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लघु कथा : दाढ़ी वाले ताऊ

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        आरती शर्मा

लड़का : ही ही ही …
हमारी सादी हो री है अब तुम भी हमारे घर पे रहोगी.

लड़की : हां ! लेकिन तुम्हें पता है शादी क्या होती है ?
लड़का : हां पता है ना !
अच्छे अच्छे कपड़े पैनते. हैं खूब खाना बनता है. खूब लोग आते हैं. खूब नाच गाना. बहुत मजा आता है.
ही ही…

लड़की : बट मुझे लगता है तुम मेरे टाईप के नहीं हो.
लड़का : मेरे पापा के पास बहोत पैसे है.
लड़की : तुमको कैसे पता?
लड़का : देखो ! वो जो नाच री हैगी उसको करोड़ो रुपे दिए मेरे पापा ने.
लड़की : उनके पास इतने पैसे कैसे आए?
लड़का : मेरे पापा लोन लेते हैं और फिर वापस नी देते।
लड़की : क्यों ? वापस कैसे नहीं देते
लड़का : पापा लोन लेते हैं. उससे बिजली बनाते हैं. खूब पैसा कमाते हैं. फिर घाटा दिखा देते हैं.
फिर दाढ़ी वाले ताऊ जी लोन माफ कर देते हैं। बस फिर लोन भी अपना और मुनाफा भी अपना. ही ही….

लड़की : लेकिन जनता को ये घालमेल पता चल गया तो?
लड़का : ही ही मेरे पापा ने लंदन में बहोत बड़ा घर बना रखा है. हम वहां भाग जायेंगे. ही ही … ही ही
लड़की : लेकिन शादी में इतना भरी खर्च क्यों?
लड़का : पापा के दोस्त कहते हैं कि जनता हमे देखेगी. फिर हमारे जैसी शादी का फैसन बन जायेगा।
इसमें उनकी सारी जमा निकल जायेगी और फिर वो चुप चाप पापा की नोकरी करते रहेंगे. हमारे तो मजे ही मजे.
ही ही … ही ही !
(चेतना विकास मिशन).

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