी रीढ़ की हड्डी में चोट लग गई थी. तीन साल तक वह बिस्तर पर पड़ी रहीं पर पढ़ाई नहीं छोड़ी.

जब मैने नीलम की मां से पूछा कि आप नीलम के सामाजिक कार्य को कैसे देखती हैं, तो उनका कहना था, “मैं उसे कहती कि बेटा क्यों लोगों के कामों में उलझी रहती हैं. तू शादी कर के खुशी-खुशी बस जा, तो वह मुझे जवाब देती कि मां शादी वालों के हालात देख कर तो मैं खुद परेशान हूं. इसलिए मेरा शादी को मन नहीं करता. दूसरी बात मां ये लोग गैर नहीं, अपने गांव, देश के लोग हैं जिनके मुद्दे मैं उठाती हूं. यह मेरा फर्ज बनता है.

नीलम के भाई रामनिवास ने बताया कि नीलम तीन-चार सालों से सामाजिक कार्यों में लगी हुई थीं. किसान आंदोलन ने उन्हें और भी ऊर्जा दी. वह गरीबों, मजदूरों, दलितों के मुद्दों को लेकर और भी सक्रिय हो गईं. शुरुआत में गांव के लोग, खासकर अनुसूचित और पिछड़े वर्ग के लोग, अपनी समस्या नीलम के पास लेकर आते थे क्योंकि इस समाज की सबसे पढ़ी-लिखीं नीलम थीं.

रामनिवास को अपनी बहन और उसके साथियों द्वारा संसद में की गई कार्रवाई गलत नहीं लगती. वह कहते हैं, “उनका कोई गलत इरादा नहीं था इसीलिए वे धुएं वाले पटाखे लेकर गए. वे बीजेपी सांसद के पास पर अंदर गए थे. यदि यह इतनी भी बड़ी सुरक्षा में खामी हुई है तो कार्रवाई बीजेपी सांसद पर भी होनी चाहिए. नैतिक आधार पर जिम्मेवारी लेते हुए गृहमंत्री अमित शाह को भी इस्तीफा देना चाहिए. सिर्फ इन नौजवानों पर ही संगीन धाराएं क्यों लगे?”

नीलम ने पहले एक ब्राह्मण के मकान में लाइब्रेरी खोली थी. लेकिन उस लाइब्रेरी में लगीं बाबा साहब आंबेडकर और सावित्री बाई फुले की तस्वीरों पर ब्राह्मणों ने अपमानजनक टिप्पणीयां कीं जिसे नीलम सहन न कर सकी और वह लाइब्रेरी घर ले आईं. अब यह लाइब्रेरी गांव के बाल्मीकि चौपाल में एक कमरे में है. नीलम इस लाइब्रेरी में गरीब बच्चों को मुफ्त पढ़ाती थीं. इसके अलावा गीत-संगीत और बच्चों की गतिविधियां करवाती थीं. लाइब्रेरी में और गांव स्तर पर भी वह 15 अगस्त, 26 जनवरी, भगत सिंह, आंबेडकर और सावित्री बाई फुले के दिन मनाती थीं. गांव वाले, खासकर दलित-मजदूर और पिछड़े समाज के लोग इन कार्यक्रमों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते थे.

लाइब्रेरी के बारे में नीलम के एक मजदूर साथी ने मुझे बताया कि वहां की बैंच, कुर्सियां और किताबें गांव के लोगों से चंदा इकठ्ठा कर खरीदी गई हैं और कुछ किताबें लोगों और संस्थाओं ने भेंट की थीं.

लाइब्रेरी में नियमित रूप से आने वाले गांव के 18 वर्षीय लड़के समीर ने मुझे बताया, “नीलम बुआ जी हमें यहां हमारे सिलेबस के विषयों के अलावा साहित्य और हमारी रुचि के हिसाब से चीजें करने को प्रेरित करती थी. हम यहां हमारे देश के महान नेताओं के दिन भी मनाते थे.”

रामनिवास ने मनरेगा मजदूरों के बीच नीलम के काम का उल्लेख करते हुए बताया, “हमारे गांव में जो पहले मनरेगा मेट थे वह ब्राह्मण जाति से थे. उनके होते हुए मनरेगा में बड़ी गड़बड़ी होती थी. मजदूरों के खाते में पैसे नहीं आते थे. उन्हें काम नहीं मिलता था और दिहाड़ी काट ली जाती थी. पंडित जी के नजदीकी लोग, जो मजदूर भी नहीं थे, की कागजों में हाजरी लगा कर उनके खाते में पैसे डाल दिए जाते थे. नीलम ने यह मुद्दा जोर-शोर से उठाया और गांव के मजदूरों को संगठित किया.”

नीलम की इस सक्रियता से नाराज उच्च जाति वालों ने उन पर पीछे हटने का दबाव बनाया. वे उनके पिता को आकर धमकाते कि बेटी को समझाओ. लेकिन नीलम पीछे नहीं हटीं. उस मेट के विरुद्ध सी. एम. विंडो में किसी ने शिकायत की जिसके कारण वह मेट अपने आप पीछे हट गया. नीलम ने उसके बाद घासो खुर्द और घासो कलां के दलित मर्दों के साथ ही औरतों को भी मनरेगा में मेट बनाया. इन गांवों में किसी को इस बात का ज्ञान नहीं था कि मनरेगा में कोई औरत भी मेट बन सकती है. मनरेगा मजदूरों को उनके अधिकारों के बारे नीलम ने ही जागरूक किया. अपने गांव के अलावा नीलम ने साथ के गांव घासो कलां, दाब्डी कलां, सफा खेड़ी, तारखा, करसिंदू, खगरपुरा और अन्य गांवों में भी मनरेगा मजदूरों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया और उन्हें अधिकारों के प्रति जागरूक किया.”

घासो खुर्द की पहली मनरेगा औरत मेट मोनिया ने मुझे बताया, “मेट बन कर मेरे अंदर आत्मविश्वास बढ़ा है. मेरे अंदर घर से बाहर निकल कर चार लोगों में बोलने का हौसला आया है. मैं और गांव की अन्य मनरेगा मजदूर औरतों को अपने अधिकारों के बारे पता लगा है. अब कोई हमारी दिहाड़ी मार नहीं सकता. मुझे लोगों से बात करने का ढंग आ गया.” मोनिया ने हंसते हुए जोड़ा, “इसी आत्मविश्वास के कारण मैं आप से बिना घूंघट निकाले बात कर रही हूं. यह सब हमारी नीलम बहन के कारण ही हो सका.” मोनिया ने मुझसे कहा, “नीलम अन्य आंदोलनों में भी गांव की औरतों को ले जाती थीं. उन्होंने कुछ भी गलत नहीं किया है और मुझे यकीन है कि वह बहुत जल्द फिर हमारे बीच आएगीं.”

गांव की एक बजुर्ग मनरेगा मजदूर महिला संतरो देवी ने बताया कि पहले मेट ने उनकी कितनी ही दिहाड़ी मार ली थी. उन्होंने बताया, “जब से मेट का अधिकार हम गरीबों के पास आया है, मुझे मेरे पैसे मिल जाते हैं.”

कई प्रदर्शनों और आंदोलनों में नीलम के साथ रहे गांव के मजदूर वरिंदर सिंह ने मुझे बताया, “मैं गरीब दलित परिवार से हूं. मनरेगा यूनियन में काम करता हूं. नीलम एक बहादुर क्रांतिकारी लड़की हैं. नीलम के कारण मनरेगा का रुका हुआ काम हमें मिला है.” वरिंदर सिंह ने मुझे बताया कि नीलम ने उनके जैसे बहुत से लोगों को संगठित किया. इस कारण गांव के ब्राह्मणों ने उसका विरोध भी किया. शुरुआत में एक लड़की होने के कारण उसे गांव में ही बहुत सारी चुनौतियों का सामना करना पड़ा. लोग उन्हें गंदी नजर से देखते थे. कइयों को उनका गरीब मजदूरों के साथ खड़ा होना खटकने लगा. साथ वाले गांव घासो कलां में उन्हें गाड़ी के नीचे कुचलने की भी कोशिश हुई. उस घटना के बाद वह जब कहीं जाती, तो अनुसूचित और पिछड़ी जाति के चार-पांच लोग उनके साथ जरूर जाते. नीलम के साथियों को एहसास था कि यदि उन्हें कुछ हो गया तो उनकी आवाज कौन उठाएगा.

कापड़ो कलां गांव में एक बंधुआ मजदूर का कत्ल कर सड़क पर फेंक दिए जाने के बाद मृतक मजदूर को इंसाफ दिलाने के लिए भी नीलम ने आंदोलन किया. नीलम और उस मजदूर परिवार पर लाठीचार्ज तक हुआ. गांव वालों ने बताया कि इसी तरह करीब दो साल पहले धमतान साहिब गांव में एक मजदूर का बिजली का बिल एक लाख रुपए आ गया था. इस सदमे में मजदूर ने खुदकुशी कर ली थी. उसकी पत्नी पहले ही मर चुकी थी. उस मजदूर का एक बच्चा था, उसको इंसाफ दिलाने के लिए जो संघर्ष हुआ नीलम ने उस में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया.

वरिंदर ने मुझे बताया कि नीलम का गांव के दलितों और पिछड़ों के बीच बड़ा आधार होने के कारण किसान नेता नीलम के पास आए थे ताकि दलितों और मजदूरों का समर्थन आंदोलन को मिल सके. नीलम गांव से दलितों-मजदूरों को आंदोलन में ले कर आईं. कुश्ती खिलाड़ियों के समर्थन में वह अपने मजदूर साथियों के साथ जंतर-मंतर भी गईं और एक बार गिरफ्तारी भी दी. वरिंदर सिंह का कहना है कि गांव में ब्राह्मणों को छोड़ कर सभी नीलम के पक्ष में आवाज बुलंद कर रहे हैं. किसान नेताओं के समर्थन के बाद गांव के जाट भी नीलम और उसके साथियों के पक्ष में आए हैं. नीलम आज़ाद और उनके साथियों के पक्ष में कई किसान, मजदूर, जन संगठन और खाप पंचायतें सामने आए हैं. पंजाब के सबसे बड़े किसान संगठन भारतीय किसान यूनियन (एकता-उगराहां), जिसकी कुछ इकाइयां हरियाणा में भी है, ने गत 18 दिसंबर को नीलम के गांव घासो खुर्द में नीलम और उनके साथियों की रिहाई की मांग करते हुए एक रैली निकाली. इसके बाद संयुक्त किसान मोर्चा ने भी नीलम और उसके साथियों पर लगी यू.ए.पी.ए. की धाराएं हटाने की मांग की है. गत 27 दिसंबर को कई सामाजिक संगठनों ने मिल कर उनकी गिरफ्तारी और उन पर लगी संगीन धाराओं के विरुद्ध रोष प्रकट किया. 29 दिसंबर को नरवाना में भी कई सामाजिक संगठनों ने बड़ी संख्या में एकजुट हो कर अपनी नीलम के पक्ष में आवाज बुलंद की है.

नीलम के गांव के ही भारतीय किसान यूनियन (एकता-उगराहां) के नेता महावीर घासो ने मुझे कहा, “नीलम हमारे गांव की पढ़ी-लिखी और लोगों के लिए संघर्ष करने वाली लड़की है. नौजवानों द्वारा बहरे कानों को सुनाने के लिए उठाया गया यह कदम एक जायज विरोध की अभिव्यक्ति है. किसी समय यह कदम भगत सिंह और उनके साथियों ने भी उठाया था.”
पंजाब के मानव अधिकार कार्यकर्ता, लेखक और शहीद भगत सिंह के भांजे प्रोफेसर जगमोहन ने मुझे फोन पर बताया कि 8 अप्रैल 1983 को केंद्रीय असेंबली बम कांड की वर्षगांठ पर उनकी माता जी और भगत सिंह की सगी बहन बीबी अमर कौर ने उस वक्त लोकसभा में पारित जन विरोधी कानूनों के विरोध में दर्शक गैलरी से पर्चे फेंके थे लेकिन उन पर कोई मुकदमा नहीं चलाया गया था.

परिवार का कहना था कि नीलम का संबंध किसी संगठन से नहीं है. नीलम की गिरफ्तारी के बाद उनके भाई ने सिर्फ एक बार उनको दिल्ली में देखा था. परिवार का कहना है कि अभी तक पुलिस ने उन्हें एफआइआर की कॉपी नहीं दी है. दूसरी तरफ नीलम और उसके साथियों के पॉलीग्राफ टेस्ट करवाने के लिए दिल्ली पुलिस ने अदालत का रुख किया है.

नीलम क्या कभी कांग्रेस पार्टी की समर्थक रही हैं, जैसा कि बीजेपी के कुछ नेता प्रचार कर रहे हैं? मेरे इस सवाल के जवाब में रामनिवास ने बताया, “नीलम द्वारा एक किसान धरने में दिए भाषण को बीजेपी वाले तोड़-मरोड़ कर चला रहे हैं. असल में उस धरने में नीलम यह कह रही हैं कि मोदी सरकार बड़ी तानाशाह है, किसी की नहीं सुनती: न किसान की, न मजदूर की, न मुलाजिम की. इससे अच्छी तो पिछली कांग्रेस और लोक दल आदि की सरकारें थीं. बस उसने यही कहा था.”

जब मैंने रामनिवास से पूछा कि इन दिनों परिवार को कैसी दिक्कतें पेश आ रही हैं? तो वह बोले, “हम तो नीलम के साथ हैं. गांव में भी 80 फीसदी लोग हमारे साथ हैं. मेरे पिता जी की कहानी थोड़ी सी अलग है. जब सवर्ण जाति वाले नीलम की शिकायत लेकर पिता जी के पास आते थे, तो वह नीलम पर गुस्सा करते थे. वह नीलम की गतिविधियों से कोई खास खुश नहीं थे. नीलम भी पीछे हटने वाली नहीं थी. फिर हमने इस झगड़े को रूटीन मान लिया.” जब मैं रामनिवास और नीलम की मां सरस्वती से बातें कर रहा था तो नीलम के पिता दो बार कमरे में आए और बिना कुछ कहे अलमारी से कुछ लेकर चले गए. रामनिवास ने आगे कहा, “इन दिनों जो मीडिया में चल रहा है और सवर्ण जाति के लोग जो बातें कर रहे हैं, उससे पिता जी परेशान हैं.”

शिव इंदर सिंह स्वतंत्र पत्रकार और पंजाबी वेबसाइट सूही सवेर के मुख्य संपादक हैं.

Exit mobile version