सामाजिक प्रकल्पों की प्रेरणा स्रोत, अयोध्या के राम मंदिर आंदोलन से जुड़ी रहीं साध्वी ऋतंभरा इन दिनों शहर आई हैं। इंदौर से आत्मीयता रखने वालीं ऋतंभरा से भास्कर ने अनेक विषयों पर विशेष बातचीत की। कुछ खास अंश-
राम जन्मभूमि
जब आप कोई लंबा मार्ग तय कर मंजिल पाते हैं तो उसकी खुशी भी उतनी ही गहरी होती है। मार्ग के जितने कष्ट, पीड़ा और वेदनाएं होती हैं, वह सब मिट जाते हैं। मंदिर निर्माण प्रारंभ हुआ तो जैसे पैरों के छालों की जलन खत्म हो गई है। हृदय आनंद से भर गया।
कश्मीर फाइल्स
आप कल्पना कर सकते हैं कि उन्होंने वह समय कैसे बिताया होगा? पति के रक्त से सने हुए चावल खाने की मजबूरी कितनी भयानक होगी। किसी को आरी से चीर देना कितना दर्द भरा होगा। असल में कश्मीर फाइल्स में बहुत कम दिखाया गया है। जो हुआ है, वह और भी भयंकर था। राक्षस भी इस तरह का व्यवहार नहीं करते होंगे। देश ने सत्य को देखा। हर किसी में व्याकुलता थी कि आखिर सच क्या है?
कश्मीरी पंडित
अब सरकार की जिम्मेदारी है। जिन लोगों की पैतृक जमीन पर कब्जे हैं, उन्हें न्याय मिलना चाहिए। सुरक्षा देकर उन्हें वहां बसाया जाए। इन घटनाओं से पूरे समाज को सोचना होगा कि अब कभी भारत में जगह-जगह कश्मीर पैदा न हो।
सामाजिक प्रकल्प
अपनी परंपराओं का त्याग करने से ही हमारे सामने बहुत सारी विषमता खड़ी होती है। वृद्धों की उपेक्षा, महिलाओं का अपमान और बच्चों के बचपन को छीनना बेहद दुखद पहलू हैं। अब बच्चों को लोरी नहीं मिलती। सिर पर हाथ नहीं मिलता। इन सारी परिस्थितियों से उबरने का एकमात्र मार्ग है कि भारत सनातन व्यवस्था और आध्यात्मिक आधार के साथ दोबारा जीना प्रारंभ करे। पश्चिम के तौर-तरीके हमारे समाधान नहीं हो सकते। हमारी ऋषि परंपरा ने जो व्यवस्था दी है, हमें उसी पर चलना होगा।
महिला नेतृत्व
जो स्त्री घर में भूमिका अच्छे से निभा लेती है, मां होने की भूमिका अच्छे से निभा लेती है, परिवार संभाल लेती है और बाहर की जिम्मेदारियों को भी पूरा कर लेती है तो उसके लिए राजनीतिक, सामाजिक शिक्षा, चिकित्सा, अंतरिक्ष का कोई भी क्षेत्र मुश्किल नहीं है। वह सक्षम है। सामर्थ्य के बल पर आज वह हर मुकाम हासिल कर रही है।
और इंदौर से जुड़ाव
इंदौर से बहुत आत्मीयता है। इंदौर मेरी संघर्ष भूमि रहा है। यहां सेे जुड़े बहुत से संस्मरण हैं। राम जन्मभूमि आंदोलन। यहां हमारी गिरफ्तारी भी हुई थी। पहली कथा महू में हुई थी। पहले कथाओं का दौर चला फिर वात्सल्य में, मेरे बच्चे मुझसे जुड़े तो साध्वी ऋतंभरा से कब मैं दीदी मां बन गई पता ही नहीं चला। इंदौर आकर बहुत आनंद महसूस हो रहा है।