कलीम सिद्दीकी
छह फरवरी 2023 को अहमदाबाद स्थित देश के पहले स्वयं सहायाता समूह सेवा (सेल्फ एंप्लाइड वूमेन एसोसिएशन) की 50वीं वर्षगांठ का समारोह था। इस समारोह में अमेरिका की पूर्व विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन मुख्य मेहमान थीं। हिलेरी ने सेवा की नींव डालने वाली दिवंगत इला भट्ट को श्रद्धांजलि दी। इस मौके पर विक्टोरिया गार्डन में बने स्मारक का उद्घाटन किया, जहां 12 अप्रैल, 1972 में सेवा की महिलाओं ने पहली मीटिंग की थी। इन 50 वर्षों में सेवा ने गुजरात की महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए लंबा संघर्ष किया है।

दूध क्रांति से लेकर नमक बनाने तक का काम सेवा द्वारा बनाई गई महिला मंडली करती हैं। शुरुआती समय में सेवा शहरी महिलाओं का संगठन था। लेकिन समय के साथ सेवा ने अपना रुख गांव की ओर किया। अब हालात ये हैं कि इस संस्था ने शहरों से अधिक ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने में बड़ा योगदान दिया है।
1970 का साल दुग्ध क्रांति वाला वर्ष था। इस क्रांति का केंद्र गुजरात था जिसने भारत को विश्व में सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश बना दिया। सहकारिता के माध्यम से पशुपालकों को डेरियों से जोड़ा गया। उस समय दूध क्रांति के बावजूद महिलाओं की भूमिका गोबर उठाने और दूध दुहने तक ही सीमित थी।
1972 में इलाबेन भट्ट ने महिलाओं को आत्म निर्भर बनाने के लिए सेवा नाम से संस्था शुरू की। लेकिन यह संस्था शहरी महिलाओं तक ही सिमटी हुई थी। सेवा शुरुआत में शहरी क्षेत्रों में बीड़ी,अगरबती, पतंग, गारमेंट काम करने वाली महिलाओं के आर्थिक शोषण और अन्याय के खिलाफ काम करती थीं।
1980 में सेवा ने अपना विस्तार ग्रामीण क्षेत्रों में किया। गुजरात में ग्रामीण महिलाएं खेत मजूरी, दूध दूहना और गोबर पाथने का काम करती थीं। लोटा सिस्टम से ग्रामीणों से बिचौलिए दूध खरीदते थे। दूध को बराबर लीटर में नापते नहीं थे। दूध को डेरी तक पुरुष ही पहुंचाते थे। 1980 में सेवा ने महिलाओं की पहली मंडली बनाई थी। सविताबेन पटेल और कई अन्य महिलाओं ने सेवा की पहली मंडली को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। पहली मंडली की वे अब अकेली सदस्य सेवा में कार्यरत हैं।
वर्तमान में 74 वर्षीय सविताबेन पटेल सेवा की मुख्य कार्यकारी अधिकारी का पद संभाल रही हैं। इसी के अंतर्गत हंसीबा शॉप आती है, जिसका वार्षिक टर्नओवर एक करोड़ का है। सविता बेन सेवा की स्थापना के समय से ही अहमदाबाद और गांधीनगर के ग्रामीण क्षेत्रों में महिला सहकारिता मंडल बनाने में बड़ी भूमिका निभाती रही हैं। सविता बेन बताती हैं, “80 के दशक में महिलाओं की मंडली बनाना एक बड़ा चुनौतीपूर्ण काम था। उस समय महिलाएं बिना अपने घर के पुरुष के मिलती नहीं थीं। दिन में पुरुष खेत या अपने काम पर गया हुआ होता था। महिलाओं में विश्वास की कमी थी। इसलिए हम मंडली बनाने के लिए गांव की महिलाओं से पुरुषों की उपस्थिति में रात में मिलते थे।” वह बताती हैं कि इसी का नतीजा था कि 1980 और 1984 के बीच अहमदाबाद और गांधीनगर जिले के ग्रामीण इलाकों की कई महिलाओं को मंडली में शामिल करने में सफलता मिली। उन्होंने बताया कि 1980 में पहली महिला सहकारी मंडली अहमदाबाद जिले की बावला तहसील के देव धोलेरा गांव में बनाई गई थी।
गांव के नाम से ही मंडली का नाम धोलेरा महिला दूध उत्पादक सहकारी मंडली लिमिटेड रखा गया था। शुरुआत में इस मंडली में 50 महिलाएं थीं। बाद में इनकी संख्या में तेजी से बढ़ोतरी हुई। सविता बेन ने बताया कि देव धोलेरा गांव की सफलता के बाद बलदाना, दुमाली, पेथापुर इत्यादि गांव की महिलाओं ने भी इसमें अपनी रुचि दिखाई और इसी का परिणाम था कि इन गांवोंं में भी सहकारी मंडली का गठन किया गया। यह ध्यान देने वाली बात है कि 1980 से 84 के बीच 15 रजिस्टर्ड महिला सहकारी मंडली बनाने में सफलता मिली।
सविता बेन आगे बताती हैं कि महिलाओं की मंडली तो बनने लगी। लेकिन इसके बाद बहुत सी चुनौतियां सामने आ खड़ी हुईं। क्योंकि मंडली में ऐसी महिलाएं भी शामिल थीं, जिनके पास मवेशी ही नहीं थे, वे अब तक खेतों में मजदूरी किया करती थीं। यही कारण है कि इनके लिए हमने पशु खरीदने के लिए हम राष्ट्रीयकृत बैंकों में गए तो पहले बैंक को शंका होती कि महिलाएं लोन चुका पाएंगी या नहीं। हालांकि हमने 1974 में सेवा बैंक की स्थापना कर चुके थे।