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खजुराहो के आलोक में यौनिक संसर्ग और जीवन सत्य

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इरम खान (दिल्ली)

खजुराहो का शिवमंदिर मध्यकाल (दशवी शताब्दी) में बनाया गया था। काशी के राजपंडित की पुत्री हेमवती अपूर्व सौंदर्य की स्वामिनी थी। हेमवती विधवा थी और एक बच्चे की मां भी।       वह एक दिन वह गर्मियों की रात में कमल-पुष्पों से भरे हुए तालाब में स्नान कर रही थी। उसकी अप्रतिम सुंदरता को देखकर चन्द्रदेव उन पर मोहित हो गए। वे मानव रूप धारणकर धरती पर आ गए और हेमवती का तन-मन हरण कर लिया । 
यानी हेमवती भी चन्द्र देव पर मोहित हो गई । फिर चन्द्र और हेमवती के बिच सफल मैथुन संबंध परवान चढ़ता गया । विधवा होने के कारण हेमवती की वासना अतृप्त थी इसलिये उसका तृप्त होना जरुरी था । चन्द्रदेव के जरिये उसने भी अपनी संभोग की भूख-प्यास तृप्त की । *संभोग यानी आनंद का समान उपभोग। एक-दूसरे का बराबर भोग। शोषण, बलात्कार या ‘किसी एक की हवसपूर्ति ‘नहीं’। संभोग यानी- समत्व में, शून्य में समा कर अद्वैत की अवस्था ।*हेमवती इस बात से अनजान थी की वो जिस से प्रेम करती है वो मानव रुप मे स्वंयचन्द्र देव हैं । इस संबंध के दौरान हेमवती गर्भवती हुई । चन्द्रदेव हेमवती से शादी ‘नहीं’ कर सकते थे, इसलिये वो सच बात बता देते हैं ।  समाज ने हेमवती का बहिष्कार किया। उसका घोर अपमान किया । हेमवती अब आत्महत्या करने की सोचती है । तब भगवान शिव और चन्द्र आकर स्वंय हेमवती को समझाते हैं की उसने कुछ गलत नहीं किया । खुद को तृप्त करना हर मानव का अधिकार है ।  *विधवा होने के बाद, या पति के नामर्द होने पर किसी सुपात्र से  संभोग करना कोई पाप नही है;* और इससे बच्चा होता है तो उसकी जिम्मेदारी निभानी चाहिये । *संभोग और संतान होना पाप नहीं है पर देह को अतृप्त रखकर देह पर हिंसा करना पाप है। संतान होने के बाद उसको त्याग देना, अनाथ बनाना, मार डालना पाप है ।*
      इतना समझाने के बाद शिव हेमवती को काशी छोडकर खजुरापुर जाने को बोलते हैं और वरदान देते हैं की तेरा यह बेटा महान राजा बनेगा । 
हेमवती अपने बच्चों  को ले कर मध्यप्रदेश मे खजुरपुरा आ गई । चन्द्र से पैदा हुए बेटे का नाम चन्द्रवर्मन था जो दिव्य ऊर्जा-प्रवाह से जन्मने के कारण तेजस्वी व शक्तिशाली बना। वो शंकर भगवान का परम भक्त था । उसे अपने पिता के बारे में पता नहीं था । 
एक दिन भगवान शिव ने चन्द्रवर्मन के सपने में आकर सबकुछ बताया और कहा कि समाज काम से , संभोग से दूर जा रहा है और सिर्फ वैराग्य का महत्व हद से बढ रहा है । *संसर्ग अदितीय, अलौकिक सुख के लिए बनाया गया है। यह ही गैर तपस्वियों के लिए परम-तृप्ति का आधार है।*समाज के लोगों को फिर से संभोग की और लाने के लिये तुम लोगों मे जागृति फैलाओ। मेरा और कामदेव का मंदिर बनाओ और उनके द्वारा काम-शाश्त्र का ज्ञान फैलाओ । 
भगवान शिव कि प्रेरणा से चन्द्रवर्मन ने खजुरापुर मे भगवान शिव का मंदिर बनाया जिसकी हरएक दिवार पे कामसूत्र की सीख व संभोग के अलग अलग आसनों कि मूर्तियां कंडारी गई है’। फिर शिवमंदिर है। *यानी संभोग से पूरी तरह तृप्त होकर कामुकता से मुक्त होने पर ही भगवान तक जाना अर्थपूर्ण होता है।*           (लेखिका चेतना विकास मिशन की प्रसारिका हैं.)

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