डॉ. विकास मानव
_यमुना का दुःख, सुदामा के आंसू, राधा की पीड़ा और उनका एकांत महकता है कृष्ण में। मुड़ मुड़ के देखता हूं यमुना का दुःख, सुदामा के आंसू, राधा की पीड़ा और उनका एकांत महकता है कृष्ण में।_
*कृष्ण निर्मोही हैं, इसीलिए कृष्ण से मोह हो जाता है। कृष्ण प्रेम की प्रवाहमान सरिता हैं। व्याकुल कंठों और तृषित उरों की सुध लेती संवेदना की सरिता। पर जैसा हर नदी की नियति है। उसे बहना है। यात्रा उसका धर्म है और प्यास मिटाना उसका कर्म। वैसा ही घटित होता है कृष्ण के साथ भी, वो अपने प्रिय को छोड़ देते हैं। पर उनका छोड़ना ऐसा है कि वो छोड़ने के बाद भी सदैव साथ बने रहते हैं। ये वियोग का योग है। ये आकार का निराकार हो जाना है। ये स्थूल का सूक्ष्म में बदल जाना है। एक देह में एक दुनिया का बस जाना।*
कृष्ण ने छोड़ दिया, वृंदावन, गोकुल की गलियां, कदंब के वृक्ष, गोप-गोपियाँ, सखियाँ, यमुना तट, गइयाँ, राधा और नंद यशोदा को भी। जन्म लेते ही देवकी और वासुदेव को और समय आने पर अधरों की मुरली को भी और माथे के मयूर पंख को भी। ये त्रासदी कृष्ण की नहीं है।
_ये उनके प्रेमियों की त्रासदी है। कृष्ण तो निर्मोही हैं। मोह की खेती करने वाला कृषक। उसे मोह नहीं होता। वो मोह उपजाता है। उसे दुःख नहीं होता, वो दुःख निवारता है। कृष्ण समय की सांकल में नहीं बंधते।_
*कृष्ण की याद उनके प्रेमी इसलिए रोते हैं क्योंकि वो कृष्ण से संतृप्त नहीं हुए। कृष्ण को भीतर उतना नहीं बसा सके जितना वो चाहते थे। कृष्ण का उतना सानिध्य नहीं मिला जितने की इच्छा थी।*
उनके अश्रु और दुःख का कारण यही है। पर कृष्ण को इसका दुख नहीं है क्योंकि उन्हें प्रत्येक क्षण को पूर्णता में जीने की कला मालूम है। इसलिए वो जिसके साथ रहे उसे अमर करते चले। लोक चेतना में अक्षर करता हुआ।
देवकी, यशोदा, नंद, वासुदेव, सुदामा,गोकुल, वृंदावन, गोपियां सब कृष्ण के सानिध्य से अमर हुए, अक्षर हुए।
*राधा इसका अपवाद हैं। उनमें कृष्ण से ज्यादा कृष्णत्व था। या यूं कि राधत्व कृष्णत्व से कम नहीं है। इसलिए राधा कृष्ण से पहले स्मरण की जातीं है। कृष्ण प्रेम का पर्व हैं तो राधा महापर्व हैं।*
इसीलिए दर्शन का दर्रा लांघ कर उलझनों के पार निकलने की जुगत करने वाले दार्शनिकों ने राधा को कृष्ण का विस्तार कहा।
राधा: जिसे अकेलेपन को एकांत में और एकांत को एकात्म में बदलने की कला मालूम है।
कृष्ण की बात चली है तो कायदे से मुझे यमुना का जिक्र करना चाहिए। पर मुझे गंगा याद आती है। नदियों के नाम पर मुझे गंगा के अलावा कोई दूसरा नहीं सूझता। दुनिया की सारी नदियां मुझे गंगा की छाया लगती हैं। और ये गंगा की स्मृति कृष्ण के संदर्भ में अनायास नहीं है क्योंकि स्वयं कृष्ण ने गीता में कहा है कि वो नदियों में गंगा हैं।
क्योंकि~
गंगा भी कृष्ण की तरह निर्मोही है, गंगा भी मोह बोते हुए चलती है। गंगा के तट पर रहने वाला चाहे पलायन या रोजगार या अवसरों की खोज में उसके तट से उखड़ जाए पर गंगा उसकी स्मृति से नहीं उखड़ती, वो स्मृतियों में निरंतर प्रवाहित रहती है। और जैसा कृष्ण का गुण है वो बिछड़ के ज़्यादा समीप होतं हैं वैसे गंगा से दूर व्यक्ति के हृदय में गंगा की हूक ज़्यादा तीव्र होती है।
गंगा से बिछड़ा गंगा के ज्यादा समीप होता है। ठीक वैसे जैसे कृष्ण से बिछड़ा कृष्ण का प्रेमी और भी कृष्णमय हो जाता है।
गंगा भी कृष्ण की तरह त्यागती चलती है। हरिद्वार को त्याग इलाहाबाद, इलाहाबाद को त्याग बनारस, बनारस को त्याग गंगा सागर। जहां रही उसकी पीड़ा हरी, पाप धोए, मन निर्मल किया। जहां रही उसकी बन के रही, उसको अपने प्रेम से अमर, अक्षर किया।
प्रयाग में प्रयाग की गंगा, काशी में काशी की, हरिद्वार में हरिद्वार की और गंगा सागर में गंगासागर की। पर फिर भी अकेली, एकांतिक, एकात्म में डूबी नदी ही रही।
*कृष्ण का रंग। कृष्ण का रंग काला है। काला जिस पर कोई दूसरा रंग नहीं चढ़ता। सूरदास कहते हैं ना, सूरदास की काली चमड़िया चढ़े ना दूजा रंग। काला रंग सब रंगों को सोख लेता है।*
उन्होंने सब रंग अपने भीतर समा लिए हैं। हर रंग की पीड़ा सुनी है, हर ढंग का कष्ट समाया है उनमें, इसलिए वो काले हैं। किसी का कोई प्रभाव नहीं उन पर।
सारे प्रभाव वहां आकर अपना प्रभाव खो देते हैं। सारी यात्राएं स्थगित हो जातीं हैं। उलझनों के पाँव स्थिर हो जाते हैं। कृष्ण भी इसीलिए काले हैं। दुनिया का दुख शरण लेता हैं उनमें।
*उन्होंने गोपियों की वो पीर सुनी है जो वो अपने पतियों से नहीं कह सकीं, अपने पिता, भाई, सखियों से नहीं कह सकीं। यमुना का दुःख कृष्ण में ठहरता है।*
सुदामा के आंसू कृष्ण की आंखों में निवास पाते हैं। राधा की पीड़ा, उसका एकांत महकता है कृष्ण की देह से।
*कृष्ण दुनिया भर की पीड़ा के सागर हैं। जहां सबके दुखों की नदी गिरती है। इसीलिए कृष्ण काले हैं।*
_आज कृष्ण का जन्मदिन है। हमारी चाहत है : कृष्ण आपके अंतस में जन्में, उसका आयतन बढ़ाते हुए। कृष्ण आपमें उतरें– आपको मनुष्य से मनुष्यतर करते हुए, विकास से विकसित करते हुए। कृष्ण आएं और आपके भीतर जो आप हैं उसे अमर कर दें, अक्षर कर दें।_