सनत जैन
पिछले कुछ वर्षों से सरकार और प्रशासन के निर्देश पर तुरंत दान महाकल्याण की तरह, घटनास्थल पर ही फैसला करने की प्रवृत्ति बढ़ती ही जा रही है। भीड़तंत्र भी सरकार और प्रशासन से जो चाहता है वह करा लेता है। कानून के नाम पर शासन और प्रशासन को जो अधिकार मिले हैं यदि उनके द्वारा इनका दुरुपयोग किया जाता है तो ऐसी स्थिति में जनता का विश्वास शासन और प्रशासन पर खत्म होने लगता है। शासन और प्रशासन अपने ही बनाए गए कानून का पालन नहीं कर रहे हैं।
न्यायपालिका के अधिकारों का उपयोग प्रशासन खुलकर करने लगा है। इसके बाद भी भारत की न्यायपालिका मौन साध करके तमाशा देख रही है। वर्तमान स्थिति को देखते हुए यही कहा जा रहा है, न्यायपालिका ने सरकार और प्रशासन के सामने समर्पण कर दिया है। भारत में संविधान लागू है। किसी भी मामले में विवाद अथवा अपराध होने पर जांच एजेंसी जांच करती हैं। जांच करने के बाद न्यायालय में मामले को पेश करती हैं। फैसला न्यायपालिका को ही करना होता है। शासन को कानून और नियम बनाने का अधिकार है। संविधान के दायरे में नागरिकों के मौलिक अधिकारों को सुरक्षित रखते हुए, कानून और नियम बनाने के अधिकार सरकार के पास हैं। सरकार द्वारा बनाए गए कानून और नियमों का पालन कराने का अधिकार संविधान ने प्रशासन को दिया है। कानून का उल्लंघन करने के आरोपी को गिरफ्तार कर न्यायालय के समक्ष पेश किया जाता है। फैसला न्यायालय ही कर सकती है। फैसला करने का अधिकार शासन और प्रशासन को नहीं है।
पिछले कुछ वर्षों में बुलडोजर संस्कृति और भीड़तंत्र तुरत-फुरत फैसला कर रहा है। शासन और प्रशासन किसी को भी अपराधी घोषित कर, कुछ ही घंटों में उसके मकान और संपत्ति को बुलडोजर से गिरा देती है। एक व्यक्ति के अपराध की सजा पूरे परिवार को बिना किसी अपराध के दे देती है। अपराध व्यक्ति द्वारा किया गया है। जांच किए बिना एक व्यक्ति के अपराध की सजा पूरे परिवार को देने की बुलडोजर संस्कृति उत्तर प्रदेश से शुरू हुई थी। जो अब कई राज्यों में फैल गई है। विशेष बात यह है, कि एक धर्म समुदाय के लोगों पर ही इस तरह की कार्रवाई की जा रही है। राजनीतिक कारणों से अभी कोई विपक्षी दलों के राजनेता इस संबंध में कोई प्रतिक्रिया नहीं देते थे, लेकिन जिस तरह से आए दिन बुलडोजर से घटना के कुछ ही घंटे बाद आरोपी की संपत्ति और उसके मकान को गिराया जा रहा है।
उसकी प्रतिक्रिया अब पूरे देश में हो रही है। हाल ही में मध्य प्रदेश के छतरपुर में जिस तरह की घटना हुई है। उस मामले ने अब तूल पकड़ लिया है। आरोपी का करोड़ों रुपए की लागत का मकान एवं अन्य संपत्ति को अतिक्रमण मानते हुए बुलडोजर से ढहाया गया है। जिस मकान को गिराया गया है, उसको बनाने के लिए बैंक ने लोन दिया था। बैंक ने सारे कागज सर्च किए थे। सारी परमिशन उसके पास थी, उसके बाद भी शासन और प्रशासन की नाराजगी के चलते आरोपी का मकान गिरा दिया गया। वहां पर जो गाड़ियां खड़ी थीं, उन्हें बुलडोजर से तोड़ दिया गया। यह घटना टीवी पर दिखाई गई। इस घटना के माध्यम से शासन और प्रशासन ने एक धर्म समुदाय के लोगों को आतंकित करने का काम किया है। अब इसकी जो जानकारी सामने आई है, उसके बाद विपक्षी दलों ने इस मामले में तीखी प्रतिक्रिया देते हुए विरोध जताया है। बुलडोजर एक्शन पर कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, प्रियंका गांधी, दिग्विजय सिंह और समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश सिंह ने कार्यवाही का विरोध किया है। विपक्षी दल के नेताओं ने कहा, अपराध पर सजा देने का काम न्यायालयों का है। पुलिस द्वारा मामले की जांच नहीं की गई और आरोपी का मकान गिरा दिया गया।
सही मायने में यह अन्याय की पराकाष्ठा है। कानून के रखवाले ही यदि कानून को तोड़ने का काम कर रहे हैं। संविधान, लोकतंत्र और मानवता का पालन नहीं कर रहे हैं। अपने ही बनाए गए कानून और नियमों का पालन नहीं करके आम जनता को आतंकित कर रहे हैं। शासन और प्रशासन की देखा-देखी भीड़ भी मौके पर न्याय करने लगी है। भीड़ सरेआम लोगों की हत्या कर रही है। देश में कई मावलीचिंग की घटनाएं हो चुकी हैं। इस तरह की घटनाओं में कई लोग मारे जा चुके हैं। उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों में घटना के तुरंत बाद सैकड़ों आरोपियों के मकान पिछले कुछ समय से तोड़े जा रहे हैं। आरोपी के परिवार को घर से बेघर कर दिया गया है। इस तरह की घटनाओं पर अब विपक्ष ने तो मोर्चा संभाला है। अदालतों के अधिकारों का उपयोग प्रशासन करने लगा है। शासन और प्रशासन न्यायपालिका और उसके आदेशों को ठेंगा दिखा रहे हैं।
ऐसी स्थिति में न्यायपालिकाएं अपने अस्तित्व की रक्षा कैसे कर पाएंगी? इसे आसानी से समझा जा सकता है। जब आदमी हर तरह से हार जाता है, तब वह न्यायालय और मीडिया की शरण में जाता है। यदि न्यायालय पर आम आदमी का विश्वास खत्म हो गया। तो, जो स्थिति हाल ही में बांग्लादेश और श्रीलंका में देखने को मिली है, वह भारत में भी जल्द ही देखने को मिल सकती है। अन्याय अब पराकाष्ठा पर पहुंच गया है। जब आम नागरिकों का न्याय व्यवस्था को लेकर विश्वास खत्म हो जाता है। शासन और प्रशासन पर भी विश्वास नहीं रहता है। तभी नक्सलवाद, आतंकवाद और फूलन देवी जैसे डकैत पैदा होते हैं। बांग्लादेश, श्रीलंका ही क्यों 1917 में रूस की जार क्रांति भी जनरोष के कारण ही तो हुई थी। जब-जब इस तरह की स्थिति बनती है, तब-तब जनता ही न्याय करने लगती है। अराजकता की यह स्थिति तब बनती है, जब जनता का न्याय व्यवस्था और राजा के ऊपर विश्वास खत्म हो जाता है। समय रहते न्यायपालिका को अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी को समझना होगा। यदि विलंब हुआ तो न्यायपालिका के अस्तित्व पर भी संकट खड़ा होना तय है। भारत की संवैधानिक व्यवस्था में न्याय करने का अधिकार केवल और केवल न्यायपालिका के पास है।