Site icon अग्नि आलोक

व्यंग:बतंगड़

Share

 विवेक मेहता

 बात का बतंगड़ बनाना इसे ही कहते हैं। खबर तो आपने भी पढ़ी होगी। दो रुप्पली वाली। अरे वही, महाराष्ट्र वाली‌। जिसमें एक किसान ने 5 क्विंटल प्याज बेचा जिसके उसे 2 रुपये मिले। भाई लोगों ने उसके, प्याज की बोरियों के, चेक के फोटो, व्यापारी का इंटरव्यू सब थोक के भाव में सोशल मीडिया, अखबारों में छाप छाप कर कितना बतंगड़ बना दिया। कितने रुपयों, समय पर पानी फेर दिया! किसान मांग कर रहे की न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलना चाहिए। सरकार की इच्छा थी कि कॉन्ट्रैक्ट पर फार्मिंग होना चाहिए। यानी जिसकी जितनी औकात, उसे उतना पैसा मिले। फिर चाहे वह दो रुप्पली ही क्यों ना हो! 

          प्याज के 502 रुपये में से ₹500 लाने ले जाने के खर्चों में चले गए तो इतना हो हल्ला! अभी तो सरकार इनकम टैक्स नहीं काटती, काटती तो क्या होता!

         वही विदेश में बैठी एक संस्था हिडंबना सा व्यवहार कर एक राष्ट्रीय व्यापारी की खुलेआम हरकतों को चोरी, धोखाधड़ी का नाम देकर उजागर कर देती और हजारों करोड़ों रुपए का उसे चूना लग जाता। इतना बतंगड़ तो उस सेठ ने भी नहीं किया। बस एक वीडियो जारी किया फिर भी उसे चूना लगता रहा उसका चूना तो दिखाई दिया, मगर उन लाखों लोगों की बात क्या जिनके करोड़ों धूल गए और वे भक्ति का फल मानकर चुपचाप है। 

        प्याज पर हो हल्ला हो रहा है। प्याज महंगा होता है तो रुलाता है। सरकार गिराता है। सस्ता हो रहा है तो भी सरकार खिसकाने की सोच रहे हैं। हद होती है यार!    

        पनामा पेपर में शेल कंपनियों का उल्लेख आता है। विरोधी आरोप लगाते हैं। सरकारी कंपनियां, सरकारी पैसों से प्राइवेट में चली जाती है। नमक का फर्ज अदा करने के लिए मोटी चमड़ी रखते हैं। सेठ को विश्व का सेठ बनाने के लिए नजरअंदाज करते हैं। सेठ को विदेशी हुक्मरानों से मंत्रियों की तरह मिला रहे थे, स्वागत करा रहे थे और 32000 शब्दों की, 106 पेज की रिपोर्ट ने हमारे सेठ को कई पायदान नीचे ला पटका। आप ही देखिए रिपोर्ट का एक पेज 1 बिलियन से भी ज्यादा महंगा पड़ा। और एक शब्द की कीमत का आप खुद ही अंदाजा लगा लीजिए। क्या यह राष्ट्र पर हमला नहीं है!

         यह तो सेठ को हुए नुकसान की बात है। 8 साल की मेहनत का फल एक रिपोर्ट के कारण धूल जाना क्या हम भूल जाएंगे! भाइयों-बहनों, देश के कितने ही लोगों के, कितने ही हजारों, लाखों, करोड़ों का नुकसान हुआ क्या हम चुपचाप सहन करेंगे! हम बात का बतंगड़ नहीं बनाते, काम करते हैं। आपदा को अवसर में बदलते हैं। पिछले साल आए एलआईसी के शेयर का भाव ₹949 से घटकर ₹582 रह गया फिर भी हमारी सरकारी कंपनी हार नहीं मान रही। सेठ के पीछे मजबूती से खड़ी है। बैंक ऑफ बड़ौदा भी ताल ठोक रहा है। और उधर देखिए, कितने पैसे वाले है किसान लोग। यह आपने और हमने सबने देखा है। पिछले साल ये सब लोग काम-धाम छोड़कर दिल्ली में धरने पर बैठे थे। ड्राई फ्रूट, लंगर उड़ा रहे थे। 5 क्विंटल प्याज के 2 रुपये मिले तो बात का बतंगड़ बना रहे हैं। इन्हें देश को कभी माफ करना चाहिए? जवाब दीजिए।

Exit mobile version