बंगाल के दार्जिंलिंग के डुआर्स में अलीपुरदुआर जिले के कालचीनी ब्लॉक स्थित न्यू हासीमारा में जन्मी शुक्ला देबनाथ बातचीत की शुरुआत करते हुए बताती हैं कि बचपन से ही उन्होंने अपनी मां को जरूरतमंदों के साथ खड़े होते देखा. उम्र बढ़ने के साथ साथ देबनाथ ने अपने आसपास चाय बागान की आदिवासी युवतियों, और महिलाओं की दयनीय स्थिति को बहुत नजदीक से देखा.
देबनाथ ने इन महिलाओं को पैसों की किल्लत के कारण भोजन-दवा, और अन्य कई साधारण जरूरतों के लिए तड़पते देखा. इन महिलाओं और लड़कियों की दुर्दशा ने इनके मन पर गहरा असर डाला.
शुक्ला देबनाथ ने बताया कि उन्होंने मन ही मन बचपन से ही तय कर लिया था कि वह इन महिलाओं के लिए ऐसा कुछ करेंगी जिससे कि उन्हें दूसरों के अधीन काम न करना पड़े. समय आने पर वह अपने अकेले दम पर इन जरूरतमंद महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने में जुट गईं. शुक्ला देबनाथ आज 5000 से ज्यादा महिलाओं को जिंदगी की नई राह दिखा चुकी हैं.
दूसरों की मदद के लिए खुद नहीं की नौकरी
शुक्ला देबनाथ ने बताया कि वो हमेशा से मानती आईं कि कोई काम छोटा बड़ा नहीं होता. यही वजह थी कि उन्होंने पढ़ाई पूरी करने के बाद नौकरी को चुनने की बजाए कुछ ऐसा करने का फैसला किया जिससे कि वह चाय बागान में काम करने वाली आदिवासी महिलाओं और युवतियों के लिए कुछ कर सकें. देबनाथ के अनुसार उन्होंने अच्छी पढ़ाई करने के बावजूद नौकरी करने की जगह हाथ का हुनर सीखने का फैसला किया.
वह बताती हैं कि उन्होंने इसके लिए पहले से ही तैयारी कर ली थी, और 14 साल की उम्र में ही ब्यूटिशयन का कोर्स किया था. इसके लिए उन्होंने अपनी साइकल तक बेच दी. ऐसा उन्होंने सिर्फ इसलिए किया कि आगे चल कर वह महिलाओं को कुछ सीखा पाएं. 10 साल पहले शुक्ला देबनाथ मेक-अप आर्टिस्ट और निजी ट्यूटर बन गईं. जिसके बाद से वह उत्तर बंगाल क्षेत्र के चाय बागानों सुभाषिनी चाय बागान, कलचीनी चाय बागान, मच पारा चाय बागान, और चामुर्ची चाय बागान की 5000 गरीब और निराश्रित लड़कियों व महिलाओं को आत्म-निर्भर बना रही हैं.
किस तरह से कर रही हैं गरीब लड़कियों की मदद?
शुक्ला देबनाथ बताती हैं कि उन्होंने अपने सामने देखा है कि नौकरी की तलाश में आने वाली सुदूर गांव की लड़कियां और महिलाएं कैसे मानव तस्करों के जाल में फंस जाती हैं. इसके साथ ही इनकी मजबूरी का फायदा उठाया जाता है. ऐसे में वह चाय बागान क्षेत्रों में काम करने वाली युवा लड़कियों, और महिलाओं की मदद के लिए आगे आईं.
शुक्ला बताती हैं कि वह इन्हें आत्मनिर्भर बनाने के साथ साथ इनकी अन्य जरूरतों को पूरा करने और और उनकी हर तरह से मदद करने की भी कोशिश करती हैं. वह इन्हें स्टेशनरी और सैनिटरी पैड का वितरण करती हैं. वह कहती हैं कि गरीब महिलाएं सैनिटरी पैड का उपयोग नहीं करतीं. इन्हें जागरूक करने के साथ-साथ सैनिटरी पैड के लिए फ्री में उपलब्ध करा रही हैं.
पिता का सपना पूरा करने में जुटी हुई हैं!
शुक्ला देबनाथ बताती हैं कि उनके जीवन पर सबसे ज्यादा असर उनके पिता का रहा. भले ही वह अब उनके साथ नहीं हैं, लेकिन उनकी सिखाई बातें आज भी देबनाथ का मार्गदर्शन कर रही हैं. देबनाथ बताती हैं कि उनके पिता ने कोरोना महामारी का प्रकोप और लॉकडाउन में गरीबों की बदहाली देखी.
इस दौरान वह अभिनेता और समाज सेवी सोनू सूद के कार्यों से बेहद प्रभावित थे. देबनाथ बताती हैं कि उनके पिता चाहते थे कि देबनाथ भी सोनू सूद की तरह निस्वार्थ भावना से लोगों की मदद करें. उनका कहना है कि उनके पिता तो अब नहीं रहे लेकिन वह उनका ये सपना सच करने में लगी हुई हैं. देबनाथ ने भावुक होते हुए कहा कि वह जब भी कुछ अच्छा करती हैं तो सोचती हैं कि काश उनके पिता ये सब देख पाते.
मिल चुके हैं कई पुरस्कार
सामाजिक कार्यों के लिए देबनाथ को कई पुरस्कार और सम्मान मिल चुके हैं. उन्हें हाल ही में इंटरनेशनल बुक ऑफ रिकॉर्ड में यंगेस्ट सोशल वर्कर का सम्मान मिला था. इसके साथ ही वह पश्चिम बंगाल के एक लोकप्रिय रियलिटी शो दीदी नंबर वन के एक एपिसोड में भी दिखाई दी हैं. बंगो समाज अवॉर्ड, महिलाओं के जागरुकता के लिए बांग्लादेश की सामाजिक संस्था ने भी उनको सम्मानित किया.
आजीविका के बारे में देबनाथ ने बताया कि वह एक ब्यूटीशियन हैं, और लोगों के घर जाकर उनका मेकअप करती हैं. उनका कहना है कि वह अपने पेशे से होने वाली आमदनी से ही समाज सेवा के कार्य करती हैं. जब हमने देबनाथ से पूछा कि लोगों की मदद करने के लिए आपको कहीं से सहयोग मिलता है तो इस पर उनका जवाब था, “वह अपने रोजगार से ही महिलाओं की मदद कर रही हैं. उन्हें कहीं से कोई मदद नहीं मिलती.”
अकेले दम पर करती हैं लोगों की मदद
हमने जानने की कोशिश की कि क्या आप अपनी कमाई से अपना खर्च और लोगों की मदद कैसे कर लेती हैं? इस पर देबनाथ ने कहा कि उनके पापा ने उन्हें एक बात समझाई थी कि भले ही इंसान की कमाई एक रुपये ही क्यों न हो, लेकिन अगर उसके अंदर किसी की मदद करने की इच्छा होगी तो वो उससे भी मदद कर सकता है. मन की इच्छा बड़ी चीज होती है. तो अगर मुझे 5000 रुपये का इनकम होता है तो मैं 3000 हजार लोगों की मदद के लिए रख देती हूं. उदाहरण के लिए मैं गर्मियों में 3-3 हजार जमा करती हूं जिससे कि सर्दियों में लोगों की मदद कर सकूं.
35 वर्षीय शुक्ला देबनाथ ने खुद को समाज सेवा के लिए इस तरह से सर्पित कर दिया कि उन्होंने शादी भी नहीं की. इसके लिए उन्हें अपनों का विरोध भी झेलना पड़ता है, लेकिन वह कहती हैं कि एक अच्छा इंसान बनने के लिए वह हर संभव कोशिश करने को तैयार हैं. उनके अनुसार समाज में बहुत से ऐसे लोग हैं जो आईएएस, डॉक्टर इंजीनियर बनना चाहते हैं लेकिन अच्छा इंसान बनने की ख्वाहिश कोई नहीं करता.
देश की बेहतरी में है हर कदम
लोगों को संदेश देते हुए शुक्ला देबनाथ ने कहा कि किसी की मदद करने के लिए किसी संगठन, या मंच की जरूरत नहीं होती. इंसान अगर ठान ले तो वह व्यक्तिगत रूप से भी हजारों लोगों की मदद कर सकता है. उनका कहना है कि उनका हर कदम देश की बेहतरी के लिए है. वह अपनी बात खत्म करने से पहले कहती हैं, ‘न ये सरकार मेरी है, न ये रब मेरा है..मैं भारत की हूं, और ये भारत हमारा है. जय हिंद, जय भारत.’