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*कहानी- भूत*

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        ~ प्रखर अरोड़ा 

    रोज रोज कल्पना कर कहानियाँ लिखना आसान नहीं है। मगर कहानियाँ लिखना तो मेरी आदत सी बन गयी है। आधे घंटे से मोबाइल हाथ मे लिए बैठा हूँ मगर अभी तक असफलता ही मिली है। 

     मेरी आदत है कि पहले मैं कहानी का शीर्षक चुनता हूँ, फिर उसके अनुसार कथानक लिखता हूँ। आज कोई भी धूमधड़ाम करने लायक शीर्षक दिमाग मे नहीं आया। “मेहरी क तीज आ माई क जिउतिया” यह शीर्षक मन मे आया। परन्तु यह भोजपुरी शीर्षक है भोजपुरी लिखने मे बहुत दिक्कत आती है। किसी और दिन इसपर कहानी लिखूंगा।

      सहसा “भूत” नामक यह शीर्षक दिमाग मे आया है, इसका कथानक सच्चा है। इस कहानी के पात्रों को मैंने बचपन मे अपनी आंखों से देखा है। 

     आज से पचास साल पहले की बात है।तबके गाँव ऐसे नहीं थे जैसे कि आज दिखाई देते हैं।

       पूस का महीना जाड़ा अपनी जवानी पर था।सुबह के दस बजे हैं मगर सूर्य भगवान कोहरे की रजाई ओढ़े अभी भी अलसाये पड़े हैं। सूर्य का क्या वह तो देवता ठहरे, अमृतपान कर लेने के बाद से तो यह अजर अमर हो गये। इनको अब भूख प्यास कहाँ लगती है। 

    आदमी तो हाड़ मांस का बना है, उसे तो भूख प्यास लगती है। किसानों और खेतिहर मजदूरों के  गाँव मे लोग पांच बजते बजते जग जाते हैं। जाड़े के दिनों मे हर दरवाजे पर अलाव जलता है, घरों मे औरते बोरसी (कच्चे मिट्टी का बनी एक बड़ी कड़ाही) मे आग जलाकर रखती हैं। बाहर पुरुष जानवरों को चारा पानी देते हैं। घर मे औरतें अनाज लेकर जांता( हाथ से आटा पीसने की चक्की) पर बैठ जाती हैं।

     उस समय अधिकतर घर मे चल रहे जांत की घरर घरर की आवाज और जांत को चला रही औरतों के गान का समवेत संगीत एक अलग ही समा बिखरा देता है। ऐसा लगता है जैसे दूर पहाड़ों पर सैकड़ों झरनों का प्रपात हो रहा हो। 

    गाँव के अन्य घरों मे भले ही औरतें अनाज पीसने रोटी बनाने का काम करती हों, मगर रजमन और भजमन भगत के घर ऐसा नहीं होता। यह सारा काम दोनों भाई ही किया करते हैं। कारण इनके घर कोई औरत है ही नहीं। माँ मर गयी इनके शरीर पर हल्दी ही नहीं लगी। आबनूस की तरह काले छ फुट लम्बे हैं दो के दोनों।

    कोढ मे खाज यह कि महज एक बीघा जमीन। कोई कठकरेज ही होगा जो इनसे अपनी बेटी ब्याहेगा। 

    इस समय दोनों ही भाई दोपहर का भोजन कर रहे हैं। बीते एक सप्ताह से दोनों भाइयों ने अनाज नहीं पीसा है, जब घर मे अनाज है ही नहीं पीसे पकायेंगें क्या खाक?  एक सप्ताह से दोनों टाईम उबालकर काला गाजर खाते हैं। दो कट्ठा गाजर बो दिए थे इसी अकाल के लिए। 

  सुबह शाम ई मीठा गाजर खाते खाते मन ऊब गया है। आलू अभी हुआ नहीं कि शाही खोदकर खा गये। पता नहीं मटर कबतक होगा, हो जाता तो उसकी नमकीन घुघरी खाकर सवाद बदलते।उबला गाजर खाते हुए बड़े भाई रजमन ने कहा। 

     मुझको तो लगता है इस साल मटर की घुघरी और लिट्टी दोनों हमारे मुंह मे नहीं जायेगा। 

     हं आ ऐसा क्या हुआ, पांच कट्ठा मटर बोया गया है ऊ कौन खायेगा? 

   (गाली देकर) चोट्टा तपेसरा की भैंस खायेगी। सुबह आया हूँ खेत देखकर। आधा कट्ठा साफ, साफ उसी के पैरों का निसान है। 

    इतने जाड़े मे रात की रखवाली भी तो जानलेवा है, ना जाने कब आयेगा चोर, पूरी रात कौन अगोरिया (जागकर रखवाली) करेगा। 

    मरूँ या जिऊँ मैं तो आज रात से वहीं रहूंगा,कल को भूखा मरने से आज ही जाड़े से मर जाना अच्छा है। 

       जाड़े के सूरज को भी डूबने की जल्दी होती है, ऐसा लगता है जैसे ठंडी से घबराकर वह भी जल्द से जल्द अपने घर पहुंचना चाहते हों। ऐसे जाड़े की रात मे आठ बजे भजमन मटर के खेत मे पहुँच गये हैं। एक धोती कमर मे पहने एक ओढे हुए। इन दोनों धोतियों के अलावा बदन पर रुई का एक रेशा तक नहीं है।

    अभी अंडरवियर का चलन गाँव तक नहीं पहुंचा था। खेत से दस कदम की दूरी पर एक लसोर का जंगली पेड़ था।बच्चों के दिन भर झूलने से वह टेढा हो गया था। कहीं नींद न आ जाये ऐसा सोच कर भजमन भगत अपनी ओढी हुई धोती की तकिया बना उसी पेड़ पर चढ उठंग गये।

     गरीबी और जवानी दोनों ही जाड़े से दो दो हाथ करती रहती हैं। यहाँ तो एक ही शरीर मे गरीबी और जवानी दोनों इकट्ठी थीं। जाड़े की हार हुई और भजमन भगत नींद की आगोश मे समा गए।

    ऊंह की आवाज से उनकी जब नींद खुली तब चोर मटर का बोझ लेकर चल दिया था। पेड़ से कूदे तो धप की आवाज हुई, चोर ने पीछे मुड़कर देखा। बिना कपड़े की नंगधडंग एक मूरत थोड़ी दूर पर खड़ी है। भजमन की पहनी हुई धोती ढीली होकर पेड़ पर रह गयी थी। मारे शर्म के बोल नहीं पाये। चोर तपेसरा ही था मनबढ़ और मजबूत डर भी शर्म के साथ डर भी लग रहा था। 

   चोर बोझ लेकर चला, पीछे पीछे  यह भी चले। चोर ने मुड़कर देखा और डरकर बोझ पटक भाग चला। कुछ दूर तक भजमन दौड़ा़ए मगर अपनी स्थिति पर विचार कर वापस चले आये। रखवाली के बावजूद चोरी हो जाने की ग्लानि लिए घर लौट आये। 

       अगले दिन दोनों भाई तपेसरा के घर नालिश करने पहुंचे। उसके दरवाजे पर सोखयीती हो रही थी। पूछने पर पता चला किसी भूत ने पकड़ रखा है। बार बार बेहोश हो जा रहे हैं। काला लंबा नंग धड़कन भूत। 

     दोनों भाई आपस मे सोच समझ वापस चले आये। 

            आज सूरज भगवान समय से उदय हो गये हैं। रजमन भजमन दोनों भाई एक एक कटोरा हरे मटर की घुघरी खा रहे हैं। 

     बड़ी मीठी लग रही है घुघरी, रजमन ने भजमन से कहा। 

     हाँ भैया, भूत ने इसकी रखवाली जो किया है। तपेसरा को तो बहुते कड़वा लगा ई मटर। भूत भगाने वाले सोखा सड दो खस्सी (बकरा) और दो लम्मरी (सौ का नोट) भूत उतराई ले लिए। उसके ऐसा चोर आदमी अब शाम से पहले घर लौट आता है। उसे डर है कहीं काला, लम्बा, नंगधडंग भूत…!

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