सुधा सिंह
वह दद्दा के बंगले में पहुंचा तो देखा दद्दा बेड पर फैले हुए थे।
‘दद्दा दद्दा पता चला!’ कमरे में इंट्री लेते ही वह बोला।
‘क्या!’ दद्दा कुछ सिकुड़े।
साथ में उनके चद्दर भी।
‘प्राइममिनिस्टर ने इस्तीफा दे दिया!’ कहते हुए बेड के कोने पर खुद को उसने टिकाया।
‘आंय!’ दद्दा उठकर बैठ गए।
‘हां’
‘अभी तो कोई न्यूज नहीं आ रही!तुम्हारे आने से पहले टीवी ही तो देख रहा था बच्चा! ‘
‘अरे मैं ब्रिटेन की बात कर रहा हूं! लिज ट्रस की…’
‘अच्छा-अच्छा!’ दद्दा कुछ कूल हुए। आगे बोले,’सरकार गिर गई थी क्या!’
‘नहीं दद्दा’
‘एमपी बिक गए होंगे फिर!’ दद्दा सिर हिलाते हुए बोले।
‘नहीं दद्दा!’
‘तो फिर पार्टी में फूट पड़ गई होगी!’
‘न!’
‘अच्छा, सीडी निकल आई होगी!’ दद्दा ने आंख मारी।
‘नहीं भई!’
‘फिर!!! फिर काहे इस्तीफा दिहिस! ‘बेफालतू’ में!’ दद्दा मुंह खोलकर मुझे देखने लगे।
‘कहीं की हम पब्लिक से जो वादा किए थे,उसे पूरा नहीं कर पाए इसलिए इस्तीफा देते हैं।’
कारण सुनते ही दद्दा मुस्कुराए। फिर बहुत प्यार से बोले,’अफवाह फैलाओगे तो जेल जाओगे बच्चा! तुम्हें और कोई नहीं मिला!’
‘नहीं दद्दा सच्ची खबर है!’ यह कहते हुए उस ने अपने मोबाइल पर दद्दा को सचित्र खबर पढ़वाई। खबर पढ़ने के बाद दद्दा गंभीर हो गए।
‘क्या हुआ दद्दा!’ उस ने पूछा।
‘कोई कुछ भी कहें बच्चा,मगर ग्लोबलाइजेशन के दुष्परिणाम बहुत हैं!’
‘कैसे दुष्परिणाम दद्दा!’ वह सोच में पड़ गया कि दद्दा हमारे बीच में अचानक ग्लोबलाइजेशन को कहां लिए चले आ रहे हैं!
‘अब यही लो! सात समुंदर पार की खबर अब यहां की जनता भी पढ़ेगी!’ दद्दा अपनी ठुड्ढी खुजालते हुए बोले।
‘पढ़ेगी तो!’
‘तो कहीं पब्लिक हमसे कोई ऐसी उम्मीद न पाल बैठे! उनकी अपरिपक्वता की कीमत हमें न चुकानी पड़े!’ दद्दा गंभीर स्वर में बोले।
‘घबराइए नहीं दद्दा! आज की पब्लिक पब्लिसिटी पर मरती है। यहां ऐसा कुछ नहीं होगा! भारत में विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है हमारे खुश रहने के लिए इतना ही काफी है!’ उस ने दद्दा को आश्वस्त किया।
‘और बाकी की खुशी जाति, धर्म, क्षेत्र,बिरादरी,कुल,कुटुंब से पूरी हो जाती है! क्यों!’ यह कहते हुए दद्दा की आंखें चमकीं।
‘और क्या!’
अब दद्दा बिलकुल कूल मोड में आ चुके थे। बेड से उठते और लुंगी को कसते हुए बोले,’मान लो अगर ऐसा यहां होता तो दस बार हम और कम से कम बीस बार आलाकमान इस्तीफा दे चुके होते अब तक… हां नहीं तो!’
यह कहकर दद्दा ठठाकर हंस पड़े।