Site icon अग्नि आलोक

पाप और पुण्य बनाम ढकोसला !

Share
FacebookTwitterWhatsappLinkedin

रमेश रंजन त्रिपाठी

सुमेर जब पवित्र नदी के तट पर पहुंचा तो वहां आरती की तैयारियां चल रही थीं। लोग एकत्र होने लगे थे। सूर्य ढल रहा था। एक गरीब महिला ने पलाश के पत्तों से बने दोने में गेंदे के फूल की पंखुड़ियों के बीच रखा हुआ दीपक उसकी ओर बढ़ाते हुए बैली ‘बाबूजी सिर्फ दस रुपए का है। आप भी माई की आरती का पुण्य कमाएं। माई आपकी मनोकामना जरूर पूरी करेंगी। ’
सुमेर दस रुपए खर्च करने में हिचक रहा था। कुछ तो उसकी हैसियत और कुछ इस बात की चिंता कि बाद में इस दीये को दोने सहित पानी में बहा दिया जाएगा जिससे नदी के प्रदूषण में और भी बढोत्तरी ही होगी ! सुमेर इसी उधेड़-बुन में लगा हुआ था कि उस नदी तट पर एक महंगी चमचमाती कार आकर रुकी। कार से एक व्यक्ति ने उतरकर पिछला गेट खोला। सुमेर ने देखा कि सिल्क का धोती-कुर्ता पहने रोबीले चेहरे वाले सेठ कार की पिछली सीट से बाहर आए। आश्चर्य की बात यह कि दोने में दीपक बेचनेवालों में से एक भी सेठ की ओर नहीं लपका ! सुमेर ने प्रश्नवाचक नजरों से गरीब महिला को देखा।
‘यह सेठ दीनानाथ हैं ?’ गरीब महिला बताने लगी कि , ‘आज की आरती इन्होंने ही स्पॉन्सर की है। आज आरती का सबसे बड़ा दीपक इनके हाथों में होगा। यह हमारा दीया क्यों खरीदेंगे भला ?’
‘सेठ दीनानाथ?’ सुमेर के मुंह से निकला- ‘वही केमिकल फैक्टरी वाले ?’
‘हां, वही !’ गरीब महिला ने जवाब दिया।
‘इन्हीं के कारखाने का कचरा और जहरीला अपशिष्ट इस पवित्र नदी में जाकर गिरता है। ’ सुमेर बड़बड़ाया ‘नदी के जल को दूषित करनेवाला सेठ नदी की भक्ति कर रहा है ! क्या पवित्र और वरदायिनी नदी की आरती का खर्च उठा लेने से प्रदूषण के पाप से छुटकारा मिल जाएगा ?’
गरीब महिला क्या उत्तर देती ? वह तो उम्मीद कर रही थी कि सुमेर उससे दस रुपए में आरती का दोना खरीद ले। सुमेर जेब में हाथ डालकर दस रुपए तलाशने लगा !

         साभार -सुप्रसिद्ध लघुकथा लेखक-रमेश रंजन त्रिपाठी , इंदौर ,संपर्क - 94253 17788

          संकलन - निर्मल कुमार शर्मा, गाजियाबाद, उप्र, संपर्क -9910629632
Exit mobile version