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*कहानी – एक कलाकृति*

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   (रसियन साहित्यकार अंतोन चेखव की कृति का हिंदी रूपांतर)

       ~ पुष्पा गुप्ता 

     साशा स्मिरनोव अपनी माँ का इकलौता बेटा था। उसने वित्तीय खबरों से भरे 223 नंबर के अखबार में लिपटी कोई चीज अपने बगल में दबा रखी थी। जब वह डॉ. कोशेलकोव के चिकित्सालय में पहुँचा, तब वह बेहद भावुक लग रहा था।

   “आओ, प्यारे!” डॉक्टर उसे देखते ही बोला। “बताओ, अब तुम कैसा महसूस कर रहे हो? तुम मेरे लिए क्या अच्छी खबर लाए हो?”

साशा ने पलकें झपकाईं, अपने हाथ को अपने सीने पर रखा और उत्तेजित स्वर में बोला, “श्री इवान निकौलेविच, माँ ने आपको ‘नमस्कार’ और ‘धन्यवाद’ कहा है… मैं अपनी माँ का इकलौता बेटा हूँ और आपने मेरी जान बचाई है… एक खतरनाक बीमारी के चंगुल से आप मुझे सकुशल बचा लाए हैं और… हम नहीं जानते कि आपका शुक्रिया कैसे अदा करें।”

   “क्या बेकार की बात है, लड़के!” डॉक्टर बेहद खुश होते हुए बोला। “मैंने तो केवल वही किया जो मेरी जगह कोई भी और डॉक्टर करता।”

“मैं अपनी माँ का इकलौता बेटा हूँ… हम गरीब लोग हैं और आपके इलाज की कीमत अदा नहीं कर सकते हैं। मैं शर्मसार हूँ, डॉक्टर साहब, हालाँकि माँ और मैं… अपनी माँ का इकलौता बेटा – हम आपसे अर्ज करते हैं कि आभारस्वरूप आप यह कलाकृति ग्रहण करें… यह बेहद कीमती है… एक प्राचीन कांस्य-कलाकृति… एक दुर्लभ चीज।”

“तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए!” डॉक्टर ने भौंहें चढ़ाते हुए कहा। “तुम मुझे यह क्यों दे रहे हो?”

   “नहीं, कृपया इसे अस्वीकार नहीं करें,” साशा अखबार में लिपटी उस कलाकृति को बाहर निकालते हुए बोलता रहा, “यदि आप इसे लेने से मना करेंगे तो मेरी माँ और मुझे आहत कर देंगे… यह बहुत बढ़िया चीज है… एक प्राचीन कांस्य कलाकृति…

    मेरे स्वर्गीय पिता इसे हमारे लिए छोड़ गए थे और हमने इसे एक बेशकीमती स्मृति-चिह्न के रूप में अपने पास रखा हुआ है। मेरे पिता प्राचीन कलाकृतियों को खरीद कर उन्हें कद्रदानों को बेचा करते थे… अब माँ और मैं यह छोटा-सा कारोबार सँभालते हैं।”

साशा ने लिपटा हुआ अखबार हटा कर कलाकृति को गंभीरतापूर्वक मेज पर रख दिया। वह कलात्मक कारीगरी से युक्त पुराने कांस्य का एक मोमबत्तियाँ रखने वाला स्टैंड था। उस दीपाधार पर हव्वा की वेश-भूषा में दो युवतियों की मूर्तियाँ बनी थीं। उनकी भाव-भंगिमा ऐसी थी जिसे बयान करने का न तो मुझमें साहस है, न ही मेरा वैसा स्वभाव है।

     दोनों युवतियाँ बड़ी अदा और नखरे से मुस्करा रही थीं, और उन्हें देखकर ऐसा लगता था कि यदि उन्हें मोमबत्तियाँ रखने वाली उस कलाकृति का आधार बनने के काम से मुक्त कर दिया जाता, तो वे वहाँ से उतर कर ऐसे लांपट्य में मग्न हो जातीं, जिसकी कल्पना करना भी पाठक के लिए अशोभनीय होगा।

तोहफे को देखते हुए डॉक्टर ने धीरे से अपना सिर खुजलाया और अपना गला साफ किया।

    “हाँ, यह वाकई बढ़िया चीज है,” वह बुदबुदाया, “लेकिन मैं इसे कैसे बयान करूँ…? यह… ह्म्म… पारिवारिक माहौल के लिए नहीं बना है। इन मूर्तियों से कामुक नग्नता झलक रही है, बल्कि उससे भी कुछ ज्यादा…।”

“क्या मतलब?”

   “मिथकीय प्रलोभक सर्प स्वयं इससे बुरी कोई चीज नहीं गढ़ सकता था… यदि मैं मायाजाल से भरी ऐसी कोई चीज अपनी मेज पर रखूँगा तो यह पूरे घर का माहौल खराब कर देगी।”

    “कला को देखने का यह आपका बड़ा अजीब नजरिया है, डॉक्टर साहब!” साशा नाराज होता हुआ बोला, “यह तो एक कलाकृति मात्र है। आप इसे ध्यान से देखिए। इस चीज में इतना सौंदर्य और लालित्य है कि यह आपकी आत्मा को श्रद्धा से भर देती है और इसे देखकर आपको अपना गला रुँधता-सा महसूस होता है। जब कोई इतनी सुंदर कलाकृति देखता है तो वह सभी सांसारिक चीजों को भूल जाता है… देखिए तो सही, इसमें कितनी गति है, इसका अपना ही वातावरण है, इसकी अपनी ही मुद्रा है!”

“प्यारे लड़के, यह सब मैं अच्छी तरह समझता हूँ,” डॉक्टर ने उसे बीच में ही टोकते हुए कहा, “लेकिन तुम जानते हो कि मैं एक पारिवारिक आदमी हूँ। मेरे बच्चे यहाँ आते रहते हैं। महिलाएँ यहाँ आती रहती हैं।”

    “जाहिर है, यदि आप इस कलाकृति को भीड़ के नजरिए से देखेंगे,” साशा ने कहा, “तो यह आपको किसी विशेष रंग में रँगी नजर आएगी… किंतु डॉक्टर साहब, आप भीड़ से ऊपर उठिए। इसे लेने से इनकार करके आप खास तौर से मेरी माँ और मुझे आहत करेंगे। मैं अपनी माँ का इकलौता बेटा हूँ। आपने मेरा जीवन बचाया है… हम आपको अपनी सबसे अमूल्य वस्तु भेंट में दे रहे हैं… और मुझे केवल इसी बात का खेद है कि मेरे पास आपको देने के लिए इसका जोड़ा नहीं है।”

    “धन्यवाद, प्यारे। मैं बेहद आभारी हूँ… अपनी माँ को मेरा प्रणाम निवेदित करना। लेकिन जैसा मैंने पहले कहा, मेरे बच्चे यहाँ आते रहते हैं। महिलाएँ यहाँ आती हैं। खैर! तुम इसे यहीं रख दो। मैं समझ सकता हूँ कि तुमसे बहस करने का कोई फायदा नहीं।”

“श्रीमान, बहस करने की कोई वजह ही नहीं,” साशा ने राहत महसूस करते हुए कहा। “मैं इसे गुलदारों के पास रख रहा हूँ। काश आपको देने के लिए मेरे पास इसका जोड़ा होता। खैर। चलता हूँ, डॉक्टर साहब।”

    साशा के जाने के बाद डॉक्टर अपना सिर खुजलाते और सोचते हुए बहुत देर तक उस कलाकृति को देखता रहा।

   “यह वाकई एक शानदार चीज है,” उसने सोचा, “और इसे फेंक देना अफसोसनाक होगा… लेकिन मेरे लिए इसे अपने पास रखना असंभव है… ह्म्म! यह तो एक समस्या है। मैं इस चीज को किसे तोहफे या दान में दे सकता हूँ?”

बहुत देर तक सोचने के बाद उसे अपने वकील दोस्त उहोव का ख्याल आया। वह कानूनी मामलों में डॉक्टर की मदद करता था, जिसकी वजह से डॉक्टर अपने इस मित्र का एहसानमंद था।

    “बढ़िया,” डॉक्टर ने फैसला किया, “मेरा मित्र होने के नाते उसे मुझसे पैसे लेने में उलझन होगी। लेकिन मेरे लिए उसे यह कलाकृति तोहफे में देना उपयुक्त रहेगा। इस शैतानी चीज को मैं उसे ही दे देता हूँ। खुशकिस्मती से अभी वह कुँवारा है और आरामपसंद भी।”

  बिना और टाल-मटोल किए डॉक्टर ने अपनी टोपी और अपना कोट पहना और वह कलाकृति ले कर उहोव के घर की ओर चल पड़ा।

उसे घर पर पाकर डॉक्टर ने पूछा, “तुम कैसे हो, मेरे दोस्त? मैं तुम्हीं से मिलने आया हूँ… मेरी मदद करने के लिए तुम्हारा शुक्रिया… तुम मुझ से पैसे तो लोगे नहीं। इसलिए तुम यह तोहफा कबूल करो… देखो, प्रिय… यह एक शानदार कलाकृति है!”

    उस कांस्य कलाकृति को देखकर डॉक्टर का वकील मित्र बेहद खुश हुआ।

   “वाह! क्या शानदार नमूना है।” उसने चहक कर कहा। “यह तो कल्पना की पराकाष्ठा है! बेहद सम्मोहक! दोस्त, इतनी सुंदर चीज तुम्हारे पास कहाँ से आई?”

अपना उल्लास व्यक्त करने के बाद वकील ने सहमते हुए दरवाजे की ओर देखा और कहा, “लेकिन दोस्त, तुम्हें अपना यह तोहफा वापस ले जाना होगा… मैं इसे नहीं ले सकता…।”

“क्यों, भाई?” डॉक्टर ने क्षुब्ध हो कर पूछा।

    “ऐसा इसलिए दोस्त क्योंकि कभी-कभी मेरी माँ मुझसे मिलने यहाँ आती है। मेरे मुवक्किल यहाँ आते रहते हैं… अगर मेरे नौकरों ने भी इस चीज को यहाँ देख लिया तो मुझे बहुत शर्मिंदगी महसूस होगी।”

    “बकवास! बिल्कुल बकवास! खबरदार तुमने इनकार किया तो!” डॉक्टर उत्तेजित होते हुए बोला, “तुम पाखंडी हो! यह तो केवल एक खूबसूरत कलाकृति है! इसकी गति… इसकी मुद्रा तो देखो! मैं इसके खिलाफ कुछ नहीं सुनूँगा! तुम मुझे नाराज कर दोगे! “

“यदि इस कलाकृति को प्लास्टर या अंजीर के पत्तों से थोड़ा ढक दिया जाता तो…।”

    लेकिन यह सुनकर डॉक्टर पहले से ज्यादा उत्तेजित हो गया। उस कलाकृति को वहीं छोड़कर वह गुस्से से पैर पटकता हुआ वहाँ से बाहर निकल गया, हालाँकि, घर लौट कर वह खुश हुआ कि उसे उस तोहफे से छुटकारा मिल गया था।

   जब डॉक्टर उस कलाकृति को वहीं छोड़कर वहाँ से चला गया, तो वकील ने उसे उँगलियों से छू कर देखा और फिर अपने डॉक्टर मित्र की तरह यह सोचने लगा कि आखिर वह इस तोहफे का क्या करे।

“यह वाकई एक बढ़िया कलाकृति है,” उसने सोचा, “और इसे फेंक देना अफसोसनाक होगा। लेकिन इसे अपने पास रख पाना मेरे लिए अनुचित होगा। सबसे बेहतर यही होगा कि मैं इसे किसी को तोहफे में दे दूँ… अब मैं समझ गया! मैं आज ही शाम इसे हास्य-अभिनेता शैशकिन को उपहार में दे देता हूँ। उस बदमाश को ऐसी चीजें अच्छी लगती हैं। वैसे भी आज रात उसके सहायतार्थ एक कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है।”

    जो कहा गया, वही किया गया। शाम में उस दीपाधार को तोहफे की चमकीली पन्नी में सावधानी से लपेट कर शैशकिन के कार्यक्रम में ले जाया गया। पूरी शाम उस हास्य-अभिनेता के सज्जा-कक्ष में उस तोहफे की प्रशंसा करने वालों का ताँता लगा रहा। सज्जा-कक्ष उत्साह और खिलखिलाहट की गूँज से भरा रहा, गोया वहाँ घोड़े हिनहिना रहे हों। यदि कोई अभिनेत्री दरवाजे पर आ कर पूछती, “क्या मैं अंदर आ सकती हूँ?” तो उसी समय हास्य-कलाकार की भारी आवाज गूँज उठती, “नहीं, नहीं, प्रिये, मैंने अभी वस्त्र नहीं पहन रखे!”

अपने अभिनय-प्रदर्शन कार्यक्रम के आयोजन के बाद हास्य-कलाकार ने अपने कंधे उचकाए, अपने हाथ ऊपर उठाए और कहा, “अब इस अरुचिकर चीज का मैं क्या करूँ? मैं अपने निजी मकान में रहता हूँ। यहाँ अभिनेत्रियाँ मुझसे मिलने आती रहती हैं। यह कोई फोटो तो है नहीं कि इसे उठाकर मैं किसी दराज में डाल दूँ!”

     “श्रीमान, बेहतर होगा कि आप इसे बेच दें,” उस हास्य-अभिनेता की केश-सज्जा करने वाले व्यक्ति ने उसे सलाह दी। “पास में ही एक वृद्धा रहती है जो प्राचीन कांस्य-कलाकृतियाँ खरीदती है। आप वहाँ जा कर श्रीमती स्मिरनोव के बारे में पूछ सकते हैं… वहाँ सभी उसे जानते हैं।”

    हास्य-अभिनेता ने यह सलाह मान ली… दो दिन बाद डॉक्टर अपने चिकित्सालय में बैठा था, और अपने माथे पर अपनी एक उँगली टिका कर वह पित्त के अम्ल के बारे में विचार कर रहा था। अचानक चिकित्सालय का दरवाजा खुला और साशा स्मिरनोव तेजी से कमरे में घुसा। वह मुस्करा रहा था और उसके पूरे मुखमंडल पर प्रसन्नता की कांति छाई हुई थी। उसने अपने हाथों में अखबार में लिपटी कोई चीज पकड़ रखी थी।

“डॉक्टर साहब!” उसकी साँस चढ़ी हुई थी, “आपको मेरी खुशी का अंदाजा नहीं होगा! खुशकिस्मती से हम आपके लिए उस दीपाधार का जोड़ा पाने में सफल हो गए हैं! मेरी माँ बहुत खुश है… मैं उनका इकलौता बेटा हूँ और आपने मेरी जान बचाई है…।”

     और साशा ने कृतज्ञता से काँपते हुए उस दीपाधार को डॉक्टर के सामने रख दिया। डॉक्टर का मुँह खुला रह गया। उसने कुछ कहना चाहा, पर उसके मुँह से कोई शब्द नहीं निकला : वह कुछ भी नहीं बोल पाया।

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