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लघुकथा – ‘सावधानी हटी जेब कटी’

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 –विवेक मेहता 

        कोई बड़ी समस्या नहीं थी। बस चश्मे के नंबर को लेकर थोड़ी सी परेशानी थी। उसे  नंबर चेक करवाना था। नंबर भी कोई खास नहीं था। कैटरेक्ट की शुरुआत हो चुकी थी इस कारण थोड़े थोड़े दिनों में दिखलाई देने में परेशानी हो रही थी।

           बदलते नंबर के कारण इस बार उसने डॉक्टर बदलने की सोचा। सुविधायुक्त, थोड़ा बड़ा अस्पताल चुना। अस्पताल के प्रवेश में ही उपलब्ध मशीनों के नाम और उनकी कीमत बताते बड़े-बड़े बैनर लगे थे। विशेष अवसर था इस कारण कुछ छूट का उल्लेख भी बैनर पर किया गया था। नंबर चेक करने की प्रक्रिया चालू हुई। वह इस प्रक्रिया से इतनी बार गुजर चुका था कि जानता था थोड़ा बहुत सिलेंडर या एक्सिस में बदलाव देखने में धुंधलापन ला देता है। 

          उसके इस धुंधलेपन के साथ नीचे के स्टाफ ने उसे अपनी रिपोर्ट के साथ डॉक्टर के पास पहुंचा दिया। फिर से जांच चालू। लेंस से रेटिना की जांच भी। फिर सहयोग के लिए जूनियर डॉक्टर ने अपने सीनियर को बुलाया। उनके बीच कुछ बात हुई। फिर से कुछ जांच। उनके इस व्यवहार से वह भी मानसिक तौर पर दबाव महसूस करने लगा था- उसकी आंखों में गड़बड़ क्या है!

          जांच के बाद जूनियर डॉक्टर ने बतलाया- “आपका विजन सामान्य आदमी से कम है। रेटिना और ऑप्टिकल नर्व चेक करना पड़ेगी ताकि पता लग सके विजन कम क्यों है?” 

“विजन कम है इसलिए तो चश्मा लगाना पड़ता है।”- उसने उत्तर दिया। 

“वह तो है परंतु नर्व या रेटिना में गड़बड़ हुई तो फिर समस्या बढ़ती जाएगी।” 

“ठीक है,बाद में देख लेते हैं।”- उसने उत्तर दिया। 

“बाद में क्यों? आए हैं तो जांच कर ही लो। आंखों का मामला है।”- उसकी पत्नी डर गई थी। 

डाक्टर बोला- “सही कह रही है आप। कारण तो मालूम होना ही चाहिए कम विजन होने का। और अभी जांच में भी छूट चल रही है। इतने कम पैसों में ये जांच और कहीं नहीं हो सकती।”

“सवाल पैसे का नहीं, आंखों का है”- पत्नी बोली। 

           और जांच की जरूरत का भी- वह बोलना चाहता था परन्तु चुप रहा। डर-भय-लोभ-व्यापार अपना जाल फैला चुके थे। उसमें उसे फसना ही था।

            चार हजार रूपए भरते ही जांच चालू।

        उसकी जांच चालू थी तभी उसने सुना उसके पहले आए मरीज को डॉक्टर स्क्रीन पर फोटो दिखाकर कह रहा था- “यह आपकी आंखों का परदा है और यह नसें है।  सब ठीक है। थोड़ी नसों में कमजोरी दिखती है। उम्र के कारण हो जाती है।  बधाई हो, चिंता जैसी कोई बात नहीं।”

       थोड़ी देर बाद डॉक्टर ने उसे भी पर्दे पर आंख का परदा दिखाते हुए यही सब कहा। उसे ब्लड प्रेशर था इस कारण नसों का संबंध ब्लड प्रेशर से भी जोड़ दिया। जिस बात को लेकर टेस्ट सुझाए थे-उसका कोई उत्तर नहीं मिला। मिलना  भी नहीं था क्योंकि उनकी जरूरत नहीं थी।

        कोई बड़ी समस्या नहीं निकली तो खुश होना ही था। वह सब समझ रहा था- महंगी मशीनों का खर्चा डॉक्टर उससे वसूल कर रहा था।जेब कटने से  वह दुखी भी हो रहा था।

         गुरुओं की अंधश्रद्धा के जाल से और डराने के डॉक्टर के मनोविज्ञान से कोई कैसे बच सकता है। 

किसे दोष देता।

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