डॉ. विकास मानव
मोनिका की जब आंख खुली, तब उसका शरीर बुरी तरह टूट रहा था. कुछ अजीब-सा एहसास होने पर उसने अपने शरीर पर पड़ी चादर हटाई. वह पूरी तरह र्निवस्त्र थी. उसके कपड़े डबल बेड के एक कोने में पड़े थे.
यह सब कैसे हो गया? वह यहां कैसे आ गई? वह तो… वह तो… अमन को अपने नोट्स दिखाने उसके घर आई थी. अमन! अमन कहां गया? क्या उसे नहीं मालूम कि उसके साथ यह सब क्या हो गया? कहीं इस सबके पीछे उसी का हाथ तो नहीं? नहीं… नहीं… अमन ऐसा नहीं कर सकता. वह तो उससे प्यार करता है. फिर यह सब किसने और कैसे किया?
मोनिका का दिमाग़ चकरा कर रह गया. उसके सोचने-समझने की शक्ति समाप्त होती जा रही थी. किसी तरह अपने टूटते शरीर को संभालते हुए वह बिस्तर से उतरी. कपड़े पहनने के बाद उसने बेडरूम का दरवाज़ा खोलने की कोशिश की, लेकिन वह बाहर से बंद था. उसने कई बार दरवाज़ा थपथपाया, लेकिन कोई आहट नहीं मिली. परेशान मोनिका लस्त-पस्त-सी वहीं रखे सोफे पर गिर पड़ी.
अमन एक प्रभावशाली मंत्री दीनानाथ चौधरी का एकलौता बेटा और उसका सहपाठी था. दोनों एक-दूसरे को पसंद करते थे. अमन तो कई बार उससे अपने प्यार का इज़हार कर चुका था. वह उसे महंगे होटलों में घुमाने ले जाना चाहता था, लेकिन मोनिका अभी अपना पूरा ध्यान पढ़ाई पर केन्द्रित किए हुए थी. उसका लक्ष्य सिविल सर्विस में जाने का था, इसलिए करियर बनने के बाद ही वह इन सब बातों के बारे में सोचना चाहती थी.
अमन अक्सर काॅलेज नहीं आता था, तब मोनिका उसे अपने नोट्स दे देती थी. इस बार अमन एक सप्ताह तक काॅलेज नहीं आया. मोनिका ने फोन किया, तो पता चला कि उसे बुखार है. वह आज ही काॅलेज आया था. मोनिका ने जब उसे अपने नोट्स दिए, तो उसने कहा, ‘‘मोनिका, मुझे बहुत कमज़ोरी लग रही है. प्लीज़ आज मेरे घर चल कर मेरे नोट्स तैयार करवा दो. इसी बहाने मम्मी से भी तुम्हारी मुलाक़ात हो जाएगी.’’
मोनिका तैयार हो गई. अमन की कार में जब वह उसके घर पहुंची, तो अमन ने बताया कि मम्मी मंदिर गई हैं. दस-पांच मिनट में आती होंगी. उसने फ्रिज से निकाल कर उसे कोल्ड ड्रिंक्स दी, जिसको पीने के बाद उसका सिर चकराने लगा था उसके बाद क्या कुछ हुआ मोनिका को याद नहीं आ रहा था.
किंतु तस्वीर अब बिल्कुल साफ़ हो चुकी थी. उसकी अस्मत से खिलवाड़ अमन ने ही किया था. उस अमन ने, जिससे वह प्यार करती थी. मोनिका की आंखों से आंसू बह निकले. अपने शरीर को संभालते हुए वह एक बार फिर उठी और पूरी शक्ति से दरवाज़ा पीटने लगी.
इस बार दरवाज़ा खुल गया. सामने ही अमन खड़ा था. उसकी आंखें नशे से लाल थीं. उसे देखते ही मोनिका उसके सीने पर घूंसे बरसाते हुए फफक पड़ी, “अमन, यह क्या किया तुमने?’’
‘‘प्यार किया है. जी भर कर तुम्हें प्यार किया है.” अमन मुस्कुराया.
‘‘यह प्यार नहीं है. यह पाप है.’’ मोनिका ने सिसकी भरी
‘‘अरे पगली, यही सच्चा प्यार है, जो एक लड़का एक लड़की से करता है.’’ अमन ने मोनिका की ठुड्डी को ऊपर उठाते हुए उसकी कोपलों को चूमा.
मोनिका ने अपनी अश्रुपूरित पलकों को उठाकर अमन के चेहरे की ओर देखा, फिर उसके चौड़े सीने पर सिर टिकाते हुए बोली, ‘‘अमन, अब मुझसे शादी कर लो.’’
जैसे बिजली का झटका लगा हो. अमन ने मोनिका को अपने सीने से अलग कर दिया और उसकी दोनों बांहों को पकड़ते हुए बोला, ‘‘मैं तुमसे प्यार करता हूं और करता रहूंगा. मेरे पास इतने पैसे है कि तुम्हें हमेशा ख़ुश भी रखूंगा, लेकिन यह शादी-वादी का ख़्वाब देखना छोड़ दो. यह संभव नहीं है.”
जैसे तुषारपात हुआ हो. मोनिका ने अपने को अमन की बांहों से छुड़ा लिया और भर्राये स्वर में बोली, ‘‘इसका मतलब तुम पैसे के बल पर मुझे अपनी रखैल बनाना चाहते हो.’’
‘‘छी… छी… यह तो बहुत गंदा शब्द है. मैं तुम्हें रखैल नहीं, बल्कि तुम्हारा करियर बनाना चाहता हूं. मेरे डैडी के इतने कान्टैक्ट हैं कि मैं तुम्हें ज़मीन से उठाकर आसमान पर पहुंचा दूंगा.’’ अमन ने मोनिका का हाथ थाम लिया.
‘‘बहुत बड़ी ग़लतफ़हमी है तुम्हें. अपने बाप के पैसे और उनके कान्टैक्ट के बारे में.’’ मोनिका ने एक झटके से अपना हाथ छुड़ा लिया और फुंफकारती हुई बोली, “तुमने ग़लत जगह हाथ डाल दिया है. मैं तुम्हें छोडूंगी नहीं. पुलिस में तुम्हारे ख़िलाफ़ रिर्पोट लिखवाऊंगी.”
‘‘फिर वही मिडिल क्लास मेंटेलेटी.’’ रमन बेशर्मी से मुस्कुराया. फिर बोला, ‘‘मुझे यक़ीन था कि तुम कुछ ऐसा ही कर सकती हो, इसलिए मैंने उसका भी प्रबंध कर रखा है.’’
इतना कहकर उसने अपना मोबाइल निकाला और उसे मोनिका की ओर बढ़ाते हुए बोला, ‘‘इत्मिनान से देख लो. इसमें सारे कांड की वीडियो क्लिपिंग मौजूद है. अगर तुमने कोई भी मूर्खता की, तो इसकी काॅपी सबसे पहले तुम्हारे घरवालों के पास पहुंचेगी, फिर पूरे शहर में. उसके बाद अपनी बर्बादी की ज़िम्मेदार तुम स्वयं होगी.”
मोनिका ने उस वीडियो क्लिपिंग की एक झलक देखी, तो उसके पैरों तले से ज़मीन खिसक गई. उसे अपनी टांगे कांपती हुई महसूस हुई और वह एक बार फिर उस कमरे में रखे सोफे पर गिर पड़ी.
‘‘कोई जल्दी नहीं है. इत्मिनान से इसे देख लो, फिर अपना फ़ैसला सुनाना. मैं इंतज़ार करूंगा.’’ अमन मोबाइल मोनिका के हाथों में थमा कर बाहर चला गया.
मोनिका के अंतर्मन में हाहाकर मचा था. उसका रोम-रोम कांप रहा था. अपनी बेबसी पर एक बार फिर उसके आंसू निकल आए. वह समझ गई थी कि अब इस अंधेरी सुरंग से बाहर निकल पाना संभव नहीं था. उसे अमन के इशारों पर नाचना ही होगा. उसे अमन की सेक्स-स्लेव बनना ही पड़ेगा.
सेक्स-स्लेव! मोनिका की सोच को झटका लगा. वह देश की सबसे शक्तिशाली सेवा सिविल सर्विसेज़ की तैयारी कर रही थी. एक दिन प्रशासन की बागडोर थामना उसका सपना था और वह एक गुंडे के सामने हार मान लए? नहीं वह इतनी कमज़ोर नहीं है. वह इसका मुक़ाबला करेगी. उसके साथ जो अन्याय हुआ है उसका प्रतिकार करेगी.
मोनिका की धमनियों का खून खौलने-सा लगा. उसके जबड़े भिंच गए. अपने आंसू पोंछते हुए वह दूसरे कमरे में पहुंची. वहां अमन बहुत इत्मिनान से मेज पर टांगे फैलाए बियर पी रहा था.
‘‘स्वीट हार्ट, क्या फ़ैसला लिया?’’ अमन ने मुस्कुराते हुए पूछा.
‘‘फ़ैसला लेना इतना आसान नहीं है.’’ मोनिका ने शांत स्वर में कहा फिर बोली, ‘‘अगर हो सके, तो इस वीडियो की एक काॅपी मुझे भी दे दो. उसे घर पर इत्मिनान से देखने के बाद ही मैं कोई फ़ैसला ले सकूंगी.”
‘‘वीडियो की काॅपी क्या, मेरी तरफ़ से तोहफ़ा समझ कर तुम यह मोबाइल ही रख लो. वीडियो की मेरे पास दूसरी काॅपी मौजूद है.’’ अमन ने कंधे उचकाए फिर एक-एक शब्द पर ज़ोर देते हुए बोला, ‘‘तुम्हारी इज्ज़त अब तुम्हारे ही हाथ में है. मुझे विश्वास है कि तुम सही फ़ैसला ही लोगी.’’
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मोनिका ने उसकी बात का कोई उत्तर नहीं दिया और मोबाइल लेकर बाहर निकल आई.
घर पर मम्मी-पापा उसकी ही प्रतीक्षा कर रहे थे. उसे देखते ही मम्मी ने घबराए स्वर में कहा, ‘‘बेटी, बहुत देर कर दी. कहां रह गई थी?’’
‘‘मम्मी, अमन ने मेरे साथ रेप कर दिया है.’’ मोनिका ने बताया. उसका चेहरा इस समय भावशून्य हो रहा था.
‘‘क्या कर दिया?’’ मम्मी को अपने सुने पर विश्वास नहीं हुआ.
‘‘मेरा रेप कर दिया है.’’ मोनिका के होंठ यंत्रवत हिले.
‘‘क्या कहा तूने? क्या कर दिया है?’’ मम्मी को अभी भी अपने सुने पर विश्वास नहीं हो रहा था.
‘‘कितनी बार बताऊं कि अमन ने मेरा रेप कर दिया है. रेप… रेप यानी बलात्कार.’’ मोनिका झल्ला-सी उठी.
‘‘हाय, बेहया, बेशर्म, बेगैरत. मुंह काला करके आ रही है और बता ऐसे रही है जैसे बहुत बड़ा ईनाम जीतकर आ रही है. यह सब बताते हुए तुझे लज्जा नहीं आई.’’ मम्मी ने रोते हुए मोनिका पर थप्पड़ों की बरसात कर दी.
‘‘मम्मी, मुंह मैंने नहीं, बल्कि अमन ने काला किया है. लज्जा मुझे नहीं, बल्कि अपने कुकर्मो पर उसे आनी चाहिए.’’ मोनिका ने पीछे हट मम्मी के वार से अपने को बचाया, फिर बोली, ‘‘मुझे ब्लैकमेल करने के लिए उसने वीडियो भी बनाई है. मैं उसकी एक काॅपी ले आई हूं. वही उसके ख़िलाफ़ सबसे बड़ा सबूत होगा. मेरे साथ पुलिस स्टेशन चलिए. मुझे उसके ख़िलाफ़ रिपोर्ट लिखवानी है.’’
‘‘बेटा, जो हुआ है उसे भूल जा. रिपोर्ट लिखवाने से पूरे खानदान की नाक कट जाएगी. हम किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहेगें.’’ मम्मी ने रोते हुए मोनिका को अपने सीने से लिपटा लिया और उसकी पीठ सहलाने लगीं.
‘‘मम्मी, अगर रिपोर्ट लिखवाई तो हम लोग नहीं, बल्कि वे लोग किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहेगें. नाक हमारी नहीं, बल्कि उनकी कटेगी.’’ मोनिका ने अपने को अलग किया फिर बोली, ‘‘अगर रिपोर्ट नहीं लिखवाई, तो मैं घुट-घुट कर जीती रहूंगी. सोते-जागते उस अपराध की सज़ा भुगतूंगी, जो मैंने नहीं, बल्कि किसी और ने किया है.’’
‘‘तू समझती क्यूं नहीं. हम लड़कीवाले हैं. बदनामी हमेशा लड़की की ही होती है.’’ इतना कहकर मम्मी अपने पति किशोर दयाल की ओर मुड़ीं और तड़पते हुए बोलीं, ‘‘आप मौन क्यूं खड़े हैं? इसको समझाते क्यूं नहीं?’’
किशोर दयाल अब तक हतप्रभ से खड़े थे. अचानक वे चौंक से पड़े और मोनिका के सिर पर हाथ फेरते हुए बोले, ‘‘बेटा, जो हुआ उसे भूल जा. पुलिस-वुलिस तक जाना ठीक नहीं है.’’
‘‘पापा, यह आप कह रहे है जिन्होंने मुझे हमेशा अन्याय के ख़िलाफ़ लड़ना सिखलाया है.’’ मोनिका तड़प उठी, फिर बोली, “छह महीने पहले उचक्कों ने मम्मी की चेन खींच ली थी, तब आप पुलिस के पास गए थे या नहीं?’’
‘‘बेटा, चेन लुटने और इज्जत लुटने में फ़र्क होता है.’’ पापा का दर्द उनके स्वर में छलक आया.
‘‘क्या फ़र्क है?’’ मोनिका का स्वर उत्तेजना से कांप उठा, ‘‘मेरा शील भंग हुआ है. अगर मेरा कोई और अंग भंग हुआ होता, हाथ-पैर टूटे होते, तो क्या आप मुझे डाॅक्टर और पुलिस के पास नहीं ले जाते?’’
‘‘जो तू कह रही है, वह सब सच है. मगर वे सब बहुत प्रभावशाली लोग हैं. अमन का बाप कैबनिट मंत्री है.’’ पापा ने बेबसी से हाथ मले.
‘‘इसका मतलब आप उनसे डर रहे हैं?’’
‘‘मैं उनसे नहीं, बल्कि तेरी इज्ज़त से डर रहा हूं.’’ पापा कसमसाए.
‘‘कौन-सी इज्ज़त! जिसे देखा नहीं जा सकता, जिसे नापा नहीं जा सकता, उसे बचाने की ख़ातिर मैं हार नहीं मानूंगी. अगर आप लोग मेरा साथ नहीं दे सकते, तो मैं अकेले पुलिस स्टेशन जा रही हूं. मैं हर हाल में अमन को उसके किए की सज़ा दिलवाऊंगी. मैं लड़की हूं यह सोच कर चुप नहीं रहूंगी.’’ मोनिका ने कहा और सधे कदमों से दरवाज़े की ओर मुड़ पड़ी.
किशोर दयाल ने दरवाज़े तक पहुंच चुकी मोनिका को देखा, फिर लड़खड़ाते कदमों से उसके पीछे आते हुए बोले, ‘‘रुक जा बेटी, मैं तेरे साथ हूं.’’
भावनाओं का तूफ़ान लिए दोनों पुलिस स्टेशन पहुंच गए. पुलिस इंस्पेक्टर ने ध्यान से उनकी बात सुनी, फिर किशोर दयाल की ओर मुड़ते हुए बोला, ‘‘ये आजकल की पीढ़ी बहुत जल्दी में है. सोचती है कि दुनिया को बदल देने की सारी ज़िम्मेदारी उनके कंधों पर ही है. भले ही मुंह के बल क्यूं न गिरे, लेकिन रीति-रिवाज़ों को तोड़ेगें ज़रूर, मगर आप तो पढ़े-लिखे और समझदार आदमी है. क्या आपको अंदाज़ा नहीं है कि आप कितनी बड़ी ग़लती करने जा रहे हैं?’’
‘‘इंस्पेक्टर साहब, ग़लती हमने नहीं, बल्कि अमन ने की है और उसे इसकी सज़ा मिलनी ही चाहिए, इसलिए आप उसके ख़िलाफ़ रिपोर्ट लिखिए.’’ मोनिका ने कहा.
‘‘मैडम, समझने की कोशिश करिए. रिपोर्ट-विपोर्ट लिखवाने से कुछ नहीं होगा. वह बहुत बड़े बाप का बेटा है. आप साबित नहीं कर पाएंगी कि उसने आपके साथ रेप किया है.’’ इंस्पेक्टर ने समझाने की मुद्रा में कहा.
‘‘इसका सबूत तो यह वीडियो है, जिसे उसने मुझे ब्लैकमेल करने के लिए बनाया है.” मोनिका ने एक-एक शब्द पर ज़ोर देते हुए कहा.
‘‘अदालत में ऐसे सबूत चुटकियों में उड़ जाएंगे. उनका वकील साबित कर देगा कि यह ट्रिक फोटोग्राफी से बनाई गई नकली वीडियो है, जिसे माननीय मंत्री को बदनाम करने के लिए बनाया गया है. इसलिए मेरी राय मानिए, चुपचाप घर जाइए. बेकार में अपनी बदनामी करवाने से आपको कोई फ़ायदा नहीं मिलनेवाला.” इंस्पेक्टर ने समझाने की कोशिश की.
‘‘इसका मतलब मंत्रीजी के डर के कारण आप रिपोर्ट नहीं लिखेगें, जबकि उसे लिखना आपकी ड्यूटी है.’’ मोनिका का स्वर तेज हो गया.
‘‘देख लड़की , तेरे साथ कुछ उल्टा-सीधा हुआ है, इसलिए इतनी देर से समझा रहा हूं. चुपचाप घर चली जा. ज़्यादा उछलेगी-कूदेगी तो हो सकता है कि कल की तारीख़ में तेरे ही ख़िलाफ़ रिपोर्ट लिख जाए कि मंत्रीजी को ब्लैकमेल करने के लिए तूने ख़ुद उनके बेटे को फांस कर यह वीडियो बनवाई है. उसके बाद तू न घर की रहेगी न घाट की.” इंस्पेक्टर का लहजा अचानक ही सख़्त हो गया.
‘‘आप इतना बड़ा अन्याय कैसे कर सकते हैं?’’ मोनिका की आंखें एक बार फिर छलछला आईं.
‘‘मैं और भी बहुत कुछ कर सकता हूं जिसके बारे में तू सोच भी नहीं सकती.’’ इंस्पेक्टर ने एक बार फिर सख़्त स्वर में कहा. फिर अचानक ही अपने स्वर को मुलायम बनाता हुआ बोला, ‘‘तुम अभी बहुत छोटी हो, इसलिए तुम्हें मालूम नहीं कि ये दुनिया कितनी जालिम है. मैं भी बीवी-बच्चोंवाला हूं. उन्हें पालने के लिए मुझे भी नौकरी करनी है, इसलिए मंत्री के बेटे के ख़िलाफ़ मैं तो क्या कोई भी रिपोर्ट नहीं लिखेगा.’’
सच्चाई से रूबरू हो मोनिका और किशोर दयाल पुलिस स्टेशन से निकल पड़े. वे दोनों पुलिस-कप्तान के पास भी गए, मगर वे भी कोरी सहानभूति जताते रहे. सरकार के सबसे प्रभावशाली मंत्री के बेटे के ख़िलाफ़ रिपोर्ट लिखने का निर्देश देने का साहस उनमें भी न था.
किशोर दयाल निराश हो चुके थे, मगर मोनिका हार मानने को तैयार न थी. कुछ सोच कर उसने कहा, ‘‘पापा, आजकल मीडिया सबसे सशक्त हथियार है. हम किसी बड़े अख़बार के सम्पादक से मिलते हैं. अगर एक बार यह ख़बर छप जाए, तो अमन का बाप उसे चाहकर भी नहीं बचा पाएगा.’’
‘‘ठीक है.’’ किशोर दयाल ने सहमति जताई.
दोनों राजधानी के एक प्रमुख समचार-पत्र के सम्पादक के पास पहुंचे. पूरी बात सुन उसने बिना किसी लाग-लपेट के कहा, ‘‘माफ़ कीजिएगा मैं इस आग में अपने हाथ नहीं जला सकता.’’
‘‘यह आप क्या कर रहे हैं सर. प्रेस और मीडिया को तो लोकतंत्र का चौथा खंभा कहा जाता है. अगर अन्याय के ख़िलाफ़ आप आवाज़ नहीं उठाएंगे तो और कौन उठाएगा?’’ मोनिका ने विनती की.
‘‘मैडम, हम चौथा खंभा ज़रूर हैं, लेकिन हर खंभे को एक छत की ज़रूरत होती है. बिना छत के किसी खंभे का कोई वजूद नहीं होता है. आप लोगों को तीन या चार रुपए में जो अख़बार मिलता है, वह विज्ञापनों के दम पर ही इतना सस्ता पड़ता है. मैं इस स्कैंडल को उछालकर अपने अख़बार को बिना किसी छत के नहीं कर सकता. अख़बार चलाने के लिए मुझे भी सरकारी विज्ञापनों की उतनी ही ज़रूरत है, जितना जीवित रहने के लिए आक्सीजन की.’’ सम्पादक ने सत्य से परिचय करवाया.
‘‘एक सीधी-सादी लड़की की इज्ज़त लुट गई और आप इसे स्कैंडल कह रहे हैं?’’ मोनिका का स्वर दर्द से भर उठा.
‘‘एक बार तो आपकी इज्ज़त लुट चुकी है उसे और लुटाने पर क्यूं तुली हैं? अगर ज़्यादा शौक है, तो किसी और अख़बार को पकड़ लीजिए और मुझे माफ़ कर दीजिए.’’ सम्पादक ने उन्हें बिदा करने के दृष्टि से हाथ जोड़ दिए.
लोकतंत्र का चौथा खंभा कितना खोखला है, यह आज पता चल गया. अपनी-अपनी मजबूरी और अपने-अपने तर्क, मगर कोई भी सम्पादक कमज़ोर कंधों का साथ देने के लिए तैयार न हुआ. मज़बूत के साथ खड़े होने में ही मज़बूती होती है, इस सत्य से सभी बख़ूबी वाकिफ़ थे.
धीरे-धीरे शाम हो गई थी. अंधेरा घिरने लगा था. एक ही दिन में जितने सत्य से परिचय हुआ था उसने मोनिका को बुरी तरह झकझोर दिया था. उसका शरीर बुरी तरह थक गया था. उसमें कम से कम आज किसी और के दरवाज़े पर जाने की हिम्मत शेष नहीं बची थी.
पापा का हाथ थामे वह चुपचाप घर लौट आई. मम्मी अंधेरे में ही बैठी थी. किशोर दयाल ने आगे बढ़ कर लाईट जलाई, तो मम्मी ने पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’
प्रत्युत्तर में किशोर दयाल ने पूरी बात बताई, जिसे सुन मम्मी सिसकारी भर कर रह गईं. काफ़ी देर तक कमरे में मौन पसरा रहा, फिर मम्मी ने पूछा, ‘‘कुछ खाओगी? ले आऊं?’’
‘‘हां मम्मी, खाऊंगी ज़रुर खाऊंगी. मुझे बहुत लंबी लड़ाई लड़नी है और भूखे पेट ज़्यादा देर नहीं लड़ा जा सकता. इसलिए मैं खाऊंगी. भरपेट खाऊंगी. जिस पाप में मेरी कोई ग़लती नहीं है, उसके लिए शोक मना कर मैं ख़ुद को नहीं जलाऊंगी.’’ मोनिका ने कहा.
मम्मी ने कुछ नहीं कहा, लेकिन उनकी आंखों से आंसू छलक आए, जिन्हें पोंछते हुए वे किचन की ओर चली गईं. किशोर दयाल चुपचाप ही बैठे रहे. ऐसा लग रहा था जैसे उनके पास शब्द ही समाप्त हो गए हों.
मम्मी थोड़ी ही देर में परांठे सेंक लाईं. उन्हें खाकर मोनिका ने प्लेट रखी ही थी कि उसके मोबाइल की घंटी बज उठी. उसने देखा कोई अनजान नंबर था. उसने मोबाइल ऑन करते हुए कहा, ‘‘हैलो.’’
‘‘मिस मोनिका चौधरी बोल रही हैं?’’ उधर से एक गंभीर स्वर सुनाई पड़ा.
‘‘जी, आप कौन?’’
‘‘मैं अमन का बदनसीब बाप चौधरी दीनानाथ बोल रहा हूं.’’
अचानक मोनिका की छठी इंद्रिय जागृत हो गई. उसने तुरंत मोबाइल का रिकाॅर्डिंग मोड ऑन कर दिया और बोली, ‘‘इसका मतलब आपके कुत्तों ने आप तक ख़बर पहुंचा दी.’’
‘‘बेटी, तुम्हारे साथ जो कुछ भी हुआ उसके लिए मुझे अफ़सोस है, लेकिन जो बीत गया वह वापस नहीं आ सकता. इसलिए बीस लाख रुपए ले लो और इस मामले को यहीं समाप्त कर दो.’’ मंत्रीजी ने शांत स्वर में कहा.
‘‘ज़रूर समाप्त कर दूंगी, बस मेरे एक प्रश्न का उत्तर दे दीजिए.’’
‘‘कैसा प्रश्न?’’
‘‘अगर यही घटना आपकी बेटी के साथ हुई होती, तो आप कितने रुपए लेकर यह मामला समाप्त करते?’’
‘‘गुस्ताख़ लड़की, तुझे मालूम नहीं कि तू किसके साथ बात कर रही है?’’ मंत्री महोदय चीख पड़े.
‘‘अच्छी तरह से जानती हूं कि मैं एक बलात्कारी के बेईमान बाप से बात कर रही हूं.” मोनिका का भी स्वर तेज हो गया.
‘‘तो यह भी जानती होगी कि अगर मैं एक इशारा कर दूं, तो तेरी लाश भी ढूढ़े नहीं मिलेगी. इसलिए जो दे रहा हूं उसे चुपचाप रख ले और अपना मुंह बंद कर. कल सुबह तक बीस लाख रुपए तेरे घर पहुंच जाएंगे.’’ मंत्रीजी दांत पीसते हुए बोले.
मोनिका ने बिना कुछ कहे फोन काट दिया. किशोर दयाल पूरी बात समझ गए थे. अतः समझाते हुए बोले, ‘‘बेटा, वे बहुत प्रभावशाली लोग हैं. उनके ख़िलाफ़ कुछ नहीं हो सकता.’’
‘‘पापा, मेरे ख़िलाफ़ अन्याय हुआ है. मैं चुप नहीं बैठूंगी.”
‘‘तो तुम क्या करोगी?’’
‘‘नहीं जानती, मगर मैं चुप नहीं रहूंगी.’’ मोनिका ने कहा और अपने कमरे में चली गई.
बिस्तर पर लेटे-लेटे वह काफ़ी देर तक सोचती रही, मगर तय नहीं कर पा रही थी कि क्या करे. पुलिस-प्रशासन-मीडिया कोई भी उसका साथ देने के लिये नहीं तैयार था. तो क्या उसे हार मान लेनी चाहिए? नहीं वह हार नहीं मानेगी. तो फिर क्या करोगी? इस प्रश्न का उत्तर उसके पास न था.
सोशल मीडिया! अचानक एक बिजली-सी कौंधी. सोशल मीडिया की शक्ति असीमित है. उसे सोशल मीडिया का सहारा लेना चाहिए. किंतु क्या यह आत्मघाती कदम नहीं होगा? क्या इससे उसकी अपनी आबरू तार-तार नहीं हो जाएगी? कहीं वह लोगों के मनोरंजन का पात्र तो नहीं बन जाएगी?
पूरी रात मोनिका बिस्तर पर करवटें बदलती रही, मगर सुबह की किरणें फूटते-फूटते उसके मन में उजियाले की किरण फूट पड़ी. उसे चोट पहुंची थी, उसकी अंतरात्मा तक में घाव लगे थे और अपने घाव दूसरों को दिखलाने में कोई बुराई नहीं थी. एक कठोर निर्णय लेते हुए वह बिस्तर से उठ बैठी. लैपटाॅप पर उसने अपना फेसबुक एकाउन्ट खोला और लिखने लगी.
सभी साथियों और शुभचिन्तकों को अबला कही जाने वाली स्त्री जाति की एक प्रतिनिधि का नमस्कार! मुझे क्षमा करिएगा. आज मैं वह दुस्साहस करने जा रही हूं, जो बहुत पहले किया जाना चाहिए था, लेकिन आज तक किसी ने नहीं किया. किन्तु किसी न किसी को कभी न कभी तो पहल करनी ही थी.
इज्ज़त! इज्ज़त क्या होती है? इसकी परिभाषा क्या है? यह एक पक्षीय क्यूं होती है? यह हमेशा स्त्री की ही क्यूं लुटती है? लुटेरे की इज्ज़त अखंडित क्यूं रहती है? इस इज्ज़त की शुचिता और अखंडता की ज़िम्मेदारी केवल स्त्री के ही ज़िम्मे क्यूं? क्या पुरुष के कौमार्य और उसकी मर्यादा को अच्छुण रखना आवश्यक नहीं? यदि बलात्कार से स्त्री का शरीर अपवित्र हो जाता है, तो उसे अपवित्र करनेवाले पुरुष का शरीर पवित्र कैसे रह सकता है? अपराधी की बजाय अपराध की सज़ा वह भुगते, जिसके साथ अन्याय हुआ है यह कहां का न्याय है?
यह वे प्रश्न हैं, जिनके उत्तर बहुत पहले ही दिए जाने चाहिए थे. किन्तु ये प्रश्न अनुत्तरित रह गए, इसीलिये पुरुष को जन्म देनेवाली स्त्री आज भी पुरुषों के ज़ुल्म सहने के लिए मजबूर है. कल मेरे साथ एक प्रभावशाली मंत्री के बेटे ने रेप किया. मैं हमेशा के लिए उसकी सेक्स-स्लेव बन जाऊं, इसलिए उसने उस कुकर्म की वीडियो भी बना ली. ऐसी स्थित में एक स्त्री के पास दो ही रास्ते बचते हैं. पहला यह कि वह कुकर्मियों के इशारे पर नाचे और दूसरा यह कि वह आत्महत्या कर ले. मगर मैंने तीसरा रास्ता चुना है. अपने बलात्कार का वीडियो मैं ख़ुद अपलोड कर रही हूं, क्योंकि मंत्री के भय से पुलिस-प्रशासन-मीडिया कोई भी मेरी मदद करने के लिए तैयार नहीं है. हो सकता है कि इसके बाद दुनिया मेरी नग्नता पर चटखारे ले, लेकिन अपने बलात्कारियों के सामने नित्य र्निवस्त्र होकर जिल्लतभरी ज़िंदगी जीने से शायद यह कम शर्मनाक होगा.
कोई भी निर्णय लेने से पहले आप लोग इतना अवश्य सोचिएगा कि अगर मेरे साथ बलात्कार हुआ है, तो इसमें मेरा दोष क्या है? मैं मुंह छुपाती क्यूं फिरू? मैं आत्महत्या क्यूं करूं? मैंने तय किया है कि मैं चुप नहीं रहूंगी. अगर आपको मेरी बात जायज़ लगे, तो मेरी आवाज़ के साथ आप अपनी आवाज़ ज़रूर मिलाइएगा, वरना मुझे बेहया और बेशर्म ठहराने के लिए आप सब हमेशा की तरह स्वतंत्र है.
इतना लिखने के बाद मोनिका ने अमन से मिले वीडियो क्लिपिंग और मंत्री दीनानाथ चौधरी की आडियो क्लिपिंग को फेसबुक पर अपलोड कर दिया. उसके बाद वहीं से उसे व्हाट्सअप के कई ग्रुपों पर फारवर्ड कर दिया.
जैसे बहुत बड़ा बोझ सिर से उतर गया हो. राहत की सांस लेते हुए मोनिका बिस्तर पर लेट गई. चंद पलों बाद ही वह किसी बच्चे की भांति नींद के आगोश में समाती चली गई.
ऐसा भी भला कभी हो सकता है? अकल्पनीय सत्य! अविश्वनीय यथार्थ! किसी ने सोचा भी न था कि बलात्कार का शिकार होनेवाली लड़की मुंह छुपाने की बजाय अपने ही बलात्कार का वीडियो ऑनलाइन कर देगी. चंद पलों में मोनिका का वीडियो और आडियो दोनों ही वायरल हो गए. हर गली, हर मोड़, हर दुकान, हर मकान, हर ऑफिस और हर फोरम पर उसके ही चर्चे हो रहे थे. पक्ष और विपक्ष में तर्क दिए जा रहे थे. एक इसे बेशर्मी करार देता, तो दस लोग अद्म्य साहस!
नारियों और नारी संगठनों के तो जैसे सब्र का बांध ही टूट गया हो. ‘मैं चुप नहीं रहूंगीं’ के बैनर और तख्ती लिए हर गली-कूचे से महिलाओं के जत्थे बाहर निकलने लगे. हज़ारों की भीड़ ने दीनानाथ चौधरी के बंगले को घेर लिया. दूसरे शहरों से भी महिलाओं की भीड़ मोनिका के समर्थन में उसके घर के बाहर जमा होने लगी. हर ज़ुबान पर बस एक ही आवाज़ थी- ‘मैं चुप नहीं रहूंगी!’’
सहमते हुए चला हवा का एक झोंका देखते ही देखते प्रचंड तूफान का रूप धारण कर चुका था, जिसके आगे सरकार के भी पैर उखड़ने लगे थे. दोपहर होते-होते दीनानाथ चौधरी को मंत्रिमंडल से बर्खास्त करने और अमन को जेल भेजने की खबर आ गई.
‘‘साथियों, अगर किसी लड़की के साथ बलात्कार हुआ है, तो उसे मुंह नहीं छुपाना चाहिए. उसे अपनी आत्मा पर लगे घाव को वैसे ही दिखाना चाहिए जैसे शरीर पर लगे दूसरे घावों को दिखाया जाता है. शर्मसार उसे नहीं, बल्कि उसे होना चाहिए जिसने यह अपराध किया है. इसलिए जिस दिन आप सब चुप न रहने का निर्णय ले लेंगी, उस दिन ये अपराध अपने आप रूक जाएंगे.’’ मोनिका अपने घर के सामने जमा स्त्रियों की भीड़ को संबोधित कर रही थी और सभी की आखों में उसके लिए प्रसंशा के भाव थे. उसने जो दिशा दिखलाई थी उसका अनुसरण करना ही अपनी सुरक्षा का सबसे सुरक्षित मार्ग था.