अग्नि आलोक
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फिलहाल की कुछ रचनाएं

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मुनेश त्यागी

उसने बर्बाद सारा चमन कर दिया,
हमने किसके हवाले वतन कर दिया।

बहुत कठिन है डगर पनघट की मगर,
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती।

सिर्फ दिए जलाने से कुछ नही होगा,
अंतर्मन भी जगाइए तभी होगा प्रकाश।

मैं देश नहीं झुकने दूंगा
मैं देश नहीं मिटने दूंगा,
कसम राम की खाई है
मैं देश बेच कर दम लूंगा।

अंधेरा घनघोर है
सूरज निकलना चाहिए,
जैसे भी हो अब यह
मौसम बदलना चाहिए।

मत पालो उम्मीद इनसे
ये सौदागर है नफरतों के

वह भी दिवाली थी
यह भी दिवाली है,
रोता हुआ गुलशन है
हंसता हुआ माली है।

भर लीजिए दिलो-दिमाग में भाईचारा
नफरत के वायरस की यही असली दवा है।

कर लीजिए सेनेटाइज,
दिलो-दिमाग को भी,
क्योंकि नफरतों के वायरस
यहीं जन्म लेते हैं।

कर लीजिए चिन्हित सारी
जनविरोधी ताकतों को,
ये नहीं करेंगे हल
तुम्हारी किसी समस्या का।

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