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कहानी : उप’कथा ही मूल’कथा

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~ नीलम ज्योति

       _छठवीं कक्षा ( एनसीईआरटी ) के अँगरेज़ी सिलेबस में यह कथा है जिसमें कथा के भीतर उपकथा चल रही है। वास्तव में उपकथा ही मूल कथा है।_

*कथा कुछ इस तरह है :*

        पम्बुपत्ति नाम के गाँव में धर्म को मुद्दा बनाकर दंगे भड़क गए हैं और प्रेम नाम का नवयुवक किसी तरह उस जलते हुए गाँव से अपनी जान बचाकर भागा है। पड़ोसी गाँव में एक बुजुर्ग उसकी मरहम-पट्टी करते हैं और उसे बचाते हैं।

      _प्रेम अपने गाँव लौटना नहीं चाहता तब बुजुर्ग उसे एक कथा सुनाते हैं और कहते हैं कि अपने गाँव वापस लौट कर लोगों को यह कथा सुनाओ।_

         बहुत पहले पम्बुपत्ति में केवल सरीसृप – मगरमच्छ, छिपकली, साँप, कछुए सभी आपस में मिलजुल कर रहते थे।

       इस समुदाय का अध्यक्ष मकरा था, जो हर महीने वन में एक सभा आयोजित करता था। 

एक बार सभा से हफ़्ते भर पहले एक विशेष बात हुई। मकरा ने सभी कछुओं को पत्र के माध्यम से मीटिंग में उपस्थित होने के लिए मना कर दिया। कछुओं के अध्यक्ष आहिस्तेय को यह बात नहीं जँची। पर वे क्या कर सकते थे। कछुओं की संख्या कम थी और मगरमच्छों की संख्या अधिक, साथ ही वे शक्तिशाली भी थे।

      _कछुओं पर लगे प्रतिबंध का स्पष्टीकरण सभा में मकरा ने इस तरह दिया कि कछुआ अच्छा प्राणी नहीं है। कौन प्राणी है जो इतना धीरे-धीरे चलता हो और अपनी पीठ पर अपने घर को उठाये रखता हो।_

       कुछ लोगों को कछुओं का वन-निकाला अच्छा लगा क्योंकि अब रहने के लिए अधिक स्थान होगा। खाने के लिए अधिक चीज़ें मिलेंगीं।

पर कुछ ही दिनों बाद एक अजीब बात हुई। फलों के ज़मीन पर सड़ने और पानी में जानवरों के मृत शरीरों की दुर्गंध फैलने लगी। ये वो चीज़ें थी जिन्हें कछुए खाते थे। क्या किया जा सकता था ? अंततः शेष जानवरों ने उस दुर्गंध के साथ जीने की आदत डाल ली।

       _अगले महीने नया वाक़या हुआ। इस बार साँपों को सभा में नहीं बुलाया गया और उन्हें  एक दिन में जंगल छोड़ने का आदेश दे दिया गया। मकरा ने स्पष्टीकरण दिया कि साँप चिपचिपे होते है और कोई नहीं जानता कि कब वे अपना विष उगल दें।_

        अधिकतर जानवर कुछ नहीं बोले और कुछ जानवर खुश भी थे क्योंकि अब उन्हें साँपों का कोई भय न था। 

पर कुछ हफ़्तों बाद अजीब बात हुई, चूहों की संख्या काफी बढ़ गयी क्योंकि साँपों के  बाद चूहों का सफ़ाया  करने वाला कोई न था। चूहे, छिपकलियों और मगमच्छों के अंडे और छोटे बच्चों को खा गए, यहाँ तक कि अध्यक्ष मकरा के अंडे भी चूहे के आतंक से बच न सके।

      _तभी मकरा को एक बात  सूझी। उसने सभा बुलाई और कहा कि क्यों न जंगल में सिर्फ मगरमच्छ रहें। छिपकलियों को कौन पसंद करता है, उनकी आदतें  भी अजीब हैं और वे अपना रंग भी बदलती हैं।_

      सभी मगरमच्छोंं ने तालियाँ बजायीं और ख़ुशी ज़ाहिर की। कुछ ही दिनों में सभी छिपकलियाँ अपने बच्चों समेत पंबुपत्ती  से चली गईं। 

अब जंगल में बड़ी अजीबो-ग़रीब घटनाएँ घटने लगीं। चूहों की संख्या काफ़ी बढ़ गयी थी। वे अब मगरमच्छ की पीठ पर चढ़ कर नाचने लगे थे। इधर नदियों में मेंढकों की संख्या बढ़ गयी थी, वे मगरमच्छ के बच्चों को अपना भोजन बना रहे थे। कीड़ों-मकोड़ों की संख्या में भी बढ़ोतरी हो गयी थी।

      _यह समय मगरमच्छों के लिए बहुत ख़राब था। कोई समझ नहीं पा रहा था कि क्यों ऐसा हो रहा है। सभी मकरा से उत्तर चाहते हैं मगर मकरा भयभीत जान पड़ता था। अब सब समझ चुके थे कि मकरा को भी डर लगता है। तब एक नन्हा मगरमच्छ अपनी राय रखता है कि वन के सभी पुराने रहवासियों को वापस बुलवा लिया जाए, केवल तभी स्थिति सुधर सकती है। राय सबको जँचती है। मकरा को अपनी भूल का एहसास होता है।_

      कुछ ही दिनों ने पम्बुपत्ति पहले जैसा हो जाता है और हर तरफ़ ख़ुशहाली छा जाती है। 

विविधता और सह-अस्तित्त्व के महत्त्व को रेखांकित करने वाली इस कथा के बाद बच्चों के साथ प्रीतिकर चर्चा होती है। बच्चे कहते हैं कि बड़े जन भी मकरा की तरह ही कुछ कम समझदार जान पड़ते हैं। मैं बच्चों से कई तरह के प्रश्न पूछती हूँ।

     _मसलन कि लड़ने की क्रिया जीवन में अनिवार्य ही हो और तुम्हें अपनी लड़ाई के चयन का अधिकार हो तो तुम किस बात के लिए लड़ना चाहोगे ?_

        तनिष्क कहता है वह पेड़ों के लिए लड़ेगा। मान्या कहती है वह पानी बचाने के लिए लड़ेगी। शौर्य पशुओं के प्रति संवेदनशील है। वह बाघ और व्हेल को बचाना चाहता है। उत्कर्ष कहता है कि वह भगवान के लिए लड़ेगा। उसके घर में सभी लोग भगवान के लिए लड़ते हैं।

       _हर्षिल उत्कर्ष को मेरी पुरानी बात का हवाला देकर ख़ारिज करता है कि भगवान स्वयं को नहीं बचा सकते तो हम क्यों बचाएँ। वृत्ति पकने के पहले ही उत्कर्ष को संतुष्टिपूर्ण उत्तर मिल चुका है। वह हर्षिल से सहमति जताता है।_

       अग्रिम ने खेल के मैदानों के लिए लड़ने की बात की है। आरुषि कहती है कि मैं पढ़ाई के लिए लड़ूँगी।

मैं पूछती हूँ तुम अपनी जाति, अपनी भाषा, अपने धर्म, अपनी श्रेष्ठता प्रमाणित करने के लिए नहीं लड़ोगे ? निशा कहती है, फिर हम में और मकरा में क्या फ़र्क़। हमारी स्थिति भी मकरा जैसी हो जाएगी।

      _नैन्सी ने दिल जीत लिया है। वह कहती है कि वह अपनी बुराइयों से लड़ेगी। मैंने उसे गले से लगाया।_

        यह भावपूर्ण सत्र है। मेरे विद्यार्थी मुझे ध्यान से सुनते हैं, समझते हैं। उनकी आँखों की लौ मुझे आश्वस्त करती है।

      भविष्य में कौन-क्या करेगा, कोई नहीं जानता। पर मैं सन्तुष्ट हूँ कि मुझे उनकी पारदर्शी संगति का अवसर मिलता है।

मैं कहती हूँ कि आज तुम सबने अपनी लड़ाइयाँ चुन लीं। भौतिक रूप से मैं हमेशा तुम्हारे साथ नहीं हो सकती। मगर अभी, अपने साथ के दिनों में तुम्हें बता सकती हूँ कि तुम्हारा हथियार क्या हो, तुम्हारी लड़ाई का ढंग क्या हो। यही मेरा काम है। इसके लिए ही मैं तुम्हारे बीच हूँ।

       _जाओ, बच्चो। अपनी लड़ाइयाँ लड़ो। अभी से लड़ो। ये धरती तुम्हारी है। इस हवा और पानी पर तुम्हारा अधिकार है। और यह धरती देने का ढंग जानती है। इसे कभी लूटना मत। इसे प्रेम करना, यह स्वयं तुम पर लुट जाएगी।_

    अब तुम जाओ, और यह कथा अपने घर के बड़ों को सुनाओ।

पीरियड समाप्त होने की घन्टी बज गयी है। ख़ुशी मेरे साथ बाहर तक निकल आयी है। वह मुझसे मेरी लड़ाई पूछती है। मैं कहती हूँ कि मैं अब बाहर नहीं लड़ती। तब भी मैं एक बड़ी लड़ाई का हिस्सा हूँ। 

     _तुम एक दिन जान जाओगी कि नहीं लड़ना, बहुत बड़ी लड़ाई है।_

    (चेतना विकास मिशन)

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