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डर नहीं बल्कि गुस्सा आना चाहिए!

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*सुसंस्कृति परिहार

एक अर्से बाद आज के हालात पर नसरुद्दीन शाह की एक कविता बरबस याद हो आई

मुझे फिक्र होती है /अपने बच्चों के बारे में /सोचकर क्योंकि उनका /मजहब ही नहीं है/ मजहबी तालीम मुझे मिली थी /रत्ना को थोड़ी कम मिली थी/ लेकिन मुझे थोड़ी ज्यादा मिली थी /हमने अपने बच्चों को मजहबी /तालीम बिल्कुल नहीं दी क्योंकि /मेरा मानना है कि /अच्छाई और बुराई का /मजहब से कुछ लेना देना नहीं है /फिक्र होती है मुझे /अपने बच्चों के बारे में कल को अगर उनको/ एक भीड़ ने घेर लिया/ तुम हिंदू हो या मुसलमान /उनके पास तो कोई जवाब ही नहीं होगा /इस बात की फिक्र होती है /क्योंकि हालात जल्दी सुधरते/  तो नजर नहीं आते /इन बातों से मुझे डर नहीं लगता/ गुस्सा आता है/ मैं चाहता हूं कि यही सोच वाले इंसान को /गुस्सा आना चाहिए डर नहीं /हमारा घर है / हमें कौन निकाल सकता है /जो ज़हर फैल चुका है और /दोबारा इस जिन की बोतल में/ बंद करना बहुत मुश्किल होगा/ खुली छूट मिल गई है कानून को /अपने हाथ में लेने की /कई इलाकों में हम देख रहे हैं /एक गाय की/ मौत को ज्यादा अहमियत /दी जाती है एक पुलिस /अफसर की मौत की बजाए–

Haridwar 'Dharam Sansad' triggers row, TMC leader files complaint over hate  speeches - India News


यह रचना हम सबकी चिंताओं में होना चाहिए । पिछले दिनों कथित धर्म संसद में जिस तरह इस्लामी जिहादी और हमारी जिम्मेदारी विषय पर विचार रखे गए वे आम मुस्लिमों के लिए थे और उन विचारों को जिस तरह मीडिया ने परोसा है उससे अल्पसंख्यक समाज में अंदर अंदर खौल है लेकिन वे ख़ामोश हैं। उन्हें राजधर्म  की उपेक्षा का बराबर ख्याल है किन्तु संविधान पर पूरा पूरा यकीन है।इस माटी से उनका लगाव दुनियां जानती है। पिछली सरकारों ने अब तक साम्प्रदायिक सद्भाव और एकता के भाव अब तक कायम रखने का बीड़ा उठाया था वह आज भी कायम है इसलिए पूरी संभावना है कि इस तरह के लड़ने लड़ाने के सारे प्रयास पूरी तरह विफल होंगे। सी ए ए आंदोलन , किसान आंदोलन को जिस तरह विदेशी मीडिया , वहां के लोगों का जिस तरह साथ मिला आज भी OICकेअलावा विदेशी मीडिया हिंदुत्ववादी ताकतों के खिलाफ खड़ी हो गई हैं। ये सब जान गए हैं कि सारी समस्याओं की जड़ हमारी लोकतांत्रिक मुखौटे वाली हिंदुत्ववादी सरकार है।इन पर कैसे प्रतिबंध लगेगा सजा मिलेगीऔर लगाम लगेगी यह सवाल भी है किंतु बराबर याचिका दाखिल की गई है? याद कीजिए जब यह सरकार सत्ता में कहीं नहीं थी तब ये ताकतें कितने दंगे कराती रहीं हैं।पहली बार ही गुजरात में एक बड़े अल्पसंख्यक नरसंहार के षड्यंत्र का कथित तौर पर सरकार पर लगा।उसके बाद से दंगों की संख्या लगभग नगण्य रही जो इस बात का प्रमाण है दंगे के पीछे कौन होता था बाबरी मस्जिद तोड़ने पर कुछ नहीं हुआ हां हिंदु वोट से दिल्ली फतह ज़रुर कर ली। दिल्ली में सरकार बनते ही माब लिंचिंग फार्मुला आया वह भी असफल रहा। फिर मंदिर मस्जिद बनारस और मथुरा में खेला गया वह भी फेल हुआ।अतिक्रमण के बहाने असम  में भाजपा ने जो अल्पसंख्यकों पर कहर बरपाया।शव पर फोटो ग्राफर के डांस ने देश ही नहीं बल्कि दुनिया को सहमा दिया। लखीमपुर खीरी में निर्दोष किसानों पर मंत्रीपुत्र का कहर और अब गुरुद्वारों में नानकदेव साहिब के अपमान के कुत्सित प्रयास , दिल्ली में दीपावली में बिरयानी बेचने, इंदौर में चूड़ी बेचने वाले के साथ अपमान जनक बर्ताव और बर्बरता ये सब संघी पाठशाला से निकले और सरकार के प्रशय से जन्मने मामले हैं जो हम सबको डराते हैं।उन हिंदुओं को भी डराते हैं जो इन सब मामलों पर आवाज उठाते हैं।यू ए पी ए ,ई डी वगैरह से डराते हैं लेकिन ज़िंदादिल लोग बराबर विरोध का परचम थामे अपने प्यारे देश के वासियों के लिए लड़ रहे हैं चूंकि यह हमारा संवेधानिक अधिकार है।
ख़ामोश रहना कभी कभी सभी सवालों का हल लेकर चुनाव में आता है। जिम्मेदार और समझदार लोग सतत प्रयास करते ही रहते हैं।आज बहुत मासूम का सवाल सामने आया है कि यदि सरकार दुर्भाग्य से हिंदू राष्ट्र के नाम उर्दू भाषा पर बैन लगा दे तो आश्चर्य नहीं होगा तब तहज़ीब की इस भाषा से निकले असंख्य शेर शायरी सुनाने वालों का क्या होगा ? भाषणों और लेखों में ख़ूबसूरती कैसे आएगी । ग़ालिब,मीर,फ़ैज़, जैसे शायर जो हमारे ज़हन में पैठ बनाए हैं क्या वे हमसे जुदा हो पायेंगे?सारे जहां से अच्छा हिंदोस्ता हमारा क्या हम नहीं गा पायेंगे ? ऐसे कई मसले हैं जो अतिगंभीर है। चिंताएं मन में लाते हैं। नसरुद्दीन साहिब कहते हैं डरे नहीं–गुस्सा करें। राहुल गांधी भी निडर लोगों का साथ चाहते हैं।आम लोग भी यही कहते हैं जो डर गया वो मर गया । आइए सचेत रहें। संघर्ष करें।जीत का सेहरा निडर को बंधता है।झूठ और फसाद वालों की उम्र ज़्यादा नहीं होती।

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