राकेश अचल
लोकसभा चुनाव 2024 का आधिकारिक कार्यक्रम घोषित होने से पहले भाजपा ने 195 प्रत्याशियों की सूची घोषित कर दी। कांग्रेस हमेशा की तरह इस मामले में फिर पिछड़ गयी। कांग्रेस में निर्णय लेने की अपनी शैली है।अब आप कह सकते हैं अग्रो-अग्रो भाजपा । भाजपा की हमेशा आगे बने रहने की ललक ही है जो कांग्रेस को लगातार सत्ता से दूर रखे हैं।
भाजपा की पहली सूची में मप्र के तमाम दिग्गजों को टिकट दे दिया गया और अनेक का टिकट काट भी दिया गया। ये कतर-ब्योंत कोई नयी बात नहीं है। ये न हो तो नये लोगो को मौका ही न मिले। लेकिन भाजपा ने पहली सूची में मप्र के कुछ ऐसे कार्यकर्ताओं पर भी दांव लगाया है, जो किसी भी दृष्टि से जीतने लायक नहीं है।
मप्र में पिछले आम चुनाव में 29 में से 28 सीटें जीतीं थी, लेकिन पहली सूची से लगता है कि भाजपा इस बार मप्र के भरोसे नहीं है। या फिर भाजपा के पास ऐसा कोई जादू है जिसके बल पर किसी भी प्रत्याशी को जिताया जा सकता है। ग्वालियर – चंबल संभाग से ही शुरू करें तो मुरैना सीट से पूर्व विधायक शिवमंगल सिंह तोमर को प्रत्याशी बनाया गया है।
मुरैना से अब तक मप्र विधानसभा के नये अध्यक्ष नरेन्द्र सिंह तोमर सांसद थे। पार्टी ने तोमर को संसद से विधानसभा चुनाव में इस्तेमाल कर लिया। शिवमंगल इन्हीं नरेन्द्र सिंह तोमर के समर्थक हैं। शिवमंगल की छवि नरेन्द्र सिंह तोमर के एजेंट जैसी है। पार्टी में उनका अपना कोई खास वजन नहीं है। कांग्रेस शिवमंगल को आसानी से पराजित कर सकती हैं, लेकिन यदि मुरैना में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी खुद चुनाव लड़ें तो बात अलग है। क्योंकि मुरैना -श्योपुर संसदीय क्षेत्र में आने वाले 8 विधानसभा क्षेत्रों में से आधे पर कांग्रेस का कब्जा है।
भाजपा के गढ़ ग्वालियर सीट पर वर्तमान सांसद विवेक नारायण शेजवलकर का टिकट काट कर हाल ही में विधानसभा चुनाव हारे पूर्व मंत्री भारत सिंह कुशवाहा को प्रत्याशी बनाया है।भारत सिंह भी पूर्व केंद्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर के समर्थक हैं। मिडिल पास हैं।वे शेजवलकर के मुकाबले बेहतर कैसे मान लिए गए, ये समझना मुश्किल है। कांग्रेस यदि यहां समझदारी से प्रत्याशी लाए तो पासा पलटा जा सकता है। यहां भी मोदी जी का चेहरा दांव पर लगा दिया गया है।
गुना सीट से पिछले चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में चुनाव हारे केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को टिकट दिया गया है। सिंधिया को हराने वाले भाजपा के वर्तमान सांसद केपी सिंह ही नहीं भाजपा के तमाम कार्यकर्ता भी अवाक हैं।जिन कार्यकर्ताओं ने सिंधिया को हराया था उन्ही के कंधों पर अब सिंधिया को जिताने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। जाहिर है भाजपा अपने कार्यकर्ताओं को बंधुआ समझती है।
आपको याद होगा कि भाजपा ने 2020 में कांग्रेस से भाजपा में आए ज्योतिरादित्य सिंधिया इस समय राज्य सभा के सदस्य हैं। उनके स्थान पर सिंधिया के बेटे या बुआ को भी चुनाव लड़ाकर जीत तय की जा सकती थी, लेकिन ऐसा नहीं किया गया।अब सिंधिया के बेटे को पांच साल और प्रतीक्षा करना होगी। इस चुनाव में सिंधियाशाही की अग्निपरीक्षा है। ज्योतिरादित्य सिंधिया को खुद भी जीतना है और बाकी की तीन सीटें भी जिताना है।
भाजपा के शीर्ष नेता चाहकर भी पूर्व मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान को मैदान से नहीं हटा सके । फग्गनसिंह कुलस्ते की जरूरत भाजपा को फिर पड़ी। भोपाल में स्थानीय कार्यकर्ताओं की भावनाओं का सम्मान करते हुए पूर्व महापौर आलोक शर्मा को प्रत्याशी बनाना पड़ा। जाहिर है कि भाजपा नेतृत्व पर मिशन 400 का भारी दबाव है।
भाजपा को मप्र की सभी 29 सीटों पर विजय के लिए अब जादू ही करना होगा, अन्यथा खजुराहो सीट से भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा भी उलझ सकते हैं। कांग्रेस ने ये सीट समाजवादी पार्टी को दी है। दोनों मिलकर चुनौती तो दे ही सकते हैं। उन्हें भी मोदी नाम ही जिता सकता है।
मप्र की राजनीति की धुरी रहे शिवराज सिंह चौहान ने भोपाल में अपने खास सिपहसालार आलोक शर्मा की लोकसभा में इंट्री सुनिश्चित करने का रास्ता बना दिया तो होशंगाबाद सीट से अपने समर्थक दर्शन सिंह चौधरी को भी टिकट दिला दिया। चौधरी इन दिनों भाजपा किसान मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष हैं और उनके ही समाज (किरार) के हैं। राजगढ़ सीट से सांसद रोडमल नागर को भी पुन: टिकट दिलाने में वे सफल रहे। नागर भी किरार समाज से आते हैं।
सागर से लता वानखेड़े को टिकट दिलाने में भी तोमर-शिवराज की जोड़ी की ही भूमिका रही है। खरगोन सांसद गजेंद्र सिंह के भारी विरोध के बाद भी दोनों नेताओं ने उन्हें फिर लोकसभा का टिकट दिलवा दिया। सतना से विधानसभा चुनाव में पराजय झेलने वाले गणेश सिंह के लिए भी शिवराज ने ही जोर लगाया।
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा अपने समर्थक आशीष दुबे को जबलपुर, सीधी से राजेश मिश्रा, रतलाम से अनीता चौहान को टिकट दिलाने में सफल रहे। केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के कोटे में उनके अपने टिकट के अलावा कुछ नहीं है। टिकट वितरण में सिंधिया को उनकी हैसियत दिखा दी गई। भले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें अपना दामाद कहा था लेकिन दामाद को उनके अपने टिकट के अलावा दिया कुछ नहीं। इसे कहते है भई गति सांप – छछूंदर केरी ।