एस पी मित्तल, अजमेर
पांच माह बाद होने वाले चार राज्य राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना के विधानसभा चुनाव को देखते हुए कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्किार्जुन खडग़े ने 26 और 27 मई को दिल्ली में इन राज्यों के कांग्रेस नेताओं की बैठक बुलाई है। इस बैठक में राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा, प्रदेश प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा के साथ साथ चारों सह प्रभारियों को भी आमंत्रित किया गया है। लेकिन पूर्व डिप्टी सीएम और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सचिन पायलट को बुलाने पर अभी भी संशय बना हुआ है। जानकार सूत्रों के अनुसार यदि 26 मई वाली बैठक में पायलट को शामिल नहीं किया जाता है तो फिर आगामी 11 जून से पायलट गहलोत सरकार के खिलाफ जन आंदोलन शुरू करेंगे। पायलट ने गत 11 मई को अजमेर से जनसंघर्ष पद यात्रा निकाली थी। इस यात्रा के समापन पर पायलट ने तीन मांगे रखी एक पूर्ववर्ती भाजपा सरकार के भ्रष्टाचार की जांच, दो प्रतियोगिता परीक्षा कराने वाली संस्था लोक सेवा आयोग को भंग किया जाए तथा तीन पेपर लीक के मामले की उच्च स्तरीय जांच हो। हालांकि पायलट की इन तीनों मांगों पर सीएम गहलोत की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं दी गई। लेकिन प्रदेश प्रभारी रंधावा ने मांगों को यह कह कर खारिज कर दिया कि पायलट ने भ्रष्टाचार के कोई सबूत नहीं दिए हैं। माना जा रहा है कि पिछले दिनों सीएम गहलोत और सचिन पायलट के बीच जो बयानबाजी हुई उससे और माहौल बिगड़ गया है। गहलोत ने पायलट से वन टू वन बात करने से इंकार कर दिया है। कांग्रेस आला कमान खासकर गांधी परिवार अभी भी चाहता है कि राजस्थान में सचिन पायलट और अशोक गहलोत मिलकर चुनाव लड़े। आला कमान ने पायलट की भूमिका को खारिज नहीं किया है। लेकिन सीएम गहलोत के सख्त रुख को देखते हुए हाईकमान के सामने भी पायलट को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है। यदि 26-27 मई वाली बैठक में सचिन पायलट उपस्थित नहीं रहते हैं तो फिर आगामी विधानसभा चुनाव में पायलट कांग्रेस के लिए नकारात्मक भूमिका में नजर आएंगे। जानकारों का मानना है कि पायलट आम आदमी पार्टी के लिए मुख्यमंत्री का चेहरा हो सकते हैं। आम पूरे दमखम से राजस्थान में चुनाव लडेगी। पायलट और आप के गठन बंधन में हनुमान बेनीवाल की आरएलपी भी शामिल होगी। बेनीवाल तो पहले ही अपनी पार्टी में पायलट का स्वागत कर चुके हैं। लेकिन यदि पायलट को दिल्ली की बैठक में बुलाया जाता है तो फिर राजस्थान की राजनीति में बदलाव देखने को मिलेगा। भले ही मुख्यमंत्री पद पर कोई बदलाव न हो, लेकिन संगठन में बदलाव तय है। देखना होगा कि चुनाव में पायलट की भूमिका को अशोक गहलोत किस प्रकार स्वीकार करते है।