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मजदूर आंदोलन में सोशलिस्ट तहरीक की भूमिका,

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प्रोफेसर राजकुमार जैन

फोटो में: जयप्रकाश नारायण, उनकी पत्नी प्रभावती देवी, युसूफ मेहर अली, डॉ राममनोहर लोहिया।
भाग (3)

प्रोफेसर राजकुमार जैन के इस लेख के पहले दो भागों में आप पढ़ चुके हैं कि किस प्रकार कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के स्थापना सम्मेलन में कांग्रेस के एजेंडा पर मज़दूरों और किसानों के हितों के सर्वोपरि रखने के प्रयास शुरू हो गए थे और फिर आपने पढ़ा कि कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के प्रथम सम्मेलन में पार्टी की नीतियों ,कार्यक्रमों, सिद्धांतों की विस्तार से व्याख्या की गई और मज़दूरों से संबंधित प्रस्ताव में किस तरह से बहुत से प्रगतिशील कदमों की सिफारिश की गई। इस किश्त में डॉ लोहिया और जे पी की मज़दूरों और कामगारों के लिए प्रतिबद्धता की बानगी मिलती है। आइए पढ़ते हैं तीसरी किश्त।

हिंदुस्तान की सोशलिस्ट तहरीक के दो बड़े नेता जयप्रकाश नारायण, डॉ राममनोहर लोहिया ऐसे नेता थे जो जंगे आजादी के लिए लड़ते हुए भी मजदूरो, कामगारों के हक्कूको के लिए मुसलसल आवाज उठा रहे थे। हालांकि कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी जिसके वह सदस्य थे उसके बहुत सारे नेताओं को यह पसंद नहीं था उनका कहना था कि केवल अंग्रेजी हुकूमत से आजादी पाने तक ही हमको महदूद रहना चाहिए, क्योंकि इस तरह की मांगों से बड़े जमींदार और पूंजीपति कांग्रेस से छिटक जाएंगे। परंतु जयप्रकाश और लोहिया कहां मानने वाले थे?

मजदूर संगठन और आंदोलन के बारे में सोशलिस्ट नेता डॉ राममनोहर लोहिया ने 5 दिसंबर 1936 को बिहार प्रांतीय कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के सम्मेलन में अध्यक्ष पद से दिए गए भाषण में कहा,

‘मजदूर संगठन और आयोजन साम्राज्य विरोधी मोर्चे की एक बहुत बड़ी शक्ति हैl मजदूर ही एक ऐसी जमात है जो साम्राज्यवाद के आर्थिक बंदोबस्त के बिल्कुल बाहर हैl उसके पास न जमीन है, और न ही पूंजी, जिसकी हिफाजत साम्राज्यवाद करता हो, जिसके लुट जाने के डर से मजदूर सीधे और पूरे साम्राज्य विरोध से हिचकिचाएं। इसके अलावा एक ही जगह बड़ी तादाद में मजदूर उद्योग धंधों मे लगे हुए हैं। बतौर मिसाल, जमशेदपुर के लोह इस्पात के कारखाने में एक लाख से भी ज्यादा मजदूर एकत्रित होकर काम करते हैं। इनमें सहज ही एका होता है, इनकी तकलीफें एक हैं, इच्छाएं एक है, ज़रूरतें एक है। कम मजदूरी, ज्यादा घंटे, अत्याचार और दुर्व्यवहार के प्रश्नों को उठाकर मजदूर अपने-अपने मजबूत संगठन बनाते हैं। इनके संगठन कानूनी और बेकानूनी जुल्म के शिकार बनते हैं । इसका एक बड़ा कारण है मजदूर संगठन साम्राज्यवाद के आर्थिक बंदोबस्त के बड़े वजनी और महत्वपूर्ण स्थलों पर आघात करता है। रेल, जहाज, बंदरगाह, लोहे के कारखाने, तारघर और टेलीफोन, ऐसे कल कारखाने जिनमे इनका रुपया लगा हुआ है और कुछ हद तक सभी कल कारखाने, साम्राज्यवाद के आर्थिक बंदोबस्त के महत्वपूर्ण स्थल है इनमें काम करने वाले मजदूर अगर अपना संगठन और आंदोलन करते हैं तो साम्राज्यवाद को बड़ी चोट पहुंचती है।

 इसी तरह जमालपुर का रेल कारखाना है। रेल मजदूरो का संगठन तो एक देशव्यापी संगठन होता है . किसी एक जगह की कमजोरी सारे संगठन को कमजोर बना देती है। जमालपुर को भी मुंबई से हावड़ा तक के मजदूर संगठन की कतार में खड़ा होना होगा। चीनी के कारखाने भी काफी हैं। इन कारखानों के मजदूर तो किसान ही है और इसलिए इनमें किए गए प्रचार, संगठन और आंदोलन का एक और फायदा है।

मजदूर आंदोलन की एक विशेषता है, यूं तो मजदूर संगठन (ट्रेड यूनियन) मजदूरों की कुछ तात्कालिक मांगो, यानी मजदूरी काम के घंटे के सवाल की बुनियाद पर बनता है। फिर भी मजदूर आंदोलन की वर्ग- चेतना और उसका वर्ग -लक्ष्य ऊंचे सिरे का होता है। जैसे-जैसे आंदोलन नीची-नीची मंजिलें तय करता है, वैसे-वैसे उसका मकसद देश की राजकीय सत्ता और आर्थिक जीवन पर अपना आधिपत्य जमाना होता है। मजदूरों की राजकीय सत्ता का लक्ष्य पूँजीवाद और उनके राजकीय बंदोबस्त को खत्म करना होता है। इसलिए हम देखते हैं कि मजदूर आंदोलन का लक्ष्य साम्राज्य विरोध से और आगे यानी समाजवाद है।

हमारी आजादी की लड़ाई का नेतृत्व न राजा, न जमींदार, न पूंजीपति कर सकते हैं। ये तबके साम्राज्यवादी प्रबंध के भीतर है। हमारी सफल लड़ाई का नेतृत्व तो सिर्फ ऐसा हो सकता है जो संग्राम के नए कार्यक्रम और रूप को काम में ला सके। ऐसा नेतृत्व तो सिर्फ मजदूर वर्ग की विचारधारा का हो सकता है। कांग्रेस में साम्राज्यवाद की नीति के उपायों  का सफल मुकाबला करने की ताकत तभी होगी जब वह अपना कार्यक्रम और तरीका पहले बतलाये गए उन्नतिशील तब्दीलियां के मुताबिक बनाएं।

सोशलिस्‍टों ने कामगारों के हकों के लिए उन पर हो रही बेइंसाफी के खिलाफ,सरकारों ,मालिकों के खिलाफ तो लड़ाई लड़ी ही हैं, परन्‍तु ऐसी भी कई नजीरें है जहाँ उन्‍होंने अपनी ही सरकारों के द्वारा किये गए जुल्‍म की मुख्‍लाफत करने में कभी गुरेज नहीं किया।

1954 में केरल में पहली बार पत्तम थानु पिल्लई के नेत्‍तृव में सोशलिस्‍टों की गैर-कोंग्रसी सरकार बनी थी। 11 अगस्‍त 1954 को त्रावणकोर कोच्‍ची में प्रदशर्नकारियों पर पुलिस की गोलियों से कई लोग मारे गये। उत्‍तर-प्रदेश में जमींदारों के खिलाफ भूमिहीन मजदूरों के संघर्ष का नेत्तृव करते हुए डॉ. राममनोहर लोहिया गिरफ्तार होकर इलाहाबाद जेल में बंदी थे। लोहिया को जैसे ही केरल की खबर मिली उन्‍होंने जेल से ही मुख्‍यमंत्री पत्तम थानु पिल्लई से त्‍याग-पत्र देने की मांग कर दी। लोहिया का मानना था कि किसी भी अहिंसक प्रदर्शन, सत्‍याग्रह पर गोली नही चलनी चाहिए। . उनका कहना था कि फिर काग्रेंसी तथा सोशलिस्‍टों की सरकार में क्‍या फर्क रहेगा ? मुख्‍यमंत्री ने इस्‍तीफा देने से इन्‍कार कर दिया, पार्टी में भी इस सवाल पर मतभेद था . लोहिया ने इसके विरोध में पार्टी के महामंत्री पद तथा राष्‍ट्रीय समिति से भी इस्‍तीफा दे दिया था। इसी सवाल पर पार्टी में टूट तक हो गई।

  *हिन्‍दुस्‍तान के मजूदर आंदोलन में सोशलिस्‍टों ने अन्‍य मजूदर संगठनों से अलग एक ओर भूमिका भी निभाई, ज्‍यादातर मजूदर यूनियन कामगारों के मसले, उनके बेहतर वेतन-भत्‍ते, काम के घण्‍टे शिक्षा-चिकित्‍सा, स्‍थायी नौकरी ,पेंशन वेतन समानता, फैक्‍टी मालिकों दफ्तरों अफसरों  बगैरह के सवालों पर संघर्ष करती रही है. सोशलिस्‍ट इन सवालों पर तो लड़ते रहे ही हैं, परन्‍तु साथ ही साथ मजदूरों को नागरिक अधिकारों, दूसरें तपको जन-संघर्षों जुल्‍म ज्यादती  के खिलाफ भी लामबन्‍द करती रहे है।  देश-भक्ति के सवाल पर भी मजदूर आंदोलन को  लड़ने का जरिया इन्‍होंने बनाया है।*

जंगे -आजादी के सिपहसालार सोशलिस्‍ट तहरीक के जन्‍मदाताओं में से एक जयप्रकाश जी की पहचान एक मजदूर नेता के रूप में भी इतिहास में दर्ज हैं।. 1930 में जयप्रकाश जी को कांग्रेस अध्‍यक्ष पं. जवाहरलाल नेहरू ने बुलाकर कांग्रेस की मजदूर सेल की जिम्‍मेदारी संभालने को कहा, मजदूर आंदोलन के साथ कांग्रेस का रिश्ता बनाए रखने के उद्देश्य से इसकी स्‍थापना की थी। जयप्रकाश जी ने राष्‍टीय और अन्‍तर्राष्‍ट्रीय- टेड्र यूनयनो से अपना सम्पर्क स्थापित किया। इस सिलसिले में उन्‍होने ब्रिटिश लेबर पार्टी तथा टेड्र-यूनियन कांग्रेस से भी सम्पर्क स्‍थापित किया। उन्‍होंने औद्योगिक श्रमिकों की समस्‍या पर अपनी रपट प्रस्‍तुत की।

  • जयप्रकाश नारायण देशहित के लिए भी मजूदर यू‍नियन का उपयोग करते थे। 1939 में उन्‍होंने अंग्रेज सरकार के खिलाफ लोक आंदोलन का नेत्तृव किया। टाटा स्‍टील कम्‍पनी में हड़ताल करवाकर यह प्रयास किया कि अंगेज को स्‍टील आदि न पहुच सकें। जिसके लिए उन्होंने किराया और राजस्‍व रोकने का अभियान चलाया। इस कारण ब्रिटिश सरकार ने उनकों गिरफ्तार कर 9 महीने की सजा सुना दी। आजादी की लड़ाई में हजारीबाग जेल में बंद जयप्रकाश नारायण ने जेल से निकल भागने के बाद स्वतंत्रता सेनानियों के नाम दो पत्र लिखें। जिसमें उन्होंने कामगार और मजदूरों के लिए लिखा कि ‘मेहनतकशो का पूर्ण विद्रोह ही हमारा उद्देश्य है। अतः व्यापक तकनीकी काम के साथ हमें मेहनतकशों, गांवों के किसानों और कारखानों, खदानों, रेलवे एवं अन्य जगहों के मजदूरों के बीच सघन काम करना है। वर्तमान मांगों को पूरा करने के उद्देश्य से लड़ने के लिए हम उन्हें संगठित करें, उनमे से चुने हुंए लोगों को अपने क्रियाकलापों के लिए भर्ती करें और उन्हें राजनीतिक और तकनीक रूप से प्रशिक्षित करें। मजदूरों के पैसों का रोज गिरता हुआ मूल्य, क्या ये सब सरकार के युद्ध प्रयत्नों के लिए मजदूरों के दिल में हमदर्दी पैदा करेंगे? यदि दूसरी खुली बगावत हुई तो उसमे मजदूरो का हिस्सा पिछले अगस्त सितंबर से कम नहीं बल्कि अधिक ही रहेगा”। ‌ *जारी है----*

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