-सुसंस्कृति परिहार
भाजपाई नेताओं के आचरण से अब तक देश की जनता भलीभांति वाकिफ हो चुकी है जो लालकृष्ण अडवाणी का नहीं हुआ जिसे गुरु माना तो शिवराज किस खेत की मूली हैं।उनका कद साहिब जी से बड़ा नहीं होना चाहिए।जबकि दिलचस्प बात ये है कि खरीद-फरोख्त से बनी शिवराज सरकार को हटाने का संकल्प आम जनता ले चुकी है। इसलिए केन्द्र सरकार परेशान भी है वह गुजरात जैसा मुख्यमंत्री बदलकर प्रदेश जीतने के उपक्रम में लगी है किंतु यदि शिवराज के बिना चुनाव होता है तो कांग्रेस को उनका समर्थन पक्का मिलेगा।ये गुजरात नहीं मध्यप्रदेश है। दल-बदल कराने में माहिर मामा सत्ता पलटती देख अपने घोटालों की जांच पर आंच ना आने देने के लिए कुछ भी कर सकते है। पिछले दो सालों से शिवराज को हटाए जाने की चर्चाएं ज़ोर पकड़ती रही हैं उनमें मुख्यमंत्री पद के लिए जो नाम सामने आते रहे उनमें मंत्री द्वय नरेंद्र सिंह तोमर, प्रह्लाद पटेल प्रमुख थे।
आज जब भाजपा की दूसरी सूची आई तो उसने शिवराज को हिला के रख दिया है। क्यों ज़रूरी हुआ मंत्रियों को विधानसभा टिकट देना।इसके अलावा फग्गनसिंह कुलस्ते,गणेश सिंह , राकेश सिंह,रीति पाठक सांसद और मालवा का चर्चित नाम कैलाश विजयवर्गीय शामिल है।ये तमाम लोग शिवराज पर बहुत भारी पड़ने वाले हैं।ये नाम यह भी दर्शाते हैं कि प्रदेश में भाजपा का हाल बुरा है शायद इन बड़े नामों से जनता पर फ़र्क पड़े। हालांकि नरेन्द्र सिंह तोमर का इलाका ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके चेले चपाटों की वजह से ख़तरे में है वहां उनकी जीत भी मुश्किल है।भाजपा बुरी तरह बिखरी हुई है तथा कांग्रेस में वापसी भी हो रही है।
जहां तक प्रह्लाद पटेल का सवाल है वे दमोह के सांसद हैं यहां से वे बहुत पहले से जबेरा विधानसभा से विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी में लगे थे वे मुख्यमंत्री का ख्वाब पाले हुए हैं।उमा भारती के पूर्व साथी रह चुके पटेल लोधी समाज के नेता बनकर मुख्यमंत्री बनने की फिराक में है।ऐसा ही एक बार कई बार के सांसद रहे रामकृष्ण कुसमरिया ने भी सोचा था वे असफल रहे। महत्वपूर्ण बात ये है कि प्रदेश में पिछड़े वर्ग का संगठन ओबीसी महासभा भाजपा से नाराज़ हैं ना तो उसने जातिगत गणना की घोषणा की है और ना ही नारीशक्ति वंदन अधिनियम में पिछड़े वर्ग की महिलाओं के आरक्षण की बात की है ऐसे हालात में उनका साथ प्रह्लाद पटेल को मिलना मुश्किल है। नरसिंहपुर उनका गृहनगर है लेकिन उनकी दूरी उन्हें शायद ही कामयाबी दिला पाए।
तीसरे महत्वपूर्ण भाजपा के वाचाल वक्ता कैलाश विजयवर्गीय हैं।उनके पुत्र आकाश शिवराज सरकार में विधायक हैं उनके रहते इंदौर की दूसरी विधानसभा से वे जीत हासिल कर लें ये अजूबा ही होगा।उधर जबलपुर पूरी तरह कांग्रेसमय है। राकेश सिंह का जनता से कोई खास सरोकार नहीं रहा ।सतना और सीधी के सांसद भी मुश्किल में फंसते नज़र आ रहे हैं।
इस तरह जो दूसरी सूची आई है उससे वातावरण काफी गहमागहमी का है। भाजपाई कार्यकर्ताओं को उम्मीद थी कुछ नए चेहरे सामने आएंगे।सत्ता पर काबिज ये चेहरे वे काम के नहीं मानते।उधर संघ के लाड़ले मामा की घिग्घी बंध गई है उन्होंने पिछले दिनों अपने मंत्रियों और अफसरों के बीच अपनी कामयाबियों को जिस अंदाज में सुनाया और अधिकारियों का आभार जताया उससे लग तो ऐसा रहा है कि मामा कहीं इस्तीफा ही ना दे दें।यह तो सार्वजनिक तौर पर जाहिर हो ही चुका है गुजरात लाबी मोदी शाह उन्हें पटकनी देने के मूड में हैं।देश में इकलौता ओबीसी भाजपाई मुख्यमंत्री अंतिम सांसें गिन रहा है जिस तरह पूर्ब ओबीसी महिला मुख्यमंत्री उमाभारती के साथ मध्यप्रदेश में हुआ।याद करिए आज उत्तर प्रदेश के पूर्व ओबीसी मुख्यमंत्री कल्याण सिंह कहां है? भाजपा ने इन सबका भरपूर दोहन किया और धता बता दिया।